हमारी app डाउनलोड करे और फ्री में पढाई करे
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now
Download our app now हमारी app डाउनलोड करे

क्रिप्स मिशन के मुख्य प्रस्ताव क्या थे , प्रावधान कांग्रेस तथा लीग ने इसे क्यों अस्वीकार कर दिया। cripps mission in hindi pdf

By   November 8, 2022

cripps mission in hindi pdf क्रिप्स मिशन के मुख्य प्रस्ताव क्या थे , प्रावधान कांग्रेस तथा लीग ने इसे क्यों अस्वीकार कर दिया।
प्रश्न: क्रिप्स मिशन के मुख्य प्रावधान क्या थे ? कांग्रेस तथा लीग ने इसे क्यों अस्वीकार कर दिया। 
उत्तर: भारतीयों का युद्ध में सहयोग प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने सर स्टेफर्ड क्रिप्स मिशन मार्च, 1942 में भारत भेजा। मिशन ने 29 मार्च, 1942 को दो भागों में निम्न प्रस्ताव रखे।
भाग – 1
युद्ध समाप्ति के बाद एक निर्वाचित संविधान सभा (ब्रिटिश भारत ़ देशी राज्य) संघीय संविधान का निर्माण करेगी। सभा का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से प्रांतीय विधान सभाओं के निम्न सदनों द्वारा किया जाएगा। जो प्रांत या देशी राज्य इस संविधान से संतुष्ट नहीं है, वे अपना अलग संविधान बना सकते हैं। संविधान निर्माण का भार ब्रिटिश सरकार पर होगा। अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की जाएगी।
भाग – 2
भारत को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा दिया जाएगा। एक भारतीय संघ की स्थापना की जाएगी। संघ विदेश नीति के मामले म स्वतंत्र होगा। भारत संघ को ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल से संबंध विच्छेद का हक होगा। जब तक संविधान न बने तब तक गवर्नर-जलरल की तत्कालीन स्थिति बनी रहेगी और अंग्रेज ही भारत की रक्षा के लिए उत्तरदायी होंगे। संविधान निर्माण केवल भारतीयों द्वारा संविधान सभा के गठन की ठोस योजना, भारतीयों को प्रशासन में पूर्ण भागीदारी आदि अच्छे प्रावधान थे। लेकिन भारत युद्ध में पूर्ण सहयोग देगा व यह सब व्यवस्था युद्ध के बाद लागू होगी। प्रांतो या देशी राज्यों को पृथक संविधान का अधिकार दिया जाना भारत के विभाजन को स्वीकार करना था।
विभिन्न दलों की प्रतिक्रिया कांग्रेस:
कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू एवं मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को क्रिप्स मिशन पर विचार करने के लिए अधिकृत किया। वायसराय के निषेधाधिकार के मुद्दे पर स्टैफर्ड क्रिप्स तथा कांग्रेस ने नेताओं के बीच बातचीत टूट गई। कांग्रेस ने क्रिप्स प्रस्तावों का विरोध किया क्योंकि इसमें पूर्ण स्वतंत्रता के स्थान पर डोमिनियन स्टेट्स ही देने, प्रान्तों को भारतीय संघ से पृथक् होने का अधिकार देने तथा देशी रियासतों के प्रतिनिधियों को निर्वाचित करने के स्थान पर मनोनीत करने के प्रस्ताव थे। इसके अतिरिक्त सत्ता के त्वरित हस्तान्तरण की कोई योजना नहीं थी एवं गवर्नर जनरल की शक्तियाँ भी यथावत रखी गई थी। गांधीजी ने इसे च्वेज क्ंजमक ब्ीमुनम कहा व नेहरूजी ने कहा कि ऐसा बैंक का चैक जो दिवालिया हो गई हो।
मुस्लिम लीग: मुस्लिम लीग .एक संघ बनाए जाने, संविधान सभा की रचना तथा एक प्रान्त के पृथक होने के लिए उसकी इच्छा जानने की विधि इत्यादि से अप्रसन्न थी, विशेषकर इसलिए कि उसमें स्पष्ट पाकिस्तान बनाए जाने की बात नहीं की गई थी। इसलिए अस्वीकार दिया।

प्रश्न: समय में दूरी के होते हुए भी लार्ड कर्जन और जवाहर लाल नेहरू के बीच अनेक समानताएं थी। चर्चा कीजिए।

उत्तर: लार्ड कर्जन एवं जवाहरलाल नेहरू दो अलग-अलग समयों में भारत के प्रशासक रहे। लार्ड कर्जन जहां 1900 ई. के आस-पास भारत के वायसराय रहे वहीं जवाहरलाल नेहरू 1947 में स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री बने। यद्यपि इन दोनों के शासन काल में लगभग 50 सालों का अंतर है लेकिन दोनों के शासन एवं नीतियों में बहुत हद तक समानता पाई जाती है।
जवाहर लाल नेहरू एवं कर्जन. एक उपयुक्त विदेश नीति के समर्थक थे। अन्य देशों के साथ अपने संपक्र को बढ़ाना दोनों की प्राथमिकता थी। यह अलग बात है कि दोनों की विदेश नीति का स्वरूप भिन्न था। कर्जन की विदेश नीति जहां अग्रगामी थी, वहीं नेहरू की विदेश नीति शांति एवं सह-अस्तित्व पर आधारित थी। अपनी विदेश नीति को क्रियान्वित करने के लिए कर्जन ने तिब्बत, सिक्किम, बर्मा, अफगानिस्तान जैसे देशों पर आक्रमण से भी गुरेज नहीं किया जबकि नेहरू ने कभी भी ऐसी नीति का अवलंबन नहीं किया।
पार्टी एवं प्रशासन पर अपनी व्यक्तिगत महत्वकांक्षा एवं वर्चस्व स्थापित करने में दोनों में कुछ समानता थी। कर्जन ने स्थानीय निकायों एवं विश्वविद्यालयों तक पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया था। सेना पर नियंत्रण स्थापित करने के मुद्दे पर मुख्य सेनापति ‘किचनर‘ के साथ हुआ विवाद जग-जाहिर है। 1904 ई. में लाए गए नए विश्वविद्यालय एक्ट का भी राष्ट्रवादियों ने जबरदस्त विरोध किया था। नेहरू जी के समय में यद्यपि ऐसा कोई विवाद उत्पन्न नहीं हुआ, लेकिन फिर भी अपने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा एवं वर्चस्व स्थापित करने की लालसा के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि लार्ड कर्जन के सामानांतर खड़े थे।
गांधीजी की ग्राम स्वराज्य की अवधारणा के विपरीत सार्वजनिक उपक्रमों को बढ़ावा देना तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों के बजाय भारी एवं मध्यम उद्योगों की स्थापना पर बल देना आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि व्यक्तिगत वर्चस्व स्थापित करने के मुद्दे पर नेहरू एवं कर्जन में कुछ समानताएं थी।
इन दोनों में एक अन्य मुद्दे पर समानता थी और वह थी सरकार या प्रशासन के वास्तविक मुखिया बने रहने की इच्छा। इसलिए कर्जन का अपने कार्यकारिणी से एवं नेहरू जी का अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों से मतभेद होता रहता था।

सब्सक्राइब करे youtube चैनल