मृत्यु किसे कहते हैं | मृत्यु की परिभाषा क्या होती है अवधारणा बताइए कारण प्रकार death in hindi meaning

death in hindi meaning definition मृत्यु किसे कहते हैं | मृत्यु की परिभाषा क्या होती है अवधारणा बताइए कारण प्रकार का वर्णन कीजिये ?

उत्तर : मनुष्य के मरने को अर्थात किसी सजीव व्यक्ति के शरीर से प्राण निलकने को ही मृत्यु कहा जाता है | मृत्यु के पश्चात् मनुष्य निर्जीव वस्तु की भांति व्यवहार करता है |

मृत्यु की धारणा (The Idea of Death)
जन्म और विवाह जहां अपनी सुखद स्मृतियां लेकर आते हैं वहीं मृत्यु भय का दूसरा नाम है। मृतक के संबंधियों, मित्रों और परिचितों को मृत्यु गहरा सदमा पहुंचाती है। मृत्यु सामान्य रिश्तों को समाप्त कर देती है और शरीर के सड़ जाने का बड़ा भय रहता है । इसे लोग स्वीकार नहीं कर पाते। मृत्यु के भय को दूर रखने के लिए अनेक संस्कारों का जन्म हुआ। मृत्यु जैसे अनिवार्य यथार्थ को तो स्वीकार करना ही है और इसलिए जीवन के अगले स्वरूप के लिए संस्कार बनाए गए-जीवन का वह स्वरूप चाहे चक्रीय हों या रेखीय।

हिन्दू धर्म के आदिम विश्वास के अनुसार मृत्यु शरीर को ही नष्ट करती थी आत्मा को नहीं। इस तरह मृत्यु वह प्रक्रिया थी जिसके चलते आत्मा शरीर से अलग होती थी फिर, स्वप्न और बीमारी के दौरान भी आत्मा कुछ समय के लिए शरीर से अलग होती थी। लेकिन मृत्यु अपने आप में विलक्षण थी। आत्मा एक शरीर को छोड़ने के बाद दोबारा उसी शरीर में कभी नहीं आती थी। जीवित लोगों के मन में मृतकों के लिए मिली-जुली भावनाएं उठती थीं। ये मुख्य तौर पर भय और मुक्ति की भावनाएं होती थी।

इसके अतिरिक्त शव को ठिकाने लगाने की व्यावहारिक समस्या भी थी। मृत्यु के बाद शरीर सड़ने लगता है और इसलिए इसे अधिक समय तक रखना कठिन होता है। इसलिए उसे सावधानी से हटा दिया जाता था और उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता था । शव को ठिकाने लगाने के लिए जिन संस्कारों का सहारा लिया जाता है उनका मकसद जीवित व्यक्तियों को मृत्यु के प्रदूषण से मुक्त करना और मृतक को सम्मान सहित इस संसार से विदा देना होता है। अब हम विभिन्न समुदायों में मृत्यु से जुड़े संस्कारों की चर्चा करेंगे।

 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के बाद, आपः
ऽ हिन्दुओं के अंतिम संस्कारों का वर्णन कर सकेंगे,
ऽ सीरियाई ईसाइयों के अंतिम संस्कारों के बारे में चर्चा कर सकेंगे,
ऽ सिक्खों के अंतिम संस्कारों को समझ सकेंगे,
ऽ कोरकुओं के अंतिम संस्कारों का वर्णन कर सकेंगे, और
ऽ संस्कार से संबंधित कुछ दृष्टिकोणों की चर्चा कर सकेंगे।

 प्रस्तावना
इस इकाई में हम चार समुदायों के अंतिम संस्कारों पर चर्चा एवं उनका विश्लेषण करेंगे। ये समुदाय हैंः हिन्दू, सीरियाई, ईसाई, सिक्ख और कोरकू आदिवासी। आगे पढ़ने से पहले, अच्छा रहेगा कि आप इकाई 28 के अनुभाग 28.2 का अध्ययन करें। इकाई 28 (जीवन चक्रीय संस्कार प्: जन्म और विवाह) के इस खंड में संस्कार के विभिन्न पक्षों की चर्चा की गई है। इसके बाद आप अनुभाग 28.3 (संस्कार की भूमिका) को पढ़ें। इस इकाई (संख्या 29) को समझने के लिए उपर्युक्त अनुभागों को पढ़ना आवश्यक है। यहाँ हम यह बता दें कि जन्म, विवाह और मृत्यु अंतः संबद्ध है । वे एक समूची प्रक्रिया के ही अंग हैं। यह प्रक्रिया दो किस्म की हो सकती है:
प) चक्रीय
पप) रेखीय
चक्रीय प्रक्रिया में जैसा कि हमें हिन्दू धर्म में देखने को मिलता है जीवन के हमेशा के लिए समाप्त हो जाने में विश्वास नहीं किया जाता। जन्म के बाद विवाह, वृद्धावस्था और फिर मृत्यु की बारी आती है। उसके बाद फिर जन्म आ जाता है। बस आत्मा शरीर बदल लेती है। अनेक जनजातियों में ऐसा ही विश्वास पाया जाता है, टोडा और कोरकू जनजातियां इसका अच्छा उदाहरण हैं। ऐसा प्राय माना जाता है कि जातियों में यह विश्वास उनके हिन्दूकरण के कारण आया। लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि जनजातियों में ये विश्वास हिन्दू धर्म से आने के आरोप के कारण सही ही हों। इस तरह से जब हम हिन्दू धर्म के संस्कारों का अध्ययन करते हैं तो पुनर्जन्म और संसार का अध्ययन भी करते हैं। जिनकी अवधारणाएं चक्रीय किस्म की हैं। जीवन एक क्षण से अधिक समय के लिए नहीं रुकता। यह तब तक चलता रहता है जब तक मोक्ष प्राप्ति नहीं हो जाती। ऐसा तब तक होता है जब तक आत्मा परमात्मा में विलीन नहीं हो जाती। ऐसा अत्यधिक संवर्धित आत्माओं के साथ होता है, हर एक के साथ नहीं: अधिकांश हिन्दुओं को संसार में ही आवागमन करते रहना है। वे एक जीवन से दूसरे जीवन में अपने कर्म करते हुए सांसारिक यात्रा को पूरा करते हैं और किसी काल्पनिक भविष्य में वे भी संतों की स्थिति में पहुंच कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।

जीवन चक्र के रेखीय संस्कार हमें ईसाई धर्म और इस्लाम में देखने को मिलते हैं। इन समाजों में जन्म, विवाह, मृत्यु और स्वर्ग या नर्क एक रेखीय सीध में होते हैं। ईसाई धर्म में स्वर्ग और नर्क की धारणा मिलती है और इस्लाम में भी उनमें इस संसार में वापसी नहीं होती। जहां तक इस संसार में जीवन का संबंध है इन धर्मों में पूर्ण विराम होता है। मृत्यु के बाद जीवन कहीं और चलता है। इस इकाई के लिए हमने जिन स्रोतों से सामग्री ली है उनका उल्लेख “कुछ उपयोगी पुस्तकें‘‘ नामक खंड में किया गया है।

सारांश
यह इकाई जीवन चक्रीय क्रम के संस्कार का दूसरा भाग है और इसमें मुख्य रूप से अंतिम संस्कारों पर चर्चा की गई है। यह इकाई जन्म और विवाह पर प्रस्तुत इकाई से अलग है। लेकिन इसे केवल सुविधा की दृष्टि से अलग रखा गया है। इस इकाई का प्रारंभ मृत्यु की धारणा और हिन्दुओं में अंतिम संस्कार की रस्मों के साथ होता है। इसके बाद हमने सीरियाई ईसाइयों के अंतिम संस्कार, सिक्खों के अंतिम संस्कार और अंत में कोरकू समाज में प्रचलित अंतिम संस्कार की रस्मों की चर्चा की है। इस प्रकार हमने समग्र विषय का पर्याप्त अध्ययन किया है।

कुछ उपयोगी पुस्तकें
कोल डब्ल्यू. ओ. एंड सांभी पी.एस. 1978, “द सिख्स: देयर रिलीजंस, बिलीफस एंड प्रैक्टिसेज‘‘ विकास पब्लिशिंग हाउस प्रा. लि., नई दिल्ली
पांडे, राज बाली 1976, हिन्दू संस्कार: ‘‘सोशल रिलीजंस स्टडी ऑफ द हिन्दू सैक्रामेंटस‘‘ मोतीलाल बनारसी दास: दिल्ली
पोथन एस.जी.1963, “द सीरियन क्रिश्चियंस ऑफ केरला” एशिया पब्लिशिंग हाउस: दिल्ली
फुक्स स्टीफन, 1988, ‘‘द कोरकू ऑफ द विंध्या हिल्स‘‘ इंटर इंडिया पब्लिकेशन: नई दिल्ली