(coordination compounds in hindi) उपसहसंयोजक यौगिक :
योगात्मक यौगिक (addition compounds) : जब दो या दो से अधिक सरल स्थायी यौगिको को आण्विक अनुपात में मिश्रित करके वाष्पित किया जाता है तो इसके फलस्वरूप नए स्टाइकियो-मिट्रिक पदार्थो के क्रिस्टल प्राप्त होते है , इन्हें ही योगात्मक यौगिक कहते है।
उदाहरण :
K2SO4 + Al(SO4)3 + 24H2O → K2SO4.Al(SO4)2.24H2O
KCl + MgCl2 + 6H2O → KCl.MgCl2.6H2O
4KCN + Fe(CN)2 → K4[Fe(CN)6]
CuSO4 + 4NH3 → [Cu(NH3)4]SO4
योगात्मक यौगिक के प्रकार :-
- द्विक लवण (double salt) / जालक यौगिक
- संकुल यौगिक (complex compound) या उपसहसंयोजक यौगिक
- द्विक लवण (double salt) / जालक यौगिक: ये दो साधारण लवणों के योग से बनते है।
इनमे एक से अधिक प्रकार के धनायन व ऋण आयन उपस्थित होते है।
ये ठोस अवस्था में स्थायी होते है लेकिन जलीय विलयन में ये पूर्ण रूप से आयनित हो जाते है।
विलयन अवस्था में इनके सभी आयनों का परिक्षण किया जा सकता है।
उदाहरण : फिटकरी :- K2SO4.Al2(SO4)3.24H2O
[K+ , Al3+ , SO42- का परिक्षण संभव]
मोहर लवण :- FeSO4.(NH4)2SO4.6H2O
[Fe2+ , NH4+ , SO42- का परिक्षण सम्भव]
कार्नेलाईट :- KCl.mgCl2.6H2O
[K+ , Mg2+ , Cl– का परिक्षण संभव]
- संकुल यौगिक (complex compound) या उपसहसंयोजक यौगिक: ऐसे यौगिक जिनमे एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म मुक्त स्पीशीज अर्थात लिगेंड केन्द्रीय धातु आयन के साथ उपसहसंयोजक बन्ध के द्वारा जुडी हो तो वे यौगिक उपसहसंयोजक यौगिक कहलाते है।
इनमे केन्द्रीय धातु आयन व लिगेण्ड आपस में मिलकर एक संयुक्त आयन के रूप में व्यवहार करते है इसलिए इन्हें संकुल यौगिक कहते है।
ये ठोस एवं जलीय विलयन दोनों अवस्थाओ में स्थायी होते है अर्थात ये जल में पूर्ण रूप से आयनित नहीं होते है।
विलयन अवस्था में इनके सभी आयनों का परिक्षण संभव नहीं होता है।
उदाहरण : K4[Fe(CN)6]
यह जल में निम्न प्रकार आयनित होता है –
K4[Fe(CN)6] ⇌ 4K+ + [Fe(CN)6]4-
इसमें K+ आयन का परिक्षण संभव है , लेकिन Fe2+ व CN– का नहीं क्योकि Fe2+ व CN– आयन आपस में मिलकर एक संयुक्त आयन के रूप में व्यवहार करते है।
द्विक लवण और संकुल यौगिकों में अंतर
द्विक लवण | संकुल यौगिक |
1. यह ठोस अवस्था में स्थायी होता है | | यह ठोस व जलीय विलयन दोनों में स्थायी होते है | |
2. जल में पूर्ण रूप से आयनित हो जाते है | | ये जल में पूर्ण रूप से आयनित नहीं होते है | |
3. विलयन अवस्था में सभी आयनों का परिक्षण संभव है | | विलयन अवस्था में सभी आयनों का परिक्षण संभव नहीं है | |
4. इनमे मूल यौगिको का अस्तित्व बना रहता है | | इनमे मूल यौगिको का अस्तित्व समाप्त हो जाता है | |
5. इनमे मुख्यतया आयनिक बंध पाए जाते है | | इनमे मुख्यतः उपसहसंयोजक बन्ध पाए जाते है | |
6. इनमे सूत्र का कोई भाग बड़े कोष्ठक में नहीं लिखा जाता है | | इसमें सूत्र का कोई भाग कोष्ठक में लिखा जाता है | |
K2SO4.Al2(SO4)3.24H2O | K2[Zn(OH)4] |
उपसहसंयोजक यौगिको के प्रकार (types of coordination compounds)
यह निम्न प्रकार के होते है –
- सरल धनायन व संकुल ऋणायन से बने यौगिक :-
K4[Fe(CN)6] ⇌ 4K+ + [Fe(CN)6]4-
- संकुल धनायन व सरल ऋणायन से बने यौगिक :-
[Cu(NH3)4]Cl2 ⇌ [Cu(NH3)4]2+ + 2Cl–
- संकुल धनायन संकुल ऋणायन से बने यौगिक :-
[CO(NH3)6][Cr(CN)6] ⇌ [CO(NH3)6]3+ + [Cr(CN)6]3-
- उदासीन अणु :-
[Ni(CO)4]
उपसहसयोजक यौगिको से सम्बन्धित महत्वपूर्ण शब्दावली
- केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन: उपसहसयोजक यौगिको में लिगेंड से घिरा हुआ धातु आयन या परमाणु ही केन्द्रीय धातु परमाणु/आयन कहलाता है।
ये केन्द्रीय धातु आयन इलेक्ट्रोन युग्म ग्राही की भूमिका निभाते है उदाहरण : K4[Fe(CN)6] में केन्द्रीय धातु आयन Fe2+ है।
- लिगेंड: एकांकी इलेक्ट्रोन युग्म युक्त स्पीशीज जो केन्द्रीय धातु आयन के साथ उपसहसयोजक बंध द्वारा जुडी हो , लिगेंड कहलाती है।
लिगेंड धनावेशित , ऋणावेशित , उदासीन भी हो सकते है।
K4[Fe(CN)6] में लिगेंड CN– है।
- उपसहसयोजक संख्या (coordination number): उपसहसयोजक यौगिको में लिगेंड द्वारा केन्द्रीय धातु आयन के साथ बनाये गए उपसहसयोजक बन्धो की कुल संख्या को उपसहसयोजक संख्या कहते है।
- समन्वय मण्डल: उपसहसयोजक यौगिको में केन्द्रीय धातु आयन व लिगेंड को सम्मिलित रूप से बड़े कोष्ठक में लिखा जाता है इसे ही समन्वय मंडल कहते है।
- आयनिक मण्डल / प्रतिआयन: उपसहसयोजक यौगिको में समन्वय मंडल के बाहर उपस्थित आयनीकृत होने वाला भाग आयनिक मण्डल कहलाता है।
K4[Fe(CN)6] में आयनिक मंडल 4K+ है।
समन्वय बहुफलक : उपसहसयोजक यौगिको में लिगेंड केन्द्रीय धातु आयनों के साथ उपसहसयोजक बंध द्वारा जुड़कर भिन्न भिन्न द्विक स्थान व्यवस्थाओ का निर्माण करते है इसी व्यवस्था को समन्वय बहुफलक कहते है।
उदाहरण : K4[Fe(CN)6] में समन्वय बहुफलक = अष्टफलकीय
समन्वय संख्या चार होने पर – (i) चतुष्फलकीय (ii) वर्ग समतलीय
समन्वय संख्या पांच होने पर – (i) त्रिकोणीय द्विपिरेमिडी (ii) वर्गाकार पिरेमिड़ी
समन्वय संख्या छ: होने पर – (i) अष्टफलकीय
केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था ज्ञात करना : उपसहसयोजक यौगिको में केंद्रीय धातु आयन के साथ जुड़े हुए समूहों को आवेश सहित अलग कर देने के बाद केन्द्रीय धातु आयन पर जितना आवेश बचता है , वही उस धातु का ऑक्सीकरण अंक होता है।
उदाहरण :
K4[Fe(CN)6]
(+1 x 4) + X + (-1 x 6) = 0
+4 + X – 6 = 0
X = 2