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Categories: Biology

द्वितीयक उपापचय क्या है , secondary metabolites in hindi in plants द्वितीयक उपापचयज की परिकल्पना (Concept of Secondary Metabolites)

जान पाएंगे द्वितीयक उपापचय क्या है , secondary metabolites in hindi in plants द्वितीयक उपापचयज की परिकल्पना (Concept of Secondary Metabolites) ?

 द्वितीयक उपापचय (Secondary Metabolities)

परिचय (Introduction)

पादपों की कार्यिकी एवं जैव अणुओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि पादपों में उपस्थित विभिन्न प्रकार के जैव अणुओं, अनेक प्रकार की उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप निर्मित होते हैं। इसमें से कुछ जैव अणु पदार्थ सभी पादपों में समान रूप से पाये जाते हैं तथा आधारभूत जैविक क्रियाओं के लिये आवश्यक होते हैं अथवा उन्हीं क्रियाओं से बनते हैं। ये पदार्थ प्राथमिक उपापचयज (primary metabolites) कहलाते हैं, DNA, RNA, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट वसा अमीनो अम्ल इत्यादि इनके उदाहरण हैं।इनके अतिरिक्त अनेक पदार्थ पादपों में बनते हैं जो सभी में समान रूप से नहीं पाये जाते तथा द्वितीयक उपापचयज कहलाते हैं ।

द्वितीयक उपापचयज की परिकल्पना (Concept of Secondary Metabolites)

पादप उपापचयी क्रियाओं के दौरान अनेक प्रकार के पदार्थों का निर्माण होता है जो प्रत्यक्ष रूप से पादप वृद्धि एवं विकास में कोई योगदान नहीं देते, इन्हें द्वितीयक उपापचयज कहा जाता है ये अनेक प्राथमिक उत्पादों के निर्माण के दौरान अनेक मध्यवर्ती पदार्थों से निर्मित होते हैं। एल्कलॉइड, फेल्वोनॉइड, फीनोलिक पदार्थ, टैनिन, रबर, ग्लाइकोसाइड इत्यादि इनके कुछ उदाहरण हैं। अनेक द्वितीयक उपापचयज लिपिड, कार्बोहाइड्रेट अमीनो अम्ल अथवा प्रोटीन आदि के व्युत्पन्न (derivatives) होते हैं।

ये पदार्थ सभी पादपों में समान रूप से नहीं पाये जाते, इनका वितरण विशिष्ट पादप समूहों एवं ऊतकों में सीमित रहता है। सीमित एवं विशिष्ट समूहों में वितरण के कारण द्वितीयक उपापचयज वर्गिकी (taxonomy) के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण होते हैं।

हालांकि द्वितीयक उपापचयज प्रत्यक्षतः वृद्धि एवं विकास में महत्त्वपूर्ण नहीं होते किन्तु विभिन्न उपापचयज अनेक महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं में सहायक होते हैं। उदाहरणतः लिग्निन कोशिका भित्ति को मजबूती प्रदान करता है। अनेक द्वितीयक उपापयचज पुष्पों को विशिष्ट सुगन्ध प्रदान करते हैं जो विशेष कीट आदि को आकर्षित कर परागण प्रक्रिया में सहायक होते हैं। अनेक पदार्थ रोगाणुओं से सुरक्षा प्रदान करते हैं।

द्वितीयक उपापचयजों का वर्गीकरण (Classification of secondary metabolites)

पादपों में उपस्थित द्वितीयक उपापचयजों को तीन मुख्य समूहों में बांटा जाता है- टरपीन्स फीनोलिक पदार्थ एवं नाइट्रोजन युक्त पदार्थ |

टरपीन्स (terpenes) अथवा टरपीनॉइड :- संभवतः द्वितीयक उपापचयजों का यह सबसे बड़ा समूह है। इनमें मोनोटरपीन सैस्कूटरपीन, ट्राइटरपीन टेट्राटरपीन, (कैरोटिनॉइड, विटामिन आदि). टरपीनॉइड ग्लूकोसाइड, टरपीन, एल्कलॉइड, रबर, सम्मिश्र टरपीन्स (क्लोरोफिल, विटामिन ) टरपीन एल्कोहल, ट्रोपोन एवं ट्रोपोलोल्स आदि शामिल किये जाते हैं ।

इनमें सामान्यतः वसा (lipids) के गुण पाये जाते हैं तथा ये एक सामान्य आधारभूत संरचना से प्राप्त विभिन्न व्युत्पन्न हैं। ये एसिटाइल Co- A अथवा ग्लाइकोलिटिक परिपथ के मध्यवर्ती उपउत्पादों (intermediates) से बनते हैं। लगभग सभी

टरपीन्स 5 कार्बन-युक्त आइसोपेन्टेन (isopentane) नामक एक इकाई से निर्मित होते हैं तथा बहुधा उच्च ताप पर विघटित होने पर आइसोप्रीन इकाइयाँ बनाते हैं।

अतः इन्हें आइसोप्रीनाइड भी कहते हैं। टरपीन्स मेवालोनिक अम्ल परिपथ (Mevalonic acid pathway) अथवा मिथाइल एरिथ्रीटोल फास्फेट परिपथ (Methyerythritol PO4 pathway, MEP pathway) के माध्यम से निर्मित होते हैं।

II फीनोलिक एवं संबंधित पदार्थ (Phenolic compounds and related substances)

सभी फीनोलिक पदार्थों एवं उनके संबंधित पदार्थों में एक एरोमेटिक वलय होता है जिससे हाइड्राक्सिल (-OH), कार्बोक्सिल (-COOH). मीथोक्सिल (methoxyl-O-CH3 ) अथवा कभी-कभी अन्य अनएरोमेटिक वलय संरचनाएँ संलग्न होती हैं।

कुछ ग्लाइकोसाइड एवं अविलेय बहुलकों के रूप मे पाये जाते हैं। अनेक पादपों में कवकरोधी फायटोएलेक्सिन (phytoalexins) पाये जाते है जिनकी प्रकृति फीनोलिक पदार्थों के समान होती है।

सामान्यतः अधिकांश फीनोलिक पदार्थ जलं में अधिक विलेय तथा अध्रुवीय कार्बनिक विलायकों में कम घुलनशील होते हैं। कम pH मान पर अपेक्षाकृत कम आयनित अवस्था में ये ईथर में भी विलेय होते हैं।

ये लगभग सभी पादप समूहों तथा आवृतबीजी, अनावृतबीजी, फर्न, मॉस, ब्रायोफायटा एवं अनेक सूक्ष्म जीवों के पादपों में पाये जाते हैं किन्तु इनके कार्य के बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी है ।

अधिकांश फीनोलिक पदार्थ फीनाइल एलेनीन से फीनाइल एलेनीन अमोनिया लायज एन्जाइम की सक्रियता के फलस्वरूप बनते हैं। ये फीनोलिक पदार्थ शिकीमिक अम्ल परिपथ (shikimic acid pathway) तथा कुछ मेलोनिक अम्ल परिपथ (malonic acid pathway) के माध्यम से बनते हैं।

नाइट्रोजन युक्त द्वितीयक उपापचय (Nitrogen containing secondary metabolites)

पादपों में अनेक द्वितीयक उपापचयज नाइट्रोजन युक्त होते हैं। इस वर्ग में अनेक शाकरोधी एल्कलाइड, सायनोजैनिक ग्लूकोसाइड (Cyanogenic glucosides), विषमचक्री वलय युक्त एल्कॉलाइड् ग्लूकोसाइनोलेट (Glucosinolates) तथा कुछ अप्रोटीनी अमिनो अम्ल शामिल हैं। इनमें से N, युक्त एल्कलॉइड लगभग 20% संवहनी पादपों में पाये जाते हैं। इन सभी में नाइट्रोजन सामान्यतः विषमचक्री वलय का भाग होती हैं ।

सायनोजैनिक पदार्थ एवं ग्लूकोसाइनोलेट पादपों में रक्षात्मक पदार्थ के रूप में होते हैं। ये स्वयं आविषकारी (toxic) नहीं होते है किंतु पादप अंगों के कटने पर अपघटित हो जाते हैं तथा अविषकारी वाष्पशील पदार्थ बनते हैं। सायनोज़ैनिक ग्लूकोसाइड अविषकारी HCN गैस बनाते हैं।

एल्कलाईइड (Alkaloids)

एल्कलॉइड नाइट्रोजन युक्त द्वितीयक उपापचयजों का वृहत समूह है। अधिकांशतः एल्कलॉइड में विषमचक्रिक वलय होते हैं जिसमें नाइट्रोजन होती है ये क्षारीय प्रकृति के होते हैं। अबतक 3000 से भी अधिक एल्कलॉइड विलग किये जा चुके हैं। अनेको एल्कलॉइड पादपों में लवण के रूप में पाये जाते हैं। अधिकांश एल्कलॉइड सफेद क्रिस्टलीय पदार्थ के रूप में अलग किये जा सकते हैं तथा जल में कम विलेय होते हैं। अनेक एल्कलॉइड पादपों की रोगकारकों एवं कीटो से भी रक्षा करते हैं। निकोटीन, कैफीन, कुनीन, कॉलचिसीन आदि कुछ प्रमुख महत्त्वपूर्ण एल्कलॉइड हैं।

एल्कलॉइडों का मनुष्य एवं अन्य प्राणियों की कार्यिकी एवं मस्तिष्क पर विषेश प्रभाव होता है इसीलिये मनुष्य को एल्कलॉइडों के अध्ययन एवं विश्लेषण में विशेष रुचि है हालांकि ऐसा माना जाता रहा है कि पादप वृद्धि में इनका विशेष योगदान नहीं है फिर भी पादपों में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

वितरण (Distribution)

एल्कलॉइडों का वितरण मुख्यतः उच्चवर्गीय पादपों में होता है। इनके विस्तृत वितरण का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि अब तक लगभग 4000 पादपों से 3000 से भी अधिक एल्कलॉइडों के बारे में रिपोर्ट किया जा चुका है। टेरिडोफायटा एवं अनावृतबीजी पादपों में एल्कलॉइड कम ही पाये जाते हैं किंतु आवृतबीजी समूह के द्विबीजपत्रियों में ये अनेक कुलों के पादपों में पाये जाते हैं। मैग्नोलिएल्स, रेननकुलेल्स, पैववरेसी, लेग्यूमिनोसी, रूटेसी एवं सेन्ट्रोस्पर्मी समूहों के पादपों में अधिकांशतः एल्कलॉइड मिलते हैं जबकि एकबीजपत्री पादपों में ये कम पाये जाते हैं । पादप के सभी ऊतकों में एल्कलॉइड समान रूप से नहीं पाये जाते हैं। लेटेक्स (latex) वाहिकाओं, अधिचर्म पूलाच्छद ( (bundle sheath) आदि की कोशिकाओं में उपस्थित होते हैं। तरुण कोशिकाओं में एल्कलॉइड नहीं होते हैं।

वर्गीकरण (Classification)

विभिन्न एल्कलॉइडों को तीन समूहों में बांटा गया है-

(i) सत्य एल्कलॉइड, (ii) प्राक्एल्कलाइड एवं

(iii) कूट एल्कलॉइड

(i) सत्य एल्कलॉइड (True alkaloids) :- नाइट्रोजन युक्त विषम चक्रिक वलय वाले एल्कलॉइड सत्य एल्कलॉइड कहलाते हैं। रिसर्पीन (reserpine), कुनीन (quinine) एवं निकोटीन ( nicotine) आदि सत्य एल्कलॉइड के कुछ उदाहरण हैं। लगभग 20% संवहनी पादपों में एल्कलॉइड पाये जाते हैं। वलय की संरचना के आधार पर इन्हें फिर से वर्गीकृत किया जाता है । इन्डोल एल्कलॉइड, ट्रोपेन एल्कलाइड, पायरोलिडीन एल्कलॉइड आदि को शामिल कर वलय रचना के आधार पर इन्हें सात वर्गों में बांटा गया है जो विभिन्न अमीनो अम्लों से बनते हैं

अधिकांश एल्कलॉइड क्षारीय प्रकृति के होते हैं। सामान्यतः जीवद्रव्य अथवा रिक्तिका के pH (5-6) पर एल्कलॉइड धनात्मक आवेशित होते हैं तथा जल में विलेय होते हैं ।

पादपों में इनकी भूमिका के बारे में लगभग 100 वर्षों से विचार चल रहा है। कुछ वर्षों पूर्व तक इन्हें जन्तुओं में यूरिया एवं यूरिड्स के समान ही पादपों में नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट अथवा संचित पदार्थ एवं वृद्धि हार्मोन भी माना जाता था किंतु इनके संदर्भ में विशेष तथ्य नहीं थे। वर्तमान में अधिकांश एल्कलॉइडों को विभिन्न पादप भक्षियों विशेषतः स्तनधारी भक्षियों से रक्षार्थ उत्पादित यौगिक के रूप में जाना जाता है। ये एल्कलॉइड सामान्यतः आविषकारी प्रभाव दर्शाते हैं व एल्कलॉइड युक्त पादप अंगों का भक्षण करने से अनेक बार पशुओं की मृत्यु हो जाती है। उदाहरण – ल्यूपिन (Lupinus), डैलफीनियम (Delphinium spp).

अनेक एल्कलॉइड स्नायु तंत्र की कार्य प्रणाली को प्रभावित करते हैं जबकि कुछ एल्कलॉइड प्रोटीन संश्लेषण एवं झिल्लियों के आर पार स्थानांतरण को प्रभावित करते हैं। एल्कलॉइडों का मानव एवं अन्य जन्तुओं की कार्यिकी पर प्रबल प्रभाव के कारण इनको विस्तृत किया जाता रहा है।

(ii) प्राक्एल्कलॉइड (Protoalkaloids)- इस प्रकार के एल्कलॉइडों में विषमचक्रिक वलय नहीं होते ये एमिन होते हैं उदाहरण- हॉर्डेनिन ( hordenine). ये अमिनों अम्ल से व्युत्पन्न (derived ) होते हैं।

(iii) कूट एल्कलॉइड (Pseudoalkaloids) :- ये एल्कलॉइड सीधे अमिनो अम्लों से नहीं बनते बल्कि अन्य पदार्थों जैसे टरपीन, स्टीरोल, एलीफेटिक अम्ल, प्यूरीन अथवा निकोटिनिक अम्ल आदि से व्युत्पन्न (derived) होते हैं। उदाहरण टर्पीनाइड युक्त एल्कलॉइड |

एल्कलॉइडों का जैव संश्लेषण (Biosynthesis of alkaloids) :-

एल्कलॉइड का संश्लेषण कुछ सामान्य अमिनों अम्लों जैसे टायरोसीन, ट्रिप्टोफान, लाइसिन आदि से होता है। इनके अतिरिक्त सत्य एल्कलॉइड अन्य अमीनो अम्लों से भी संश्लेषित होते हैं। सत्य एल्कलॉइड निम्न प्रकार के पदार्थ के व्युत्पन्न होते हैं जो निम्न अमीनो अम्लों से संश्लेषित होते हैं।

तालिका : 1 विभिन्न एल्कलाइडों के समूह, उनके पूर्वगामी अमीनों अम्ल एवं उदाहरण

क्र. सख्या एल्कलॉइड समूह उदाहरण मूल संरचना पूर्वगामी अमिनो अम्ल
1.

 

2.

 

3.

 

4.

 

5.

 

6.

 

7.

 

8.

पाइपरिडीन (Piperidine)

पाइरोलिडीन (Pyrolidine)

ट्रोपेन ( Tropane)

पायरोलिजीडीन (Pyrolizidine)

आइसोक्यूनोलीन (Isoquinoline)

इन्डोल ( Indole)

क्यूनोलिजीडीन (Quinolizidine)

पाइरिडीन (Pyridine)

 

कोनिलीन

 

निकोटीन

 

एट्रोपीन

रिट्रोसीन

 

 

मार्फीन

 

 

रिसर्पीन

 

 

ल्यूपीनिन

 

लाइसिन

 

एस्पार्टेट अथवा आर्नीथिन

आर्नीथिन

आर्नीथिन

 

टायरोसीन

 

 

ट्रिप्टोफान

लाइसिन

 

एस्पार्जिन

 

 

 

कुछ समूहों के एल्कलॉइडों का संश्लेषण निम्न प्रकार से है।

(i) पायरोलिडीन एवं पायरोलिजीडीन व्युत्पन्न एल्कलॉइड (Pyrolidine and pyrolizidine derivatives) – पायरोलिडीन व्युत्पन्न एल्कलॉइड के लिये आर्नीथीन से पहले पायरोलिडीन 5 कार्बोक्सिी अम्ल बनता है फिर एल्कलॉइड बनता है जबकि पायरोलिजीडीन व्युत्पन्न एल्कलॉइड आर्नीथीन के दो अणुओं से बनते हैं।

आर्नीथीन ग्लूटेमाइल सेमीएल्डिहाइड पॉयरोलिडीन 5- कार्बोक्सी अम्ल

(ii) पाइरिडीन व्युत्पन्न एल्कलॉइड – उच्च पादपों में इनका संश्लेषण एस्पार्टिक अम्ल एवं ग्लिसरोल से होता है जिससे पहले निकोटिनिक अम्ल तथा बाद में निकोटीन बनता है ।

किन्तु जन्तुओं में निकोटिन का संश्लेषण ट्रिप्टोफान से अन्य परिपथ के माध्यम (एन्थैनिलिक अम्ल से होते हुए) से होता है । सामान्यतः एल्कलॉइड का संश्लेषण एवं संग्रह अलग-अलग अंगों में होता है। जैसे निकोटीन का संश्लेषण पादप मूल में होता है किंतु इसका संग्रह तम्बाकू की पत्तियों में होता है।

(iii) इन्डोल एवं क्यूनोलिन व्युत्पन्न एल्कलॉइड (Indole and quinoline derivative alkaloids)- ये सभी एल्कलॉइड ट्रिप्टोफोन से संश्लेषित होते हैं। (सर्पधा- रॉवुल्फिया सर्पेटिना (Ranvolfia serpentina) में उपस्थित रिसर्पीन इन्डोल का व्युत्पन्न है। ट्रिप्टोफान से पहले एजमेलिन बनता है फिर मेवालोनिक अम्ल से प्राप्त टरपीन इससे संलग्न होता है व रिसर्पीन का निर्माण होता है।

ट्रिप्टोफान → अजमेलिन 2 मेवालेनिक अम्ल रिसर्पीन

क्यूनोलिन व्युत्पन्न एल्कलॉइड (जैसे सिन्कोना में कुनीन) ट्रिप्टोफान से इन्डोल एल्कलॉइल के माध्यम से बनते हैं।

(iv) आइसोक्यूनोलीन व्युत्पन्न एल्कलॉइड (Isoquinoline derivative alkaloids) :- आइसोक्यूनोलीन व्युत्पन्न समूह मॉर्फीन समूह भी कहलाता है। पैपेवर सॉम्नीफरम (Papaver somniferum) में उपस्थित मार्फीन टायरोसीन से डोपामीन के माध्यम से बनता है ।

(v) इमिडेजोल व्युत्पन्न एल्कलॉइड (Imidazole derivative alkaloids) :- ये संभवतः हिस्टीडीन अमीनो अम्ल से संश्लेषित होते हैं किन्तु इस प्रक्रिया के विभिन्न चरणों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है।

कूटएल्कलॉइडों का जैव संश्लेषण (Biosynthesis of pseudoalkaloids)

कूटएल्कलॉइड़ों में सामान्यतः ट्राइटरपीन से व्युत्पन्न एल्कलॉइड शामिल किये जाते हैं। कूटएल्कलॉइडों का संश्लेषण सामान्यतः पत्तियों में होता है। ये 21 अथवा 27 कार्बन परमाणु युक्त हो सकते हैं। 27-C युक्त एल्कलॉइड सामान्यतः ग्लाइकोसाइडों के रूप में रहते हैं। उदाहरण- टमाटर में टोमॅटीन (tomatine)। इन ग्लाइकोसाइडों का शर्करा विहीन एग्लाइकोन मेवालोनेट से बनता है। 21-C एल्कलॉइड एस्टर के रूप में पाये जाते हैं, उदाहरण – होलरीमीन (holarrhimine) एल्कलॉइडों का महत्त्व (Importance of alkaloids)

पादपों में सामान्यतः एल्कलॉइडों के जैविक महत्त्व के बारे में सीमित जानकारी है हालांकि अन्य जीवों पर इनके प्रभाव के बारे में अपेक्षाकृत अधिक जानकारी उपलब्ध है

  1. पादपों में इन्हें नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ ( nitrogen containing excretory products) माना जाता है।
  2. कुछ एल्कलॉइड वृद्धि नियामकों की भूमिका भी निभाते हैं संभवतः वे अधिकांश पादपों में बीजांकुरण का संदमन करते हैं। हालांकि इसके पक्ष में उचित साक्ष्यों का अभाव है।
  3. अधिकांश एल्कलॉइडों को उनके आविषकारी प्रभाव के कारण पादप भक्षियों से बचाव के लिये उपयोगी माना जाता है। एल्कलॉइड युक्त पादपों जैसे ल्यूपिन (Lupinus), डैलफीनियम (Delphinium) एवं सेनेसियो (Senecio) आदि को खाने से अनेक पालतू जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है।.
  4. लगभग सभी एल्कलॉइड निश्चित मात्रा से अधिक लेने पर मनुष्य के लिये घातक होते हैं। हालांकि अनेक एल्कलॉइड अल्प मात्रा में औषधि के रूप में उपयोगी होते हैं जैसे स्कोपोलेमिन, (scopolamine), कोडीन (codeine) एवं मॉर्फीन (morphine ) उदाहरण – स्ट्रिकनीन (strychnine), एट्रोपीन ( atropine) आदि ।
  5. अनेक एल्कलॉइड उद्दीपक ( stimulant) अथवा शामक ( sedative) के रूप में उपयोग किये जाते हैं। जैसे मॉर्फीन, कोकेन (cocaine)। निकोटिन ( nicotine) एवं कैफीन (caffeine) आदि ।
  6. ल्यूपीनिन (lupinine) नामक एल्कलॉइड हृदय की धड़कन (heart rhythm) अथवा हृदय स्पंदन को सामान्य स्तर तक लाने में उपयोगी होता है ।
  7. स्ट्रिकनीम (Strychnine) आदि चूहों के लिये जहर के रूप में तथा नेत्र रोगों के लिये उपचार के लिये उपयोगी है।

8.अनेक पायरोलिजीडीन एल्कलॉइड जंतुओं के पाचन तंत्र में अपचयित हो जाते हैं तथा पादप भक्षियों के लिये आविषकारी (toxic) पदार्थ में बदल जाते हैं।

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