(Full Wave Rectifier in hindi) पूर्ण तरंग दिष्टकारी , फुल वेव रेक्टिफिएर थ्योरी इन हिंदी : अर्द्ध तरंग दिष्टकारी केवल प्रत्यावर्ती धारा सिग्नल के धन भाग को ही दिष्ट धारा में परिवर्तित कर पाता है तथा अर्द्ध तरंग दिष्टकारी की दक्षता 50% होती है।
इन दोनों समस्यायों से बचने के लिए पूर्ण तरंग दिष्टकारी का उपयोग किया जाता है , पूर्ण तरंग दिष्टकारी , प्रत्यावर्ती धारा तरंग के दोनों भाग अर्थात धन और ऋण चक्रों को दिष्ट धारा में परिवर्तित कर देता है तथा पूर्ण तरंग दिष्टकारी की दक्षता लगभग 80% होती है।
अत: वह दिष्टकारी जो निवेशी प्रत्यावर्ती धारा के धन और ऋण दोनों अर्द्ध चक्रों को दिष्ट धारा में परिवर्तित कर दे अर्थात निवेशी प्रत्यावर्ती धारा का लगभग पूर्ण भाग दिष्टधारा में परिवर्तित कर दे उसे पूर्ण तरंग दिष्टकारी कहते है।
सामान्य पूर्ण तरंग दिष्टकारी में दो डायोड उपयोग किये जाते है , जैसा चित्र में दिखाया गया है –
इन दोनों समस्यायों से बचने के लिए पूर्ण तरंग दिष्टकारी का उपयोग किया जाता है , पूर्ण तरंग दिष्टकारी , प्रत्यावर्ती धारा तरंग के दोनों भाग अर्थात धन और ऋण चक्रों को दिष्ट धारा में परिवर्तित कर देता है तथा पूर्ण तरंग दिष्टकारी की दक्षता लगभग 80% होती है।
अत: वह दिष्टकारी जो निवेशी प्रत्यावर्ती धारा के धन और ऋण दोनों अर्द्ध चक्रों को दिष्ट धारा में परिवर्तित कर दे अर्थात निवेशी प्रत्यावर्ती धारा का लगभग पूर्ण भाग दिष्टधारा में परिवर्तित कर दे उसे पूर्ण तरंग दिष्टकारी कहते है।
सामान्य पूर्ण तरंग दिष्टकारी में दो डायोड उपयोग किये जाते है , जैसा चित्र में दिखाया गया है –
लोड प्रतिरोध को दोनों डायोड के मध्य में लगाया जाता है जैसा चित्र में दिखाया गया है , याद रखे लोड प्रतिरोध का अभिप्राय है जहाँ से आउटपुट लिया जा रहा है।
पूर्ण तरंग दिष्टकारी की कार्यविधि
निवेशित प्रत्यावर्ती धारा के आधे चक्र के लिए बिंदु A धन और बिंदु c ऋण आवेशित हो जाती है इस स्थिति में डायोड D1 अग्र अभिनति में होता है और इससे निवेशित अर्द्ध तरंग का दिष्ट भाग प्राप्त हो जाता है।
निवेशित धारा के दुसरे आधे भाग के लिए D2 डायोड अग्र अभिनति में हो जाता है और इस अर्द्ध प्रत्यावर्ती धारा का दिष्टिकरण D2 डायोड से होकर प्राप्त हो जाता है।
अर्थात दोनों डायोड आधे आधे प्रत्यावर्ती सिग्नल को दिष्ट सिग्नल में परिवर्तित कर देते है और परिणाम स्वरुप हमें इनपुट प्रत्यावर्ती धारा का पूर्ण दिष्टिकरण सिग्नल आउटपुट में प्राप्त हो जाता है।
दिष्टिकरण के कारण आउटपुट सिग्नल हमें निम्न प्राप्त होता है –
पूर्ण तरंग सेतु दिष्टकारी
यह दूसरी प्रकार का पूर्ण तरंग दिष्टकारी परिपथ है , इसका सबसे बड़ा महत्वपूर्ण उपयोग यह है कि इसमें प्रत्यावर्ती धारा सीधे दी जा सकती है अर्थात इसमें ट्रांसफोर्मर की जरुरत नहीं है जैसा ऊपर साधारण पूर्ण तरंग दिष्टकारी में थी , ऊपर हमने प्रत्यावर्ती धारा को ट्रांसफार्मर में देने के बाद परिपथ में दी है लेकिन यहाँ ऐसी कोई आवश्यकता नहीं होती है , इस परिपथ में सीधे प्रत्यावर्ती धारा को निवेशित किया जा सकता है।
इसमें चार डायोड सेतु के रूप में लगे होते है जैसा चित्र में दिखाया है इसलिए इसे पूर्ण तरंग सेतु दिष्टकारी कहा जाता है।
यह भी निवेशित प्रत्यावर्ती धारा के पूर्ण सिग्नल को दिष्ट धारा में परिवर्तित कर देता है।
धनात्मक आधे चक्र के लिए D1 और D2 अग्र अभिनती में होते है इनसे होकर प्रत्यावर्ती धारा दिष्ट धारा में परिवर्तित होकर आउटपुट पर प्राप्त होती है।
ऋणात्मक आधे चक्र के लिए D3 और D4 अग्र अभिनती में हो जाते है और आउटपुट में इन दोनों डायोड के द्वारा प्रत्यावर्ती धारा के ऋणात्मक आधे चक्र के दिष्ट धारा भाग प्राप्त होता है।
चारों डायोड के सम्मिलित रूप को देखने के बाद हमें पूर्ण रूप से निवेशित प्रत्यावर्तित धारा का पूर्ण दिष्ट मान प्राप्त होता है और आउटपुट सिग्नल निम्न प्रकार प्राप्त होता है –