emasculation in hindi , विपुंसन किसे कहते है , विपुंसन से क्या तात्पर्य है? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है?

पढ़िए emasculation in hindi , विपुंसन किसे कहते है , विपुंसन से क्या तात्पर्य है? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है ?

संकरण (Hybridization)

अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार पादप चयन की प्रक्रिया के द्वारा केवल वे लक्षण ही उपयोगी स्तर तक विकसित किये जा सकते हैं, जिनके जीन पौधों में पहले से ही उपस्थित होते हैं। चयन विधियों द्वारा बेहतर जीन्स को पृथक करने में मदद मिलती है, यहाँ यह भी उल्लेख कर देना आवश्यक है कि पादप चयन की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त उत्तम गुणवत्ता वाले पौधे में भी अवांछनीय गुण अप्रभावी जीनों के रूप में छिपे रहते हैं तथा ये समयुग्मजी अवस्था प्राप्त करते ही अभिव्यक्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में इन पौधों में सुधार के लिए कुछ प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं। संकरण (Hybridization) प्रक्रिया ऐसी ही एक उपयुक्त विधि है। संकरण के द्वारा संतति पीढी में विविधताएँ (Variations) उत्पन्न होती हैं । इस विधि के द्वारा किसी नयी जीन का निर्माण नहीं होता अपितु जनक पीढ़ी के दोनों सहभागियों (Parents) में पहले से उपस्थित जीन्स के पुनर्संयोजनों (Recombinations) में नये जोड़े बनने से विविधताएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

‘आनुवंशिक रूप से एक ही पादप प्रजाति के दो भिन्न जनक पौधों (Parent plants) के मध्य क्रॉस या निषेचन द्वारा संतति पीढ़ी (Progeny) में नई पादप किस्म उत्पन्न करने की प्रक्रिया को पादप संकरण (Plant hybridization) कहते हैं।’

उपरोक्त परिभाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि संकरण की प्रक्रिया द्वारा हम दो अथवा दो से अधिक पौधों के इच्छित लक्षण, उनसे उत्पन्न संतति पीढ़ी में प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर एक पौधे में रोग प्रतिरोधकता एवं दूसरे पौधे में अत्यधिक उत्पादन क्षमता (High Yield capacity) का गुण है, तो इन दोनों जनक पौधों से प्राप्त संतति पीढ़ी के संकर पौधों (Hybrid plants) में रोग प्रतिरोधक क्षमता पर्याप्त मात्रा में पाई जावेगी, एवं इसी के साथ इनकी गुणवत्ता भी बेहतर किस्म की होगी । अत: संकरण के द्वारा आने वाली पीढ़ी में बेहतर गुण प्राप्त किये जा सकते हैं । यहाँ हम दो जनक पौधों के बेहतर लक्षणों को इनके क्रास द्वारा आने वाली पीढ़ी में निवेशित करते हैं ।

विभिन्न उपयोगी फसल उत्पादक पौधों या अन्य महत्वपूर्ण पौधों में संकरण (Hybridization) के लिए पादप प्रजननविज्ञानियों (Plant breeders) को विभिन्न प्रकार की सहायक वस्तुओं या उपकरणों की निरंतर जरूरत पड़ती है (चित्र 13.1), जिनको एक थैले या किट बैग (Plant breeder’s Kit bag) में रखा जाता है ।

इस थैले में रहने वाले विभिन्न प्रकार के उपकरणों का उपयोग संकरण की विभिन्न कार्यविधियों में किया जाता है।

विभिन्न प्रकार की संकरण प्रक्रियाएँ (Different types of hybridization)

जनक पौधों के आपसी सम्बन्धों के आधार पर संकरण की प्रक्रियाएँ निम्न प्रकार की हो सकती है :

(A) अन्तराकिस्मीय संकरण (Intra-varietal hybridization)

जब संकरण की प्रक्रिया को एक ही किस्म के दो पौधों के बीच संचालित किया जावे। यहाँ प्रयुक्त दोनों जनक पौधे आनुवंशिक रूप से समान नहीं होते। इस संकरण का उपयोग विशेष इच्छित लक्षणों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

(B) अन्तर्किस्मीय संकरण (Inter- varietal hybridization)

इस प्रक्रिया में संकरण एक ही प्रजाति के परन्तु दो अलग-अलग किस्मों के जनक पौधों में सम्पन्न किया जाता है। महत्त्वपूर्ण कृष्य पौधों (Cultivated plants) की अनेक किस्में इस विधि को अपनाकर विकसित की गई है। इस विधि को अन्तराजातीय संकरण (Intraspecific hybridization) भी कहते हैं।

(C) अन्तर्जातीय या अन्तरावंशीय संकरण (Interspecific or Intrageneric hybridization)

इस प्रकार का संकरण नई किस्म या संतति पीढी में कुछ विशेष प्रकार के लक्षणों जैसे रोग प्रतिरोधी या सूखा प्रतिरोधी क्षमता को प्राप्त करने के लिए करवाया जाता है। जब एक ही वंश (Genus) की दो भिन्न प्रजातियों में क्रॉस करवाया जाता है तो इन महत्त्वपूर्ण लक्षणों को अभिव्यक्त करने वाले जीन एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति के जनक पौधे में स्थानांतरित हो जाते हैं। इस प्रकार के संकरण में संकर ओज (Hybrid vigour) का विकास भी देखा जा सकता है। तम्बाकू, सरसों, गेहूँ, एवं कपास जैसे कुछ कृष्य पौधों में सफलतापूर्वक यह क्रास करवाये गये हैं।

(D) अन्तर्वंशीय संकरण (Inter-generic hybridization)

यह संकरण की सर्वाधिक अनूठी एवं दुर्लभ प्रक्रिया है, जिसमें दो अलग-अलग वंशों के पौधों में क्रास करवाकर एक नये पादप वंश (Genus) को विकसित किया जता है। रेफेनोब्रेसीका (रेफेनस x ब्रेसीका), व ट्रिटीकल (ट्रिटिकम सिकेल) इत्यादि कुछ उदाहरण इसकी पुष्टि हेतु प्रस्तुत किये जा सकत है । जिनमें अलग-अलग वंशों के पौधों का संकरण करवाया गया है।

संकरण के प्रमुख उद्देश्य (Main Objectives of Hybridization)

(1) इच्छित लक्षणों, जैसे उच्च उत्पादन, अच्छी गुणवत्ता, रोग एवं सूखा प्रतिरोधकता या अनुकूलनशीलता जैसे लक्षणों का समावेश कर नई पादप किस्म विकसित करना।

(2) संकरण प्रक्रिया के अंतर्गत जीनीय-पुनर्योजन (Genetic recombination) द्वारा, अनेक उपयोगी विविधताओं को संतति पीढ़ी में लाना।

(3) संकर ओज (Hybrid vigour) की उत्पत्ति एवं संतति पीढ़ी में इसका उपयोग।

एक पादप प्रजननविज्ञानी के लिए संकरण करवाने से पूर्व निम्न तथ्यों की जाँच करना अत्यावश्यक है :

(1) जनक पौधा एकलिंगी (Unisexual) है या उभयलिंगी (Bisexual) ।

(2) नर एवं मादा जनक पौधों की पूर्ण जानकारी ।

(3) पुष्प में स्वपरागण होता है या परपरागण ।

(4) पुष्प में परागकोष के परिपक्व होने एवं स्फुटित होने की अवस्था किस समय सम्पन्न होती है ?

संकरण की क्रियाविधि – अध्ययन की सुविधा हेतु संकरण की क्रियाविधि (Procedure) को निम्न चरणों में विभेदित किया जा सकता है:

(1) जनक पौधों का चयन (Selection of parent plants)

(A) संकरण प्रक्रिया द्वारा संतति पीढ़ी में कौनसे वांछित लक्षणों का समावेश (Inclusion) करना है, मुख्यत: इसी तथ्य को ध्यान में रखकर जनक पौधों का अर्थात् नर एवं मादा जनक का चयन किया जाना चाहिए इसके लिए इन जनक पौधों का चुनाव जहाँ तक सम्भव हो, स्थानीय पादप आबादी (Local plant population) से किया जाता है, क्योंकि ये जनक पादप स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार पहले से ही अनुकूलित (Acclima- tize) हो चुके होते हैं। इसीलिए विद्यमान परिस्थितियों में इनका चयन, पादप प्रजनन या संकरण सम्बन्धी प्रयोगों के लिए पूर्णतया उपयुक्त कहा जा सकता है I

(B) संकरण की प्रक्रिया में जनक पौधों का चयन ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, अपितु इनमें समयुग्मजता (Homozygosity) का होना भी आवश्यक है। इस आवश्यक लक्षण की जनक पौधों में उपस्थिति के लिए, इन पौधों को अलग-अलग स्थानों में उगा कर इनमें बार-बार स्वपरागण करवाया जाता है। जनक पौधों के पुष्पन एवं इनके परिपक्व होने के समय का भी ध्यान रखना पड़ता है। अंततः समयुग्मजता से अंतःप्रजात पौधे प्राप्त होते हैं, जिनके जीन प्ररूप (Genotypes) एवं लक्षण प्ररूप (Phenotypes) दोनों एकसमान होते हैं ।

(2) विपुंसन (Emasculation)

यह कार्य केवल मादा जनक पौधे में किया जाता है, यहाँ स्वनिषेचन को बाधित करने के लिए, इन पुष्पों से परागकोशों या पुंकेसरों को हटा दिया जाता है। इस प्रकार मादा जनक (Female parent) पौधे के पुष्पों से परागकोशों को हटाने या नष्ट करने को विपुंसन कहते हैं। इससे पुष्प में केवल मादा संरचनाएँ ही शेष रह जाती हैं। विभिन्न पौधों में विपुंसन की प्रक्रिया पुष्पों की संरचना, जैसे बंद या अनखुले व बढ़े हुए दलपुंज या पुष्पों की जैविकी प्रक्रिया (Biological processes) के अनुसार अलग-अलग हो सकती है। विभिन्न पुष्पों में विपुंसन (Emasculation) के लिए निम्न विधियाँ प्रमुखतया प्रयुक्त की जाती हैं :

  1. चिमटी या कैंची द्वारा हस्तविपुंसन (Hand emasculation by Forceps or Scissors)—यह प्रक्रिया मुख्यतया उन पौधों के लिए प्रयुक्त की जाती है, जिनके पुष्प बड़ी साइज के होते हैं, जैसे-मटर। इस विधि में पुष्प के खिलने से पहले ही अर्थात् कलिकावस्था में पुंकेसरों (Stamens) को या तो कैंची से काट कर या चिमटी (Forceps) से तोड़कर बाहर हटा दिया जाता है। इस बात की सावधानी रखना भी आवश्यक है कि विपुंसन के समय पुष्पों में परागकण परिपक्व नहीं हो तथा वर्तिकाग्र ग्राही (Receptive) न हो, इसके लिये पुष्प खिलने से पहले ही छोटी कलिकाओं (Flower bluds) को छाँटा जाता है, जिनमें परागकणों (Pollen grains) का निर्माण प्रारम्भ नहीं हुआ हो। इसी के साथ विपुंसन के समय असावधानीवश यदि पुष्प में एक पुंकेसर भी बच जाता है तो ऐसे पुष्प में स्वपरागकण (Self pollination) की आशंका बनी रहती है।

विपुसंन के लिये प्रयुक्त पुष्प कलिकाओं को पहले निर्जर्मित चिमटी (Sterilized forceps) अथवा सुई के द्वारा खोला जाता है। इनके बाह्य दलपत्रों (Sepals) में थोड़ी जगह बनाते हैं, इसके बाद धीरे-धीरे चिमटी या सुई से पुंकेसरों को हटा दिया जाता है। चिमटी व सुई (Needle) का निर्जर्मीकरण (Sterilization), इनको रेक्टिफाइड स्पिरिट (Rectified spirit) में डुबो कर किया जाता है। यहाँ इस बात की विशेष सावधानी रखनी चाहिए कि पुंकेसरों को हटाते समय पुष्प के बाह्यदलपुंज व जायांग (Gynoecium) को क्षति नहीं पहुँचे। विपुंसन की इस प्रक्रिया को यांत्रिक विधि भी कहते हैं, क्योंकि इसमें पुष्पकलिका से पुंकेसरों को यांत्रिकी प्रक्रिया (Mechanical method) द्वारा हटाया जाता है (चित्र 13.3 A)।

  1. गर्म जल, ठंडे जल एवं एल्कोहल उपचार द्वारा विपुसन (Emasculation by hot water, cold water and alcohol treatment ) विभिन्न एक बीज पत्री धान्य उत्पादक पौधों (Cereals) व अन्य पौधों जिनमें पुष्प बहुत छोटे आकार के एवं द्विलिंगी (Bisexual) होते हैं, जैसे चावल, ज्वार, बाजरा, आदि में विपुंसन करवाने के लिए पुष्प गुच्छकों को गर्म जल (40°C से 45°C) में 1 से 10 मिनट तक डुबोये रखा जाता है। (चित्र 13.3B) इस प्रक्रिया में परागकोष मृत हो जाते हैं, जबकि पुष्पों की अन्य संरचनाएँ अप्रभावित एवं जीवित रहती हैं। इसी प्रकार हिमीकृत शीतल जल (ठंडा पानी) में 0°C से 6°C तक या 57% एल्कोहल में भी 10 मिनट तक डुबोये रखने से इन पुष्पों के परागकोष मर जाते हैं। कुछ पौधों में तो अल्कोहल में 10 सेकण्ड का उपचार ही परागकोषों को मृत करने में पर्याप्त होता है, परन्तु एल्कोहल के उपचार में समय का ध्यान रखना बहुत जरूरी है । क्योंकि ज्यादा समय तक पुष्पों को एल्कोहल में डुबोये रखने से इनके जायांग या मादा जनन संरचनाओं पर दुष्प्रभाव पड़ता है तथा ये मर भी सकते हैं।

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि उपरिवर्णित विधियों में परागकोषों को खत्म किया जाता है, तथा मादा जनन संरचनाओं को सुरक्षित रखा जाता है। गर्म जल की तुलना में ठंडे पानी का विपुंसन के लिए उपयोग कम प्रभावी होता है क्योंकि शीतल जल के उपचार में स्वपरागण (Self pollination) की संभावना अधिक रहती है ।

III. सक्शन दबाव द्वारा विपुंसन (Emasculation through suction pressure)—यह भी विपुंसन के लिये काम में ली जाने वाली एक यांत्रिक विधि है, जिसमें पुष्प के परागकोष सक्शन दबाव के द्वारा निकाल दिये जाते हैं। सक्शन दबाव एक विशेष उपकरण, जिसे निर्वात विपुसंक (Vacuum emasculator) कहते हैं, उसके द्वारा उत्पन्न किया जाता है।

  1. नरबन्ध्यता एवं स्वअनिषेच्यता (Male – Sterility and Self incompatibility)—–— अनेक स्वपरागित फसल उत्पादक पौधों, जैसे-चावल, ज्वार, गेहूँ एवं तम्बाकू आदि की कुछ आधुनिक किस्मों में आजकल नर बंध्यता पाई जाती है। क्योंकि इन पौधों में नर बन्ध्यता एवं आत्मनिषेच्यता उपलब्ध होती है, अत: इनमें विपुंसन की आवश्यकता भी नहीं रहती। इनके पुष्पों में पुंकेसर तो होते हैं परन्तु उनमें परागकणों का निर्माण नहीं होता इसलिए यहाँ फसलों में नर बन्ध्य पौधे मौजूद रहते हैं। संकर ओज उत्पादन क्रियाओं में नर बन्ध्यता के गुण का बहुतायत में उपयोग होता है। आत्मनिषेच्यता की विधि को संकर बीज उत्पादन में भी प्रयोग में लिया जा सकता है।
  2. रासायनिक युग्मकनाशकों द्वारा विपुसंन (Use of chemical gametocides in Emascula- tion)—कुछ रासायनिक युग्मकनाशी पदार्थों द्वारा कृत्रिम रूप से नरबन्ध्यता को अभिप्रेरित करके भी विपुंसन करवाया जा सकता है । उदाहरणतया – कपास में FW 450 द्वारा एवं D.4D, NAA एवं इथेरल (Etherel) जैसे रासायनिक युग्मकनाशियों द्वारा नरबन्ध्यता को अभिप्रेरित किया जा सकता है।

विभिन्न पौधों में विपुंसन क्रिया को संचालित करवाने के लिए निम्न सावधानियाँ रखनी चाहिये :-

(1) उपयुक्त साइज की पुष्प कलिकाओं का चुनाव विपुंसन के लिए किया जाना चाहिए क्योंकि बड़ी साइज की परिपक्व पुष्प कलिकाओं (Large and mature flower buds) में स्वपरागण की पर्याप्त संभावना होती है।

(2) विपुंसन प्रक्रिया के बाद जिस पुष्प कलिका का विपुंसन किया गया है (Emasculated floral bud) उसे छोड़कर शेष पुष्पों, फलों एवं कलियों को हटा देना चाहिये।

(3) विपुंसन का कार्य हमेशा शाम के समय करना चाहिये क्योंकि उस समय जायांग का वर्तिकाग्र ग्राही (Receptive) नहीं होता तथा पुंकेसर भी स्फुटनशील नहीं होते। सायं के समय विपुंसन के दौरान यदि पुष्प कलिकाओं को थोड़ा बहुत नुकसान यदि होता भी है तो थोड़े समय के बाद वापस सामान्य अवस्था में आ जाती है।

(4) पुंकेसरों को सदैव पुंतन्तुओं (Filaments) के साथ हटाना चाहिए।

(5) विपुंसन के लिए पुष्प कलिकाओं का चुनाव सदैव पर्याप्त संख्या में करना चाहिए ।

(6) पुष्प कलिका के वर्तिकाग्र (Stigma ) को विपुंसन के बाद हेंड लेंस द्वारा देखकर इस बात की जाँच कर लेनी चाहिये कि इस पर कोई परागकण तो उपस्थित नहीं हैं।

(7) पुष्प कलिकाओं को विपुंसन क्रिया पूर्ण होने के बाद उनकी पूर्ववत, प्राकृतिक एवं सामान्य अवस्था में छोड़ देना चाहिए

  1. विपुंसित पुष्प या पुष्पक्रम पर थैली लगाना, टैगिंग व लेबल लगाना (Bagging, Tagging and labelling)

विपुंसन के बाद पुष्प या पुष्पकलिका या विपुंसित पुष्पक्रम को जल्दी ही एक उपयुक्त आकृति व साइज की थैली से ढक दिया जाता है । ये थैलियाँ प्राय: बटर पेपर, पोलीथीन, प्लास्टिक या सेलोफोन द्वारा निर्मित होती हैं (चित्र 13.2 ) । पुष्प को ढकने वाली इन थैलियों को टहनी पर धागे, तार या पिन द्वारा बाँध दिया जाता है, इस प्रक्रिया को थैलीकरण (Bagging) कहते हैं । नर एवं मादा दोनों प्रकार के पुष्पों को थैली से ढकना जरूरी है, जिससे नर पुष्पों का दूसरे परागकणों द्वारा संदूषण नहीं हो, तथा थैली में ढके होने के कारण मादा पुष्प का परागण अवांछित परागकण से नहीं हो पाये। दूसरे शब्दों में थैली को तेल में डुबाने के बाद पुष्प को ढकने के लिए प्रयोग में लाया जावे तो ऐसे पुष्पों पर कीटों एवं अन्य सूक्ष्मजीवों का संक्रमण नहीं होता ।

थैली से ढके विपुंसित पुष्पों पर एक टैग या लेबल लगाया जाता है। इस टैग या लेबलिंग कार्ड को एक धागे की सहायता से थैली के साथ बाँध देते हैं। इस लैबलिंग कार्ड पर कुछ महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ अंकित होती हैं, जो कि

निम्न प्रकार है

( 1 ) क्रम संख्या (Serial No.)

( 2 ) विपुंसन तिथि (Date of Emasculation)

( 3 ) हस्त परागण तिथि (Date of Hand pollination)

( 4 ) नर जनक का विवरण (Details of male parent)

(5) मादा जनक का विवरण (Details of female parent)

( 6 ) पौधे का नाम (Name of Plant )

( 7 ) पादप प्रजननविज्ञानी का नाम (Name of Plant breeder)

पादप प्रजनन विज्ञानी को इन सूचनाओं तथा अन्य विवरण को एक अलग डायरी में भी लिखना चाहिए।

( 4 ) पुष्पों के परागकणों का संग्रहण एवं संचयन (Collection and Storage of pollen grains) नर पौधों के परिपक्व एवं क्रियाशील परागकणों को पुंकेसरों से लेकर, पेट्रीडिश (Petri dish) या कागज की थैलियों में एकत्र किया जाता है। इसके बाद इनको एक छोटी शीशी या केप्सूल में भविष्य में समुचित उपयोग हेतु संचयित कर सकते हैं।