(hall heroult process in hindi) शुद्ध एलुमिना (Al2O3) से Al (एल्युमिनियम) धातु का निष्कर्षण या हॉल हैरोल्ट प्रक्रम : शुद्ध एलुमिना के अपचयन से Al धातु का निष्कर्षण करते है लेकिन इसका अपचयन कठिनाई से होता है।
इसके दो कारण है –
अत: एलुमिना के अपचयन को आसान बनाने के लिए इसमें क्रायोलाइट (Na3AlF6) व फ्लोरोस्पार (CaF2) मिलाया जाता है। इनके मिलाने से एलुमिना का गलनांक कम (1173K) हो जाता है तथा यह विद्युत का सुचालक हो जाता है।
अत: एलुमिना के अपचयन की सामान्य विधियों को निम्न प्रकार लिख सकते है –
Al2O3 + 3C → 2Al + 3CO
Al धातु प्राप्त करने के लिए एलुमिना का गलित अवस्था में लेकर उसका विद्युत अपघटन करवाया जाता है।
शुद्ध एलुमिना का अपचयन करवाने के लिए एक स्टिल टैंक काम में लेते है। इस टैंक के भीतर की ओर कार्बन का अस्तर लगा होता है। यह कार्बन का अस्तर कैथोड का कार्य करता है , इस टैंक में शुद्ध Al2O3 + Na3AlF6 + CaF2 का गलित मिश्रण डाला जाता है , इस मिश्रण के ऊपर कार्बन चूर्ण की परत फैला देतेे है।
यह परत मिश्रण को ठण्डा होने से बचाती है अर्थात विकिरणों द्वारा होने वाली उष्मीय हानि को रोकती है तथा इस कार्बन की परत से एनोड की खपत भी कम हो जाती है।
अब इस मिश्रण में ग्रेफाइट की छड़े लटका देते है जो एनोड का कार्य करती है। इस एनोड व कैथोड से समान्तर क्रम में एक बल्ब जुड़ा होता है , इन बल्ब के जलने पर एलुमिना के खत्म होने का संकेत मिलता है।
विद्युत धारा प्रवाहित करने पर एलुमिना का विद्युत अपघटन होता है , विद्युत अपघटन से कैथोड पर अपचयन द्वारा Al धातु प्राप्त होती है।
एलुमिना के विद्युत अपघटन की रासायनिक अभिक्रिया के लिए दो अवधारणाऐ प्रचलित है –
I अवधारणा : यह अवधारणा अधिक प्रचलित है इसके अनुसार विद्युत अपघटन में पहले Al2O3 का आयनन होता है।
Al2O3 → Al3+ + O2-
कैथोड पर अभिक्रिया :-
Al3+ + 3e– → Al
एनोड (+) पर अभिक्रिया :-
O2- → O + 2e–
O + O → O2
4C + O2 → 2CO + 2CO2
इस अवधारणा के अनुसार कैथोड पर अपचयन द्वारा Al धातु प्राप्त होती है तथा एनोड पर ऑक्सीकरण द्वारा ऑक्सीजन गैस बनती है। यह ऑक्सीजन गैस एनोड के कार्बन से क्रिया करके CO , CO2 गैसे बनाती है। इस कारण एनोड के रूप में उपस्थित ग्रेफाइट की छड़े ख़राब हो जाती है। इन्हें समय समय पर बदलना पड़ता है।
एक किलोग्राम Al धातु के उत्पादन में एनोड से लगभग 0.5 Kg कार्बन जल जाता है।
II अवधारणा : यह अवधारणा कम प्रचलित है , इसके अनुसार विद्युत अपघटन मे पहले क्रायोलाइट (Na3AlF6) का आयनन होता है।
Na3AlF6 → 3NaF + AlF3
AlF3 → Al3+ + 3F–
कैथोड (-) पर अभिक्रिया
Al3+ + 3e– → Al
एनोड (+) पर अभिक्रिया
F– → F + e–
2Al2O3 + 12F → 4AlF3 + 3O2
इस क्रिया में Al2O3 , फ़्लोरिन (F) से क्रिया करके AlF3 में परिवर्तित हो जाता है।
AlF3 के आयनन से कैथोड पर Al धातु प्राप्त होती है। इस Al धातु को टैंक के निकास मार्ग से बाहर निकाल लेते है।
यह Al धातु 99.8% शुद्ध होती है।
निम्न कोटि के अयस्को या रद्दी धातु से Cu का निष्कर्षण (हाइडो धातुकर्म)
रद्दी धातु से Cu (कॉपर) का निष्कर्षण हाइडो धातुकर्म द्वारा करते है।
इस क्रिया में रद्दी धातु को पहले अम्ल या जीवाणुओं से निष्कासित करते है इससे Cu2+ आयन युक्त विलयन प्राप्त होता है।
अब इस विलयन की क्रिया हाइड्रोजन (H) गैस या रद्दी लोहे से करवाते है. इससे अपचयन द्वारा कॉपर धातु प्राप्त होती है।
इसकी रासायनिक अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
Cu2+ + H2 → Cu + 2H+
Cu2+ + Fe → Cu + Fe2+
Fe की तुलना में Zn धातु अधिक क्रियाशील होने के कारण यह Cu2+ का अपचयन आसानी से कर सकती है लेकिन इस धातुक्रम में Zn की तुलना में रद्दी लोहा अधिक उपयुक्त है क्योंकि रद्दी लोहा जिंक की तुलना में सस्ता पड़ता है।
अधातु तत्वों का निष्कर्षण :
- ब्राडन विलयन से Cl2का निष्कर्षण: समुद्री जल या NaCl का सान्द्र जलीय विलयन ब्राइन विलयन कहलाता है। इस ब्राइन विलयन का विद्युत अपघटन करने से एनोड पर क्लोरीन गैस बनती है। इसमें इलेक्ट्रोडो पर होने वाली अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
NaCl → Na+ + Cl–
HOH → H+ + OH–
कैथोड (-) पर अभिक्रिया
2H+ + 2e– → H2
E का मान H+ > Na+
एनोड (+) पर अभिक्रिया –
2Cl– → Cl2 + 2e–
E का मान Cl– > OH–
इस क्रिया में कैथोड पर हाइड्रोजन गैस बनती है तथा एनोड पर ऑक्सीजन के अतिविभव (over voltage) के कारण Cl गैस बनती है।
इस प्रक्रम में बाह्य विद्युत वाहक बल का मान 202 वोल्ट से अधिक रखना पड़ता है।
- NaCl के गलित विलयन से Cl2का निष्कर्षण या डाउन प्रक्रम: गलित NaCl के विद्युत अपघटन से कैथोड पर सोडियम धातु एवं एनोड पर क्लोरिन गैस बनती है।
इस प्रक्रम में इलेक्ट्रोड पर होने वाली अभिक्रिया इस प्रकार है –
NaCl → Na+ + Cl–
कैथोड पर अभिक्रिया –
Na+ + e– → Na
एनोड पर अभिक्रिया –
Cl– → ½ Cl2 + e