hoysala architecture style in hindi होयसल शैली किसे कहते हैं ? होयसल कला पर एक सामान्य भूमिका लिखें ?
होयसल शैली
होयसल शैली (1050-1300 ई.) का विकास कर्नाटक के दक्षिणी क्षेत्र में हुआ। ऐसा कहा जा सकता है कि होयसल कला का आरंभ ऐहोल, बादामी और पट्टदकल के प्रारंभिक चालुक्य कालीन मंदिरों में हुआ, लेकिन मैसूर क्षेत्र में विकसित होने स्थापत्य के पश्चात् ही इसका विशिष्ट स्वरूप प्रदर्शित हुआ, जिसे ‘होयसल शैली’ के नाम से जागा गया। अपनी प्रसिद्धि के चरमकाल में इस शैली की एक प्रमुख विशेषता स्थापत्य की योजना और सामान्य व्यवस्थापन से जुड़ी है। एक महत्वपूर्ण स्मारक हासन जिले में बेलूर स्थित केशव मंदिर है। इसका निर्माण विष्णुवर्धन ने करवाया था। तलकाड़ में चोल शासकों पर उसकी विजय के उपलक्ष्य में निर्मित इस मंदिर के इष्ट देव को वस्तुतः अपने केशव रूप में विष्णु ही विजय नारायण कहा गया। मंदिर के मुख्य भवन में हैं सामान्य कक्ष, अंतर्गृह, जो द्वारमंडप से जुड़ा है, एक खुला स्तंभ मंडप और केंद्रीय कक्ष। किंतु वास्तविक वास्तुयोजना के हिसाब से होयसल मंदिर केशव मंदिर और हेलबिड के मंदिर, सोमनाथपुर और अन्य दूसरों से भिन्न हैं। स्तम्भ वाले कक्ष सहित अंतग्रृह के स्थान पर इसमें बीचांे-बीच स्थित स्तंभ वाले कक्ष के चारों तरफ बने अनेक मंदिर हैं, जो तारे की शक्ल में बने हैं।
कई मंदिरों में दोहरी संरचना पायी जाती है। इसके प्रमुख अंग दो हैं और नियोजन में प्रायः तीन, चार और यहां तक कि पांच भी हैं। हर गर्भगृह के ऊपर बने शिखर को जैसे-जैसे ऊपर बढ़ाया गया है, उसमें आड़ी रेखाओं और सज्जा से नयापन लाया गया है, जो शिखर को कई स्तरों में बांटते हैं और यह धीरे-धीरे कम घेरे वाला होता जाता है। वस्तुतः होयसल मंदिर की एक विशिष्टता संपूर्ण भवन की सापेक्ष लघुता है। तथापि 1117 ई. में बना बेलूर स्थित केशव मंदिर अपनी अधिसंरचना के बिना भी (जिस रूप में यह आज खड़ा है) अपने उत्कृष्ट सौंदर्य को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। इस मंदिर की कुछ अतिप्रशंसित मूर्तियां, जिन्हें कन्नड़ भाषा में ‘मदनकाइस’ कहा जाता है, को मंडप की प्रलम्ब छत के नीचे रखा गया है। मंदिर का आंतरिक भाग भी उतना ही भव्य है, जितना बाहरी। मंडप के हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। कुछ पर आकृतियां हैं तो कुछ पर अन्य रूप तथा कुछ सहज गोलाई लिए हुए हैं। मंदिर में प्रवेश माग्र के दोनों तरफ विशाल वैष्णव द्वारपाल हैं।
होयसलों की राजधानी हेलबिड (प्राचीन द्वारसमुद्र) में सबसे प्रमुख भवन होयसलेश्वर मंदिर है। यह मंदिर शिव को समर्पित है। इसे अलंकृत निर्माण शैली का एक श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है। मान्यता है कि इसका निर्माण कार्य 1121 ई. में प्रारंभ हुआ था और विष्णुवर्धन के पुत्र और उसके उत्तराधिकारी नरसिंह प्रथम के वास्तुकारों ने 1160 ई. में इसे पूरा किया था। इसमें दो एकसमान मंदिर हैं, जो एक ही विशाल आधार मंच पर बने हैं। दोनों क्रुसाकार दीर्घा के माध्यम से आपस में जुड़े हुए हैं।
नरसिंह तृतीय द्वारा निर्मित मंदिरों में सोमनाथपुर का प्रसिद्ध केशव मंदिर है (जिसे सोमनाथ भी कहा जाता है)। यह अलंकृत शैली में बना एक वैष्णव मंदिर है।
वास्तुशिल्प नियोजन के अतिरिक्त होयसल शैली की कुछ अन्य विशेषताएं भी थीं। इसमें बलुई पत्थर के स्थान पर पटलित या स्तरित चट्टान का प्रयोग किया गया क्योंकि इस पर तक्षण कार्य अच्छी तरह से किया जा सकता है।
शिल्पकारों द्वारा एकाश्मक अखंडित चट्टान को बड़ी लेथ पर घुमाकर इच्छित आकार देने की क्रिया के चलते स्तंभों को विशिष्ट रूप मिल जाता था और इन मंदिरों को निरंतर समृद्ध होते वास्तु अलंकरण से अलंकृत किया भी जाता था।