कॉरपोरेट क्षेत्र क्या है | कारपोरेट क्षेत्र किसे कहते है परिभाषा कम्पनी के नाम corporate sector in hindi

corporate sector in hindi company names meaning definition कॉरपोरेट क्षेत्र क्या है | कारपोरेट क्षेत्र किसे कहते है परिभाषा कम्पनी के नाम ?

 प्रस्तावना
निजी क्षेत्र में अनन्य रूप से गैर सरकारी व्यक्तियों अथवा अस्तित्वों के स्वामित्व, उनके नियंत्रण और प्रबन्धन वाले फर्म अथवा संगठन सम्मिलित हैं। जैसा कि इस खंड की इकाई 14 में बताया गया है कि निजी क्षेत्र के सभी फर्मों को दो श्रेणियों, जैसे (क) व्यक्तिगत स्वामित्व वाले और (ख) सामूहिक स्वामित्व वाले, में विभक्त किया जा सकता है। सामूहिक स्वामित्व वाले फर्मों को उनके संगठन के आधार पर पुनः चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। वे हैं (प) साझेदारी फर्म, (पप) संयुक्त हिन्दू परिवार (पपप) संयुक्त (मिश्रित) पूँजी कंपनियाँ, और (पअ) सहकारी संस्थाएँ। इन चार श्रेणियों में सबसे महत्त्वपूर्ण संयुक्त पूँजी संगठन है जिसे कंपनी क्षेत्र के रूप में अधिक जाना जाता है। संयुक्त पूँजी कंपनियाँ जो सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत नहीं हैं उन्हें सामूहिक रूप से ‘‘निजी कंपनी क्षेत्र‘‘ के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार के संगठन प्रायः सर्वत्र पाए जाते हैं तथा पूरे विश्व में लोकप्रिय हैं।

भारत में, संयुक्त-पूँजी कंपनी अथवा फर्म का निर्माण दो अलग-अलग तरीकों से किया जाता है। अपने गठन की प्रक्रिया के अनुरूप निजी कंपनी क्षेत्र का पुनः दो श्रेणियों में उप-विभाजन किया जा सकता है, वे हैं (प) सांविधिक निगम (संसद अथवा राज्य विधानमंडलों के संविधियों के तहत गठित), और (पप) पंजीकृत कंपनियाँ (जिनका पंजीकरण कंपनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत हुआ है)। इस प्रकार, संयुक्त-पूँजी कंपनियाँ दो तरह की होती हैं, एक सांविधिक कंपनियाँ जिन्हें आम तौर पर ‘‘निगम‘‘ कहा जाता है और पंजीकृत कंपनियाँ जिन्हें आमतौर पर ‘‘कंपनी‘‘ के रूप में जाना जाता है। इसलिए, यद्यपि कि ‘‘कंपनी क्षेत्र‘‘ सिर्फ ‘‘निगम‘‘ का समानार्थी प्रतीत होता है, वास्तव में ‘‘कंपनी क्षेत्र‘‘ एक अधिक व्यापक वाक्य है जिसमें ‘‘निगम‘‘ और ‘‘कंपनी‘‘ दोनों सम्मिलित हैं। औद्योगिक वित्त निगम, जीवन बीमा निगम, दामोदर घाटी निगम आदि निगम के कुछ उदाहरण हैं। कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कंपनी के कुछ उदाहरण रिलायंस उद्योग लिमिटेड, विप्रो लिमिटेड, इंफोसिस टेक्नोलॉजीज, इत्यादि।

अधिकांश अध्ययनों में निजी कंपनी क्षेत्र की परिभाषा में पब्लिक और प्राइवेट लिमिटेड कंपनियाँ (बृहत्, मध्यम और लघु तीनों) सम्मिलित हैं। ये कंपनियाँ अथवा कंपनी (कारपोरेट) निकाय वैध अस्तित्व हैं जिनके स्वामि बिल्कुल अलग होते हैं तथा सीमित दायित्व का निर्वाह करते हैं। विभिन्न विश्लेषणों के उद्देश्य से निजी कंपनी क्षेत्र को मोटे तौर पर (प) निजी कारपोरेट वित्तीय कंपनी और (पप) निजी गैर-वित्तीय कंपनी अथवा (प) निजी कारपोरेट विनिर्माण और (पप) निजी कारपोरेट गैर-विनिर्माण में बाँटा जाता है।
बोध प्रश्न 1
1) ‘‘कारपोरेट क्षेत्र‘‘ से आप क्या समझते हैं।
2) कारपोरेट क्षेत्र की 10 बड़ी कंपनियों का नाम बताइए। (5 ‘निगम‘ और 5 कंपनियाँ)
3) सही या गलत पर ( ) निशान लगाइए।
क) भारतीय रेल कारपोरेट क्षेत्र में है। (सही/गलत)
ख) इंफोसिस कारपोरेट अस्तित्व है। (सही/गलत)
ग) रिलायन्स पेट्रोलियम कारपोरेट अस्तित्व नहीं है क्योंकि इसमें
अधिकांश शेयर अम्बानी परिवार का है। (सही/गलत)
घ) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया निजी कारपोरेट क्षेत्र में है क्योंकि इसमें
आम जनता का भी स्वामित्व अधिकार है। (सही/गलत)

बोध प्रश्नों के उत्तर अथवा संकेत
बोध प्रश्न 1
3) (क) नहीं, (ख) हाँ, (ग) नहीं, और (घ) नहीं।

भारत में निजी कारपोरेट क्षेत्र
भारतीय कारपोरेट क्षेत्र बहुत ही विशाल और अत्यधिक विविधिकृत है। सभी प्रकार के संगठित और मूल्य योजित करने वाले कार्यकलाप इस क्षेत्र में किए जाते हैं। दुर्भाग्यवश, भारतीय कारपोरेट क्षेत्र के आकार और इसकी संरचना के बारे में व्यवस्थित जानकारी रखने के लिए एक भी विश्वसनीय स्रोत नहीं है जिससे कि इसके विकास का आकलन किया जा सके। अन्यथा भी, सम्पूर्ण कारपोरेट क्षेत्र के संबंध में संगत जानकारी प्राप्त करना हमेशा सरल नहीं है। चूंकि नियमित अंतराल पर सम्पूर्ण कारपोरेट क्षेत्र का व्यवस्थित सर्वेक्षण नहीं किया जाता है, निजी कारपोरेट क्षेत्र संबंधी अधिकांश विश्लेषण चुनिंदा कंपनियों अथवा जनसंख्या से लिए गए नमूनों जिसके बारे में जानकारी उपलब्ध है के संबंध में किए जाते हैं। निम्नलिखित तालिका से पता चलता है कि कार्यशील कुल कंपनियों की संख्या में से करीब 99 प्रतिशत 31 मई 2001 की स्थिति के अनुसार निजी कारपोरेट क्षेत्र में हैं।

तालिका 15.1: कार्यशील कंपनियों की अनुमानित संख्या
(31.5.2001 की स्थिति के अनुसार)

कंपनियों का वर्गीकरण सरकारी/गैर सरकारी सार्वजनिक/निजी कंपनियों की संख्या
सार्वजनिक
सीमित शेयर कंपनियाँ सरकारी सार्वजनिक 657
निजी 612
गैर सरकारी सार्वजनिक 75565
निजी 495823
उप-योग 572657
सीमित गारंटी कंपनियाँ सरकारी 4
गैर सरकारी 2923
असीमित देयता कंपनी 469
योग 5,76,053
स्रोत: कंपनी कार्य विभाग, विधि, न्याय और कंपनी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार का वेबसाइट

लेखों में, निजी क्षेत्र की भूमिका की या तो भूरि-भूरि प्रशंसा की जाती है अथवा इसकी कटु आलोचना की जाती है। एक भी ऐसा दिन नहीं बीतता है जबकि वे व्यापार पृष्ठ की सुर्खियों में नहीं होते हैं। निजी कंपनी क्षेत्र की आलोचना मुख्य रूप से सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति इसकी असंवेदनशीलता के आधार पर तथा लाभ कमाने के उद्देश्य पर अत्यधिक बल देने के कारण की जाती है।

तथापि, दूसरे दृष्टिकोण से निजी कारपोरेट क्षेत्र की भूमिका और महत्त्व को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योजित मूल्य के रूप में इसके योगदान को देखकर आँका जा सकता है। एक अध्ययन (शांता, 1991) के अनुमानों के अनुसार साठ के दशक में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में निजी कारपोरेट क्षेत्र का योगदान शुद्ध योजित मूल्य के रूप में लगभग 8 प्रतिशत था जो हालाँकि अस्सी के दशक के आरम्भ में घट कर 5 प्रतिशत हो गया। इसी अध्ययन से पता चलता है कि साठ से अस्सी के दशक के आरम्भ तक कारपोरेट क्षेत्र विनिर्माण कार्यकलापों में अधिक केन्द्रित था। शुद्ध योजित मूल्य में (छमज टंसनम ।ककमक) में इसके योगदान का 75 प्रतिशत से अधिक सिर्फ विनिर्माण कार्यकलापों से था। तथापि, विनिर्माण क्षेत्र के अंतर्गत, सार्वजनिक क्षेत्र और गैर-कारपोरेट कंपनियाँ निजी कारपोरेट क्षेत्र से थोड़ा आगे निकल गई और अस्सी के दशक के आरम्भ तक कुल विनिर्माण शुद्ध योजित मूल्य में उनका संयुक्त हिस्सा लगभग 72 प्रतिशत था। इसी लेखक द्वारा किए गए समान अध्ययन से पता चलता है कि निजी कारपोरेट क्षेत्र द्वारा शुद्ध योजित मूल्य के रूप में योगदान अस्सी के दशक के आरम्भ में अर्थव्यवस्था में सृजित ‘‘शुद्ध योजित मूल्य‘‘ का 10 प्रतिशत से बढ़ कर नब्बे के दशक के मध्य में 19 प्रतिशत के करीब हो गया। यद्यपि कि दोनों अध्ययनों के लिए अपनाई गई पद्धतियों की भिन्नता के कारण इन आँकड़ों की पूरी-पूरी परस्पर तुलना नहीं की जा सकती फिर भी इससे इतना तो अवश्य ही पता चल जाता है कि विगत दो दशकों में अर्थव्यवस्था में निजी कारपोरेट क्षेत्र का महत्त्व बढ़ गया है।

निजी कारपोरेट क्षेत्र की भूमिका के मूल्यांकन का एक अन्य मानदंड घरेलू बचतों, निवेशों और पूँजी निर्माण में इसका योगदान है। पूँजी निवेश अथवा पूँजी निर्माण न सिर्फ विद्यमान उत्पादक क्षमता में सुधार अपितु विद्यमान क्षमता के विस्तार के लिए भी आवश्यक है। इसके साथ ही, भविष्य में सतत् औद्योगिक वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए आधुनिकीकरण हेतु पूँजी निवेश भी आवश्यक है।

इस प्रकार, निजी कारपोरेट क्षेत्र द्वारा पूँजी निवेश और बचत के माध्यम से निधियों के सृजन की उनकी क्षमता भविष्य में व्यापारिक आशाओं और अर्थव्यवस्था के कार्य निष्पादन का महत्त्वपूर्ण सूचक है। इस प्रकार, विकास के अगुआ के रूप में निजी कारपोरेट क्षेत्र की भूमिका पर इसकी बचतों और निवेश के माध्यम से देखना सर्वोत्तम तरीका है। चालीस के दशक के उत्तरार्द्ध में (स्वतंत्रता के पश्चात् आरम्भिक वर्षों में) भारत में बचत दर (राष्ट्रीय आय का लगभग 10 प्रतिशत) अत्यधिक कम थी। समय बीतने के साथ यह बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद की 25 प्रतिशत हो गई। तथापि, यह विश्व में अच्छा कार्य निष्पादन कर रहे राष्ट्रों की तुलना में काफी कम है। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (सी एस ओ) आँकड़ों से पता चलता है कि निजी क्षेत्र भारत में निवेश के प्रमुख स्रोत के रूप में उभर रहा है। वर्ष 1989-90 के बाद से सकल घरेलू बचतों में निजी कंपनी क्षेत्र का योगदान सार्वजनिक क्षेत्र के योगदान से कहीं आगे निकल गया है। सकल घरेलू बचत में वृद्धि में घरेलू और निजी कारपोरेट क्षेत्र का मुख्य योगदान रहा है। जबकि देश में सकल घरेलू बचत में घरेलू क्षेत्र का योगदान 80 प्रतिशत के करीब है नब्बे के दशक के उत्तरार्द्ध में निजी कारपोरेट क्षेत्र का सकल घरेलू बचत में 17 प्रतिशत के करीब योगदान रहा है। किंतु इसी समय सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान नगण्य और कभी-कभी नकारात्मक भी रहा है। निजी कारपोरेट क्षेत्र का बचत 1998-99 में 64,608 करोड़ रु. से बढ़ कर 1999-2000 में 71,879 करोड़ रु. हो गया है। इस प्रवृत्ति से यह झलकता है कि अब से कुछ पहले से निजी कारपोरेट क्षेत्र की बचत और निवेश प्रवृत्ति सराहनीय रही है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त, निजी कारपोरेट क्षेत्र कई अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं में भी अग्रणी रहा है। ‘‘दलाल स्ट्रीट इन्वेस्टमेंट जर्नल‘‘ द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, अधिकांश कंपनियाँ जिन्होंने अपने शुद्ध लाभ की दृष्टि से 1999-2000 में सर्वाधिक वृद्धि को प्राप्त किया, वे निजी कारपोरेट क्षेत्र की हैं। शुद्ध लाभ की दृष्टि से सर्वोच्च 50 कंपनियाँ पुरानी अर्थव्यवस्था क्षेत्र जैसे ओटोमोबाइल, बैंकिंग, वित्त, वस्त्र, इस्पात, विद्युत उत्पादन और वितरण संबद्ध हैं। नई अर्थव्यवस्था क्षेत्र के फर्म भी सर्वोच्च कार्य निष्पादकों में शुमार हैं। निम्नलिखित तालिका 15.2 से सर्वोच्च 10 कंपनियों के शुद्ध लाभ में प्रतिशत वृद्धि का पता चलता है। यह उल्लेखनीय है कि इन सर्वोच्च 10 कंपनियों में से सिर्फ इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कारपोरेशन लिमिटेड ही सार्वजनिक क्षेत्र की कारपोरेट कंपनी है।
तालिका 15.2: सर्वोच्च 10 उच्च वृद्धि कंपनियाँ कंपनी
कंपनी शुद्ध लाभ (करोड़ रु.) प्रतिशत वृद्धि
फेडरल बैंक लिमिटेड 46.39 1,733.60
कलर केम लिमिटेड 21.15 819.57
ट्रम्फ इंटरनेशनल फाइनेन्स इंडिया लिमिटेड 19.31 666.27
इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कारपोरेशन लिमिटेड 188.85 543.22
फोर्ब्स गोकाक लिमिटेड 31.11 522.20
गोएट्ज इंडिया लिमिटेड 18.61 506.19
पेन्टासॉफ्ट टेक्नोलॉजीज लिमिटेड 82.98 488.51
वी एस टी इण्डस्ट्रीज लिमिटेड 15.70 450.88
हिन्दूजा फाइनेन्स कारपोरेशन लिमिटेड 16.27 423.15
कल्याणी ब्रेक्स लिमिटेड 8.31 419.38
स्रोत: दलाल स्ट्रीट इन्वेस्टमेंट जर्नल, नवम्बर 5, 2001 ।

परम्परागत रूप से, किसी कंपनी की सफलता का माप उसकी शुद्ध बिक्री, शुद्ध लाभ और वास्तविक सम्पत्तियों से किया जाता है और इस प्रकार किसी विशेष क्षेत्र में कंपनियों के स्थान निर्धारण के लिए ये तीनों उपयोगी माप हैं। यद्यपि कि समकालीन साहित्य में अभी भी स्थान निर्धारण के उद्देश्य से इन्हीं अवधारणाओं का उपयोग किया जाता है, समय के साथ एक अन्य अवधारणा जो अधिक प्रचलित हो रही है वह है ‘‘बाजार पूँजीकरण‘‘। किसी कंपनी का बाजार पूँजीकरण किसी विशेष तिथि को उस कंपनी के बकाया शेयरों की संख्या का परिणाम और उस तिथि को कंपनी का शेयर मूल्य ही है। तदनुरूप, एक कंपनी का समय के विभिन्न बिन्दुओं पर बाजार पूँजीकरण का मूल्य अलग-अलग हो सकता है। इस प्रकार, बाजार पूँजीकरण की अवधारणा यह दर्शाती है कि निवेशक किसी कंपनी विशेष का मूल्यांकन कैसे करते हैं। बाजार पूँजीकरण की अवधारणा के आधार पर निजी कारपोरेट क्षेत्र में निम्नलिखित कंपनियाँ (तालिका 15.3 देखें) सर्वोच्च 10 भारतीय कंपनियों के रूप में उभरी हैं। यहाँ यह नोट करना रोचक होगा कि निजी कारपोरेट सेक्टर की सर्वोच्च पाँच कंपनियाँ सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस आयोग (ओ एन जी सी) जिसका बाजार पूँजीकरण 20918.39 करोड़ रु. है, से आगे हैं।

तालिका 15.3: बाजार पूँजीकरण के आधार पर सर्वोच्च 20 भारतीय कंपनियाँ
(31 मई, 2001 की स्थिति के अनुसार)
स्थान कंपनी का नाम बाजार पूँजीकरण उद्योग
1 हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड (एचएल एल) 43516.87 पर्सनल केयरय एफ एम सी जी
2 रिलायंस इन्डस्ट्रीज लिमिटेड 41412.77 विविधिकृत
3 विप्रो 39015.31 इन्फोटेक
4 रिलायंस पेट्रोलियम 27776.92 पेट्रोलियम उत्पाद
5 इन्फोसिस टेक्नोलॉजीज 24970.77 इन्फोटेक
6. आई टी सी लिमिटेड 19511.32 सिगरेट/तम्बाकू
7 एच सी एल टेक्नोलॉजीज 11181.05 इन्फोटेक
8. एच डी एफ सी लिमिटेड 7941.55 वित्त-आवास
9 सिपला 6637.78 फार्मास्यूटिकल्स
10 हिंडालको 6452.07 अल्यूमिनियम
11 आई सी आई सी आई लिमिटेड 6404.45 वित्तीय संस्था
12 लार्सन एण्ड टूब्रो 6178.95 विविधिकृत
13. सत्यम कम्प्यूटर्स 6124.54 इन्फोटेक
14 रैनबैक्सी लेबोरेट्रीज 5707.50 फार्मास्यूटिकल्स
15 एच डी एफ सी बैंक 5596.71 बैंकिंग
16 जी टेलीफिल्म 5484.92 मनोरंजन
17 टिस्को 5212.86 इस्पात
18 नेस्ले लिमिटेड 5121.35 खाद्य उत्पाद
19 डा. रेड्डी लेबोरेट्रीज 4442.50 फार्मास्यूटिकल्स
20 निरमा लिमिटेड 3290.30 एफ एम सी जी
स्रोत: इकनॉमिक टाइम्स, 1 जून, 2001
नोट: यह जानकारी उन शेयरों पर आधारित है जिनका कारोबार बम्बई स्टॉक एक्सचेंज
(बी एस ई) में किया जाता है।

 उदारीकरण के पश्चात् निजी कारपोरेट क्षेत्र
वर्ष 1991 भारत के आर्थिक इतिहास में मुख्य विभाजक था।

वर्ष 1991 आर्थिक नीति के पश्चात् निजीकरण की ओर जो लम्बे-लम्बे डग भरे गए उसमें अर्थव्यवस्था की विकास प्रक्रिया में निजी कारपोरेट क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया। वर्षों बाद, सहज ज्ञान में बदलाव के कारण अब भूमिका में भारी परिवर्तन आया है। विनियमन से उदारीकरण की ओर नीतिगत दृष्टिकोण में आमूल परिवर्तन के कारण, निजी कारपोरेट क्षेत्र अब आर्थिक जगत में केन्द्रीय महत्त्व का हो गया है। सार्वजनिक क्षेत्र को राज्य के संरक्षण से वंचित होने और निजी उद्योगों के लिए विनियमों में ढील दिए जाने के अलावा 90 के दशक में बड़े पैमाने पर हुए आमूलचूल सुधारों ने अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में भारी निजी निवेश (घरेलू और विदेशी) की न सिर्फ अनुमति ही दी अपितु, इसे सुगम भी बनाया। संपूर्ण योजना काल में निजी कारपोरेट क्षेत्र के लिए इससे अधिक अनुकूल समय कभी नहीं था।

पिछले कुछ वर्षों में निजी कारपोरेट क्षेत्र की सहभागिता में आमूल परिवर्तन हुआ है। इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निगमीकरण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विलय और समामेलन और भारी बचत तथा निवेश से इसका अनुमान किया जा सकता है। यह अनुमान किया गया है कि नौवीं पंचवर्षीय योजना अवधि तक कारपोरेट क्षेत्र द्वारा कुल निवेश सकल घरेलू उत्पाद का करीब 8 प्रतिशत तक होने जा रहा है। इसमें से, नौवीं योजना अवधि में आठवीं योजना के 3.7 प्रतिशत की तुलना में निजी कारपोरेट क्षेत्र के निवेश में 4.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने की आशा की गई है (बिजनेस स्टेण्डर्ड 2 मार्च, 1998)। कुछ वर्षों पहले, निजी क्षेत्र आधारभूत संरचना से जुड़े बुनियादी उद्योगों में कार्य नहीं कर सकता था। सार्वजनिक क्षेत्र को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई तथा उसे ही इस दायित्व का निर्वाह करना था। तथापि, उदारीकरण के पश्चात् और वित्तीय क्षेत्र पूँजी बाजार इत्यादि में परिणामी परिवर्तनों के बाद लगभग सभी जगह निजी कारपोरेट क्षेत्र की उपस्थिति देखी जा सकती है।

वर्ष 1980-81 में, सार्वजनिक क्षेत्र के 11,767 करोड़ रु. के निवेश की तुलना में निजी क्षेत्र का निवेश मात्र 3,448 करोड़ रु. था। निजी क्षेत्र के निवेश में धीरे-धीरे वृद्धि हुई और यह 1985-86 में 14,405 करोड़ रु. तथा 1990-91 में 23,082 करोड़ रु. हो गया। सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) में सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश के अनुपात में निरंतर गिरावट आ रही है और यह 1990-91 में 9.7 प्रतिशत से घट कर 1996-97 में 7.4 प्रतिशत रह गया है। वर्ष 1996-97 में, सकल पूँजी निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र के 94,215 करोड़ रु. के निवेश की तुलना में निजी कारपोरेट क्षेत्र की 104,734 करोड़ रु. होने का अनुमान किया गया है। निजी कारपोरेट क्षेत्र द्वारा पूँजी निर्माण 1990-91 में सकल घरेलू उत्पाद के 4.3 प्रतिशत से बढ़कर 1996-97 तक 8.2 प्रतिशत हो गया। उपर्युक्त आँकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि जब भारत निजीकरण की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रहा है और सार्वजनिक क्षेत्र को छोटी भूमिका सौंपी जा रही है, निजी कारपोरेट क्षेत्र अर्थव्यवस्था में भारी निवेश और पूँजी निर्माण के लिए तैयार होता प्रतीत हो रहा है।

उदारीकरण के पश्चात्, कारपोरेट भारत से आशाएँ कई गुना बढ़ गई हैं। निजी कारपोरेट क्षेत्र के कार्यनिष्पादन का मूल्यांकन सिर्फ लाभ के परम्परागत पैमाने के आधार पर नहीं किया जाता है। कारपोरेट अस्तित्व के मूल्यांकन के लिए विभिन्न विश्लेषणात्मक लक्षणों का उपयोग किया जाता है। कार्य निष्पादन मूल्यांकन के नए परिप्रेक्ष्य में पर्याप्त लाभप्रदता को बनाए रखना, शेयर धारकों के मूल्य में वृद्धि, उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना, उच्च गुणवत्ता के उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करना तथा प्रतिस्पर्धी वातावरण में विकास करते रहने की योग्यता जैसे मानदंड सम्मिलित है। संक्षेप में, उपरोक्त मानदंडों के आधार पर ‘‘फार ईस्टर्न इकनॉमिक रिव्यु‘‘ ने एशिया के निजी कारपोरेट क्षेत्र में सर्वाधिक प्रशंसित फर्मों का सर्वेक्षण किया। एनुवल रिव्यू 200ः एशियाज लीडिंग कंपनी सर्वे, सर्वेक्षण 2001 की सूची में सम्मिलित सभी सर्वोच्च 10 भारतीय कंपनियाँ निजी कारपोरेट क्षेत्र की ही थीं। उपर्युक्त मानदंडों के आधार पर अति आकांक्षित स्थान प्राप्त करने वाली कंपनियाँ थीं: रिलायंस इण्डस्ट्रीज, इंफोसिस टेक्नोलॉजीज, लार्सन एण्ड टूब्रो, विप्रो इंफोटेक समूह, रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज, आई टी सी, सिप्ला, आई सी आई सी आई, डॉ रेड्डीज लेबोरेट्रीज, और हीरो होण्डा मोटर्स कार्यनिष्पादन के सभी पाँच महत्त्वपूर्ण लक्षणों, जो किसी फर्म की सराहना के लिए उत्तरदाई हैं, के आधार पर इन्फोसिस को पहला स्थान दिया गया।

उदारीकरण के उपरान्त, निजी कारपोरेट क्षेत्र की कंपनियों की सराहना न सिर्फ उनके कार्य निष्पादन और प्रतिस्पर्धी वातावरण में फलने-फूलने की योग्यता अपितु उनकी नेतृत्व गुणों के लिए भी की गईं ‘‘फार ईस्टर्न इकनॉमिक रिव्यू‘‘ ने वर्ष 2000 में अपने सातवें वार्षिक कारपोरेट सर्वेक्षण (ए टी एण्ड टी के साथ मिलकर किया गया) में एन आई आई टी को सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व के लिए सर्वोच्च 10 भारतीय कंपनियों की सूची में सम्मिलित किया था। उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को पूरी करने के इसके नूतन तरीकों के लिए इसे सर्वोच्च चार कंपनियों में स्थान प्राप्त है। विभिन्न नेतृत्व मानदंडों जैसे सेवाओं और उत्पादों की गुणवत्ता, प्रबन्धन की दीर्घकालीन दूरदर्शिता, वित्तीय स्थिति, इत्यादि के आधार पर सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों में पुनः उपरोक्त कंपनियों का ही स्थान है। ये कंपनियाँ इस प्रकार हैंः रिलायंस इण्डस्ट्रीज, इंफोसिस टेक्नोलॉजीज, लार्सन एण्ड टूब्रो, विप्रो इंफोटेक समूह, रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज, आई टी सी, एम आर एफ, एन आई आई टी, बजाज ओटो, और हीरो होण्डा मोटर्स

बोध प्रश्न 2
1) भारतीय निजी कारपोरेट क्षेत्र की कम से कम पाँच उपलब्धियों का वर्णन करें?
2) कार्य निष्पादन के कम से कम पाँच आधुनिक मानदंडों का नाम बताएँ।

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप:
ऽ कंपनी क्षेत्र और विशेष रूप से निजी कंपनी क्षेत्र के महत्त्व और कमियों पर संक्षेप में प्रकाश डाल सकेंगे;
ऽ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में निजी कंपनी क्षेत्र की भूमिका के बारे में समझ सकेंगे;
ऽ उदारीकरण से उत्पन्न परिस्थितियों के संदर्भ में निजी कंपनी क्षेत्र के महत्त्व को समझ सकेंगे; और
ऽ निजी कंपनी क्षेत्र की परिवर्तनशील भूमिका, विशेषकर भारत के सन्दर्भ में, के बारे में जान सकेंगे।