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हेमीडक्टाइलस (hemidactylus in hindi) | लक्षण , वैज्ञानिक नाम , meaning , समूह वंश , वर्ग उपवर्ग

(hemidactylus in hindi) हेमीडक्टाइलस क्या होता है ? लक्षण , वैज्ञानिक नाम , meaning , समूह वंश , वर्ग उपवर्ग किसे कहते है ?

हेमीडक्टाइलस (hemidactylus)

वर्गीकरण (classification)
संघ – कॉर्डेटा
समूह – क्रेनिएटा
उपसंघ – वर्टीब्रेटा
विभाग – ग्नैथोस्टोमेटा
अधिवर्ग – टेट्रापोडा
वर्ग – रेप्टिलिआ
उपवर्ग – डाइप्सिडा
गण – स्क्वैमैटा
उपगण – सौरिया या लैसर्टीलिआ
वंश – हेमिडक्टाइलस

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

यह आम गृह अथवा भित्ति छिपकलियाँ , गोधिका अथवा गेकोज कहलाती है। यह स्वभाव से रात्रिचर होती है और शीत ऋतु में लकडियो के लट्ठो , दीवारों की दरारों आदि में सुप्तावस्था में रहती है। यह संसार भर में विशेषकर भारत , यूरोप , एशिया , अफ्रीका , संयुक्त राज्य अमेरिका , चीन और श्रीलंका में पायी जाती है। इनके अग्र और पश्च पाद सुविकसित होते है और अग्र पादों की हस्तांगुलियो तथा पश्च पादों की पादांगुलियों के निचे आसंजक पटलिकायें (adhesive lamellae) होती है। जो निर्वात द्वारा चूषण पैदा करके इन्हें दीवारों पर उल्टा चलने के लिए अनुकूलित करती है।
इसका शरीर पतला और छोटा होता है। इसके शरीर के तीन भाग – सिर , धड और पुच्छ होते है। इसका सिर त्रिभुजाकार होता है जिसमें नेत्र , नासाविवर (nostrils) तथा बाह्य कर्ण छिद्र होते है। इसकी जिव्हा बहिर्सारित होती है जो इसे भोजन पकड़ने में सहायता प्रदान करती है। सामान्यतया यह छोटे छोटे कीड़ों तथा अन्य अकशेरुकी जन्तुओं को खाती है। इसकी नेत्र पर पलकों का अभाव होता है।
इसकी पुच्छ यद्यपि छोटी होती है तथापि किसी भी स्थान से टूटकर फिर से बन जाती है। इस घटना को स्वविच्छेदन (autotomy) कहते है।
नर और मादा अलग अलग होते है। मादा सामान्यतया अंडे देती है। अन्डो के कवच कैल्सियम के बने होते है।

मेंढक (frog) :

वर्गीकरण (classification)

संघ – कॉर्डेटा

समूह – क्रेनिएटा

उपसंघ – वर्टीब्रेटा

विभाग – ग्नैथोस्टोमेटा

अधिवर्ग – टेट्रापोडा

वर्ग – एम्फिबिया

गण – एन्युरा

उपगण – प्रोसीला

कुल – रैनिडी

वंश – फिलोबैटरेकस

जाति – टिगरीनस

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

साधारण मेंढ़क का नाम फिलोबैट्रेकस टिगरीनस (जो पहले राना टिग्रिना था।) है। यह सरल स्वभाव का उभयचर प्राणी है। यह प्राय: तालाबों , नदियों , गड्ढो और घासफूस में पाया जाता है। यह अपनी नम त्वचा द्वारा भी श्वसन क्रिया करता है जिसके कारण यह जल के समीप रहना पसंद करता है। सुखी त्वचा होने पर श्वसन में परेशानी होती है इसलिए यह समय समय पर पानी में जाता रहता है। यह प्रजनन क्रिया भी जल में करते है और बाह्य निषेचन के लिए मादा और नर अपने अन्डो और शुक्राणुओं को जल में निक्षेपित करते है।

अण्डों का विकास भी जल में होता है। इसका लार्वा भेकशिशु (tadpole) कहलाता है जो गलफड़ों की सहायता से श्वसन करता है।

यह मांसाहारी जन्तु है जो छोटे छोटे कीड़े मकोड़े , मक्खी , पतंगों को पकड़कर खाता है। इन कीड़ों को पकड़ने के लिए इसकी जीभ आगे से जुडी और पीछे से स्वतंत्र होती है।

मेंढक के शरीर का ताप वातावरण के ताप के अनुसार घटता बढ़ता है। वे जन्तु जिनके शरीर का ताप सर्दियों में कम और गर्मियों में अधिक हो जाता है असमतापी (cold blooded) कहलाते है। मेंढक सामान्यतया शीत निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता दर्शाते है। इसके शरीर को दो भागों सिर और धड़ में बाँटा गया है। वर्षा ऋतु में नर और मादा मेंढक को आसानी से अलग अलग पहचाना जा सकता है। जननकाल में नर और मादा मेंढकों में कुछ बाह्य रचनाएँ अत्यधिक विकसित हो जाती है।

नाजा (naja)

वर्गीकरण (classification)
संघ – कॉर्डेटा
समूह – क्रेनिएटा
उपसंघ – वर्टीब्रेटा
विभाग – ग्नैथोस्टोमेटा
अधिवर्ग – टेट्रापोड़ा
वर्ग – रेप्टिलिया
गण – स्क्वैमेटा
उपगण – ओफीडिया
वंश – नाजा

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

साधारण भारतीय नाग अथवा कोब्रा अथवा नाजा ट्राइप्यूडिएंस (naja tripudians) है। यह भारत का सर्वाधिक विषैला सर्प है। यह दो से ढाई मीटर तक लम्बा , काला भूरा अथवा स्लेटी रंग का सर्प है। इसका सिर छोटा और अस्पष्ट होता है। सामान्यतया नाजा अथवा कोब्रा भारत , अफ्रीका , चीन , फिलिपाइन्स , तस्मानिया , ऑस्ट्रेलिया , मिश्र और श्रीलंका में विस्तृत रूप से मिलता है। यह दिनचारी , शर्मीला , बिलों के अन्दर , पत्थरों के निचे , मिट्टी की दीवारों एवं घने पेड़ पौधों में रहता है।
यह मांसाहारी होता है तथा मेंढक , छिपकलियों एवं अन्य सर्पो को भी खा जाता है।
भारत में सामान्यतया इसकी तीन किस्में पायी जाती है –
(1) बाइनोसिलैट (binocellate) प्रकार के नाग में नेत्रों के चारों ओर चश्मों की भांति गोल चिन्ह होते है जो ‘यू’ (U)आकार की रचना द्वारा आपस में जुड़े होते है। इस प्रकार का नाग महाराष्ट्र में पाया जाता है।
(2) मोनोसिलैट (monocellate) नाग में एक अंडाकार चिन्ह के चारों ओर बड़े बड़े वृत्त होते है। यह सामान्यतया बंगाल में पाया जाता है।
(3) नॉनसिलैट (noncellate) नाग पर कोई भी चिन्ह नहीं पाया जाता है। इस प्रकार का नाग राजस्थान , गुजरात और मध्यप्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में मिलता है।
इसके शरीर पर चिकने और तिरछे शल्क पाए जाते है।
यह अपनी गर्दन को , ग्रीवा पसलियों की सहायता से फण के रूप में फैलाकर चेतावनी देने का कार्य करता है। सर्वाधिक बड़े और घातक विषैले सर्पों में एक नागराज (किंग कोबरा) अथवा हैमाड्राइअड (hamadryad) अर्थात ओफिओफैगस हैनाह (ophiophagus hannah) है। जिसे नाजा हैनाह अथवा नाजा बंगेरस भी कहते है।
यह चार मीटर तक लम्बा होता है और घने जंगलों में पाया जाता है। केवल यही एक सांप है जो अंडे देने के लिए जटिल नीड़ को बनाता है। नीड़ में एक बार में मादा 12 से 18 अंडे देती है और अण्डों से बच्चे निकलने से पहले तक उन अण्डों की शत्रुओं से रक्षा करती है।