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भोजन : सभी जंतुओं को शरीर के संचालन , शरीर की वृद्धि और ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। जो जन्तु भोजन का निर्माण स्वयं नहीं कर सकते है वे सभी जन्तु बाह्य स्रोत से भोजन को प्राप्त करते है।

मनुष्य को निम्नलिखित मुख्य कार्यो के लिए भोजन की आवश्यकता होती है –
  • शरीर के सञ्चालन के लिए ऊर्जा प्राप्त करने हेतु।
  • शरीर की वृद्धि और विकास हेतु आवश्यक अवयवों के निर्माण हेतु और शरीर की गतिविधियों के नियमन हेतु।

भोजन ग्रहण करने की विधि

1. द्रव भोजियों में भोजन ग्रहण करने की विधि – ये निम्नलिखित है –
(a) विसरण : अधिकांश परजीवी (प्रोटोजोअन्स , टेपवर्म) पचित भोजन को बाहरी सतह से अवशोषण द्वारा ग्रहण करते है।
(b) पिनोसाइटोसिस (सेल ड्रिंकिंग ) : द्रवीय भोजन का शरीर सतह के द्वारा अन्दर प्रवेश करना। पिनोसाइटोसिस चैनल का निर्माण शरीर की सतह पर होता है। जिससे बाहरी वातावरण का द्रव सम्पर्क में आता है। इस चेनलों के अंतिम सिरे शरीर के अन्दर छोटे छोटे टुकड़ो (पिनोसोम्स या पिनोसाईटिक वेसिकिल्स) के रूप में त्याग दिए जाते है।
(c) रक्त चूषण : कुछ जन्तुओ के मुख्यांग रक्त को चूसने के लिए रूपांतरित होते है। उदाहरण : मच्छर , वैम्पायर चमगादड़।
2. माइक्रोफैंगस (फ़िल्टर फीडर) जन्तुओं में भोजन ग्रहण करने की विधि :-
कुछ जन्तु (पैरामीशियम , स्पंज , कोरल , बाइवाल्व और टेडपोल आदि) पानी में पड़े भोज्य पदार्थो को (मृत सूक्ष्म जीव , प्रोटोजोअन्स और एल्गी) स्यूडोपोडिया , सिलिया , फैलेजिला और म्यूकस आवरण की सहायता से छानकर ग्रहण करते है या छोटे माइक्रोस्कोपिक जन्तुओं से भोजन प्राप्त करते है। जैसे – अमीबा और पैरामिशियम।

कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

  • स्तनधारी जैसे खरगोश , चूहा आदि में यकृत 5 पिण्ड युक्त होता है – दायाँ और बायाँ पिंड , बायाँ पाशर्व कॉडेट के साथ केन्द्रीय पिंड और स्पीगेलियन पिंड।
  • मानव और खरगोश जैसे स्तनियों में इन्फ्राऑर्बिटल दिखाई नहीं देते।
  • मिनरल , विटामिन्स और जल सूक्ष्मपोषण या भोजन का सुरक्षात्मक प्रिंसिपल्स है क्योंकि ये ऊर्जा प्रदान नहीं करते। इनकी कमी विशिष्ट रोगों से सम्बन्धित है।
  • कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन और वसा वृहद पोषण या भोजन का प्रोक्सिमेट प्रिंसिपल्स है क्योंकि ये ऊष्मा उत्पन्न के लिए और विभिन्न कार्बनिक कार्यो के लिए ऊर्जा स्रोत बनाते है।
  • नासाग्रसनी में , मध्य कर्ण की युस्टेकियन नलिका की एक जोड़ी ओपनिंग होती है।
  • spiny ant eaters , scaly ant eaters एवं कुछ व्हेल दांतरहित होती है।
  • sloths व armadillos के दांतों में इनेमल नहीं होता है।
  • प्रॉवन में भोजन का अधिकांश पाचन आमाशय के कार्डियक भाग में होता है।
  • achlorohydria का मतलब आमाशय में एचसीएल स्त्रावण की कमी है। मानव अमाशय की क्षमता 1.5 से 1.7 लीटर होती है।
  • Achalasia cardia वह स्थिति है जिसमे निगलने के दौरान कार्डियक अवरोधनी पूर्णतया शिथिल होने में असफल होती है जिससे भोजन का एकत्रण ग्रासनाल और समीपस्थ oesophges dilatus में हो जाता है।
  • Choloretic वे पदार्थ है जो यकृत से पित्त स्त्रावण बढाते है। उदाहरण : पित्त लवण।
  • cholagogues वो पदार्थ है जो पित्ताशय में संकुचन उत्पन्न करते है।
  • लगभग 93% कोशिकीय पदार्थ कार्बन , हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बना होता है और 2% N , P , Cl  व S , I , F , B से बने होते है और ये अल्प मात्रा में उपस्थित होते है।
  • Entero hepatic परिसंचरण : कुछ पित्त लवण जो कि ग्रहणी में प्रवेश कर जाते है। 90-95% पित्त लवण में इलियम के अंतिम सिरे से सक्रीय रूप से निवाहिका शिरा द्वारा पुनः अवशोषित हो जाते है और यकृत में लौट जाते है और फिर से उत्सर्जित कर दिए जाते है। यह एन्ट्रोहिपेटिक संचरण है।
  • RMR (routine metabolic rate) : यह मध्यम सक्रीय व्यक्ति की ऊर्जा आवश्यकता है। वयस्क नर के लिए RMR = 2800 Kcal/day | व्यस्क मादा के लिए RMR = 2200 Kcal/per day
  • आधारी उपापचयी दर (BMR) : यह आराम या नींद के दौरान शरीर के नियमन के लिए न्यूनतम ऊर्जा आवश्यकता है। BMR = 1600 Kcal/day