डी मॉड्यूलेशन क्या है , कैसे होता है , आवश्यकता , फायदे , उदाहरण विधि (demodulation in hindi)

(demodulation in hindi) डी मॉड्यूलेशन क्या है , कैसे होता है , आवश्यकता , फायदे , उदाहरण विधि : किसी मॉडूलित सिग्नल में से मूल सिग्नल या मूल संकेतों को प्राप्त करने की विधि को डी मॉड्यूलेशन कहते है।
जब कोई मॉड्यूटेड सिग्नल सिग्नल प्रेषि से ग्राही तक पहुँचता है तो इस मॉड्यूटेड सिग्नल में वाहक तरंगे और मूल सिग्नल दोनों विद्यमान रहते है , इस मॉड्यूटेड सिग्नल में से मूल सिग्नल को प्राप्त करने की क्रिया को डी मॉड्यूलेशन कहा जाता है।
डी मॉड्यूलेशन के लिए किसी इलेक्ट्रॉनिक परिपथ या सॉफ्टवेर का इस्तेमाल किया जाता है तो मूल सिग्नल को मोडुलित सिग्नल में से अलग कर देता है और हमें मूल सिग्नल प्राप्त हो जाता है। अर्थात यह मूल सिग्नल और वाहक तरंगों (रेडियो तरंगो)को अलग अलग कर देता है।

सामान्य डी मॉड्यूलेशन परिपथ (demodulation circuit)

नीचे दिए गए परिपथ का उपयोग आयाम मोडुलित तरंगो के संसूचन के लिए या आयाम मोडुलित तरंगों के डी मॉड्यूलेशन के लिए किया जाता है।
चित्रानुसार इसमें एक डायोड , एक संधारित्र और एक लोड प्रतिरोध लगा रहता है , यहाँ डायोड ऋजुकारी की भाँती व्यवहार करता है अर्थात जब मोडुलित तरंग का धनात्मक भाग आता है यह डायोड धनात्मक भाग को एनवेलप के लिए निर्गत प्रदान करता है लेकिन ऋणात्मक भाग के लिए कोई निर्गत नहीं देता है।
या हम कह सकते है कि आउटपुट सिरे पर प्रतिरोध और संधारित्र अर्तात R और C जुड़े है , दोनों मिलकर केवल मूल सिग्नल को निर्गत में आने देते है , क्यूंकि आउटपुट में ये दोनों रेडियो तरंग के भाग को आने नहीं देते है।
ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि R और C का मान इस प्रकार लिया जाता है ताकि वे निम्न शर्त को पूरा करे और यदि यह शर्त पूरी हो रही है तो निर्गत में RC , रेडियो तरंगों को आने नहीं देते है और आउटपुट में केवल मूल सिग्नल तरंग प्राप्त होती है –
1/f << RC
यहाँ f = वाहक तरंग की आवृत्ति है।