समांगी और विषमांगी उत्प्रेरण में अंतर क्या है , उदाहरण homogeneous and heterogeneous catalysis difference in hindi

पढ़िए कि समांगी और विषमांगी उत्प्रेरण में अंतर क्या है , उदाहरण homogeneous and heterogeneous catalysis difference in hindi समांगी एवं विषमांगी उत्प्रेरण के एक-एक उदाहरण दें।

उत्प्रेरित अभिक्रियाओं की क्रियाविधि (MECHANISM OF CATALYSED REACTIONS) : विभिन्न अभिक्रियाओं में उत्प्रेरक की कार्यप्रणाली के आधार पर उत्प्रेरण को दो प्रकारों में बांटा गया है-(i) जब उत्प्रेरक व क्रियाकारक एक ही अवस्था में विद्यमान हों, इस उत्प्रेरक को समांग उत्प्रेरक व इस प्रक्रिया को समांग उत्प्रेरण कहते हैं। (ii) जब उत्प्रेरक व क्रियाकारकों की प्रावस्था भिन्न-भिन्न हो, तब उत्प्रेरक को विषमांग उत्प्रेरक व इस प्रक्रिया को विषमांग उत्प्रेरण कहते हैं। इन दोनों प्रकार के उत्प्रेरणों का संक्षिप्त अध्ययन निम्न प्रकार है :

 समांग उत्प्रेरण (Homogeneous Catalysis)

एक ऐसा उत्प्रेरकीय प्रक्रम जिसमें क्रियाकारक व उत्प्रेरक की एक ही प्रावस्था (phase) के अंग हों ऐसे प्रक्रम को समांग उत्प्रेरकीय प्रक्रम (homogeneous catalytic process) अथवा समांग उत्प्रेरण (homogeneous catalysis) कहा जाता है। उदाहरणार्थ, उपर्युक्त वर्णित अभिक्रिया में क्रियाकारक SO2 व O2 दोनों ही गैसें हैं और उत्प्रेरक NO भी एक गैसीय पदार्थ है। अतः यह एक समांगी उत्प्रेरण का उदाहरण है।

2SO2(g) + O2(g) + [NOg] → 2SO3(g) + [NO(g)]

इसी प्रकार हाइड्रोजन व क्लोरीन के संयोग से HCl के बनने की क्रिया में जल वाष्प उत्प्रेरक का कार्य करती है। ये सभी पदार्थ गैसीय अवस्था में हैं इसलिए एक ही अवस्था के अंग हैं :

H2(g) + Cl2(g) + [H2O(g)] 2HCl(g) + [H2O(g)]

शर्करा के घोल का प्रतीपन खनिज अम्लों की उपस्थिति में होता है। ये दोनों द्रव अवस्था में है आर दाना जलाय माध्यम के होने के कारण परस्पर एक-दसरे में विलयशील हैं, अतः एक ही प्रावस्था का रचना करते हैं। अतः यह भी एक समांग उत्प्रेरण का ही उदाहरण है।

C12H22O11 (aq) + H20 → C6H12O6(aq) + C6H12O6(aq)

शर्करा                                ग्लूकोस                       फ्रक्टोस

विषमांग उतोरण (Heterogeneous Catalysis)

विषमांग उत्प्रेरण  में सामान्यतया उत्प्रेरक एक ठोस के रूप में होता है व क्रियाकारक द्रव, विलयन अथवा गैसीय अवस्था में होते हैं और अभिक्रिया उत्प्रेरक की सतह से प्रारम्भ होती है। इसी कारण विषमांग उबरक का पृष्ठ या सतह उत्प्रेरक (surface catalyst) भी कहा जाता है और इन उठोरकों का अध्ययन पृष्ठ या सतह रसायन विज्ञान (surface chemistry) के अन्तर्गत किया जाता है।

औधिोगिक दृष्टि से कई महत्वपूर्ण अभिक्रियाएं विषमांगी द्वारा सम्पन्न होती है, इनमें से कुछ प्रमुख अभिक्रियाएं निम्न हैं:

  • सम्पर्क विधि द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल के निर्माण में So2 का SO3में ऑक्सीकरण उत्प्रेरक प्लैटिनीकृत ऐस्बेस्टॉस तथा वैनेडियम पेण्टॉक्साइड की उपस्थिति में किया जाता है।

SO2(g) + ½ O2(g)  – So3(g)

  • अमोनिया के निर्माण की हैबर विधि में महीन चूर्ण किए हए आइरन तथा ऐलुमिनियम ऑक्साइड की उपस्थिति में नाइट्रोजन व हाइड्रोजन की क्रिया करवाई जाती है :

N2(g) + 3H2(g) – → 2NH3(g)

  • जिंक ऑक्साइड व क्यूप्रिक ऑक्साइड उत्प्रेरक की उपस्थिति में कार्बन मोनो-ऑक्साइड व हाइड्रोजन की क्रिया से मेथेनॉल बनता है :

CO(g) + 2H2(6)  →  CH3OH

  • मोटरगाड़ी, आदि के एक्सॉस्ट (exaust) में प्लैटिनम उत्प्रेरक की उपस्थिति में कार्बन मोनो-ऑक्साइड का ऑक्सीकरण होता है :

2CO + O2 → 2CO2

  • जीगलर विधि (Ziegler’s method) में उत्प्रेरक टाइटेनियम(IV) क्लोराइड (TICL) तथा ट्राइऐल्किल ऐलुमिनियम (R3AI) की उपस्थिति में एथिलीन का बहुलकीकरण (polymerization) करवाया जाता है।

NC2H4(g) → (C2H4)

  • वनस्पति तेल से वनस्पति घी के निर्माण में अथवा ऐल्कीनों के ऐल्केनों में हाइड्रोजनीकरण करने ___ में महीन चूर्ण किए हुए निकल को उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है :

RCH = CH2(g) + H2(g) – RCH2 -CH3

  • नाइट्रिक अम्ल बनाने की ओस्टवाल्ड विधि में अमोनिया का ऑक्सीकरण उठोरक प्लैटिनम की। जाली की उपस्थिति में सम्पन्न कराया जाता है :

4NH3 + 502 -6H2O + 4NO

  • हाडडोजन की उपस्थिति में ऐल्केनों का भंजन (cracking) उत्प्रेरक जीओलाइट (zeolite) की। उपस्थिति में सम्पन्न कराया जाता है जिससे उच्च कोटि के पेट्रोल या गैसोलीन का निर्माण होता है।

(Ix) फिशर टॉप विधि में उठोरक कोबाल्ट की उपस्थिति में कार्बन मोनो-ऑक्साइड व हाइडोजन के सयोग से ऐल्केन बनाए जाते हैं। इस विधि का उपयोग कोयले से पेट्रोल के निर्माण में किया जाता है। इस प्रकार जीवन के विविध क्षेत्रों में विषमांगी उत्प्रेरण  का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। विषमांगी उठोरक में दो बातें अत्यन्त महत्व की हैं सक्रियता तथा सलेक्टिवता।

  • सक्रियता (Acitivity) : किसी उठोरक की सक्रियता से तात्पर्य यह है कि उस उठोरक की रासायनिक आमाक्रयाओं को त्वरित करने की (अर्थात् वेग बढ़ाने की क्षमता कितनी है। कुछ अभिक्रियाओं के वेग में 10″ तक का त्वरण हो जाता है। उटोरकीय सक्रियता का सर्वोत्तम उदाहरण है—उठोरकप्लेटिनम की उपस्थिति म हाइड्रोजन व ऑक्सीजन की क्रिया द्वारा विस्फोट के साथ जल का बनना। हाइड्रोजन व ऑक्सीजन को उठोरक की अनुपस्थिति में अनिश्चित काल तक मिश्रित करके रखा जा सकता है, अर्थात् उनमें परस्पर कोई अभिक्रिया ही सम्पन्न नहीं होती लेकिन उत्प्रेरक के आते ही अभिक्रिया हुई और इतनी तीव्र हुई कि विस्फोट हो गया।

(ii) सलेक्टिवता (Selectivity) : सलेक्टिवता से तात्पर्य यह है कि उत्प्रेरक किसी अभिक्रिया की दिशा का तय करता है, जिससे बने हुए उत्पाद की प्रकृति निर्धारित होती है। उदाहरणार्थ, यदि प्लेटिनम उत्प्रेरक की उपस्थिति में n-हेप्टेन का भंजन करवाया जाए तो टॉलूईन बनती है

n-C17H16→ C6H5 CH3 +4H2

इसी प्रकार बिस्मथ मॉलिब्डेट उत्प्रेरक की उपस्थिति में प्रोपीन की ऑक्सीजन के साथ क्रिया करवायी जाए तो ऐक्रोलिन बनती है

CH3CH = CH2 + O2 – CH2 = CH = CHO

इनके अतिरिक्त रसायन विज्ञान में अम्ल-क्षार उत्प्रेरण  व जैव रसायन में एन्जाइम उत्प्रेरण  का अत्यधिक महत्व है।

  • अम्ल-क्षार उत्प्रेरण (ACID-BASE CATALYSIS)

कई रासायनिक अभिक्रियाएं विशेष रूप से कार्बनिक अभिक्रियाएं अम्ल अथवा क्षार अथवा दोनों की उपस्थिति से उत्प्रेरण  होती हैं, इस प्रकार की अभिक्रियाओं का सम्पन्न होना अम्ल-क्षार उत्प्रेरण  कहलाता है। एक सामान्य प्रथम कोटि अभिक्रिया में क्रियाकारक S के लुप्त होने का वेग S की सान्द्रता पर निर्भर करता है। अर्थात्

– d[S] /dt = k[S] …(1)

यह अभिक्रिया अम्ल-क्षार उत्प्रेरित हो तो उसके वेग स्थिरांक k का मान अम्ल-क्षार की सान्द्रता पर निम्न प्रकार से निर्भर करता है:

K = ko + kH‘ [H] + koH – [OH ] + kHA [HA] + kA[A] ……….(2)

जहां ko उठोरक की अनुपस्थिति में प्रथम कोटि वेग स्थिरांक है तथा kH’, koH , KHA व kA उत्प्रेरकीय गुणांक (Catalytic coefficients) हैं।

अम्ल-क्षार उत्प्रेरण  प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है :

(1) सामान्य अम्ल-क्षार उतोरण (General Acid-base Catalysis)-जब कोई अभिक्रिया किसी भी । अम्ल अथवा किसी भी क्षार की उपस्थिति से उत्प्रेरित होती हो तो उसे सामान्य अम्ल-क्षार उत्प्रेरण  कहते हैं। अतः एक सामान्य अम्ल उत्प्रेरण  अभिक्रिया प्रोटॉन (H’), किसी दुर्बल अम्ल HA(CH3COOH), किसी दुर्बल क्षार के धनायन (NH4) अथवा जल (H2O) में से किसी के द्वारा भी उत्प्रेरित हो सकती है। इसी प्रकार एक सामान्य क्षार उत्प्रेरित अभिक्रिया हाइड्रॉक्साइड आयन (OH), किसी दुर्बल क्षार BOH(NH,OH), किसी दुर्बल अम्ल के ऋणायन (CH3COO) अथवा जल (H2O) में से किसी के द्वारा भी उत्प्रेरण  हो सकती है। उदाहरणार्थ, नाइट्रामाइड का विघटन एक सामान्य अम्ल-क्षार उत्प्रेरण का उदाहरण है :

NH2 NO2 → N2O+ H2O

(2) विशिष्ट अम्ल-क्षार उतोरण (Specific Acid-base Catalysis)-जब कोई रासायनिक अभिक्रिया केवल प्रोटॉन (H’) अथवा केवल हाइड्रॉक्साइड आयनों (OH) के द्वारा ही उत्प्रेरित हो सकती हो तो उसे विशिष्ट अम्ल-क्षार उत्प्रेरण  कहा जाता है।

(i) सामान्य अम्ल-क्षार उत्प्रेरण  अभिक्रियाएं एक सामान्य अम्ल उत्प्रेरण अभिक्रिया में KHA[HA] व एक सामान्य क्षार उत्प्रेरण  अभिक्रिया में KA [A] पद महत्वपूर्ण होते हैं। इसकी स्पष्ट व्याख्या करने के लिए हम विभिन्न प्रकार की अम्ल-क्षार उत्प्रेरण की क्रियाविधियों का अध्ययन करेंगे:

(अ) एक अम्ल उत्प्रेरित अभिक्रिया की क्रियाविधि निम्न प्रकार से दर्शायी जा सकती है जिसमें मध्यवर्ती (SH’) एक क्रियाशील उत्पाद है।

  1. + HA = SH + A

उठोरक      मध्यवर्ती

SH+ + H20- + P + H30+

उत्पाद

इस क्रियाविधि में k-1 की तुलना में यदि k2 का मान काफी अधिक हो (k2>>k-1), तो इसके लिए। निम्न वेग समीकरण प्राप्त होती है :

Dx/dt = k1[S][HA] ……………………(3)

उपर्युक्त के विपरीत यदि k-1 की तुलना में k2 का मान काफी कम हो (k2 <<k-1) तो इसके लिए निम्न वेग समीकरण प्राप्त होती है :

Dx /dt = k1k2[S][HA] /k-1[A] …………..(4)

(ब) इसकी दूसरी प्रकार की क्रियाविधि निम्न प्रकार से दर्शायी जा सकती है :

S+ HA _ SH + A

SH’ +A→P+ HA

इस क्रियाविधि के लिए निम्न प्रकार की वेग समीकरण प्राप्त होती है :

Dx /dt = k1k2[S][HA] / (k1+k2)  ………….(5)

इन अभिक्रियाओं का वेग अम्ल HA की सान्द्रता पर निर्भर करता है, अतः ये सब सामान्य अम्ल उत्प्रेरण  के उदाहरण हैं।

  • विशिष्ट अम्ल-क्षार उतोरण अभिक्रियाएं इन अभिक्रियाओं की क्रियाविधि सामान्य अम्ल उत्प्रेरण अभिक्रियाओं की भांति ही होती है लेकिन इनमें k2 का मान k-1 की तुलना में काफी कम होता है। (k2<<k-1), अतः इनके लिए निम्न प्रकार की वेग समीकरण प्राप्त होती है ।

Dx/dt = K[S][H’) …………………(6)

इनमें अभिक्रिया का वेग प्रोटॉनों की सान्द्रता पर निर्भर करता है, अतः ये विशिष्ट अम्ल उत्प्रेरण। अभिक्रियाओं के उदाहरण हैं।

उदाहरण 8.1. एक अम्ल उत्प्रेरण  अभिक्रिया है : A + H2O + H → उत्पाद

जहां [H] = 0.1 mol dm-3 और जल अधिक मात्रा में है। इस अभिक्रिया के प्रत्यक्ष वेग स्थिरांक। अर्थात छदम प्रथम कोटि अभिक्रिया के वेग स्थिरांक का मान 1.5×10-5s-1 है। इसके वास्तविक वेग स्थिरांक का परिकलन कीजिए।

जहां अभिक्रिया का वेग स्थिरांक, k = kH [H] + koH [OH ] है।

हम जानते हैं कि [H]IOH] = KW होता है अर्थात् k का मान विलयन की pH पर निर्भर करेगा। अतः logk और PH के मध्य यदि ग्राफ खींचा जाए तो एक निश्चित pH पर वेग स्थिरांक का मान न्यूनतम होता है जैसा कि चित्र 8.1 से प्रदर्शित है। दूसरे शब्दों में, प्रोटॉनों अथवा हाइड्रॉक्साइड आयनों में से किसी की भी सान्द्रता वृद्धि से वेग स्थिरांक का मान बढ़ जाता है।

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