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debye huckel onsager equation in hindi derivation डेबाई हुकेल का सिद्धांत क्या है

डेबाई हुकेल का सिद्धांत क्या है debye huckel onsager equation in hindi derivation ?

डेबोई हुकेल का सिद्धान्त (Debye Huckel’s Theory) – सभी तनुताओं पर प्रबल विद्युत अपघट्य पूर्णतः आयनित रहते हैं लेकिन क्रिस्टलों के रमन स्पेक्ट्रा, X -किरण विश्लेषण, वाष्प दाब आदि से ज्ञात हुआ कि ये ठोस अवस्था में भी आयनित रहते हैं तथा अधिक सान्द्रता पर कुछ अनआयनित भाग भी रह जाता है। अतः पूर्णतः आयनित के स्थान पर यह कहना उचित होगा कि सभी सान्द्रताओं पर प्रबल विद्युत अपघट्य लगभग पूर्णतः आयनित अवस्था में रहते हैं।

प्रबल विद्युत अपघट्यों के लिए अनुपात – आयनन की मात्रा (c) नहीं होकर चालकता अनुपात है। जब विद्युत संयोजक यौगिक जल में घोले जाते है अर्थात् तनुकरण किया जाता है तो यह मानना `उचित है कि आयन जो पहले से ही ठोस अवस्था में थे विलयन में विचरण के लिए स्वतन्त्र हो जाते हैं और विद्युत धारा का चालन करने के योग्य हो जाते हैं। विलयन का तनुकरण करने पर तुल्यांकी चालकता में वृद्धि आयनों की गतिशीलता बढ़ने के कारण होती है। जब विद्युत अपघट्य का विलयन अनन्त तनुता पर होता है तब आयन काफी दूर और अलग-अलग होते हैं तथा ये एक दूसरे पर नगण्य प्रभाव डालते हैं। जब विलयन की सान्द्रता बढ़ायी जाती है तब आयन पास-पास आते हैं और अन्तराआयनिक आकर्षण (Inter ionic attraction) विकसित होता है जिसके फलस्वरूप आयनिक चालें घटती है तथा तुल्यांकी चालकतायें भी घटती है। इस प्रकार बढ़ती हुई सांद्रता के साथ तुल्यांकी चालकता में कमी अन्तर आयनिक आकर्षण के फलस्वरूप आयनिक चालों में कमी है न कि आंशिक वियोजन | डेबाई हुकेल के सिद्धान्त का आधार है। वैद्युत क्षेत्र में आयन का औसत विस्थापन इलेक्ट्रोडों की ओर होता है। डेबाई हुकेल सिद्धान्त के अनुसार प्रयुक्त विभव की उपस्थिती में आयनिक चालों या तुल्यांकी या मोलर चालकता में परिवर्तन निम्नलिखित दो कारणों से होता है-

असममित या शिथिलन प्रभाव (Asymmetry or Relaxation Effect )– विलयन में प्रत्येक आयन विपरीत आवेशित आयनों द्वारा घिरा रहता है। अर्थात् प्रत्येक धनायन के चारों और ऋणायनों का समूह तथा प्रत्येक ऋणायन के चारों और धनायनों का समूह होता है।

यह विपरीत आवेशित आयनों का समूह आयनिक परिपण्डल ( ionic atmosphere) कहलाता किसी भी विभव की अनुपस्थिति में यह आयनिक परिमण्डल विपरीत आवेशित आयन के चारों ओर सममित (symmetrical) रूप से व्यवस्थित होता है। चित्र 5.7 (a)।

चित्र 5.7 (a) में धनायन ऋण आवेश के परिमण्डल से घिरा हुआ है। जब विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है (विभव लगाया जाता है) तो आयन अपने विपरीत आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर चलने लगता है, अर्थात् धनायन कैथोड की ओर तथा परिमण्डल ऐनोड की ओर चलने लगता है जिससे आयनिक परिमण्डल की सममिति नष्ट हो जाती है अर्थात् विकृत या असममित हो जाती है (चित्र 5.7(b)) दूसरे शब्दों में केन्द्रीय आयन पर आयनिक परिमण्डल द्वारा प्रयुक्त आर्कषण बल चारों ओर समान नहीं होता वरन् जिधर आयन गतिशील होता है उधर कम और उसके पीछे की ओर अधिक होता है। आयनिक परिमण्डल में कुछ जड़त्व होने के कारण वह गतिशील आयन की नई स्थिति में स्वयं का पुनः समायोजन

(adjustment) नहीं कर सकता है। अर्थात गतिशील आयन के साथ स्वयं को तत्काल समायोजित करने में आयनिक परिमण्डल को कुछ समय की आवश्यकता होती है जिसे श्रांतिकाल (relaxation time) कहते हैं। केन्द्रीय धनायन के पीछे की ओर ऋण आयनों का आधिक्य होने के कारण धनायन की गति की विपरीत दिशा में एक स्थिर वैद्युत कर्षण (electrostatic drag ) लगता है जो उसके पीछे की ओर आकर्षित करता है, अर्थात् आयन के इलेक्ट्रोड की ओर बढने की चाल को कम कर देता है। आयन की चाल- पर यह प्रभाव असममिति अथवा शिथिलन प्रभाव कहलाता है क्योंकि यह आयनिक परिमण्डल की असममिति या शिथिलन के कारण उत्पन्न होता है।

वैद्युतकणसंचलन प्रभाव (Electrophoretic effect)– केन्द्रीय आयन की दिशा के विपरीत दिशा में चलते हुए आयनी परिमण्डल से संयुक्त विलायक के अणु घर्षण प्रभाव उत्पन्न करके केन्द्रीय आयन की गति को मन्द कर देते है। उदाहरणार्थ- जब कोई धनायन कैथोड की ओर चलता है तो उसके माध्यम (जल) में से होकर गुजरना पड़ता है जो स्वयं (माध्यम ) ऋणायन परिमण्डल के साथ विपरीत दिशा की ओर गमन करता है। अतः ये विपरीत धाराऐं आयनों की चाल को मन्द कर देती हैं। तथा आयन की चाल घटती है। आयन की चाल पर यह प्रभाव वैद्युत कण संचलन प्रभाव कहलाता है।

माध्यम प्रभाव (Medium effect)– आयनों की गति माध्यम की श्यानता पर भी निर्भर करती है। माध्यम की श्यानता जितनी अधिक होगी आयन की गतिशीलता उतनी की कम होगी।

उपर्युक्त तीनों कारक आयनों की चाल को धीमा करने में सहायक होते हैं परन्तु अनन्त तनुता पर इनका प्रभाव उपेक्षणीय हो जाता है। अन्य किसी तनुता पर इनका प्रभाव सान्द्रण के वर्गमूल अर्थात् √c का समानुपाती होता है। अर्थात्

इसमें स्थिरांक K विलायक की विस्कासिता तथा परावैद्युतांक पर निर्भर होता है।

ऑन्सेगर समीकरण (Onsager Equation)

डैबाई हुकेल ने तीनों प्रभावों के कारण हुए मंदनों (retardation) के योग के बराबर वैद्युत प्रेरक बल (driving force) को लगा करके आयन की गति की स्थायी दिशा प्राप्त की। उन्होनें प्रत्येक प्रभाव के परिणाम का परिकलन किया और एक-एक संयोजी (uni-univalent) विद्युत अपघट्य की तुल्यांकी चालकता के लिए समीकरण व्युत्पन्न की जिसे बाद में 1926 में ऑन्सेगर ने संशोधित किया। अतः समीकरण को डेबाई- हुकेल ऑन्सेगर समीकरण या ऑन्सेगर समीकरण कहते हैं जो निम्नानुसार है-

जहाँ D व n क्रमशः माध्यम (विलायक) के परावैद्युत स्थिरांक ( dielectric constant ) और श्यानता (Viscosity) है। c विलयन की मोल प्रति लीटर में सान्द्रता है। T परमताप है। यदि कोष्ठक के प्रथम एवं द्वितीय पदों के स्थान पर क्रमशः A और B लिखें तो निम्न समीकरण प्राप्त होती है-

जहाँ A व B विलायक के स्थिरांक है जो विलायक की प्रकृति व ताप पर निर्भर करते हैं।

डेबाई- हुकेल ऑन्सेगर समीकरण का सत्यापन (Verification of Debye Huckel Onsager Equation)-

चूँकि समीकरण (42) में किसी विद्युत अपघट्य के लिए नियत ( constant) होती है. अत: (2) समीकरण (42) एक सरल रेखा को प्रदर्शित करती है। अर्थात् और √c में ग्राफ खींचा जावे तो ऑन्सेगर समीकरण के अनुसार एक सरल रेखा प्राप्त होनी चाहिए।

विभिन्न विद्युत अपघट्यों के लिए तुल्यांकी चालकता और सांन्द्रता के वर्गमूल √C के प्रायोगिक मान आलेखित करने पर चित्र 5.8 के अनुसार कम सान्द्रता पर सीधी रेखा प्राप्त होती है। अतः कम सान्द्रता पर ऑन्सेगर समीकरण का प्रायोगिक सत्यापन होता है। अनन्त तनुता पर c का मान शून्य के समीप पहुँचता है जिससे समीकरण (42) में द्वितीय पद नगण्य हो जाता है और प्रयोग के अनुरूप के समीप पहुँच जाता है।

डेबाई- हुकेल सिद्धान्त की और भी संपुष्टि (Confirmation) चालकता प्रयोगों में होने वाले कई प्रभावों से प्राप्त हुई है। समीकरण (41) में परावैद्युत स्थिरांक कोष्ठक के दोनों पदों के हर (denominator ) में आता है इसका मतलब है कि जल की अपेक्षा कम परावैद्युत स्थिरांक वाले विलायनों में तुल्यांकी चालकता सान्द्रता वृद्धि के साथ अधिक तेजी से घटनी चाहिए । ऐल्कोहॉल, एसीटोनाइट्राइल आदि कम परावैद्युत स्थिरांक वाले विलायकों के साथ तुल्यांकी चालकता वास्तव में घटती है।

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