हिपेटाइटिस कितने प्रकार का होता है , hepatitis all types in hindi , हेपेटाइटिस A एवं हेपेटाइटिस B विषाणु अंतर क्या है

पढो कि हिपेटाइटिस कितने प्रकार का होता है , hepatitis all types in hindi , हेपेटाइटिस A एवं हेपेटाइटिस B विषाणु अंतर क्या है ?

हिपेटाइटिस (Hepatitis)

हिपेटाइटिस अर्थात् यकृत शोथ यकृत का रोग है जिसमें यकृत में सूजन (inflammation) आ जाती है। यह क्रिया 5 प्रकार के विषाणुओं के संक्रमण के कारण हो सकती है। इस आधार पर हिपेटाइटिस A, B, C, D एवं E प्रकार का वर्गीकृत किया जाता है। सभी विषाणु तीव्र रोग उत्पन्न करते हैं जिसके लक्षण अनेक सप्ताह तक बने रहते हैं। इसमें त्वचा का वर्ण, नेत्र व नाखून पीले पड़ जाते हैं, मूत्र का रंग गहरा पीला हो जाता है जिसे सामान्यत: पीलिया (jaundice) कहते हैं। रोग के दौरान अत्यधिक थकान, नाक का बहना, उल्टी एवं उदर में दर्द होता है। रोग के कारण व्यक्ति में अत्यधिक कमजोरी आ जाती है तथा ठीक होने में अनेकों माह तक लग सकते हैं। हिपेटाइटिस B द्वारा संक्रमण होने पर संक्रमण तीव्र प्रकृति का होता है। यह रोगी का पीछा नहीं छोड़ता तथा यकृत में सिरोसिस (sirrhosis) अथवा कैंन्सर हो जाता है। रोग का कारक HBV हिपेटाइटिस बी विषाणु सभी हिपेटिक विषाणुओं में सर्वाधिक खतरनाक है। इस बारे में अच्छी बात यह है कि इसका टीका (vaccine) उपलब्ध है।

हिपेटाइटिस A बच्चों का प्रमुख संक्रामक रोग है । यह मानव विष्ठा के मुख से होकर प्रवेश के कारण होता है। रोगी की विष्ठा में इस विषाणु को देखा जा सकता है। यह रोग बच्चों में अत्यधिक समूहन एवं साफ-सफाई में अधूरापन होने के कारण, दुग्ध, जल, भोजन या अन्य भोज्य सामग्री के उपयोग से फैलता है। वयस्कों में रक्ताधान एवं समलैंगिक सम्बन्धों से फैलता है। संक्रमण के उपरान्त कुछ दिनों से लेकर 2 सप्ताह में पीलिया हो जाता है। सिरदर्द, सर्दी का लगना एवं शरीरिक कष्ट प्रमुख लक्षण है। जठरान्त्र की बीमारियाँ, नाक का बहना, उल्टी, दस्त, भूख का कम होना, उदरीय दर्द अन्य लक्षण बाद में प्रकट हो जाते हैं। रोगी के मूत्र एवं विष्ठा का रंग गहरा पीला हो जाता है। यह जल्दी ठीक भी हो जाता है। यकृत जो इस बीच में बढ़ जाता है वह 3-6 सप्ताह में पुनः अपनी पूर्व अवस्था में आ जाता है ।

रोग का परीक्षण रक्त में बिलीरूबिन का मापन कर किया जाता है। साथ ही एल्केलाइन फॉस्फेट क्रिया रोग में तीव्र हो जाती है। यह 250 इकाई / लीटर से ऊपर हो जाती है। सामान्यतः इससे मृत्यु नहीं होती यद्यपि रोग एक से अधिक बार भी हो सकता है।

रोगी को अच्छे स्वच्छ वातावरण में रखना चाहिये एवं उच्च पोषक तत्वों वाला भोजनं, ग्लूकोज व फलों का रस दिया जाना चाहिये । चिकित्सक के परामर्श से औषधियाँ दी जानी चाहिये। इसका टीका उपलब्ध नहीं है।

हिपेटाइटिस – B: हिपेटाइटिस B मानव जाति का एक महत्वपूर्ण रोग है जो पूरे विश्व में जन स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। इस रोग का उपचार सम्भव है। इसके लिये स्वस्थ सुरक्षित टीका लगाना आवश्यक होता है । टीका 1982 से उपलब्ध है। इस रोग से 2 खरब लोग पीडित हो चुके हैं जिनमें से 500 मिलियन में तीव्र संक्रमण के कारण यकृत का सिरोसिस (cirrhosis) हो चुका है एवं केन्सर के कारण मृत्यु के द्वार पर खड़े हैं। लगभग 1 मिलियन व्यक्ति प्रतिवर्ष इस रोग के कारण मर जाते हैं। तीव्र संक्रमण की अवस्था में टीका रोग को पूर्णतः जड़ से ठीक कर पाने असमर्थ रहता है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि टीका रोग होने से पूर्व या आरम्भिक अवस्था में ही लगवा लिया जाये | WHO की सिफारिश पर 116 देशों में प्रतिरक्षीकरण का कार्यक्रम चलाया गया है जिसमें सभी बच्चों को इस रोग के टीके लगाये जाते हैं। यह टीका महँगा है। अतः सभी लोग या गरीब राष्ट्र इसके खर्च को उठाने में असमर्थ हैं। उनके लिये ग्लोबल एलायन्स फार वेक्सीन्स एण्ड इम्यूनाइजेशन (Global Alliane for vaccines and Immunization, GAVI) एवं ग्लोबल फन्ड फार चिल्ड्रन्स वेक्सीन्स (Global Fund for children’s vaccines) से आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जाती है। यह रोग विकसित एवं विकाशील राष्ट्रों में अधिकतर लोगों को बचपन में ही हो है। 8 – 10% रोगी इसके तीव्र संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। केन्सर से होने वाली मौतों मैं हिपेटाइटिस B के कारण तीन में से एक रोगी पाया जाता है। इस रोग का प्रभाव सहारा – अफ्रीका, एशिया के अधिकतर भाग, पेसिफिक क्षेत्र, यूरोप का पूर्वी व केन्द्रीय भाग, मध्य पूर्व में है। भारतीय ‘महाद्वीप में इसका प्रभाव लगभग 5% है। यह रोग पश्चिमी योरोप एवं उत्तरी अमेरिका में कम है।

सारणी 13.2 : हिपेटायटिस के लक्षण

  लक्षण हिपेटायटि स- A हिपेटायटि स- B

 

हिपेटाय टस-C हिपेटायटि स- D हिपेटायटिस-E
1. जीनोम

 

RNA DNA RNA RNA RNA
2. जीवाणु

फेमिली / जीनम

पिकोरनावि

रिडी

 

हीपेडनावि

रिडी

 

फ्लेवीवि

रिडी

 

डेलटा वायरस केलियेविरिडी

 

3. ऐजेन्ट हिपेटाय

यटिस – A वायरस.

(HAV)

 

HBV HCV HDV HEV
4. आयु प्रभाव

 

बालक किसी भी आयु में वयस्क किसी भी

आयु में

बालक/ व्यवस्क
5. इन्क्यूबेसन 2-4 सप्ताह

 

6-26 सप्ताह 1 से 8

सप्ताह

अनिश्चित 2 से 6 सप्ताह

 

6. रक्त में एण्टीजन

 

HAV H35Ag HCV HDAg HEV
7. रक्त में एंटीबोडी

 

एंटी-HAV एंटी-HB

एंटी-HBE

एंटी-HBC

एंटी-HC

V

एंटी-HD

V

एंटी-HEV

 

 

यह रोग अधिकतर 1–4 वर्ष की उम्र में बच्चों को हो जाता है, इसमें से 30 – 50%  बच्चों में यह तीव्र संक्रमण उत्पन्न करता है। ऐसे लोगों में 25% को केन्सर से मृत्यु का खतरा रहता है।

सारणी 13.3: हिपेटाइटिस A एवं हिपेटाइटिस B विषाणुओं का तुलनात्मक अध्ययन

क्र.

 

लक्षण

 

हिपेटाइटिस- A विषाणु हिपेटाइटिस-B विषाणु
1. विषाणु का व्यास 27nm एक लड़ीय रेखीय RNA

से बना ss-RNA

45nm द्विलड़ीय वृत्ताकार DNA से बना ds-DNA
2. उत्तक संवर्धन

एवं प्रतिरोधक

क्षमता

हिपेटाइटिस-A एवं हिपेटाइटिस B दोनों प्रकार के विषाणुओं का ऊत्तक संवर्धन संभव नहीं है।

दोनों 60°C पर 30 मिनट में नष्ट हो जाते हैं। क्लोरीन द्वारा एवं जल में उबालने पर एक मिनट में नष्ट हो जाते हैं।

 
3. परिपाक काल

 

4-5 माह

 

6 सप्ताह से 6 माह
4. संक्रमण

 

विष्ठा द्वारा मुखीय पथ से भोजन या जल के साथ जन्मजात माता से शिशु को या रक्ताधान/लैंगिक सम्पर्क द्वारा
5. रोग की जटिलता एवं मृत्यु

 

 

सरल, मृत्यु विरले ही जटिल रोग मृत्यु 10% मामलों में
6. संक्रमण के

उपरांत उत्पन्न प्रतिरक्षा

 

जीवन पर्यन्त देह में प्रतिरक्षियाँ विकसित हो जाती है।

 

 

विषाणु के सतही एन्टीजेन्स से विकसित प्रतिरक्षा देह में लम्बी अवधि तक रक्षात्मक बनी रहती

 

 

7. निदान

 

एन्टी – HAV एन्टीबॉडीज या प्रतिरक्षियों द्वारा ।

 

रक्त में HBs एन्टीजन द्वारा यदि यह एन्टीजन वाहक की देह में छः माह से अधिक बना रहता है. तो रोगी में हिपेटाइटिस B रोग हो जाता है ।

 

8. रोकथाम

 

भोज्य पदार्थों एवं पेय पदार्थों में विष्ठा के संक्रमण को रोक कर या जल को क्लोरीनेशन अथवा उबालकर उपयोग में लेने से । भोजन करने से पूर्व साबुन से हाथ धोने चाहिये ।

 

रक्ताधान के समय HBst होने पर रक्ताधान न किया जाये । निजर्मित उपकरणों व सूई का शल्य चिकित्सा एवं दन्त चिकित्सा के दौरान उपयोग करके । लैंगिक सम्बन्ध के समय कन्डोम का उपयोग करके ।
9. टीका

 

टीका उपलब्ध नहीं है।

 

टीका उपलब्ध है।

 

(i) संक्रमण के कारण (Reasons of infection) : यह रोगी के रक्त अथवा रक्त उत्पाद (सीरम प्लाज्मा, एल्बूमिन, Y-ग्लोबुलिन एवं अन्य कारक ) या दैहिक तरल के सम्पर्क में आने से स्वस्थ व्यक्ति को हो सकता है अर्थात् AIDS की भाँति फैलता है किन्तु AIDS की अपेक्षा 50- 100% अधिक संक्रमण क्षमता रखता है। संक्रमण होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-

(i) रोगी माता से शिशु को गर्भ के दौरान।

(ii) संक्रमित बच्चे से स्वस्थ शिशु को ।

(iii) असुरक्षित सूई या रक्ताधान द्वारा ।

(iv) गन्दे तीखे औजारों या सूई के चुभने से

(v) रोगी के उपयोग किये टूथब्रश या रेजर के उपयोग से।

(vi) असुरक्षित लैंगिक सम्बन्धों के द्वारा ।

(vii) समलैंगिक सम्बन्धों के द्वारा |

उपरोक्त बिन्दुओं के आधार पर वयस्कों में यह रोग असुरक्षित सुई के उपयोग या रक्ताधान खुले लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं ( prostitutes) के कारण फैलता है। यह रोग संक्रमणित भोजन या जल आदि के कारण उत्पन्न नहीं होता । संक्रमणित व्यक्ति के सीरम के मुख से ग्रहण करने पर रोग हो सकता है। HBsAg-हिपेटाइटिस B एन्टीजन के दैहिक जैसे लार, मूत्र, वीर्य, योनि के स्राव में पाये जाने के बाद यह सुझाव दिये गये है कि यह रक्त या लैंगिक सम्पर्क के अतिरिक्त अन्य विधियों से भी हो सकता है। एक बार हिपेटाइटिस – B का विषाणु रोगी की देह में आने के उपरान्त जीवन पर्यन्त बना रह सकता है। यह रोग हाथ मिलाने से गले गलने से या संक्रमणित रोगी के निकट बैठने से नहीं होता।