hashimoto’s disease in hindi , हाशीमोटो का रोग क्या है लक्षण और उपचार बताइये

जाने hashimoto’s disease in hindi , हाशीमोटो का रोग क्या है लक्षण और उपचार बताइये ?

थायरॉइड ग्रन्थि की अपसामान्य अवस्थाएँ

(Abnormal conditions of thyroid gland)

  1. थायरॉइड की अल्पक्रियाशीलता (Hypothroidism)—

इस ग्रन्थि की अल्पक्रियाशीलता के कारण सभी प्रकार के उपापच (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीप एवं वसा) की गति में ह्यस होता है।

(1) जड़वामनता (Cretinism ) : शिशुओं में इस हॉरमोन कमी से जड़वामनता या क्रेटिनिज्म (cretinism) नामक विकार उत्पन्न हो जाता है अर्थात् आयु में वृद्धि के साथ-साथ देह में वृद्धि एवं बौद्धिक विकास नहीं होता है। इनमें लैंगिक परिपक्वता का भी अभाव होता है। इनमें अस्थियाँ अपसामान्य, जिव्हा बाहर को निकली, उदर बढ़ा हुआ, त्वचा का झुर्रीयुक्त मोटा, सूखा व खुरदरा होना, जनदों कम विकसित होना, सामान्य लक्ष्य होते हैं। ऐसे शिशु ● चलने, बोलने व खड़े में अधिक समय लेते हैं। इनकी अंगुलियाँ कुन्द होती है। ये गूंगे व बहरे भी हो सकते हैं तथा सर्दी व आविषाल पदार्थों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

चित्र – 8.28 क्रेटिन्जम

नामक रोग हो जाता है जिसके कारण बी. एम. आर (एक इकाई देह भार के द्वारा एक इकाई समय (2) मिक्सडिया (Myxoedema ) : युवावस्था थायरॉक्सीन की कमी से मिक्सडैमा (Myxodema) में उपयोग गई ऑक्सीजन की मात्रा) में कमी देह के तापक्रम में कमी, आलस्य व प्राणी की कार्यशक्ति में कमी हो जाती है। इसके सामान्य लक्षण चेहरा मंगोलियन के समाना, बालों का गिरना, जिव्हा व कंठ में सृजन होना आदि हैं। पुराने रोगियों में बाँझपन, याददाश्त में कमी, भूख का न लगना, शीत के प्रति अति सवंदनशील होना एवं नाइट्रोजन उत्सर्जन में ह्यस भी इसी के परिणामस्वरूप होते हैं।

(3) सामान्य घेंघा या गलगण्ड (Simple Goitre) : थाइरॉइड ग्रन्थि के बड़ी होकर फूलने को गलगण्ड या घेंघा रोग कहते हैं। अगर भोजन में आयोडीन की मात्रा कम होती है तो थाइरॉइड ग्रन्थि प्रचुर मात्रा में थाइरॉक्सिन नहीं बना पाती है अतः रुधिर में आयोडीन व थाइरॉक्सिन की कम के कारण पीयूष ग्रन्थि से TSH का स्रावण बढ़ जाता है। TSH थाइरॉइड को अधिकाधिक हॉरमोन्स स्रावित करने के लिए उत्तेजित करता है। अतः इसके प्रभाव से थाइरॉइड ग्रन्थि कोशिकाओं का करके बड़ी हो जाती है। यह रोग किसी क्षेत्र विशेष में (जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में) जल व मिट्टी में आयोडीन की कमी के कारण अधिकांश लोगों में हो जाता है। तब इसे एन्डेमिक (Endemic) घेंघा तथा क्षेत्र को घेंघा क्षेत्र (Goitre belt) कहते हैं।

बहुगुणन

(4) हाशीमोटो का रोग (Hashimoto’s Disease) : कभी-कभी थाइरॉइड ग्रन्थि का स्रवण इतना कम हो जाता है कि थाइरॉक्सिन स्वयं या इस कमी के उपचार हेतु दी गई औषधियां शरीर में विदेशी पदार्थों समान विष का सा काम करने लगती है। अतः शरीर में इन पदार्थों को नष्ट करने वाले प्रतिविष बनने लगते हैं जो कि स्वयं ग्रन्थि को ही नष्ट कर देते हैं। अतः इसे एक स्वप्रतिरक्षित (Autoimmune) M ) रोग या थाइरॉइड की आत्महत्या ( Suicide) होती है। थाइरॉइड अल्पस्रावण से संबंधित रोगों को भोजन में आयोडीन की मात्रा बढ़ाने तथा आयोडीनयुक्त नमक के प्रयोग से छुटकारा पाया जा सकता है।”

  1. थायरॉइड की अतिक्रियाशीलता (Hyperthyroidism)—

इस ग्रन्थि के इसे अधिक क्रियाशीन होने पर उपापचय दर बढ़ जाती है। अतः हृदय की गति तीव्र व रक्त चाप में वृद्धि होना सामान्य बात है । श्वसन गति का तीव्र होना तंत्रिकाकीय अस्थिरता का पाया जाना, रांगी का चिड़चिड़ा होना, आँखों का फूलकर बाहर को अपना (exopthalmia) आदि लक्षण इसी के परिणामस्वरूप होते है। ग्रेव्स रोग (Graves disease) भी कहते हैं। ‘प्लूमर के रोग ” (Plummer’s disease) में ग्रन्थि पर अनेक गाँठें बन जाती है। यह अवस्था एक्सोप्थैलमिक गॉयटर (exopthalmic goiter) कहलाती है।

रांग के उपचार हेतु शल्य क्रिया विकार युक्त ग्रन्थि को बाहर निकाला जाना, स्राव नियंत्रण हेतु विभिन्न औषधियों का दिया जाना एवं रोगग्रस्त थायरॉइड कोशिकाओं के लिये रेडियों एक्टिव आयोडीन (radio avtive iodine) दी जाती है।

चित्र – 8.29 मिक्सडैमाचित्र- 8.30 : ग्रेव्स रोग