JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

Hen in Hindi | मुर्गियों की देखभाल और चुगाई कैसे होता है | पालतू मुर्गियां क्या होती है

पालतू मुर्गियां क्या होती है  Hen in Hindi मुर्गियों की देखभाल और चुगाई कैसे होता है |

पालतू मुर्गियां
जंगली मुर्गियां अविरल हरियाली से आवृत भारतीय सघन वनों में झड़ – मुर्गियां या भारतीय मुर्गियां पायी जाती हैं (रंगीन चित्र १२)। इनकी जीवन-प्रणाली और स्वरूप घरेलु या पालतू मुर्गियों से मिलता-जुलता होता है। सिर पर कलगी और कानों के लटकते भाग होते हैं। मुर्गे मुर्गियों से बड़े होते हैं और उनका रंग ज्यादा उजला होता है। यह लाल पालतू मुर्गे जैसे दीखते हैं। इनकी मजबूत टांगों की अंगुलियों में खोटे नखर होते हैं। जंगली मुर्गियां पालतू मुर्गियों की ही तरह बीजों और कीटों की खोज में अपने पैरों से जमीन खोदती हैं। यही उनका भोजन है। जंगली मुर्गियां अच्छी तरह उड़ नहीं पातीं। अपने छोटे वृत्ताकार डैनों का उपयोग वे केवल शाम के समय पेड़ों पर कूदने के लिए करती हैं।
भारतीय मुर्गियों से स्वादिष्ट मांस और अपेक्षतया काफी बड़ी संख्या में अंडे मिलते हैं। यही कारण है कि मनुष्य ने उन्हें पालतू प्राणी बना लिया।
पालतू मुर्गियों का मूल सबसे पहले भारत ही में मुर्गियों को पालतू बनाया गया था। भारत से वे दूसरे देशों में फैल गयीं। पहली पालतू मुर्गियों के समय से पांच हजार वर्ष बीत गये हैं और इस लंबे असें में मनुष्य ने उनमें काफी परिवर्तन कर दिये हैं। पालतू मुर्गियों में उनके जंगली पुरखों के कुछेक लक्षण तो कायम रहे हैं पर वजन और दिये जानेवाले अंडों की संख्या की दृष्टि से वे अपने पुरखों से मूलतः भिन्न हैं। और यही बातें मनुष्य के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। जंगली झड़-मुर्गी आकार में छोटी होती है और वज्रन उसका केवल ६००-८०० ग्राम होता है, जबकि पालतू मुर्गी का वजन होता है २ से लेकर ५ किलोग्राम तक। जंगली मुर्गी जहां एक वर्ष के दौरान ६-१२ अंडे देती है , पालतू मुर्गी उतने ही समय में ३०० या इससे अधिक यानी ३० गुना अधिक अंडे देती है। पालतू मुर्गियों की विभिन्न नस्लों में परों का रंग और कलगी का आकार भी बदल गया है।
अच्छी खुराक और देखभाल और संवर्द्धन के लिए सबसे बड़ी और ज्यादा अंडे देनेवाली मुर्गियों के चुनाव के फलस्वरूप ही वजन और अंडों की संख्या में वृद्धि हुई। फिर यह लक्षण आनुवंशिक रूप से जारी रहे और मनुष्य के प्रभाव के अंतर्गत पीढ़ी दर पीढ़ी सुधरते गये।
मुर्गियों की नस्लें समय के साथ मुर्गियों की बहुत-सी नस्लें परिवर्दि्धत की गयीं (रंगीन चित्र १२)। इनमें कुछ तो बहुत बड़ी संख्या में अंडे देती हैं। ये अंडे देनेवाली नस्लें कहलाती हैं। दूसरी मुर्गियों से अंडे तो अपेक्षतया कम मिलते हैं पर वे काफी बड़ी होती हैं और उनसे बहुत-सा मांस मिलता है। इन्हें आम उपयोग की मुर्गियां कहते हैं।
अंडे देनेवाली नस्लों में से रूसी सफेद नस्ल का सोवियत संघ में सबसे ज्यादा फैलाव है। ये प्रोक्षाकृत छोटे आकार को (वजन लगभग २ किलोग्राम) मुर्गियां हैं जो साल के दौरान २०० तक अंडे देती हैं। इस नस्ल की गिनी-चुनी मुर्गियां ३२० तक अंडे देती हैं।
रूसी सफेद मर्गियां सोवियत संघ के कोलखोजों और राजकीय फार्मों में लेगहानों से पैदा की गयी पर ये आकार में बड़ी होती हैं और मौसमी स्थितियों के अनुकूल।
आम उपयोग की नस्लों में हम यूरलोव बुलंद आवाज मुर्गियों की नस्ल का नाम ले सकते हैं। इस नस्ल के मुर्गे जोर से बांग देते हैं और इसलिए वह इसी नाम से मशहूर है। इस नस्ल का परिबर्द्धन क्रांति में पहले प्रोरेल दगा के किमानी ने किया था। इन मुर्गियों का वजन ८ किलोग्राम तक होता है जो अच्छा ग्वामा वजन है। ये सालाना २०० तक बड़े बड़े अंडे देती है। अगलीब मुर्गियां जाड़ों में अच्छी तरह निभा लेती हैं।
हाल ही में प्राप्त की गयीं आम उपयोग की नलों में में हमें पेन्वोमाइस्काया और नीज्नेदेवीत्स्काया नस्लों के ऊंचे गुणों पर ध्यान देना चाहिए।
मांस के लिए पाली जानेवाली विशेप नस्लें भी मौजूद हैं। इनका प्राकार असाधारण रूप में बड़ा होता है और मांस बड़ा ही जायकेदार य पर अंडे वे कम देती हैं। इन मुर्गियों का पालन सोवियत संघ में विरला ही किया जाता है।
प्रश्न – १. पालतू मुर्गियों में जंगली मुर्गियों के से कौनसे लक्षण पाये जाते हैं ? २. घरेलू वातावरण में जंगली मुर्गियों में क्या क्या परिवर्तन हुए? ३. पालतू मुर्गियों में किन स्थितियों के प्रभाव से परिवर्तन आये ? ४. पालतू मुर्गियों की कौनसी सर्वोत्तम नस्लें मौजूद हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – देख लो कि तुम्हारे इलाके में मुर्गियों की कौनमी नस्लों का संवर्द्धन होता है। इन नस्लों के आर्थिक गुणों का बयान करो।
 मुर्गियों की देखभाल और चुगाई
देखभाल पालतू मुर्गियों के पुरखे गरम मौसमवाले भारत के सायादार जंगलों में रहते थे। मुर्गियों पर गरमी और सरदी दोनों का बुरा असर पड़ता है। १० सेंटीग्रेड से कम तापमान में उनकी कलगियां ठिठुर जाती हैं। गरम मौसम में और खासकर धूप के समय छाया के अभाव में मुर्गियों का अंडे देना बंद हो जाता है। बारिश में वे भीग जाती हैं क्योंकि उनकी तैल-ग्रंथि सुविकसित नहीं होती और इस कारण उनके परों पर तेल का लेप नहीं होता।
गरमी और सरदी , बारिश और हवा से मुर्गियों के बचाव और रात में उनके रहने तथा अंडे देने के लिए विशेप स्थानों का प्रबंध किया जाता है। इन्हें मुर्गी-घर कहते हैं। मुर्गी-घर गरम , रोशन , हवादार और सूखा होना चाहिए और उसमें मुर्गियों के लिए काफी जगह होनी चाहिए।
मुर्गी-घर की दीवारें मोटी होती हैं और उसका फर्श और छत उष्णताधारक। इससे उसमें गरमी बनी रहती है। छत बहुत ऊंचाई पर नहीं होनी चाहिए। वह लगभग २ मीटर की ऊंचाई पर होनी चाहिए। जाड़ों में मुर्गी-घर का तापमान शून्य के नीचे कभी न जाना चाहिए। रोशनी के लिए इस घर में खिड़कियां होती हैं। अच्छे फार्मों के मुर्गी-घरों में बिजली का भी बंदोबस्त होता है। जाड़ों में सुबह-शाम अतिरिक्त प्रकाश के प्रबंध से अंडे देने की क्षमता बढ़ती है। कृत्रिम वायु-संचार के साधनों से मुर्गी-घर को हवादार रखा जाता है। फर्श पर पीट या सूखी घास विछाकर मुर्गी-घर सूखा रखा जाता है। मुर्गी-घर का क्षेत्रफल इस प्रकार निश्चित किया जाता है कि हर तीन मुर्गियों के लिए एक वर्ग मीटर जगह मिल सके। ऐसे घरों में मुर्गियां जाड़ों में भी अंडे दे सकती हैं।
मुर्गियों के पुरखे पेड़ों की शाखाओं पर रात बिताया करते थे। अतः मुर्गी-घर में अड्डों का प्रबंध किया जाना चाहिए। मुर्गियां अच्छी तरह नहीं उड़ सकतीं इसलिए अड्डे फर्श से वहुत ऊंचाई पर नहीं होने चाहिए। ७०-६० सेंटीमीटर की ऊंचाई ठीक है। अड्डे ५-१० सेंटीमीटर की चैड़ाई वाले चैपहले बल्लों के बनाये जाते हैं। इनके ऊपर के किनारे चिकने होते हैं और वे मुर्गियों के बैठने के लिए सुविधाजनक होते हैं। सभी अड्डे एक ही सतह पर होने चाहिए ताकि मुर्गियां एक दूसरी को गंदा न कर दें। बीट इकट्ठा करने के लिए फर्श पर खास तख्ते बिछाने चाहिए।
अंडे देने के लिए सूखी घास के अस्तरवाले बक्सों के रूप में घोंसले बनाये जाते हैं। जिन फार्मों में हर मुर्गी द्वारा दिये जानेवाले अंडों का हिसाब रखा जाता है वहां हिसावी घोंसलों का प्रबंध किया जाता है। हिसाबी घोंसले की आगे की दीवार में एक दुपल्ला किवाड़ होता है। एक पल्ला ऊपर का और दूसरा नीचे का। जब मुर्गी घोंसले में प्रवेश करती है तो किवाड़ अपने आप बंद हो जाता है। मुर्गी खुद किवाड़ खोलकर बाहर नहीं आ सकती और तब तक अंदर बैठी रहती है जब तक कोई आकर किवाड़ न खोल दे।
मुर्गियां विशेष प्रकार के भोजन-पात्रों से खाना खाती हैं और जल-पात्रों से पानी पीती हैं। भोजन-पात्र लंबे और संकरे बक्सों के रूप में होते हैं जिनके ऊपर की ओर फिरती तख्तियां होती हैं। ऐसे बक्सों में मुर्गियां अपने पैर नहीं डाल सकती न उनपर बैठ ही सकती हैं। जल-पात्र तिपाइयों पर रखे हुए साधारण कटोरों के रूप में हो सकते हैं या स्वचालित ढंग के। स्वचालित जल-पात्र पानी के कटोरे में एक औंधे पात्र के रूप में होता है। मुर्गियां पानी पीती जानी है और कटोग धीरे धीरे भरता रहता है। उक्त चीजों के अलावा मुर्गी-घर में राव और बालू से भरा एक बक्स भी होना चाहिए। इसमें जैसे नहाकर मुर्गियां परजीवी कीड़ों-मकोड़ों से मुक्ति पाती हैं।
मुर्गियों को रोगों से बचाये रखने की दृष्टि से मुर्गी-घर को हर रोज माफ करना चाहिए, उसमें हवा दिलानी चाहिए , भोजन और जल के पात्र गरम पानी से धोने चाहिए। नियमित रूप से कीटमार दवाओं से सभी उपकरणों की सफाई और मुर्गी-घर में चूने की सफेदी लगाना आवश्यक है। मुर्गी-घर का अस्तर हर ७-१० दिन बाद बदलना जरूरी है।
मुर्गी-घर में प्रवेश करने के स्थान पर पायंदाज रखे जाते हैं जिनपर बूटों का मैल साफ करना चाहिए। इसके अलावा कीटमार दवाओं में भिगोये गये नमदे या लकड़ी के भूसे से भरे ट्रे भी रखे जाते हैं। इससे बूटों पर रोगाणुओं का आना असंभव हो जाता है।
मुर्गी-पालिकाएं हमेशा साफ चोगे पहने हुए काम करती हैं।
मुर्गियों को खुली हवा में छोड़ने के लिए मुर्गी-घरों के साथ साथ हवाई प्रांगनों का प्रबंध किया जाता है। इनमें घास बोयी जाती है और धूप से बचने के लिए विशेष छत बनायी जाती है। जाड़ों में आंगनों से बर्फ हटायी जाती है ताकि मुर्गियां खुले मैदान में आ सकें।
फसल कटाई के बाद खेतों में बचे हुए अनाज के दाने चुगाने के लिए मुर्गियों को ले जाया जाता है। इस काम के लिए खास उठाऊ मुर्गी-घरों का उपयोग किया जाता है।
चुगाई पालतू मुर्गियों के लिए उनके पुरखों जैसा ही विविधतापूर्ण भोजन आवश्यक है। उनका मुख्य भोजन है विभिन्न प्रकार के अनाज- जई, मकई , बाजरा और चक्की की पछोरन – आटे के कण, चोकर, भूसी इत्यादि।
पर मुर्गियों के लिए केवल अनाज का भोजन काफी नहीं है। छोटी मात्रा में भी क्यों न हो, उनके लिए प्राणि-रूप भोजन आवश्यक है। निजी घरेलू मुर्गियों को गर्मियों में खुली जगहों में घूमते हुए काफी कीट, केंचुए इत्यादि मिल जाते हैं। बड़े बड़े फार्मों में उन्हें बूचड़खाने के बचे-खुचे मांस के टुकड़े और रक्त, मांस तथा हड्डियों और, मछलियों से बनायी गयी खुराक खिलायी जाती है। इस हेतु से केंचुओं , मोलस्कों और काकचेफरों का भी उपयोग किया जा सकता है।
विटामिन की आवश्यकताएं पूरी करने की दृष्टि से मुर्गियों को रसदार चारा (गाजर , चुकंदर ) और हरा चारा (घास , कल्लेदार जौ, जई इत्यादि) खिलाया जाता है। जाड़ों के लिए विटामिन युक्त ग्वराक तिनपतिया , बिच्छू-घास और अल्फाल्फा में तैयार की जाती है। अंडों के कवच की बनावट के लिए खनिज द्रव्यों की आवश्यकता होती है। मुर्गियों को ये खड़िया , पीसे हुए मोलस्क-कवच और अस्थिचूर्ण के रूप में खिलाये जाते हैं। मुर्गियों के लिए अल्प मात्रा में नमक की भी आवश्यकता होती है।
विशेप भोजन-पात्रों में खनिज द्रव्य कंकड़ियों और बालू के साथ मिलाकर रखे जाते हैं। भोजन के साथ मुर्गियां कंकड़ियों और बालू को निगल जाती हैं। इससे पेपणी में भोजन के पिसने में मदद मिलती है।
मुर्गी जितनी बड़ी, उसके लिए आवश्यक भोजन की मात्रा उतनी ही अधिक । अंडों के परिवर्द्धन के लिए भी भोजन आवश्यक है। पोल्ट्री विशेषज्ञों ने विभिन्न उम्र, वजन और अंडे देने की क्षमतावाली मुर्गियों के लिए अलग अलग भोजन-मात्राएं निश्चित कर दी हैं। दैनिक भोजन की मात्रा दिन में दो या तीन बार निश्चित समय के अनुसार खिलायी जाती है।
उचित देखभाल और योग्य चुगाई का महत्व बहुत बड़ा है। भोजन के अभाव और अनुचित देखभाल का नतीजा यह होता है कि अच्छी खासी नस्ल की मुर्गियां भी कम अंडे देने लगती हैं।
प्रश्न – १. मुर्गी-घर में मुर्गियों की कौन कौनसी आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिए ? २. मुर्गियों की आवश्यकताओं के अनुसार मुर्गी-घर में क्या प्रबंध किया जाता है ? ३. मुर्गियों के लिए कौनसा भोजन आवश्यक है ? ४. मुर्गियों की उचित देखभाल और योग्य चुगाई का महत्त्व क्या है ?
व्यावहारिक अभ्यास – किसी पोल्ट्री-फार्म में जाकर वहां की साधनसामग्री और मुर्गियों की देखभाल का निरीक्षण करो।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

2 days ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

2 days ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

3 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now