ईश्वर किसे कहते है | ईश्वर की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए अवधारणा god in hindi definition

सच्चा ईश्वर कौन और कहा है उसका नाम और पता क्या है god in hindi definition meaning ईश्वर किसे कहते है | ईश्वर की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए अवधारणा ?

ख) ईश्वर
यहूदियों की तरह ही, खासी लोग भी इस बात को साबित करने के लिए तर्क गढ़ने की कोशिश नहीं करते कि ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं। वे इस बात को सहज तौर पर मानकर चलते हैं कि ईश्वर मौजूद है और केवल एक ही ईश्वर है जो कि सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और अलौकिक है।

ईश्वर मनुष्यों के सामने स्वयं को निम्नलिखित में से किसी भी एक अथवा सभी तरीकों से प्रकट करता हैः

क) उसकी शक्ति के जरिये,
ख) उसकी धर्मपरायणता के जरिये,
ग) उसके द्वारा बोले गए शब्दों के जरिये ।

खासी की दृष्टि में ईश्वर का नाम लिंग के नियमों से परे है। वह आदि और अंत दोनों है। इसलिए जिसे हम यू ब्लेई (पुरुषत्व) अथवा का ब्लेई (नारीत्व) कहते हैं, उसके अर्थ एक ही हैं। खासी की दृष्टि में ईश्वर सर्वोच्च नियोजक एवं विश्व का रचयिता है।

खासी ईश्वर को विभिन्न नामों से पुकारता है किन्तु ये सभी नाम मनुष्य के साथ ईश्वर के खास संबंध के अंतर्गत ईश्वर के विभिन्न कार्यों से संबंधित गुणों तथा विशेषताओं को अभिव्यक्त करने के लिए ही हैं।

धर्मशास्त्रीय जटिलता प्राप्त करता जनजातीय धर्म
(Tribal Religion Seeking Theological Complexity)
पिछले अनुभाग में आपने बिरहोरों के सरल जनजातीय धर्म के बारे में जानकारी प्राप्त की, जिसमें धर्मशास्त्रीय व्याख्या का अभाव था। किन्तु ईसाई धर्म तथा हिन्दू धर्म जैसे जटिल धर्मों के संपर्क में आने से इनमें से कुछ जनजातिय धर्मों ने व्याख्यात्मक संरचना प्राप्त कर ली है। इस तरह का एक धर्म मेघालय के खासियों का धर्म है।

खासी लोग मातृवंशीय जनजाति के हैं जो कि मेघालय की खासी पहाड़ियों में बसे हुए हैं। अतीत में चलते-फिरते रहने वाले झूम खेतिहरों के रूप में वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर बीस से तीस वर्षों के एक चक्र में घूमते रहते थे। चलती फिरती खेहितर प्रणाली के एक अंग के रूप में सूअर पालन उनकी जीविका का एक अन्य स्रोत था। एक समय पर प्रत्येक गांव के पास एक सुरक्षित जंगल हुआ करता था। खासी दैवीय शक्तियाँ जो कि प्रकृति के विभिन्न तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं, इन्हीं पवित्र खांचों में निवास करती हैं। इन जंगलों से हरी लकड़ियों को काटना निषेध माना जाता था। माना जाता था कि प्रेत लकड़ी काटने वाले की गर्दन पकड़ लेगा। किन्तु सूखी लकड़ी को उठा ले जाने की अनुमति थी।

प्रत्येक खांचे की रखवाली करने वाला एक प्रेत, यू बासा अथवा यू रिंग्क्यू होता है। उदाहरण के लिए, मावफलांग की पवित्र खांच को स्थानीय लोग लालिंगडो कहकर पुकारते हैं। इस तरह की खांचे मेघालय की राजधानी शिलांग के ऊपरी हिस्सों में भी पाई जाती हैं और चेरापूंजी में मावसमाई नामक स्थान पर भी मिलती हैं, जहाँ पर हाल ही तक विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती है। खासी धर्म तथा संस्कृति झूम गतिविधियों के इर्द-गिर्द घूमती है। कर्मकाण्डी नृत्य एवं संगीत, सूअर की बलि, तथा अन्य धार्मिक संस्कार एवं समारोह अपने झूम कलैण्डर का पालन करते हुए किए जाते हैं।

यह पारंपरिक विन्यास समय के साथ बहुत बदल चुका है। जनसंख्या में वृद्धि तथा भूमि की ग्राह्यता की क्षमता में अपेक्षाकृत कमी आ जाने के कारण खासी लोगों ने अपनी झूम जीवन शैली को बदल दिया है। कृषि के नये तरीकों की शुरुआत हो जाने से भूमि पर समुदाय के अधिकार परिवर्तित हो गए हैं। स्वतंत्रता के बाद की विकास योजनाओं ने उन्हें नये व्यवसायों की तरफ खीच लिया है। किन्तु फिर भी जंगलों में खेती कुछ हद तक जारी हैं धान, आलू, सुपारी, पान तथा केला उनकी कृषि की मुख्य पैदावार रहे हैं। पारंपरिक खासी समाजों में, गैर-धार्मिक एवं धार्मिक नेतृत्व एक ही व्यक्ति के हाथ में रहता है जिसको साईम कहा जाता है, वह मिन्तरीयों, लिंग्सखोरों, बसानों तथा लिग्डोओ के साथ मिलकर क्षेत्रीय स्तर पर खासी दरबार लगाता हैं इससे बड़ा निकाय, जिसे दरबार बीला अथवा राज्य असैम्बली कहा जाता है, सभी न्यायिक मामलों में सर्वोच्च माना जाता था और उसके दरबार को ब्लेई अर्थात ईश्वर का दरबार कहा जाता था। ब्रिटिश राज्य की स्थापना का इस व्यवस्था पर विपरीत असर पड़ा और अब पारंपरिक राजनीतिक संगठन के अधिकांश कार्य जिला परिषद तथा राज्य सरकार द्वारा किए जाते हैं।

 ईसाई धर्म के साथ टकराव (Encounter with Christianity)
ब्रिटिश राज्य के पीछे-पीछे, ईसाई धर्मावलंबियों ने भी खासी पहाड़ियों में पैठ करना शुरू किया। 1813 में कृष्णा चन्द लाल जो कि एक ईसाई धर्म प्रचारक था, दो खासियों को ईसाई बना लेने में सफल हो गया (सहाय 1968)। और आज लगभग आधी खासी आबादी ने ईसाई धर्म को अपना लिया है। शुरू में अनेक अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त खासियों ने धर्मान्तरण का जबर्दस्त विरोध किया था, उनमें से प्रमुख थे – जीवन राय, शिवचरन राय, होर्मुराई डींगडो तथा रास मोहन राय । ईसाई धर्म से आने वाली चुनौतियों का सामना निम्नलिखित तरीके से किया गयाः

क) पारंपरिक खासियों का पुनर्गठन: सेंग खासी नामक देसी धर्म का एक औपचारिक संगठन, 1899 में खासी परंपराओं की रक्षा करने की दृष्टि से बनाया गया । संगठन के उद्देश्यों को रेखांकित करने वाले चार मूलभूत सिद्धांत निम्न प्रकार हैं:
1) पूर्वजों द्वारा निश्चित किए गए स्वकुटुम्बी नियमों पर कायम रहना,
2) सेवा, प्रेम, सत्य तथा मस्तिष्क एवं शरीर दोनों को सुधारने की इच्छा के जरिये धर्मपरायणता,
3) अपने संगी-साथियों का आदर करना तथा विनम्रता से पेश आना,
4) ईश्वर पर विश्वास रखते हुए अपने देश के लिए काम करना।
ख) साहित्य का सृजन: खासी धार्मिक अनुष्ठानों एवं रिवाजों पर साहित्य का प्रकाशन सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि बन गया। का नियाम जौंग की खासी नामक अपनी पुस्तिका के प्राक्कथन में जीवन राय ने 1897 में लिखा, ‘‘ईसाई मिशनों, रोमन कैथोलिक मिशन, एकेश्वरवादी मिशन, ब्रम्हो मिशन, आदि के आगमन के साथ ही लोग अपने धर्म को बिल्कुल भूल जाएंगे बिना किसी लिखित विवरण खासियों का बेचारा धर्म विस्मृति के गर्त में समा जाएगा और हम एक दिन उसे पूरी तरह भूल जाएंगे।” तब से सेंग खासी संगठन के प्रमुख बुद्धिजीवी खासी धार्मिक साहित्य के सृजन में लगे हुए हैं।
ग) सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखा जाना: सेंग खासी, की पारंपरिक प्रतीकों तथा बोधात्मक अभिव्यक्तियों को आनुष्ठानिक मुहावरे के जरिये, पुनर्जीवित करने में, एक महत्वपूर्ण भूमिका है। यह शाड सुक मिन्सीम तथा नौगक्रेम नृत्य जैसे वार्षिक उत्सवों का आयोजन करता है जिनमें जनता की भागीदारी तथा खासी सांस्कृतिक विरासत का प्रभावी अहसास सम्मिलित हैं।

कार्यकलाप 2
अपने अभी ‘‘ईसाई धर्म से टकराव” पर लिखे गए अनुभाग का अध्ययन किया। इसे ध्यान में रखते हुए यह पता लगाने की कोशिश कीजिए कि क्या स्वयं आपके धार्मिक मूल्यों, विश्वासों, तथा रीतियों पर भी किसी अन्य धर्म का असर पड़ा है। इसके लिए आप अपने परिवार के अन्य सदस्यों, मित्रों तथा साथियों से सहायता ले सकते हैं। लगभग दो पृष्ठों की एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। यदि संभव हो, तो अपनी टिप्पणी की तुलना अपने अध्ययन केंद्र के अन्य छात्रों की टिप्पणियों से कीजिए।