एक आदर्श गैस के लिए cp एवं cv में संबंध स्थापित कीजिए cp and cv relation in thermodynamics in hindi ?
ऊष्मा-धारिता (Heat Capacity ) किसी पदार्थ के ताप को एक डिग्री बढ़ाने के लिये आवश्यक ऊष्मा उस पदार्थ की ऊष्मा- धारिता कहलाती है। चूंकि यह ताप पर निर्भर करती है अतः इसके मान भिन्न-भिन्न तापों पर भिन्न-भिन्न होते हैं। इसलिये इसे माध्य ऊष्मा-धारिता (Mean Heat Capacity) कहना अधिक उपयुक्त है। यदि एक तंत्र को q ऊष्मा दी जाती है तो माना कि उसका ताप T1 से T2 हो जाता है।
चूंकि ऊष्मा धारिता ताप के साथ परिवर्तित होती है। अतः ऊष्मा – धारिता का यथार्थ मान ज्ञात करना हो तो T2 तथा T1 का अन्तर dT अनन्त सूक्ष्म होना चाहिये । यदि C यथार्थ ऊष्मा – धारिता हो तो इसका मान निम्नलिखित अवकल समीकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है।
C = dp/ dT
गैसों की ग्राम अणुक ऊष्मा धारिता के दो मान होते हैं। एक स्थिर आयतन पर Cv स्थिर दाब पर Cp
स्थिर आयतन पर ऊष्मा-धारिता (C) (Heat Capacity at Constant Volume) और दूसरा एक तंत्र स्थिर आयतन पर qv ऊष्मा अवशोषित करता है तो माना कि उसका ताप T1 से T2 हो जाता है। स्थिर आयतन पर तंत्र की ऊष्मा – धारिता (Cv) निम्न प्रकार व्यक्त की जाती है।
लेकिन समीकरण (24) के अनुसार qv = E
इस प्रकार प्रति डिग्री ताप बढ़ाने से तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि स्थिर आयतन पर ऊष्मा- धारिता कहलाती है। दूसरे शब्दों में आन्तरिक ऊर्जा में ताप के साथ परिवर्तन की दर स्थिर आयतन पर तंत्र की ऊष्मा -धारिता कहलाती है।
स्थिर दाब पर ऊष्मा – धारिता (Cp) (Heat Capacity at Constant Pressure) एक तंत्र स्थिर दाब पर qp ऊष्मा अवशोषित करता है। इस प्रक्रम में तंत्र के ताप में वृद्धि माना T1, T2 हो जाता है। तंत्र की स्थिर दाब पर ऊष्मा – धारिता (Cp) निम्न प्रकार व्यक्त की जाती है।
इस प्रकार प्रति डिग्री ताप बढ़ाने से तंत्र की एन्यैप्ली में वृद्धि स्थिर दाब पर ऊष्मा – धारिता कहलाती है। दूसरे शब्दों में एन्यैप्ली में ताप के साथ परिवर्तन की दर स्थिर दाब पर ऊष्मा-धारिता कहलाती है।
एक मोल पदार्थ की स्थिर दाब व स्थिर आयतन पर ऊष्मा – धारिताऐं क्रमशः Cp तथा CV द्वारा व्यक्त की जाती है। यदि एक तंत्र में n मोल उपस्थित हो तो स्थिर दाब व स्थिर आयतन पर ऊष्मा- धारिता क्रमश: Cp = n Cp तथा C = n Cy होंगी |
यहाँ यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि ऊष्मा धारिता एक मात्रात्मक या विस्तण गुण Extensive Property) हैं, जबकि ऊष्मा -धारिता प्रति मोल एक मात्रा स्वतंत्र गुण या विशिष्ट गुण (Intensvie Property) है।
Cp तथा Cv ऊष्मागतिकी संबंध (Thermodynamic relation between Cp and Cv)
एक तंत्र के लिये Cp तथा C के मान समान नही होते । स्थिर आयतन पर अवशोषित तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि करती है जबकि स्थिर दाब पर अवशोषित ऊष्मा आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि भी करती है और कार्य भी होता है। इसलिये ऊष्मा की समान मात्रा अवशोषित करने से स्थिर दाब पर ताप में वृद्धि कम तथा स्थिर आयतन पर ताप में वृद्धि अधिक होती है। इसी प्रकार ताप में समान वृद्धि के लिये स्थिर आयतन की अपेक्षा स्थिर दाब पर अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होगी। Cp तथा C में संबंध निम्न प्रकार स्थापित किया जाता है।
समीकरण (32) तथा (33) द्वारा
इस व्यंजक को स्थिर दाब पर T के संदर्भ में अवकलित करने पर
स्थिर दाब पर आन्तरिक ऊर्जा आयतन तथा ताप का फलन होती है तथा dE एक यथातथ अवकल अर्थात् E = f (V. T) अतः समीकरण (8) के अनुसार
इस समीकरण में दोनों और IT का भाग देकर स्थिर दाब की शर्तें लगाने पर
यह समीकरण Cp तथा Cv में एक सामान्य संबन्ध दर्शाती हैं यह समीकरण ठोस, द्रव तथा गैसों के लिये समान रूप से उपयोगी है।
समीकरण (38) में पद
अतः आदर्श गैस के लिए स्थिर दाब एवं स्थिर आयतन पर ऊष्मा धारिताओं क्रमश: Cp C, का अंतर गैस स्थिरांक R, के बराबर होता है।
स्थिर आयतन पर आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन (Change in Internal Energy at Constant Volume)
(42) तथा ऊर्जा के प्रमुख लक्षणों में बताया गया हैं तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा तंत्र की प्रारम्भिक एंव अन्तिम अवस्थाओं पर निर्भर करती है न कि अवस्था परितर्वन के पथ पर अतः आन्तरिक ऊर्जा एक अवस्था फलन है तथा आन्तरिक ऊर्जा में अनन्त सूक्ष्म परिवर्तन (dE) एक यथातथ अवकल है। माना कि आन्तरिक ऊर्जा आयतन (V) तथा ताप (T) का फलन है।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार स्थिर आयतन पर अवशोषित ऊष्मा तथा आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि में संबंध समीकरण (24) द्वारा व्यक्त किया जाता है।
अर्थात् E = qv
समीकरण (24) तथा (46) यद्यपि स्थिर आयतन पर सभी तंत्रों के लिये उपयोगी हैं। परन्तु ठोस एव ‘द्रव तंत्रों में प्रायोगिक कठिनाइयाँ हैं क्योंकि ठोस एवं द्रवों की संपीड्यता (Comprehensibility) बहुत कम होती है अतः ताप में थोडी सी वृद्धि ही दाब में बहुत अधिक वृद्धि कर देती हैं परिणामस्वरूप ठोस अथवा द्रव के पात्र का आयतन स्थिर नहीं रह पाता है। उसमें या तो विकृति आ जाती है या पात्र फट जाता है। इसलिये प्रायोगिक दृष्टि से स्थिर आयतन प्रक्रमों का पूर्ण अथवा आंशिक रूप से गैसीय तंत्रों के लिये ही अध्ययन किया जाता है।
ऊर्जा, तंत्र की एक महत्वपूर्ण राशि है अतः इसका मान प्रायोगिक रूप से ज्ञात करना भी महत्वपूर्ण समीकरण (47) में प्रथम पद में ताप में वृद्धि पर Cv में परिवर्तन को प्रदर्शित करता है। इसका प्रायोगिक मान सरलता से ज्ञात किया जा सकता है। दूसरा पद आयतन के परिवर्तन से हुये ऊर्जा परिवर्तन को दर्शाता हैं। गैसों के लिये इसका मान ज्ञात करने के लिये जूल (Joule) ने एक प्रायोगिक विधि दी जो निम्न प्रकार है।
जूल उपकरण चित्र 1.6 में दिखाया गया है। उपकरण में दो बल्ब A तथा B हैं जो एक स्टॉप कॉक द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं। दोनों बल्ब एक जल स्थिरतापी (Water thermostat) में रखे हैं। स्थिरतापी में एक विलोडक S तथा . एक सुग्राही (sensitive) थर्मामीटर T लगा है।
प्रयोग के प्रारम्भ में बल्ब A में एक गैस भरी हुई है तथा B खाली है। इस अवस्था में स्थिर तापी का प्रेक्षित ताप माना कि T है अब स्टॉप कॉक को खोला जाता है। तथा गैस का बल्ब B में प्रसार होता है और गैस दोनों बल्बों में समान रूप से भर जाती है। जूल के अनुसार प्रारम्भिक ताप व प्रयोग के बाद ताप समान पाया जाता है।
ऊष्मागतिकी के अनुसार बल्ब B में गैस का प्रसार शून्य प्रतिरोधी दाब के विरूद्ध होता है चूंकि बल्ब B में निर्वात है। इस प्रक्रम में गैस को कोई कार्य नहीं करना पड़ता है। (अर्थात् ‘ [ w = 0) चूंकि जल का ताप स्थिर रहता है (अर्थात् IT = 0) अतः यह कहा जा सकता है कि तंत्र (बल्व A तथा B) एवं पारिपाश्विक
(जल) में ऊष्मा का विनिमय नहीं हुआ है अर्थात् q = 0 है।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार E=q+w
चूंकि w = 0 तथा q= 0
अतः E = 0
इस प्रयोग में चूंकि dE = 0 तथा dT = 0 है अतः समीकरण 46 (i) से
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि गैस का समतापी प्रसार किया जाये तो गैस की आन्तरिक ऊर्जा (F) में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
अतः जूल के नियम के अनुसार “ स्थिर ताप पर आदर्श गैस की आन्तरिक ऊर्जा आयतन पर निर्भर नहीं करती है। ” अथवा “गैस की आन्तरिक ऊर्जा केवल ताप का ही फलन है। ” E = f (T) यही जूल का नियम कहलाता है। आदर्श गैस के लिये-
यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि जूल का यह नियम समीकरण (48) केवल आदर्श गैसों के
लिये ही वैध है, वास्तविक गैसों के लिये नहीं। उनके लिए
होता है।
दाब शून्य होता है।
वास्तविक गैसों के लिये
परिभाषित किया गया है। जूल गुणांक स्थिर आन्तरिक ऊर्जा पर आयतन के साथ ताप में परिवर्तन की दर प्रदर्शित करता है। गणितीय रूप में
Uj जूल गुणांक है। आदर्श गैसों के लिये uj का मान शून्य है। चूंकि E आयतन तथा ताप का फलन है तथा dE एक यथायथ अवकल है।
यथायथ अवकल के चक्रीय नियम द्वारा
समीकरण (51) द्वारा
समीकरण (47) का स्थिर ताप (dT = 0) पर समाकलन करने पर
समीकरण (53) द्वारा ठोस तथा द्रव तंत्रों के लिये
चूंकि ठोस तथा द्रवों के लिये AV का मान बहुत कम होता है अतः इसे शून्य माना जा सकता है।
यद्यपि
E = 0
इस प्रकार ठोस तथा द्रवों की आन्तरिक ऊर्जा को भी लगभग ताप का फलन माना जा सकता है, जो कि जूल के नियम के अनुरूप है।