के प्रकाश से उर्जा को को प्राप्त कर लेते है पेड़ की पत्तियो का हरा रंग क्लोरोफिल
की वजह से होता है।
कोशिकांग होते हैं, जिन्हें क्लोरोप्लास्ट (हरित लवक) कहा
जाता है, जिनमें क्लोरोफिल होता है। हरी
पत्तियों में उपस्थित ये क्लोरोफिल, सूर्य के प्रकाश से उर्जा को अवशोषित कर रासायनिक परिवर्तन द्वारा इसे रासायनिक
उर्जा में बदल देती हैं।
ग्रहण करते हैं। क्लोरोफिल सूर्य की प्रकाश से प्राप्त उर्जा के द्वारा इस जल को
हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के अणुओं में विखंडित या तोड़ देती है।
होते हैं, जिन्हें रंध्र छिद्र कहा जाता है। इन सूक्ष्म
रंध्र छिद्रों के द्वारा पत्तियाँ हवा से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करती हैं। प्रकाशसंश्लेषण के लिए गैसों का
अधिकांश आदान-प्रदान
इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है।पेड़ पौधों में
गैसों का आदान प्रदान इन रंध्र छिद्रों के अलावा तने, जड़ तथा पत्तियों की सतह से भी होता
है।
बंद रन्ध्र छिद्र
की हानि के लिए ये रंध्र जिम्मेदार होते है
जब कार्बन डाइऑक्साइड की प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यकता नहीं होती है तब
पौधा इन छिद्रों को बंद कर लेता है। छिद्रों का
खुलना और बंद होना कोशिकाओं का एक कार्य
है। जब जल कोशिकाऔ के अन्दर जाता है। तो यह
द्वार कोशिकायें तो फूल जाती हैं और रंध्र का छिद्र खुल जाता है। जब
द्वार कोशकाएँ सिकुड़ती हैं तो छिद्र बंद हो जाता है। जब यह छिद्र बंद हो जाता है तब पेड़ पौधों से जल की हानि नहीं होती है।
पत्तियों के रंध्र छिद्र द्वारा
प्राप्त कार्बन डाइऑक्साइड जल से प्राप्त ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन अणुओं से
प्रतिक्रिया कर ग्लूकोज में अपचयित या परिवर्तित हो जाता है।
कार्बोहाइड्रेट जो की ग्लूकोज
के रूप में प्राप्त होता है पेड़ तथा पौधों को उर्जा प्रदान करती है।
सभी पौधों में प्रकाश संश्लेषण
की प्रतिक्रिया इस प्रकार से नहीं होती है मरुभूमि (जमीन के अन्दर ) में उगने वाले
पौधे रात्रि में बाहरी वातावरण से कार्बन
डाइऑक्साइड प्राप्त करते हैं और एक उत्पाद बनाते हैं और दिन में सूर्य के प्रकाश
से उर्जा प्राप्त कर उत्पाद को ग्लूकोज में परिवर्तित करते हैं। पेड़ पौधों को शरीर
के निर्माण के लिए अन्य कच्ची सामग्री की भी आवश्यकता होती है।
पौधे जल के साथ साथ अन्य
कच्ची सामग्रियाँ जैसे की नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, लोहा तथा मौग्नीशियम आदि खनिज पदार्थ मिट्टी से प्राप्त करते
हैं। नाइट्रोजन का उपयोग प्रोटीन तथा अन्य आवश्यक यौगिकों के संश्लेषण में किया
जाता है।
भोजन से पोषण प्राप्त करते हैं, विषमपोषी कहलाते
हैं।
एक ग्रीक शब्द है, जो दो शब्दों से “हेट्रो “ का अर्थ होता है “दूसरा” तथा “ट्रॉप्स ” का अर्थ होता है “पोषण”। अर्थात दूसरे या अन्य से पोषण।
पर पोषण की विधि विभिन्न प्रकार की होती है और साथ ही पोषण प्राप्त करने के तरीके, जीव के भोज़न ग्रहण करने के ढ़ग पर भी निर्भर करता है। सारे जीव भोजन
की उपलब्धता के अनुरूप ही विकसित होते हैं।
लिए शरीर के अन्दर पाचन प्रकिया के द्वारा विघटित करते हैं, जैसे कि मनुष्य, कुत्ता, घोड़ा, हाथी, बाघ, इत्यादि। कुछ जीव भोजन को शरीर के
बाहर ही विघटित कर उसको गहण करते हैं जैसे की फफूँदी, यीस्ट, मशरूम, आदि।
है जैसे कि मनुष्य, शेर आदि।
प्राप्ति के लिए शरीर के अंदर पाचन के द्वारा विघटित करते हैं, जैसे कि मनुष्य, कुत्ता, घोड़ा, हाथी, बाघ, शेर, कौआ, इत्यादि। जबकि कुछ जीव भोजन को शरीर
के बाहर ही विघटित कर उसका अवशोषण करते हैं, यथा फफूँदी, यीस्ट, मशरूम, आदि।
तंत्र भी अलग अलग होते है।
जैसे एककोशिक जीव भोजन को शरीर के संपूर्ण सतह से लेते हैं।
एककोशिक जीव का एक उदाहरण अमीबा होता है। तथा अन्य जटिल जीव भोजन को खाने की
प्रक्रिया के द्वारा शरीर के अंदर लेते हैं जहाँ उसका पाचन होकर विघटन होता है जैसे मनुष्य,गाय, हाथी आदि
जटिल जीव के उदारण हैं।
अमीबा में पोषण
अमीबा की कोशिकीय सतह
पर अँगुली जैसे अस्थायी प्रवर्ध होते है जिसकी मदद से वह भोजन ग्रहण करता है। यह अँगुली
जैसे अस्थायी प्रवर्ध भोजन के कणों को घेर
लेते हैं तथा संगलित होकर खाद्य रिक्तिका बनाते हैं। इस खाद्य रिक्तिका के अंदर जटिल पदार्थों को
सरल पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है और वे कोशिकाद्रव्य में विसरित हो जाते हैं।
अपच पदार्थ जो की अपाचित है कोशिका की सतह
की ओर
गति करता है और शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। पैरामीशियम भी एककोशिक जीव है, इसकी कोशिका का एक निश्चित आकार होता है तथा भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया
जाता है।