Galvanometer in hindi , चल कुंडली धारामापी या गेल्वेनोमीटर , सिद्धांत , चल कुण्डली धारामापी चित्र , अर्थ :-
चल कुण्डली गैल्वेनोमीटर : इसमें ताम्बे के तारों की बनी कई फेरो वाली कुण्डली दो चूलों की सहायता से शक्तिशाली चुम्बकीय ध्रुवों M व S के मध्य रखी हुई है , इस कुण्डली के मीटर एक नरम लोहे का कोड इस प्रकार रखा जाता है कि वह कुण्डली को स्पर्श नहीं करता है। इस नर्म लोहे के कोड के साथ एक पतला हल्का संकेतक जुड़ा रहता है जो कोड के घुमने पर स्वयं भी घूमता है। कुंडली के ऊपर व नीचे दो विपरीत कम में स्प्रिंग लपेट दी जाती है। इन स्प्रिंगो का सम्बन्ध संयोजक पेच T1 व T2 से कर दिया जाता है।
विक्षेप का मान ज्ञात करने के लिए एक स्केल लगा रहता है।
कार्य प्रणाली : जब कुण्डली में धारा प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर एक विक्षेपक बल युग्म कार्य करता है। इस विक्षेपक बल युग्म का
आघूर्ण = NIABsinθ . . . . . . समीकरण-1
N = कुण्डली में फेरों की संख्या
I = कुंडली में प्रवाहित धारा
A = कुण्डली का क्षेत्रफल
B = चुम्बकीय क्षेत्र
θ = 90 डिग्री
Sin90 = 1
विक्षेपक बल युग्म का आघूर्ण = NIAB . . . . . . समीकरण-2
इस विक्षेपक बल आघूर्ण के कारण कुण्डली घुमती है अत: स्प्रिंगों में एंठन आ जाती है जिससे एक प्रत्यानयन बल युग्म उत्पन्न हो जाता है। जो कुंडली को पूर्व स्थिति में लाने का प्रयत्न करता है।
यदि एकांक एंठन कोण के लिए प्रत्यानयन बल युग्म का आघूर्ण K हो तथा एठन कोण Θ हो तो प्रत्यानयन बल युग्म का आघूर्ण = KΘ . . . . . . समीकरण-3
संतुलन में
NIAB = KΘ
Θ = NIAB/K
Θ = I(NAB/K)
Θ ∝ I
अर्थात उत्पन्न विक्षेप प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है।
धारामापी की कमियाँ :
धारा मापी से किसी परिपथ में प्रवाहित धारा का मान नहीं ज्ञात किया जा सकता है।
इसके दो कारण है –
- धारामापी कुछ uA कोटि (माइक्रो एम्पियर) का धारा पर दी पूर्ण स्कल विक्षेप देता है।
- धारामापी का प्रतिरोध अधिक होने के कारण प्रवाहित धारा के मान में परिवर्तन कर देता है।
धारामापी का अमीटर में रूपान्तरण :-
धारामापी को अमीटर में बदलने के लिए धारामापी की कुण्डली के समान्तर क्रम में एक अल्प प्रतिरोध का तार जिसे शंट प्रतिरोध कहते है , जोड़ दिया जाता है जिससे धारामापी का प्रतिरोध कम हो जाता है।
माना धारामापी का प्रतिरोध RG
शंट प्रतिरोध rs
अत: प्रभावी प्रतिरोध 1/R = 1/RG + 1/rs
1/R = (rs + RG)/RGr3
R = RGr3/(rs + RG)
RG >> r3
RG की तुलना में r3 को नगण्य –
R = RGr3/RG
R = r3
अमीटर की धारा सुग्राहिता : एकांक धारा प्रवाहित करने में उत्पन्न विक्षेप को धारा सुग्राहिता कहते है।
यदि I धारा प्रवाहित करने पर उत्पन्न विक्षेप θ हो तो धारा सुग्राहिता = θ/I . . . . . . समीकरण-1
NIAB = Kθ
NAB/k = Kθ
चूँकि धारा सुग्राहिता θ/I = NAB/K
धारामापी का वोल्ट मीटर में रूपान्तरण : धारामापी को वोल्ट मीटर में रूपान्तरित करने के लिए कुण्डली कम में एक उच्च प्रतिरोध लगा देते है। वोल्टमीटर ला उपयोग किन्ही दो बिन्दुओ के बीच विभवान्तर ज्ञात करने में करते है।
माना धारामापी का प्रतिरोध Rg
उच्च प्रतिरोध RH
तुल्य प्रतिरोध R = Rg + RH
चूँकि RH >> Rg अत: Rg को नगण्य मानने पर
R = RH
वोल्टमीटर की वोल्टता सुग्राहिता : एकांक वोल्टता से उत्पन्न विक्षेप को वोल्टता सुग्राहिता कहते है।
यदि V विभवान्तर में उत्पन्न विक्षेप Θ हो तो –
वोल्टता सुग्राहिता = Θ/V . . . . . समीकरण-1
चूँकि Θ/I = NAB/K
चूँकि I = V/R
Θ/(V/R) = NAB/K
ΘR/V = NAB/K
वोल्टता सुग्राहिता Θ/V = (NAB/K) x 1/R
धारा सुग्राहिता एवं वोल्टता सुग्राहिता पर फेरों की संख्या का प्रभाव :
धारा सुग्राहिता = NAB/K
वोल्टता सुग्राहिता = (NAB/K) x 1/R
यदि फेरों की संख्या दुगुनी कर दी जाए अर्थात N => 2N
अत: तार की लम्बाई भी बढ़ जाएगी।
तार का प्रतिरोध लम्बाई के समानुपाती होता है।
अत: प्रतिरोध भी दुगुना हो जायेगा।
R => 2R
नयी धारा सुग्राहिता = 2(NAB/K)
धारा सुग्राहिता दुगुनी हो जाएगी।
नयी वोल्टता सुग्राहिता = (2NAB/K) x 1/2R
नयी वोल्टता सुग्राहिता = (NAB/K) x 1/R
वोल्टता सुग्राहिता अपरिवर्तित रहेगी।