(freon in hindi) फ़्रीयान : मेथेन व एथेन से बने पोली क्लोरो और फ्लोरो व्युत्पन्न फ्रियान कहलाते है।
इन्हे CFC (क्लोरो फ्लोरो कार्बन ) भी कहते है।
बनाने की विधियाँ :
कार्बन टेट्रा क्लोराइड द्वारा :
CCl4 + HF → CCl3F + HCl
CCl3F + HF → CCl2F2 + HCl
CCl2F2 + HF → CClF3 + HCl
हेक्सा क्लोरो एथेन द्वारा :
C2Cl6 + HF → C2Cl5F + HCl
C2Cl5F + HF → C2Cl4F2 + HCl
C2Cl4F2 + HF → C2Cl3F3 + HCl
C2Cl3F3 + HF → C2Cl2F4 + HCl
C2Cl2F4 + HF → C2ClF5 + HCl
भौतिक गुण :
- फ्रियोन रंगहीन , गंधहीन व वाष्पशील द्रव है।
- फ्रियोन निष्क्रिय प्रकृति के होते है।
- फ्रियोन उच्च ताप व दाब पर स्थायी है।
रासायनिक गुण :
- फ्रिओन (CCl3F) क्षोभमण्डल में से समताप अंकुल में होता हुआ ओजोन परत में पहुंचता है।
- यह फ्रिओन ओजोन परत में सूर्य से आने वाले पराबैंगनी प्रकाश द्वारा अपघटित होकर Cl (क्लोरिन) मुक्त मूलक बनता है।
CFCl3 → CFCl2 + Cl.
Cl– + O3 → ClO + O2
ClO + O3 → Cl. + 2O2
- इस प्रकार एक क्लोरिन मुक्त मूलक एक लाख ओजोन अणु को अपघटित करता है।
- इस प्रकार ओजोन परत नष्ट होती है।
- अधिकांश देशो में फ्रिओन के उपयोग पर प्रतिबन्ध है।
- इस प्रकार प्रतिवर्ष 16 सितम्बर को ओजोन परत संरक्षण दिवस मनाया जाता है।
उपयोग :
- इसका उपयोग एक निष्क्रिय विलायक के रूप में किया जाता है।
- इसका उपयोग रेफ्रीजरेटर व AC आदि में प्रशीतक के रूप में किया जाता है।
- इसका उपयोग राकेट में प्रणोदक के रूप में किया जाता है।
पैराबैंगनी प्रकाश के हानिकारक प्रभाव :
- इससे त्वचा का कैंसर होता है।
- इससे मोतियाबिंद हो जाता है।
- इससे पेड़ पौधे नष्ट होते है।
- इससे समुद्री जीव-जन्तु नष्ट होता है।
- इससे मानव की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।
फ्रियोन का नामकरण XYZ पद्धति से निम्न प्रकार लिखते है –
X = (C-1)
Y = (H+1)
Z = f संख्या
Cl = कार्बन की संयोजकता पूरी करता है।
यौगिक | X
[C-1] |
Y
[H+1] |
Z
[F संख्या] |
यौगिक का नाम |
CFCl3 | 0 | 1 | 1 | फ्रिओन-11 |
CF2Cl2 | 0 | 1 | 2 | फ्रिओन-12 |
CF3Cl | 0 | 1 | 3 | फ्रिओन-13 |
C2Cl5F | 1 | 1 | 1 | फ्रिओन-111 |
C2Cl4F2 | 1 | 1 | 2 | फ्रिओन-112 |
C2Cl3F3 | 1 | 1 | 3 | फ्रिओन-113 |
C2Cl2F4 | 1 | 1 | 4 | फ्रिओन-114 |
C2ClF5 | 1 | 1 | 5 | फ्रिओन-115 |
प्रश्न : फ्रियोन-22 का सूत्र लिखिए।
उत्तर : CHClF2
DDT (डाई क्लोरो डाई फेनिल ट्राई क्लोरो एथेन) : P,P’-di chloro di phenyl tri chloro ethane
या
2,2-Bis (4′ – Chlorophenyl ) – 1,1,1-tri chloro ethane
बनाने की विधियाँ :
क्लोरो बेंजीन की अभिक्रिया सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में क्लोरल के साथ करवाने पर D.D.T का निर्माण होता है।
सर्वप्रथम DDT को 1873 में खोजा गया।
सर्वप्रथम इसके कीटनाशी प्रभाव को 1939 में पोल मूलर नामक वैज्ञानिक जो स्वीटजरलैंड के थे , ने खोजा।
इसके लिए इस वैज्ञानिक को चिकित्सा व शरीर क्रिया विज्ञान में नोबल पुरस्कार दिया गया।
DDT सफ़ेद रंग का ठोस होता है तथा जल में विलेय होता है।
DDT का सबसे अधिक उपयोग द्वितीयक विश्व युद्ध में किया गया।
DDT का उपयोग मच्छरों व टाइफ़ाइड वाहक जुओ को मारने के लिए किया गया।
DDT तालाब में पहुचकर मछलियों के ऊतको में जमा हो जाता है जिन्हें मानव खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयुक्त करता है जिससे यह मानव के शरीर में पहुचकर हानिकारक प्रभाव डालता है।
इसलिए अधिकांश देशो में DDT के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। यह प्रतिबंध 1973 में लागू किया गया।
BHC (बेंजीन हेक्सा क्लोराइड)
या
gammexane
या
लिंडेन
या
666
या
1,2,4,4,5,6 – हेक्सा क्लोरो साइक्लो हेक्सेन
या
C6H6Cl6
बनाने की विधियाँ :
बेन्जीन की क्रिया Cl2 से सूर्य के प्रकाश में करवाने पर BHC बनता है।
इस प्रकार BHC के α , β , γ , δ , ε , η , θ समावयव प्राप्त करते है।
इनमे से γ-BHC अधिक क्रियाशील होता है तथा अधिक भेदन क्षमता होता है क्योंकि इसका आकार छोटा होता है।
BHC और DDT के साइड इफेक्ट्स :
- ये मृदा व जल प्रदुषण में सहायक है।
- ये मृदा की उर्वरक क्षमता को घटाते है।
- ये जीव-जन्तुओ के लिए हानिकारक है।
- ये हमारे शरीर के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते है।
प्रश्न : क्लोरल की तुलना में क्लोरल हाइड्रेट अधिक स्थायी होता है क्यों ?
उत्तर : CCl3-CHO + H2O → CCl3-CH(OH)2
- इसमें -Cl समूह का -I प्रभाव समान स्थायित्व बढाता है।
- क्लोरल हाइड्रेट में अंत: अणुक हाइड्रोजन बंध बनने के कारण यह किलेट का निर्माण कर लेता है।
- इसलिए स्थायी होता है।