अयस्कों का सांद्रण , अयस्क का सान्द्रण (concentration of ore in hindi) आधात्री या गेंग या मेट्रिक्स

(concentration of ore in hindi) अयस्कों का सांद्रण , अयस्क का सान्द्रण : अयस्क एक ठोस पदार्थ होता है जिससे शुद्ध धातु प्राप्त की जाती है , किसी अयस्क से अवांछित पदार्थों अर्थात अशुद्धियों को दूर करने की प्रक्रिया को अयस्को का सांद्रण कहते है। अयस्कों के सांद्रण के कई तरीके होते है और यह अशुद्धि (अवांछित पदार्थ) या शुद्ध धातु के गुणों पर निर्भर करता है कि कौनसे अयस्क के लिए कौनसी विधि या प्रक्रिया काम में ली जाए।
जब किसी अयस्क को खनिज से प्राप्त किया जाता है तो इसमें कई प्रकार की अशुद्धियाँ मिली हुई रहती है जैसे रेत , मिट्टी , कंकड , क्रिस्टल आदि , अयस्क में उपस्थित इन अशुद्धियो को आधात्री या गेंग या मेट्रिक्स कहा जाता है।
किसी अयस्क से शुद्ध धातु प्राप्त करने की विधि को या किसी अयस्क से अशुद्धियो को पृथक करने की विधि या प्रक्रिया को अयस्कों का सांद्रण कहते है।
अयस्कों के सांद्रण के लिए विभिन्न प्रकार की विधियाँ निम्न है –
4. निक्षालन या रासायनिक विधि

1. गुरुत्व पृथक्करण या द्रवीय धावन विधि

यह विधि शुद्ध धातु और आधात्री के कणों के विशिष्ट गुरुत्व के अंतर पर निर्भर करता है , इसलिए इसे गुरुत्वीय पृथक्करण विधि कहते है।

 

इस विधि में एक झुके हुए प्लेटफार्म पर अयस्क के चूर्ण पर पानी की प्रबल धारा को प्रवाहित किया जाता है जिससे आधात्री के कण हल्के होने के कारण पानी के साथ बह जाते है जबकि अयस्क या शुद्ध धातु के कण भारी होने के कारण गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में नीचे बैठ जाते है जिससे शुद्ध धातु और आधात्री के कण अलग अलग हो जाते है , इसमें जल (द्रव) की प्रबल धारा का उपयोग किया जाता है इसलिए इसे द्रवीय धावन विधि भी कहते है।

2. झाग प्लवन विधि

इस विधि द्वारा मुख्य रूप से सल्फाइड अयस्कों का सांद्रण किया जाता है , यह इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि आधात्री के कण पानी में आसानी में आसानी से भीग जाते है जबकि शुद्ध धातु या अयस्क के कण तेल में भीगते है।
इसमें पानी और तेल के मिश्रण में अयस्क को डाला जाता है , अपने गुण के कारण आधात्री या अशुद्धि के कण पानी में भीगकर भारी हो जाते है जिससे पैंदे में बैठ जाते है जबकि दूसरी तरफ शुद्ध धातु के कण या अयस्क के कण तेल में भीगते है , और जब इस पात्र में कार्बन डाई ऑक्साइड प्रवाहित की जाती है तो इसमें झाग बनते है इस झाग के साथ शुद्ध धातु के कण सतह पर तैरने लगते है जिन्हें पृथक कर लिया जाता है।

3. चुम्बकीय पृथक्करण विधि

यह विधि आधात्री और शुद्ध अयस्क या धातु के चुम्बकीय गुणों पर आधारित होती है , यह विधि इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि आधात्री और शुद्ध धातु में से एक चीज अनुचुम्बकीय होती है और दूसरी प्रति चुम्बकीय होती है।
जैसे लोहे का अयस्क मेग्नेटाइड स्वय चुम्बकीय होते है जबकि इसमें उपस्थित अशुद्धियाँ (आधात्री) अनु चुम्बकीय होती है इसलिए इनका सांद्रण चुम्बकीय पृथक्करण विधि द्वारा किया जाता है।
इस विधि में एक चुम्बकीय पट्टे पर अयस्क को डाला जाता है और यह पट्टा घूमता है , जब यह पट्टा घूमता है तो चुम्बकीय पदार्थ को पट्टा आकर्षित करेगा जिससे यह पास में गिरता है जबकि आधात्री कणों पर चुम्बकीय पट्टे का कोई प्रभाव नही होगा इसलिए यह पदार्थ दूर जाकर गिरता है जिससे दो अलग ढेर लग जाते है एक चुम्बकीय पदार्थ और दूसरा अचुम्बकीय पदार्थ , जो चुम्बकीय पदार्थ का ढेर है वह शुद्ध अयस्क या अयस्क मेग्नेटाइड है और दूसरा ढेर इसमें उपस्थित अशुद्धियों का है।
इस प्रकार चुम्बकीय अयस्क से अनु चुम्बकीय अशुद्धियों को पृथक कर दिया जाता है इस विधि को चुम्बकीय पृथक्करण विधि कहते है।

4. निक्षालन या रासायनिक विधि

इस विधि में किसी अयस्क को शुद्ध धातु और आधात्री के रूप में अलग अलग करने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायनों का उपयोग किया जाता है और विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं के द्वारा शुद्ध अयस्क और अशुद्धियों को अलग अलग कर दिया जाता है इसमें अयस्क किसी उपयुक्त विलायक में विलेय हो तो उन्हें सामान्यतया निक्षालन विधि द्वारा अलग कर दिया जाता है।
जैसे : बोक्साइड से एलुमिना का निक्षालन तथा चांदी व सोने के अयस्क का निक्षालन आदि।