Cu के अयस्क से Cu धातु का निष्कर्षण :-
मुख्य अयस्क – कॉपर पाइराइटीज (CuFeS2)
Cu धातु का निष्कर्षण निम्न पदों में संपन्न होता है –
1. अयस्क का चूर्णीकरण :- जौ क्रेशर एवं स्टेम्प मील की सहायता से।
2. चूर्णित अयस्क का सान्द्रण :- झाग प्लवन विधि।
3. सान्द्रित अयस्क धातु ऑक्साइड में परिवर्तन :- सांद्रित अयस्क का वायु की उपस्थिति में परावर्तनी भट्टी में भर्जन करवाया जाता है इससे धातु ऑक्साइड प्राप्त होता है।
इस भट्टी में होने वाली रासायनिक अभिक्रिया निम्न है –
Cu धातु का निष्कर्षण निम्न पदों में संपन्न होता है –
1. अयस्क का चूर्णीकरण :- जौ क्रेशर एवं स्टेम्प मील की सहायता से।
2. चूर्णित अयस्क का सान्द्रण :- झाग प्लवन विधि।
3. सान्द्रित अयस्क धातु ऑक्साइड में परिवर्तन :- सांद्रित अयस्क का वायु की उपस्थिति में परावर्तनी भट्टी में भर्जन करवाया जाता है इससे धातु ऑक्साइड प्राप्त होता है।
इस भट्टी में होने वाली रासायनिक अभिक्रिया निम्न है –
2CuFeS2 + O2 → Cu2S + 2FeS + SO2
2Cu2S + 3O2 → 2Cu2O + 2SO2
2FeS + 3O2 → 2FeO + 2SO2
Cu2O + FeS → Cu2S + FeO
भर्जन क्रिया से प्राप्त Cu2O में Cu2S व FeS की अशुद्धि उपस्थित होती है , अत: यह मिश्रण कॉपर मैट कहलाता है।
4. धातु ऑक्साइड का अपचयन या स्वत: अपचयन या बेसेमरीकरण (bessemerisation)
भर्जन क्रिया से प्राप्त कॉपर मेट का अपचयन करवाने के लिए इसे बेसेमर परिवर्तन में स्थानांतरित किया जाता है। बेसेमर परिवर्तित नाशपाती के आकार की स्टील से बनी भट्टी होती है। इस भट्टी में अम्लीय SiO2 या क्षारीय MgO का अस्तर लगा होता है तथा गर्म वायु के झोंके प्रवाहित करने के लिए ट्वीयर लगे होते है।
बेसेमर परिवर्तित में गर्म वायु के झोंके प्रवाहित करने पर कॉपर मेट स्वत: अपचयन द्वारा गलित कॉपर धातु में अपचयित हो जाता है , यह गलित धातु भट्टी के तल में एकत्रित हो जाती है। इसमें होने वाली रासायनिक अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
2FeS + 3O2 → 2FeO + 2SO2
FeO + SiO2 → FeSiO3
2Cu2S + 3O2 → 2Cu2O + 2SO2
2Cu2O + Cu2S → 6Cu + SO2
इस प्रकार बेसेमर परिवर्तित्र से प्राप्त गलित ताम्बे में से SO2 गैस निकलने के कारण इसकी सतह पर फफोले बन जाते है , इसलिए इसे फफोलेदार ताम्बा या Blister copper कहते है।
Zn के अयस्क से Zn धातु का निष्कर्षण
मुख्य अयस्क – जिंक ब्लेण्ड (ZnS) , कैलामाइन (ZnCO3)
जिंक धातु का निष्कर्षण निम्न पदों में सम्पन्न होता है –
1. अयस्क का चूर्णीकरण :- जौ क्रेशर व स्टेम्पमिल की सहायता से।
2. चूर्णित अयस्क का सान्द्रण : ZnS अयस्क का सान्द्रण करने के लिए झाग प्लवन विधि काम में लेते है तथा ZnCO3 अयस्क का सांद्रण करने के लिए गुरुत्वीय पृथक्करण विधि काम लेते है।
यदि अयस्क में चुम्बकीय अशुद्धियाँ भी उपस्थित हो तो उन्हें पृथक करने के लिए चुम्बकीय पृथक्करण विधि काम लेते है।
3. सांद्रित अयस्क का धातु ऑक्साइड में परिवर्तन : ZnS अयस्क को परावर्तनी भट्टी में डालकर भर्जन क्रिया द्वारा धातु ऑक्साइड में बदला जाता है जबकि ZnCO3 अयस्क को परावर्तनी भट्टी में डालकर निस्तापन क्रिया द्वारा धातु ऑक्साइड में बदलना जाता है।
इसकी रासायनिक अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
भर्जन की रासायनिक अभिक्रिया –
2ZnS + 3O2 → 2ZnO + 2SO2
ZnS + 2O2 → ZnSO4
2ZnSO4 + O2 → 2ZnO + 2SO2 + 2O2
निस्तापन की रासायनिक अभिक्रिया –
ZnCO3 → ZnO + CO2
4. धातु ऑक्साइड का अपचयन :- भर्जन या निस्तापन से प्राप्त धातु ऑक्साइड में कोक (C) मिलाकर इसे ‘फ़ॉयर क्ले रिटार्ट’ में 1673k ताप पर गर्म किया जाता है , इससे धातु ऑक्साइड धातु में अपचयित हो जाता है।
ZnO + C → Zn + CO
इस प्रकार प्राप्त Zn धातु 97.8% शुद्ध होती है . इसे अशुद्ध जिंक स्पेल्टर कहते है। इसमें Pb व As की अशुद्धियाँ उपस्थित होती है।
इस प्राप्त अशुद्ध जिंक धातु को आसवन विधि द्वारा शुद्ध कर लिया जाता है।
ZnO + C → Zn + CO
इस प्रकार प्राप्त Zn धातु 97.8% शुद्ध होती है . इसे अशुद्ध जिंक स्पेल्टर कहते है। इसमें Pb व As की अशुद्धियाँ उपस्थित होती है।
इस प्राप्त अशुद्ध जिंक धातु को आसवन विधि द्वारा शुद्ध कर लिया जाता है।
धातुकर्म का विद्युत रासायनिक सिद्धांत
कम क्रियाशील धातुओ के ऑक्साइडो का अपचयन पायरो धातुकर्म द्वारा किया जाता है। लेकिन अधिक क्रियाशील धातुओ के ऑक्साइडो का अपचयन इस विधि द्वारा नहीं कर सकते है।
अत: अधिक क्रियाशील धातुओं (Na , K , Al ) के ऑक्साइडो के अपचयन के लिए विद्युत धातुकर्म अपनाया जाता है। इस क्रिया में गलित धातु का विद्युत अपघटन करवाया जाता है , जो विद्युत रासायनिक सिद्धांत पर आधारित है। इस सिद्धान्त को निम्न समीकरण से समझ सकते है –
△G = -nFE
△G = मानक गिब्ज ऊर्जा परिवर्तन
E = मानक इलेक्ट्रोड विभव
n = इलेक्ट्रॉन की संख्या
F = 1 फैराडे (96500 C)
1. अधिक क्रियाशील धातुओ के लिए मानक इलेक्ट्रोड विभव (F) का मान ऋणात्मक होता है। इस कारण △G धनात्मक होगा अत: इनका अपचयन कठिनाई से होता है।
इनके अपचयन के लिए गलित धातु ऑक्साइड के विलयन का विद्युत अपघटन करवाया जाता है , इससे कैथोड (-) पर धातु निक्षेपित होती है।
Mn+ + ne– → M
2. यदि दो धातुओ के मानक इलेक्ट्रोड विभव का अंतर धनात्मक हो तो उनके लिए △G का मान ऋणात्मक आता है। △G ऋणात्मक होने से दोनों के मध्य अभिक्रिया संभव होती है। इसे अभिक्रिया में अधिक क्रियाशील धातु विलयन में चली जाती है तथा कम क्रियाशील धातु विलयन से बाहर आ जाती है।
Zn + Cu2+ → Zn2+ + Cu
कर्यशीलता Zn > Cu