Control of osmoregulation in hindi , परासरण नियमन का नियंत्रण क्या है , निष्क्रिय अभिगमन ( Passive transport)

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परासरण – नियमन का नियंत्रण (Control of osmoregulation)

लेवर (Lever) एवं इनके साथियों ( associates) ने स्वच्छ जलीय घोघे (snail) लिम्नेया स्टेग्नोलिस (linnea stagnalis) पर प्रयोगों से पता चलाया कि जन्तुओं में जल एवं लवणीय संतुलन हेतु विभिनन हार्मोन जिम्मेदार होते हैं। कामेमोटो (Kamemoto; 1964) के अनुसार ये हार्मोन केचुएँ ( earthworm) में मस्तिष्क द्वारा स्त्रावित किये जाते हैं। वयस्क घांघें की प्लूरल ग्रंथियों (pleural glands) भी जल एवं लवणों के संतुलन हेतु आवश्यक होती है।

गोर्बमेन एवं बने (Gorbmen and Bern, 1962 ) के अनुसार कशेरूकियों में परासरण नियमन हेतु वैसोप्रेसिन (vasopressin) अथवा एन्टीडायूरेटिक हार्मोन आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त एड्रीनल कॉर्टेक्स द्वारा स्त्रावित एल्डोस्टेरॉन (aldosterone) हार्मोन भी लवणों की मात्रा को नियंत्रित करता है। इन हार्मोनों का नियंत्रण सतही झिल्लियों (क्लोम अध्यावरण एवं मूत्राशय), वृक्क एवं लवण निष्कासिन हेतु ग्रंथियों (क्लोम, मलाशयी ग्रंथियाँ एवं ओर्बीटल ग्रंथियाँ) के स्तर पर होता है।

हिकमेन, मेटी एवं ग्रीन (Hickmen, 1959; Matty and Green; 1963) के अनुसार हार्मोन्स के अतिरिक्त अन्य कारक भी जल एवं लवण संतुलन पर अप्रत्यक्ष प्रभाव दर्शाते हैं। इनमें थाइरॉइड हार्मोन (थाइराक्सिन), पेराथाइरॉइड हार्मोन (पेराथोर्मोन) आदि प्रमुख है।

गोर्बमेन एवं बर्न (Gorbómen and Bern, 1962 ) के अनुसार पिनीयल उपकरण ( pineal appratus) भी जल एवं लवणों के संतुलन हेतु उत्तरदायी होती है। इनामी, ताकासुजी एवं बर्न, एवं मेट्ज तथा साथियों 1964 (Enami, Takasugi and Bern, Maetz et. 1964 ) के अनुसार कुछ मछलियों में पुच्छ तंत्रिका स्त्रावी तंत्र (caudal neuroseretory system) भी लवण एवं जल संतुलन हेतु जिम्मेदार होता है। यह तंत्र कुछ आवश्यक सक्रिय पदार्थ स्त्रावित करता है।

झिल्ली पारगम्यता (Membrane permeability

प्लाज्मा झिल्ली, कोशिका के भीतर से बाहर तथा बाहर से भीतर की ओर को पदार्थों के प्रवाह का नियमन करती है। यह एक वरणात्मक प्रकार की पारगम्य कला (selectively permeable membrane) होने के कारण इससे होकर कुछ पदार्थ जैसे ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साइड, जल. मुक्त रूप से गुजर सकते हैं जबकि अन्य पदार्थ जैसे सोडियम आयन, प्रोटीन, बहुसैकेराइड (posaccharide) या तो कठिनाई से या बिल्कुल नहीं गुजर सकते। कम अणु भार वाले पदार्थ प्लैज्मा झिल्ली में से सरलतापूर्वक पारित हो जाते हैं, जबकि अधिक अणुभार वाले पदार्थ इसमें से पारित नहीं हो पाते। प्लैज्मा झिल्ली एक अतिसूक्ष्म छिद्रों वाली झिल्ली के समान होती है जिसम से विभिन्न पदार्थों के अणु पारित होते हैं। प्लैज्मा झिल्ली की पारगम्यता K आयन की सांद्रता के अभिगमन (passive transport) विकल्पी या माध्य द्वारा अभिगमन ( facultative or mediated transport) सक्रिय परिवहन (active transport). एन्डोसाइटोसिस (endocytosis) तथा एक्सोसाइटोसिस (exocytosis) आदि विधियों द्वारा विभिन्न पदार्थों का परिग्रहण करती है।

परासरण (Osmosis )

कोशिकाओं में प्लाज्मा कला अर्ध पारगम्य (semipermeable) सजीव रचना के रूप में सक्रिय बनी रहती है। इस झिल्ली से जल जो कि सामान्य विलायक (solvent) होता है जिसमें अनेक पदार्थ घुलित अवस्था में रहते हैं किस प्रकार गमन करता है यहाँ अध्ययन करेंगे।

जल के अणु या इनकी सान्द्रता तनु या कम सान्द्र विलयन से अधिक सान्द्र विलयन की ओर ही गमन करते हैं, यह अभिगमन ही परासरण (Osmosis) कहलाता है। सभी जीव तन्त्रों (biological systems) में जल ही सर्वत्र रूप से घोलक के रूप में प्रयुक्त होता है अतः यह अर्धपारगम्य कला से होकर एक दिशा में दूसरी दिशा की ओर तब तक गमन करता रहता है जब तक कि झिल्ली के दोनों ओर विलायक की सान्द्रता का अनुपात समान नहीं हो जाता।

जीवों की कोशिकाओं में सही जल सन्तुलन (water balance) कैसे बना रहता है, यह जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। दोनों दिशाओं में उपस्थित जल विभव (eater potential) का अन्तर ही यह निर्धारण करता है कि किस दिशा से जल के अणु कौनसी दिशा में गति करेंगे। जल विभव के दो घटक है (i) परासरण विभव ( osmotic potential) एवं (ii) दबाव विभव (pressure potential)। इस क्रिया को समझने के लिए हम एक प्रयोग की सहायता लेते हैं। चित्र 1.6 के अनुसार दो कक्ष बनाये जाते हैं जिन्हें एक झिल्ली पृथक करती है। यह झिल्ली जल के अणुओं हेतु तो पूर्ण पारगम्य होती है किन्तु इसमें घुले हुए पदार्थों के लिए नहीं अर्थात् विभेदनकारी पारगम्य (differential permeable) होती है। कक्ष A में शुद्ध जल भरा गया है। कक्ष B के जल में कोई घूलित (solute ) मिलाया गया है । घुलित की उपस्थिति प्रभावकारी रूप से जल के अणुओं की आपेक्षिक सान्द्रता को दूसरे कक्ष में घटाना आरम्भ कर देती है। इस प्रकार सपरासरणी विभव कम हो जाता है। इस प्रकार कक्ष A से कक्ष B में अर्थात् अधिक परासरणी विभव के क्षेत्र से कम परासरणी विभव वाले क्षेत्र की ओर जल के अणु गमन करते हैं। परासरणी विभव शुद्ध जल का अधिक व अशुद्ध जल (घुलित की सान्द्रता का व्युत्क्रमानुपाती) का कम होता है। अतः कक्ष B में तथा आगे की अवस्था में निरूपित करने पर कक्ष में जल अणुओं का दाब बढ़ता है. जिसमें घुलित भी है। इसके प्रभाव से ऐसा भी सम्भव हो सकता है कि कुछ जल के अणु दाब विभव अन्तर (pressure potential difference) के कारण झिल्ली से होकर वापस लौट आये जो कि परासरण वाव अन्तर ( osmotic potential difference) के प्रभाव से भीतर कक्ष B की ओर आ रहे हैं। इनके परिणामस्वरूप कुछ देर बाद जल के अणुओं का कक्ष B में अर्थात् निरूपित अगली अवस्था कक्ष C में और अधिक प्रवेश करना रूक जायेगा। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि परासरण विभव अन्तर विपरीत किन्तु समान दाब विभव अन्तर द्वारा सन्तुलित कर दिया जाता है। अब जल विभव अन्तर शुन्य हो जाता है।

सजीव प्राणी कोशिकाओं जैसे पैरामीशियम, अमीबा या यूग्लीना में जो कि स्वयं विभेदनकारी पारगम्यकला से आबद्ध होते हैं और बाह्य वातावरण अर्थात् जल में रहते हैं। इसी प्रकार पादपों की कोशिकाओं में जिनमें भीतर अर्थात् कोशिकाद्रव्य में घुलित की सान्द्रता बाह्य वातावरण या माध्यम से अधिक होती है जल भीतर की ओर अर्थात् कम परासरणी विभव वाले क्षेत्र की ओर प्रवेश करता है । इस प्रकार कोशिका झिल्ली पर दाब बढ़ता है जो कोशिका के आमाप में वृद्धि हेतु प्रभाव डालता है क्योंकि यह प्रत्यास्थ प्रकृति की होती है। इसे कोशिका झिल्ली स्वयं की दृढ़ता या कोशिका भित्ति की उपस्थिति द्वारा रोका जाता है। इस प्रकार कोशिका के भीतर उच्च दाब विभव बनाये रखा जाता है ताकि जल के अणुओं का और अधिक प्रवेश न होने पाये। प्राणी कोशिकाओं में कोशिका भित्ि नहीं पायी जाती है अतः परासरणी दाब अन्य विधियों द्वारा संतुलित रखा जाता है जैसे- संकुचनशील रिक्तिकाओं की उपस्थिति । परासरण की क्रिया कोशिकाओं में दो प्रकार की होती है।

A अन्त: परासरण ( Endoosmosis)

जल के अणुओं का बाहरी माध्यम अथवा वातावरण से कोशिका में प्रवेश करना अन्तः परासरण कहलाता है। इस कारण कोशिका के आमाप में वृद्धि होती है अत: कोशिका फूल जाती है। प्लाज्मा कला के प्रत्यास्थ होने के कारण आरम्भ में यह फैलती है किन्तु जल यदि रिन्तर प्रवेश करता रहता है तो कोशिका कला फट जाती है। जैसा कि लाल रक्ताणुओं को जल में रखने पर होता है। यह क्रिया उसी परिस्थिति में होती है जब कोशिकाओं के भीतर लवणों की सान्द्रता बाह्य वातावरणीय जल की अपेक्ष अधिक हो ।

  1. बाह्य परासरण (Exosmosis)

जल के अणुओं का कोशिका में से कोशिका झिल्ली से होकर बाहर निकलने की क्रिया बाह्य परासरण (exosmosis) कहलाती है। इस क्रिया हेतु बाहरी माध्यम या वातावरणीय जल की सान्द्रता कोशिका में उपस्थित कोशिकाद्रव्य से अधिक होनी आवश्यक है। प्रयोगशाला में लाल रक्त कणिकाओं को नमक के सान्द्र विलयन में रखने पर कोशिकाएँ सिकुड़ जाती है अर्थात् इनमें उपस्थित जल बाह्य वातावरण में विसरित हो जाता है।

प्रकृति में कोशिकाएँ सदैव ही एक माध्यम में रहती है। यदि वह माध्यम कोशिकाओं में उपस्थित सान्द्रता के समान सान्द्रता का होता है तो इसे समपरासरी विलयन (isotonic solution) कहते हैं। यदि काशिकाओं के बाहर माध्यम की सान्द्रता कोशिकाद्रव्य की अपेक्षा अधिक होती है तो ऐसा विलयन अतिपरासरी विलयन (hypertonic solution) कहलाता है। यदि कोशिकाद्रव्य की अपेक्षा माध्यम की सान्द्रता अल्प हो तो विलयन को अल्पपरासरी विलयन (hypotonic solution) कहते हैं।

निष्क्रिय अभिगमन ( Passive transport)

प्लाज्मा झिल्ली या कोशिका कला दो भिन्न परिस्थितियों का वातावरणों, को पृथक करने वाली सजीव रचना है। इन दोनों में से एक वातावरण कोशिका से बाहर का तथा दूसरा कोशिका के भीतर अर्थात् कोशिकाद्रव्य का होता है। इन दोनों परिस्थितियों में अन्तर होता है जैसे किसी पदार्थ के अणुओं की सान्द्रता कोशिका झिल्ली के एक ओर अधिक होती है तो इन अणुओं के परिवहन की दिशा व मात्रा इस पदार्थ के अणुओं की सान्द्रता प्रवणता (concentration gradient) पर निर्भर करती है। इसी प्रकार अनेक आयन्स कोशिका कला के एक ओर अधिक हो सकते हैं तो इनका परिवहन एवं मात्रा वैद्युत प्रवणता (electrical gradient ) पर निर्भर करेगी। दोनों प्रवणताएँ मिलकर संयुक्त रूप से विद्युत रसायनिक प्रवणता (electro chemical gradient) बनाती है जो यह तय करता है कि किस पदार्थ के अणु या आयन कितनी मात्रा में झिल्ली के पार किस दिशा में प्रवेश करेंगे। इस प्रकार अनेक पदार्थ इस विधि से कोशिका कला के आर-पार अभिगमन करते हैं। इस प्रकार यह विधि पदार्थों के भौतिक कारकों पर निर्भर करती है। यह क्रिया पदार्थों के उच्च सान्द्रता से निम्न शर्करा, अमीनों अम्ल आदि धीमी गति से गमन करते हैं। इस विधि से पदार्थों के परिवहन में ऊर्जा व्यय नहीं होती अतः इसे निष्क्रिय अभिगमन ( passive transport) कहते हैं ।

वैज्ञानिकों की मान्यता है कि प्लाज्मा कला पर 7-50 A आमाप के असंख्य छिद्र पाये जाते हैं। इन छिद्रों में से कुछ पर धन व कुछ पर ऋण आवेश उपस्थित होता है। ये छिद्र कपाट (valve) की भाँति कार्य करते हैं। ये छिद्र यद्यपि इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा परोक्षत: देखें नहीं जा सकते हैं।

ये छिद्र इन स्थानों पर स्थायी रूप से नहीं पाये जाते बल्कि प्रोटीन, लिपिड अणुओं द्वारा अपनी स्थिति में परिवर्तन करने के कारण परिवर्तित होते रहते हैं। पदार्थों के अणु, आयन या कण स्वयं गतिज ऊर्जा (kinetic energy) के साथ प्रवेश करते हैं ये कोशिका के बाहर या भीतर उच्छलन (bounce) करते रहते हैं किसी सतह से टकराने पर पुन: लौट जाते हैं व छिद्रों से टकराने पर इनमें से होकर दूसरी ओर चले जाते हैं। इस प्रकार उच्च सान्द्रता वाली दिशा से निम्न सान्द्रता वाली दिशा की ओर पदार्थों वे अणुओं का परिवहन विसरण (diffusion) कहलाता है।

प्लाज्मा झिल्ली से होकर जल CO2 O2 शर्करा, अमीनों अम्ल आदि उच्च सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर विसरण या निष्क्रिय अभिगमन की इस विधि द्वारा अभिगमन करते हैं। यह पाया गया है कि अणु जितना छोटा होता है. या लिपिड में जितना घुलनशीलता होता है, अधिक सरलता के साथ कोशिका में प्रवेश करता है। विसरण की इस क्रिया में कोशिका कला अवरोध स्तर (barrier layer) के रूप में कार्य करती है।