(subphylum : hemichordata in hindi) , हेमीकॉर्डेटा : उपसंघ , हेमीकोर्डेटा का अर्थ , वर्गीकरण , चित्र , प्रकार , किसे कहते है ? उदाहरण , के चरित्र |
उपसंघ : हेमीकॉर्डेटा (subphylum : hemichordata) :
सामान्य लक्षण :
- नितान्त समुद्रवासी , एकल अथवा निवही , अधिकतर नालवासी।
- शरीर कोमल , भंगुर , कृमिरूप , अखण्ड , द्विपाशर्वीय सममित तथा त्रिकोरकी।
- शरीर सामान्यतया 3 स्पष्ट प्रदेशों में विभाजित शुण्ड , कॉलर तथा धड।
- शरीरभित्ति में श्लेष्मा ग्रंथियों सहित केवल एक स्तरित एपिडर्मिस। डर्मिस अनुपस्थित।
- सीलोम आंत्रगुहिक। प्राय: अग्रगुहा , मध्यगुहा और पश्चगुहा में विभक्त , जो तीनो देहप्रदेशों के अनुसार है।
- आहारनाल सम्पूर्ण और सीधी या U आकार में।
- अग्रांत्र से शुण्ड में एक खोखला मुख अंधनाल निकलता है जिसे पहले पृष्ठ रज्जु अथवा नोटोकॉर्ड माना जाता था।
- पृष्ठ पाशर्व ग्रसनी गिल छिद्र उपस्थित होने पर एक से अनेक जोड़ी तक। पक्ष्माभी अशनकारी।
- परिसंचरण तंत्र तरल तथा खुले प्रकार का जिसमे एक पृष्ठ ह्रदय और दो अनुदैधर्य वाहिकाएँ , एक पृष्ठ और एक अधर , होते है।
- उत्सर्जन क्रिया एकमात्र शुण्ड ग्रंथि अथवा केशिकागुच्छ द्वारा जो रुधिर वाहिकाओं से जुड़ा होता है।
- तंत्रिका तंत्र आद्य , मुख्यतया एक उप-एपिडर्मी तंत्रिका जालक द्वारा निर्मित। पृष्ठ कॉलर नर्वकॉर्ड खोखला होता है।
- जनन अधिकतर लैंगिक। लिंग प्राय: पृथक। एक अथवा कई जोड़ी जनन ग्रन्थियां।
- निषेचन बाह्य , समुद्री जल में। परिवर्धन प्रत्यक्ष या एक स्वतंत्र प्लावी टॉरनेरिया लारवा सहित अप्रत्यक्ष।
वर्गीकरण
हेमीकॉर्डेटा में लगभग 80 ज्ञात जातियाँ सम्मिलित की जाती है। इन्हें साधारणतया 2 वर्गो – एन्टेरॉप्न्यूस्टा और टेरोब्रैंकिया – में समूहित किया जाता है। इनके अतिरिक्त कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा 2 अन्य वर्ग भी सम्मिलित किये जाते है। जैसा कि आगे वर्णित है।
वर्ग 1. एन्टेरॉप्न्यूस्टा :
1. एकल , स्वतंत्र प्लावी या बिलकारी जन्तु। सामान्यतया ऐकॉर्न अथवा जिव्हा कृमि कहलाते है।
2. देह लम्बी , कृमिरूप , वृंत रहित।
3. शुण्ड बेलनाकार और गावदुम।
4. कॉलर में पक्ष्माभी भुजाओं अर्थात लोफोफोर का अभाव।
5. आहारनाल सीधी। मुख और गुदा विपरीत सिरों पर। निस्यंदी अशन।
6. U आकार के गिल छिद्र कई जोड़ी।
7. लिंग पृथक। जनद अनेक तथा कोष समान।
8. कुछ के परिवर्धन में एक स्वतंत्र प्लावी टोर्नेरिया लारवा पाया जाता है। अलैंगिक जनन का अभाव।
उदाहरण : बैलैनोग्लोसस , सैकोग्लोसस अथवा डॉलिकोग्लोसस , प्रोटोग्लोसस , टाइकोडेरा , स्पेंजेलिया।
वर्ग 2. टेरोब्रैंकिया :
1. एकल अथवा निवही , स्थानबद्ध तथा नालवासी जन्तु जो स्त्रावित काइटिनी नलियों के भीतर रहते है।
2. देह छोटी , संहत , चिपकने को वृंत सहित।
3. शुण्ड ढाल समान।
4. कॉलर पक्ष्माभी भुजाओं अथवा लोफोफोर के साथ।
5. आहारनाल U आकार। गुदा पृष्ठ तथा मुख के निकट स्थित। पक्ष्माभी अशन।
6. गिल छिद्र केवल एक जोड़ी अथवा अनुपस्थित , कभी भी U आकार नहीं।
7. लिंग पृथक अथवा संयुक्त। जनद केवल 1 अथवा 1 जोड़ी।
8. परिवर्धन प्रत्यक्ष अथवा लारवा अवस्था के साथ। कुछ में मुकुलन द्वारा अलैंगिक जनन।
गण 1. रैब्डोप्लूरिडा :
1. निवही , जीवक एक देहांकुर द्वारा परस्पर जुड़े।
2. कॉलर 2 स्पर्शक युक्त भुजाओं सहित।
3. गिल छिद्रों का अभाव
4. जनद केवल एक।
उदाहरण : अकेला वंश रैब्डोप्लूरा।
गण 2. सिफैलोडिस्सिडा :
1. एकल या अनेक असम्बद्ध जीवक एक सामान्य जिलेटिनी कोष में आवृत।
2. कॉलर में अनेक स्पर्शक युक्त भुजाएं।
3. केवल एक जोड़ी गिल छिद्र उपस्थित।
4. जनद केवल एक जोड़ी।
उदाहरण : सेफैलोडिस्कस , ऐटूबेरिया।
वर्ग 3. प्लैंक्टोस्फ़ीरॉइडिया : इस क्लास का प्रतिनिधित्व कुछ छोटे , गोलाकार , पारदर्शी तथा वेलापवर्त्ती लारवा करते है। इन्हें प्लैंक्टोस्फीरा पेलैजिका नामक किसी अज्ञात हेमीकॉर्डेटा के विशिष्टीकृत टोरनेरिया समझा जाता है। लार्वा की देह व्यापक रूप से शाखान्वित पक्ष्माभी पट्टो से आवरित रहती है और इसकी आहारनाल L आकार होती है।
वर्ग 4. ग्रैप्टोलिटा : फोसिल ग्रैप्टोलाइट्स जैसे डेन्ड्रोग्रैप्टस , ऑर्ड़ोविशन तथा सिल्युरियन कल्पों में बहुतायत से मिलते थे जो बहुधा हेमीकॉर्डेटा के अंतर्गत एक फोसिल वर्ग ग्रैप्टोलिटा में रखे जाते है। उनके नलिकाकार काइटिनी कंकाल तथा निवही स्वभाव रैब्डोप्लूरा के साथ बंधुता दर्शाते है।