इंजीनियरी (अभियांत्रिक) उद्योग क्या है | भारत में इंजीनियरी (अभियांत्रिक) उद्योग किसे कहते है engineering industry in hindi

engineering industry in hindi meaning definition इंजीनियरी (अभियांत्रिक) उद्योग क्या है | भारत में इंजीनियरी (अभियांत्रिक) उद्योग किसे कहते है ?

इंजीनियरी (अभियांत्रिक) उद्योग
भारत में इंजीनियरी उद्योग अपेक्षाकृत नया उद्योग है, जिसका विकास मुख्य रूप से स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् हुआ। दूसरी और उसके बाद की योजनाओं में भारी-पूँजीगत-वस्तु आधारित विकास रणनीति के स्वीकार किए जाने के बाद इस उद्योग ने गति पकड़ी।

उसके बाद से, भारत न सिर्फ विभिन्न प्रकार के इंजीनियरी उपकरणों के मामले में आत्म निर्भर बन गया है अपितु यह इंजीनियरी वस्तुओं-पूँजीगत वस्तुओं और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं दोनों का निर्यात भी कर रहा है। यह उद्योग संगठित क्षेत्र में सभी उद्योगों के बीच सबसे बड़े रोजगार सृजनकर्ता के रूप में भी उभरा है। सभी उद्योगों के कुल रोजगार का लगभग 30 प्रतिशत इस उद्योग से आता है। लगभग 40,000 करोड़ रुपये के निवेश से इंजीनियरी उद्योग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रायः सभी क्षेत्रों के साथ अपने विविधिकृत अग्रानुबंध और पश्चानुबंध के माध्यम से आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान प्रगति
इंजीनियरी उद्योग में विकास इस तथ्य से देखा जा सकता है कि उद्योग के कुल उत्पादन में विगत पांच दशकों के दौरान 3000 गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई हैय वर्ष 1950-51 में यह मात्र 50 करोड़ रुपये था जो 1999-2000 में बढ़ कर 1,75,000 करोड़ रु. तक हो गया है।

सभी उद्योगों में मिलाकर इंजीनियरी उद्योग का योगदान निर्गत मूल्य में 33.1 प्रतिशत, रोजगार में 28.1 प्रतिशत और निवेश में 32.2 प्रतिशत है जो काफी आकर्षक है।

इंजीनियरी उद्योग में विकास का एक अन्य पैमाना इस उद्योग के निर्यात की मात्रा में तीव्र वृद्धि है। इंजीनियरी वस्तुओं के निर्यात का मूल्य जो 1950-51 में मात्र 6 करोड़ रुपये था, से बढ़कर 1999-2000 में 21,503 करोड़ रु. की ऊँचाई तक पहुँच गया, यह उस वर्ष के दौरान भारत के कुल निर्यात का लगभग 13.2 प्रतिशत था।

इसके अतिरिक्त यह भी कहा जा सकता है कि यह उपलब्धि एक ओर विकसित देशों और दूसरी ओर नई औद्योगिकरण कर रहे देशों, जिनकी लागत कम, प्रौद्योगिकी आधुनिक तथा विपणन व्यवस्था बेहतर है, द्वारा अन्तरराष्ट्रीय बाजार में प्रस्तुत कड़ी प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

इंजीनियरी उद्योग का विकास इतना नियोजित है कि यह एक साथ समानरूप से महत्त्वपूर्ण दो कार्य निष्पादित कर रहा है:

प) इंजीनियरी उद्योग को टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं और अर्थव्यवस्था के विविध क्षेत्रों द्वारा उपयोग किये जाने हेतु पूँजीगत माल, दोनों की बढ़ती हुई घरेल जरूरतों को पूरा करना है।
पप) इंजीनियरी उद्योग को निर्यात के लिए पर्याप्त अधिशेष का भी सृजन करना है। इस तथ्य के मद्देनजर कि भारत अपने परम्परागत निर्यातों में पर्याप्त अधिशेष जुटाने की और अधिक आशा नहीं कर सकता है, इसलिए इंजीनियरी वस्तु उद्योग को इस बढ़ते हुए बोझ का वहन करना है।

उद्योग की वर्तमान समस्याएँ
इंजीनियरी उद्योग भी अन्य सभी उद्योगों की भांति क्षमता के अल्प उपयोग, उच्च लागत, आदानों जैसे कच्चे मालों, विद्युत, कोयला, परिवहन, इत्यादि की अविश्वसनीय आपूर्ति, अद्यतन तकनीकी ज्ञान का अभाव, वित्तीय और विपणन संबंधी समस्याएँ, बढ़ती हुई रुग्णता इत्यादि समस्याओं से ग्रस्त हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय इंजीनियरी निर्यात उद्योग एक और विशिष्ट समस्या से ग्रस्त है। यह अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक परिवेश से उत्पन्न हुआ है।

इस तथ्य के बावजूद कि इंजीनियरी वस्तुओं के कुल विश्व निर्यातों में विकासशील देशों का हिस्सा नगण्य है, और भारत का इसमें अत्यन्त ही कम मात्र 0.13 प्रतिशत हिस्सा है अधिकांश विकसित देशों द्वारा अन्य विकासशील देशों से इंजीनियरी वस्तुओं के आयात पर संरक्षणवादी प्रतिबंध लगाया जा रहा है।

विकसित अर्थव्यवस्थाओं में संरक्षणवादी उपायों के विस्तार से उन विकासशील देशों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिन्होंने इन उद्योगों में न सिर्फ आयात प्रतिस्थापन्न के लिए अपितु निर्यात के लिए भी निवेश किया है। उस समय जब विकासशील देशों ने विकसित देशों को अपना माल भेजना शुरू किया है संरक्षणवादी उपायों के लागू किए जाने से उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर अत्यन्त गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

संरक्षणवाद कई प्रकार से, मुख्यतः गैर-टैरिफ (प्रशुल्क) बाधाओं, जैसे सरकार की खरीद नीतियों, डम्पिंग शुल्कों के मूल्यांकन की पद्धति प्रशासनिक और तकनीकी विनियमों, विशेषकर स्वच्छता के क्षेत्र में, पैकेजिंग विनियम तक, इत्यादि के रूप में लागू किए जा रहे हैं। गैर टैरिफ बाधाओं की व्यापकता संबंधी जटिताएँ उन्हें विनियमित करने और सुलझाने का कार्य अत्यन्त दुरूह कर देती हैं।

उदारीकरण और इंजीनियरी उद्योग
इंजीनियरी उद्योग का पूँजीगत वस्तु खंड हाल के नीतिगत परिवर्तनों और आर्थिक सुधारों के परिणामस्वरूप अत्यन्त ही संकटपूर्ण दौर से गुजर रहा है। यह उद्योग उदारीकरण से उत्पन्न निम्नलिखित परिस्थितियों का सामना कर रहा है:

प) नई एक्जिम नीति ने नई मदों के लिए लाइसेन्स पद्धति को समाप्त कर दिया है। इसलिए मशीनों के आयात के लिए किसी सरकारी मंजूरी की आवश्यकता नहीं रह गई है। पुनः, आयातित पूँजीगत वस्तुओं पर अतिरिक्त अथवा प्रतिकारी शुल्कों का बोझ नहीं डाला गया है।

पप) नई मशीनों के अलावा सरकार द्वारा पुरानी मशीनों के आयात की अनुमति देने की व्यवस्था से घरेलू विनिर्माताओं के लिए एक अन्य खतरा पैदा हो गया है।

पपप) वैश्विक बाजार दशाओं के परिणामस्वरूप विदेशों से मशीनों की बड़े पैमाने पर ‘‘डम्पिंग‘‘ संभव हो गई है जिसका घरेलू विनिर्माताओं पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

इंजीनियरी उद्योग को प्रतिस्पर्धा और बाजार शक्तियों की चुनौतियों का सामना करने के लिए पुनर्संरचना करनी पड़ेगी जो कि नई उभर रही आर्थिक परिवेश की मुख्य विशेषता है।

सुझाव
इंजीनियरी उद्योग की पुनःसंरचना में कई मुद्दे निहित हैं:

प) यह एक ऐसा उद्योग भी है, जिसमें लगभग प्रत्येक उत्पाद-व्यवसाय में सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की इकाइयाँ एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।
पप) यह एक ऐसा उद्योग भी है, जिसमें अनेक उत्पाद-व्यवसायों में बृहत, मध्यम और लघु क्षेत्र की इकाइयाँ एक साथ विद्यमान हैं। एक सीमा तक इंजीनियरी उद्योग में अनेक लघु इकाइयाँ बृहत् इकाइयों की अनुषंगी हैं, किंतु एक ही विशिष्टता वाले उत्पादों उदाहरणार्थ मशीन टूल्स के लिए विभिन्न मूल्य श्रृंखला के उत्पादों की आपूर्ति कर रही बृहत् और लघु इकाइयों के बीच उत्पाद विभेदीकरण और खंडीकरण भी है।
पपप) यह एक ऐसा उद्योग है जिसमें उत्पाद की संश्लिष्टता (सॉफिस्टिफिकेशन) पर आधारित एक ही प्रकार के उत्पादों का निर्यात और आयात दोनों होता है।
पअ) यह एक ऐसा उद्योग है जिसमें हाल में महत्त्वपूर्ण आविष्कार और बाजार माँग की नई उभर रही आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन प्रौद्योगिकी में अनुकूलनीयता देखी गई है फिर भी साथ ही यह प्रौद्योगिकी में परिवर्तन और उसका उन्नयन करने में धीमी रही है।

उपर्युक्त के मद्देनजर इंजीनियरी उद्योग को सुदृढ़ करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:

प) देश में उद्योग की संरचना के अध्ययन के लिए और जहाँ कहीं भी राष्ट्रीय हित में विलय और समामेलन आर्थिक रूप से वांछनीय हो के संवर्द्धन के लिए सरकार और उद्योग से अलग एक संगठन का गठन करना चाहिए।
पप) अनुसंधान संस्थानों और इंजीनियरी उद्योगों के बीच संवादहीनता को समाप्त करना चाहिए।
पपप) विदेशी सहयोग के संबंध में सरकारी नीति की और समीक्षा करनी चाहिए ताकि देश में नई प्रौद्योगिकी का निरंतर अन्तर्वाह सुनिश्चित हो सके।
पअ) सभी प्रकार की तकनीकी परामर्शदात्री संगठनों को अधिकतम संभव प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए ताकि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्चस्तरीय आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सके।
अ) आयात नीति को यथार्थवादी होना चाहिए, ताकि संयंत्र और मशीनों का निर्धारित से कम उपयोग और उत्पादन में अलाभ से बचा जा सके।
अप) औद्योगिक शांति और बढ़ी हुई उत्पादकता जिन्हें सरकार और ट्रेड यूनियनों के सहयोग से चरितार्थ किया जा सकता है, विकास की पूर्व शर्त है।
अपप) वर्तमान हतोत्साही स्थिति में सुधार के लिए ईंधन और विद्युत की बढ़ती हुई लागतों पर अधिकतम सीमा लगाना एक अनिवार्य शर्त का प्रतीक है।

बोध प्रश्न 3
1) आर्थिक आयोजना की अवधि के दौरान भारत में इंजीनियरी उद्योग के विकास का इतिहास बताइए।
2) भारत में इंजीनियरी उद्योग द्वारा सामना की जा रही महत्त्वपूर्ण समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
3) भारत में इंजीनियरी उद्योग को सुदृढ़ बनाने के लिए सुझाव दीजिए।