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फ्लेवोन्स एवं फ्लेवनॉल्स क्या है अंतर , difference between flavones and flavonols in hindi

पढ़ें फ्लेवोन्स एवं फ्लेवनॉल्स क्या है अंतर , difference between flavones and flavonols in hindi ?

स्वोनॉइड्स (Flavonoids)

फ्लैवोनॉइड्स पादपों में पाये जाने वाले एक प्रकार के फीनोलिक यौगिक हैं जिनमें 15 कार्बन परमाणु होते हैं। फ्लैवोनॉइड लगभग सभी समूहों में पाये जाते हैं। लगभग 2000 से भी अधिक फ्लैवोनॉइड विभिन्न पादपों में पहचाने गये हैं। संरचना (Structure) – फ्लैवोनॉइड की मूल संरचना में दो एरोमेटिक वलय (6C) होते हैं जो तीन कार्बन युक्त श्रृंखला से जुड़े होते हैं। इनमें से एक वलय (B) तथा कार्बन श्रृंखला शिकिमिक अम्ल परिपथ से व्युत्पन्न होती है  जबकि दूसरा वलय (A) तथा ऑक्सीजन मेलोनिक अम्ल परिपथ से प्राप्त होते है। इस मूल सरचना में इस प्रकार रूपान्तरण होता है कि इसमें और अधिक द्विबन्ध बन जाते हैं जिससे वे अधिक प्रकाश का अवशोषण कर सकते है इसी से वे विभिन्न रंगों के प्रतीत होते हैं। अधिकांश फ्लेवोनॉइड ग्लाइकोसाइड के रूप में पाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त इनमें – OH समूह भी होते है जो के 3′ एवं 4′ अथवा A वलय के 5 अथवा 7 कार्बन के साथ संलग्न होते हैं। इन्हीं OH समूहों से शर्करा समूह भी जुड़ सकते है। इन समूहों की उपस्थिति जल में इसकी विलेयता को बढ़ाती है किन्तु कुछ समूहों जैसे मिथाइल ईथर अथवा रूपान्तरित आइसोपेन्टिनाइल समूहों की उपस्थिति से इनकी प्रकृति जलरोधी (hydrophobic) हो जाती है। अधिकांश फ्लेवोनॉइड कोशिका की रिक्तिका में संचित होते हैं। अधिकांशतः फ्लेवोनाइड अधिचर्मी कोशिकाओं में पाये जाते हैं।

वर्गीकरण (Classification)

फ्लेवोनॉइड को तीन कार्बन की संयोजी श्रृंखला के ऑक्सीकरण की अवस्था (कम अथवा अधिक) के आधार पर भिन्न-भिन्न समूहों में बांटा गया है जिनमें चार मुख्य हैं- एन्थेसायनिन्स, फ्लेवोन्स, फ्लेवोनोल्स तथा आइसोफ्लेवोन्स । लगभग सभी प्रकार के फ्लेवोनॉइड फीनाइलएलेनीन से संश्लेषित होते हैं।

एन्थोसायनिन्स (Anthocyanins)

एन्थेसायनिन दो ग्रीक शब्दों एन्थांस ( anthos-flower) अर्थात पुष्प एवं क्यानोस (kyanos – dark blue) अर्थात गहरा नीला से मिलकर बना है।

वितरण (Distribution )

एन्थोसायनिन सामान्यतः नीले, बैंगनी, गुलाबी एवं लाल पुष्पों में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त वे रंगीन फल, तना, पत्तियों एवं कभी – कभी पादप मूल में भी पाये जाते हैं। अधिकांश फलों एवं पुष्पों का रंग अधिचर्म में एन्थोसायनिन के कारण होता है। टमाटर जैसे फलों तथा पीले नारंगी पुष्पों में कैरोटिनॉइड पाये जाते हैं। पतझड़ के दौरान पत्तियों का रंग एन्थोसायनिन के कारण ही होता है?

सामान्यतः एन्थोसायनिन शैवाल, कवक, ब्रायोफायटा आदि निम्नवर्गीय पादपों में नहीं पाये जाते हैं हालांकि कुछ में इनकी उपस्थिति दर्ज की गई है।

विभिन्न एन्थोसायनिन का नामकरण सामान्यतः उस पादप के नाम पर किया जाता है जिसमें सबसे पहले उनकी खोज की गई थी। सर्वप्रथम सायनिडीन ( cyanidin) एन्थोसायनिन की खोज की गई थी जो सैन्टारिया सायनस (Centaurea Cyanus) में पाया गया है।

तालिका : विभिन्न एन्थेसायनिन, संबधित पादप, विस्थापित समूह के कारण उपस्थित रंग

क्र. संख्या एन्थेसायिनन पादप के नाम विस्थापक समूह पुष्प का रंग
सायनिडीन (Cyanidin)

 

पेलरगोनिडीन (Pelargonidin)

डेल्फीनिडीन (Delphinidin)

पिटूनिडीन (Petunidin)

पियोनिडीन ( Peonidin )

 

 

सैन्टारिया सायनस (Centaurea cyamus)

पेलरगोनियम ( Pelargonium )

डेलफीनियम (Delphinium)

पिटूनिया ( Petunias)

पियोनिया (Peonia)

3′ – OH, 4′ – OH

 

 

4′-OH

 

 

3’–OH,4’–OH,

5′-OH

3’–OCH34 OH,

5′-OCH

3’–OCH3,4-OH

बैंगनी आभायुक्त लाल

 

संतरी लाल

 

 

नीलाभ बैंगनी

 

बैंगनी

 

गुलाबी लाल

संरचना (Structure) : एन्थोसायनिन ग्लाइकोसाइड के रूप में पाये जाते हैं जिसमें मध्य वलय के तीसरे कार्बन पर शर्करा होती है। शर्करा विहीन एन्थोसायनिन अणु एन्थोसायनिडीन (anthocyanidin) कहलाता है। शर्करा में एक अथवा दो ग्लूकोज़ अथवा गैलेक्टोज अणु केन्द्रीय वलय के -OH समूह अथवा वलय – A के 5+ वें कार्बन पर संलग्न हो सकते हैं कमी-कभी 3 कार्बन पर रैम्नोज (rhamnose), जायलोज़-ग्लूकोज, अथवा ग्लूकोज-ग्लूकोज़ (डइसैकराइड) भी संलग्न हो सकते हैं।

एन्थोसायनिन का रंग अनेक कारकों पर निर्भर करता है। सर्वप्रथम B वलय में विस्थापन समूह (substitutional group) साथ उनकी उपस्थिति तथा तथा एरोमेटिक समूह फिर कोशिका रिक्तिका का pH तथा अन्य फ्लेवोन अथवा फ्लेवोनोल आपस में संलग्नता सभी इनके रंग को प्रभावित करते हैं। उदाहरणतः पियोनिया (Peonia). पियोनिडिन (peonidin) में साथ फ्लेवोन अथवा फ्लेवोनोल से रंग में नीलापन अधिक मिथाइल समूह के कारण लाल रंग होता है। एन्थोसायनिन होता है। अधिकांश एन्थोसायनिन अम्लीय विलयन में लाल रंग देते हैं किंतु pH बढ़ने पर बैंगनी अथवा नीला रंग देते हैं। उदाहरणतः डेलफीनियम (Delphinium) के पुष्पों की कोशिकाओं में डेलफीनिडीन (delphinidin) प्रारम्भ ललाई युक्त बैंगनी से बाद में pH 6.8 होने पर नीला बैंगनी रंग देने लगता है ।

फ्लेवोन्स एवं फ्लेवोनोल्स (Flavones and flavonols )

फ्लेवोन तथा फ्लैवोनोल एन्थोसायनिन के समान संरचना युक्त होते हैं इनमें केन्द्रीय ऑक्सीजन युक्त वलय की संरचना भिन्न होती है। अधिकांशत फ्लेवोन तथा फ्लेवोनोल पीलापन युक्त अथवा चमकीले हाथी दांत (ivory coloured) जैसे रंग वाले होते हैं तथा पुष्पों के रंग एवं आभा में सहयोग देते हैं। अनेक फ्लवोन तथा फ्लेवोनोल रंगीन नहीं होते किन्तु वे पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करते हैं तथा मधुमक्खी एवं विभिन्न कीटों के लिये दृश्य विकिरण स्पैक्ट्रम (visible radiation Spectrum) को प्रभावित करते हैं।

पुष्पों के अतिरिक्त अनेक पादपों की पत्तियों में भी फ्लेवोन एवं फ्लेवोनोल पाये जाते हैं।

आइसोफ्लेवोनॉइड (Isoflavonoids)

आइसोफ्लेवोनॉइड फ्लेवोनॉइड के समान होते हैं किन्तु इसमें B वलय स्थिति फ्लेवोनॉइड से भिन्न होती है।

फ्लेवोनॉइड्स का महत्व (Importance of flavonoids)

फ्लेवोनॉइड्स का अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न प्रकार से पादप के जीवन में महत्वपूर्ण हैं ।

  1. सर्वाधिक रूप से पाये जाने वाले फ्लैवोनॉइड अर्थात एन्थोसायनिन पादप में पुष्पों को लाल, नीला, आदि रंग प्रदान करते हैं तथा अनेक फलों का रंग भी इनके कारण होता है। इस तरह ये कीटों एवं अन्य जन्तुओं को आकर्षित कर परागण तथा बीजों एवं फलों के प्रकीर्णन (dispersal) में सहायक होते हैं।
  2. फ्लेवोन एवं फ्लेवोनोन पराबैंगनी रंग को अवशोषित करके मधुमक्खी एवं कीटों आदि के लिये दृश्य स्पैक्ट्रम में परिवर्तन कर देते हैं। ये रसायन पुष्प पर बिन्दुओं, लाइनों वृत्त आदि का पैटर्न बनाते हैं तथा मकरंद प्रदर्शक (nectar guides) का कार्य करते हैं तथा कीटों को मकरंद एवं परागकणों की स्थिति के बारे में अनुमान देते हैं।
  3. अनेक पादपों की पत्तियों में उपस्थित फ्लेवोन एवं फ्लेवोनोन पादप कोशिकाओं की B- पराबैंगनी (280-320nm) किरणों से रक्षा करते हैं। ये अधिचर्मी कोशिकाओं में इन किरणों का अवशोषण करके दृश्य विकिरण को ही भीतरी परतों मे प्रवेश करने देती हैं। इस प्रकार वे आंतरिक ऊतकों की पराबैंगनी किरणों से रक्षा करती है।

4.अनेक लेग्यूमी पादपों में पादप मूल द्वारा फ्लेवोन तथा फ्लेवोनोन मृदा में स्रावित किये जाते हैं तथा लेग्यूमी मूल एवं N2 स्थिरकारी जीवाणुओं के मध्य सहजीवी सम्बन्ध स्थापित करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है ।

  1. रोटेनॉइड (एक प्रकार के आइसोफ्लेवोनॉइड) में कीटनाशी गुण होते हैं अतः वे पादपों की कीटों से सुरक्षा में सहायक होते हैं।
  2. कुछ आइसोफ्लेवोनॉइड में प्रतिएस्ट्रोजनिक गुण होते हैं जिसके कारण अधिक मात्रा में इन पादपों का उपयोग करने पर पालतू जानवरों में बन्ध्यता आ जाता है। उदाहरणतः आइसोफ्लेवोनॉइड बहुल क्लोवर (clover ) की पत्तियाँ अधिक मात्रा में खाने पर भेड़ें बन्ध्य हो जाती हैं ।
  3. सोयाबीन में उपस्थित आइसोफ्लेवोनॉइडों में प्रति अर्बुदकारी (anticancerous) गुण होते हैं।
  4. लेग्यूमी पादपों में उपस्थित अनेक आइसोफ्लेवोनॉइड फाइटोएलैक्सिन (phytoalexins) के रूप में महत्त्वपूर्ण हैं जिनमें प्रतिसूक्ष्मजैविक (antimicrobial) गुण होते हैं तथा वे पादपों की रोगकारकों से सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होते हैं। फाइटोएलेक्सिन सूक्ष्मजीवों (कवक, जीवाणु आदि) द्वारा संक्रमण होने पर पादपों द्वारा स्रावित किये जाते हैं इससे वे ज्यादा क्षेत्र में संक्रमण नहीं कर पाते ।

स्टीरॉइड (Steroids)

स्टीरॉइड संतृप्त चतुष्कवलयी स्टीरेन अथवा गोनेन वलय से निर्मित एवं आधारित यौगिक है। रासायनिक रूप से स्टीरेन वलय 1,2 साइक्लोपैन्टानोपर हाइड्रोफीनेनथ्रीन (1,2-cyclopentanoperhydrophenanthrene) है। स्टीरॉइड शब्द सर्वप्रथम आर के कैलो एवं साथियों (Callo wet.al., 1936) ने स्टीरॉल बाइल अम्ल, सैपोनिन एवं लिंग हार्मोन ( Sex hormones) आदि के लिये उपयोग किया था ।

प्राकृतिक स्टीरॉइड रूपान्तरित ट्राइटरपीनॉइड ही माने जाते हैं क्योंकि ये स्क्वालीन (squalene) के वलयीकरण (cyclisation), असंतृप्तीकरण (unsaturation ) एवं प्रतिस्थापन (substitution) के द्वारा बनते हैं। स्टीरेन वलय आंशिक अथवा पूर्णरूप से हाइड्रोजनीकृत (hydrogenated) होता है एवं 10 वें एवं 13 वें कार्बन पर मिथाइल समूह युक्त होता है। बहुधा 17 वें कार्बन पर कीटो अथवा हाइड्राक्सिल (C= Oor-OH) समूह अथवा एल्काइल पार्श्व शृंखला भी पायी जाती है ।

स्टीरॉल (Sterols)

एक अथवा अधिक हाइड्रॉक्सिल (OH) समूह युक्त स्टीरॉइड को स्टीरॉल (sterols) कहते हैं । ये 6 आइसोप्रीन (isoprene) इकाइयों से निर्मित ट्राइटरपीनॉइड (triterpenoids) होते हैं। सामान्यतः स्टीरॉल वसा अम्लों के साथ एस्टरीकृत (esterified) अवस्था में पाये जाते हैं । फायटोस्टीरॉल एवं कोलेस्टीरॉल सामान्य स्टीरॉल हैं।

कोलेस्टीरॉल रुधिर एवं विभिन्न झिल्लियों में पाया जाता है। इसका संश्लेषण जंतुओं में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा अम्लों से यकृत में होता है अनेक पादपों में यह अत्यन्त अल्प मात्रा में पाया जाता है। यह विभिन्न स्टीरॉइड हार्मोनों जैसे प्रोजेस्टीरॉन (progesterone), एस्ट्रोजन (estrogen), टेस्टोस्टीरॉन (testosterone). कॉर्टिसोन (cortisone) एवं विटामिन D का पूर्वगामी होता है।

पादपों में भी स्टीरॉल पाये जाते हैं तथा फायटोस्टीरॉल कहलाते हैं। इसमें B – साइटोस्टीरोल (B- sitosterol) (29C). स्टिगमास्टीरोल (stigmasterol, 29C), कैम्पेस्टीरॉल (capesterol, 28 C) एवं अर्गोस्टीरॉल (ergosterol) पादपों में सामान्यतः पाये जाते हैं । अर्गोस्टीरॉल के अतिरिक्त सभी हरित शैवाल (green algae) उच्चवर्गीय पादपों में पाये जाते हैं । अर्गोस्टीरोल

मुख्यतः यीस्ट एव एस्कोमाइस्टिीज वर्ग के विभिन्न कवकों में पाया जाता है। सूर्य की किरणों में उपस्थित UV किरणों के D2 अर्थात अर्गोकैल्सीफेरॉल (ergocalciferol) में परिवर्तित हो जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ जलीय कवकों जैसे एक्लिया बाइसेक्सुएलिस (Achlya bisexualis) में मादा पादपों द्वारा एन्थ्रीडीयोल (anteridiol) का स्रवण होता है तथा इसी के नर पादप द्वारा एन्थ्रीडीयाज की उपस्थिति में ऊगोनियोल (oogoniol) स्रावित होता है। ये दोनों लिंग संबंधी हार्मोन स्टीरॉइड ही है।

पादप स्टीरोलों में विशेषतः अधिसंख्य (अधिक संख्या) में (supernumerary) पार्श्व श्रृंखलायें पाई जाती हैं। ये पार्श्व श्रृंखलाए लगभग 1-2 कार्बन अणु युक्त होती है तथा अधिकांशतः 24 वें कार्बन पर संलग्न होती है। इसके अतिरिक्त 10 वें, 13 वें एवं 17 वें कार्बन पर प्रतिस्थापन समूह (substitution groups ) होते हैं जो सामान्यतः वलय के तल से ऊपर अथवा कभी-कभी नीचे निकले रहते हैं। ऊपरवाले समूहों (B configuration) समूहों को मोटी लाइनों द्वारा निरूपित किया जाता है तथा ∝ सरूपण (a-configuration) को बिंदुदार लाइनों (dottled lines) से प्रदर्शित किया जाता है। मुक्त स्टीरोल जीवाणु के अतिरिक्त सभी सजीवों को कोशिकाओं की झिल्लियों में पाये जाते हैं।

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