आर्थिक विकास किसे कहते हैं ? आर्थिक विकास की विशेषताएं बताएं की परिभाषा क्या है Economic Development in hindi

Economic Development in hindi आर्थिक विकास किसे कहते हैं ? आर्थिक विकास की विशेषताएं बताएं की परिभाषा क्या है ?
अध्याय 2
वृद्धि, विकास एवं खुशहाली

प्रस्तावना (Introduction)
ट्टषियों और दार्शगिकों की तरह ही बेहतर कल की तश की इंसानी पहल का अर्थशास्त्री भी एक हिस्सा हैं। हम इस दिशा में अर्थशास्त्र के साहित्य के रूप में आ रहे कई मतों के गवाह हैं, जो एक आम इंसान के लिए ‘प्रगति’ जैसे बेहद सरल शब्द से शुरू होकर ‘वृद्धि’, ‘विकास’ और ‘मानव विकास’ जैसे तकनीकी पक्ष तक जाते हैं। ‘आर्थिक व्यक्ति’ के विचार पर बढ़ती निर्भरता के साथ युद्ध के दशकों के बाद दुनिया ने अपार धन दौलत बगई। वो 1980 का दशक था जब सामाजिक विज्ञानियों ने इंसानी गतिविधियों का व्यापक अध्ययन शुरूकिया और अंततः ‘आर्थिक व्यक्ति’ (‘तार्किक व्यक्ति’) के पूरे विचार को ही चुगेदी दी। यहीं से धरती पर इंसानों के जीवन के आत्मावेकन की इच्छा को जीवन मिला। इस बीच मानवता को जलवायु परिवर्तन की अबूझ पहेली का भी सामना करना पड़ा। अब संयुक्त राष्ट्र संघ के सौजन्य से दुनिया के पास विश्व प्रसन्नता (World Happiness) रिपोर्ट है।
प्रगति (Progress)
प्रगति अर्थशास्त्र की कोई विशेष अवधारणा नहीं है, लेकिन विशेषज्ञ इसका इस्तेमाल बेहतरी और किसी चीज में बढ़ोतरी के लिए करते हैं। आमलोगों के जीवन और अर्थव्यवस्था में लंबे समय तक चलगे वाले साकारात्मक बदलाव को अर्थव्यवस्था में प्रगति कहते हैं। इसके गुणात्मक और संख्यात्मक दोनों पक्ष में हैं। कुछ समय के बाद, कुछ अर्थशास्त्री प्रोग्रेस (प्रगति), ग्रोथ (वृद्धि) और डेवलपमेंट (विकास) का इस्तेमाल एक ही चीज के लिए करते हैं। तीनों शब्द एक-दूसरे की जगह इस्तेमाल हो सकते हैं। लेकिन 1960, 1970 और 1980 के दशक में इन शब्दों के मायने अलग-अलग स्पष्ट हुए। इसमें प्रगति एक सामान्य पद है, जिसका अर्थशास्त्र में कोई मायने नहीं है, लेकिन इसका इस्तेमाल वृद्धि और विकास को संयुक्त तौर पर संबोधित करने के लिए करते हैं। लेकिन वृद्धि और विकास के अपने अपने स्पष्ट अर्थ होते हैं।
जीव विज्ञान का शब्द है ग्रोथ। यह जीवों के बढ़ने की प्रवृति को जाहिर करता है। अर्थव्यवस्था में इसका मतलब आर्थिक वृद्धि से है। समय के साथ आर्थिक मापदंड को बताने वाले अस्थिरांकों में बढ़ोतरी को आर्थिक वृद्धि कहते हैं। यह किसी व्यक्ति या किसी अर्थव्यवस्था या दुनिया की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इस्तेमाल कर सकते हैं। आर्थिक वृद्धि का सबसे अहम घटक गुणात्मकता है। इसे दर्शाने के लिए सभी मापदंड़ों का इस्तेमाल किया जा सकता है। आर्थिक वृद्धि के कुछ उदाहरण इस तरह से हैंः
;i) किसी अर्थव्यवस्था में एक दशक के दौरान खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि को मापा जा सकता है और यह टन में मापा जा सकता है।
;ii) किसी अर्थव्यवस्था में सड़क नेटवर्क में एक दशक या फिर किसी समय अंतराल में हुई वृद्धि का पता किलोमीटर और मील की लंबाई से चल सकता है।
;iii) ठीक इसी तरह, किसी अर्थव्यवस्था में हुई वृद्धि का आकलगी कुल उत्पादन के मूल्य से लगया जा सकता है।
;iv) किसी समयावधि के दौरान प्रति व्यक्ति आय में मुनाफै का आकलगी भी किया जा सकता है।
इस हिसाब से आर्थिक वृद्धि को एक तरह से मात्रात्मक प्रगति भी कह सकते हैं। आर्थिक वृद्धि की दर मापने के लिए वृद्धि में अंतर को प्रतिशत में गिकालते हैं। उदाहरण के लिए अगर एक डेयरी उत्पादक एक महीने में 100 लीटर दूध का उत्पादन करता है और उसके अगले महीने में दूध उत्पादन बढ़कर 105 लीटर हो जाता है तो उसकी डेयरी की संवृद्धि दर पांच वृद्धि, विकास एवं खुशहाली 2.3 प्रतिशत है। इस तरह से हम किसी भी अर्थव्यवस्था में किसी भी समयावधि के दौरान होने वाली वृद्धि दर को हासिल कर सकते हैं। वृद्धि दर एक तरह से वार्षिक अवधारणा है, जिसे उस समय सीमा के साथ जोड़कर देखा जाता है।
वैसे वृद्धि अपने आप में मूल्य रहित पद है, लेकिन यह किसी अर्थव्यवस्था में किसी खास समयावधि के दौरान सकारात्मक और गकारात्मक असर पड़ सकता है। लेकिन हम इसका इस्तेमाल प्रायः सकारात्मक संदर्भ में करते हैं। अगर अर्थशास्त्री कहते हैं कि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है तो उगका मतलब होता है कि अर्थव्यवस्था में सकारात्मक वृद्धि हो रही है। नहीं तो वे ऋणात्मक वृद्धि शब्द का इस्तेमाल करते।
आर्थिक वृद्धि पद का इस्तेमाल अर्थशास्त्र में काफी होता है। यह केवल राष्ट्रीय स्तर के आकलगी और नीति निर्धारण के लिए नहीं होता है बल्कि यह अर्थशास्त्र के विस्तृत अध्ययन में भी उपयोगी है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वित्तीय और व्यवसायिक संस्थान इसी वृद्धि दर के आंकडों का इस्तेमाल कर नीति और वित्तीय योजना तैयार करते हैं।
आर्थिक विकास
(Economic Development)
अर्थव्यवस्थाओं की शुरुआत के लंबे समय के बाद अर्थशास्त्रियों ने परिमाणात्मक उत्पादन बढ़ाने और देश की अर्थव्यवस्था में आमदनी बढ़ाने पर ध्यान देना शुरू किया। अर्थशास्त्री जिन मुद्दों की सबसे ज्यादा चर्चा करते थे-वह उत्पादन का परिमाण बढ़ाना और किसी देश की आमदनी बढ़ाने का मुद्दा होता था। यह मान्यता थी कि जो अर्थव्यवस्था अपनी उत्पादन को परिमाण में बढ़ाने में कामयाब हो जाता है उसकी आदमनी अपने आप बढ़ जाती है और इससेलोगों के जीवन स्तर में गुणात्मक बदलाव आ जाता है। लेकिन उस वक्तलोगों के जीवन में गुणात्मक बदलाव की बात नहीं होती थी। यही वजह है कि 1950 के दशक तकलोग वृद्धि और विकास की अलग-अलग पहचान करने में नाकाम रहे थे हांकि वे इगके अंतरों के बारे में जागते थे।
1960 के दशक और उसके बाद के दशक में कई देशों के अर्थशास्त्रियों की राय थी कि अपेक्षाकृत वृद्धि दर ज्यादा है लेकिन जीवनस्तर में गुणात्मक बदलाव कम हो रहा था। समय आ गया था जब आर्थिक विकास और आर्थिक वृद्धि को अलग-अलग परिभाषित करने की जरूरत थी। अर्थशास्त्रियों के लिए, विकास का असरलोगों के जीवन की गुणवत्ता के स्तर पर दिखना चाहिए। यह जाहिर करने के निम्न घटक हैंः
;i) पोषण का स्तर;
;ii) स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच और विस्तार, अस्पताल, दवाईयां, सुरक्षित पेय जल, टीकाकरण और साफ-सफाई
;iii) लोगों में शिक्षा का स्तर, तथा;
;iv) दूसरे मागक, जिन पर जीवन की गुणवत्ता निर्भर करती है।
यहां एक मूल बात ध्यान में रखने की जरूरत है, जिसके मुताबिक आमलोगों को न्यूनतम सुविधाएं मिलगी (जिसमें खाना, स्वास्थ्य और शिक्षा इत्यादि) शामिल है। इसके अवा एक न्यूनतम आमदनी की भी गरंटी होनी चाहिए। आमदनी उत्पादक गतिविधियों से होती है। इसका मतलब है कि विकास सुनिश्चित करने से पहले हमें आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करनी होगी। उच्च आर्थिक विकास उच्च आर्थिक वृद्धि की मांग करता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उच्च आर्थिक वृद्धि दर से उच्च आर्थिक विकास हासिल किया जा सकता है। यह ऐसी उलझन थी, जिसे फराने समय के अर्थशास्त्री के स्पष्ट नहीं कर पा रहे थे। इस उलझन को समझने के लिए एक उदाहरण है-दो परिवारों की एक जैसी आमदनी है, लेकिन विकास के मापकों पर उगके खर्चे अलग-अलग हैं। एक परिवार स्वास्थ्य, शिक्षा और बचत पर खर्च करता है जबकि दूसरा परिवार कोई बचत नहीं करता, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करता है। ऐसे में दूसरा परिवार निश्चित तौर पर पहले परिवार की तुलना में ज्यादा विकसित होग। ऐसे में निश्चित तौर पर वृद्धि और विकास के अलग-अलग मामले हो सकते हैंः
;i) उच्च वृद्धि और उच्च विकास
;ii) उच्च वृद्धि और कम विकास
;iii) कम वृद्धि और उच्च विकास
ऊपर दिए गए संयोजन की प्रकृति विस्तार में ले जाती है, लेकिन एक चीज स्पष्ट है कि उच्च आमदनी और वृद्धि के लिए लगतार प्रयास की जरूरत है। यही बात आर्थिक विकास और उच्च आर्थिक विकास के लिए भी गू होती है।
बिना सतत् सार्वजगिक नीतियों के दुनिया भर में कहीं भी विकास नहीं हो सकता। उसी तरह से, हम कह सकते हैं कि वृद्धि के बिना भी विकास नहीं हो सकता। हांकि बिना विकास के वृद्धि का पह उदाहरण खाड़ी देशों में अर्थशास्त्रियों को दिखा। इन अर्थव्यवस्थाओं में आमदनी और आर्थिक वृद्धि उच्चतर स्तर पर होती है। ऐसे में अर्थशास्त्र की नई शाखा डेवलपमेंट इकाॅनामिक्स (विकास अर्थशास्त्र) का जन्म हुआ।विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे के बाद नियमित तौर पर आर्थिक नीतियां तय होने लगीं और इससे कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि और विकास पर नजर रखना संभव हुआ।
हम कह सकते हैं कि किसी अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास, मात्रात्मक और गुणात्मक प्रगति ही है। इसका मतलब यह है कि जब हम वृद्धि का इस्तेमाल करते हैं तो मात्रात्मक प्रगति की बात कर रहे हैं और जब हम विकास की बात करते हैं तब मात्रात्मक के साथ गुणात्मक प्रगति की भी बात हो रही है। जब आर्थिक वृद्धि का इस्तेमाल विकास के लिए होता है तो वृद्धि की तेज रफ्रतार का पता चलता है और इसके दायरे में बड़ी आबादी आ जाती है। उसी तरह से उच्च वृद्धि दर और कम विकास या फिर बीमारू विकास का असर यह होता है कि वृद्धि में गिरावट आ जाती है। यानी वृद्धि और विकास में एक सर्कुलर रिश्ता है। जब आर्थिक महामंदी का दौर आता है तो यह रिश्ता टूट जाता है। जब कल्याणकारी राज्य यानी वेलफैयर स्टेट का कांसेप्ट स्थापित हुआ तब दुनिया भर की सरकारों, नीति निर्माताओं और अर्थशास्त्रियों का ध्यान इस विषय पर गया। इसके बाद अर्थशास्त्र की नई शाखा-वेलफैयर इकाॅनामिक्स की शुरुआत हुई, जिसमें कल्याणकारी राज्य और उसके विकास की बातें शामिल होती हैं।