(computer memory in hindi) , कम्प्यूटर मेमोरी , कंप्यूटर मैमोरी के प्रकार , क्या है , परिभाषा किसे कहते है ?
कम्प्यूटर मैमोरी (computer memory) : जैसा की हम सब जानते है कि कंप्यूटर अपने किसी भी कार्य को चार क्रियाओं के तहत संपन्न करता है। सर्वप्रथम कंप्यूटर इनपुट युक्तियो के द्वारा डाटा को स्वीकार करता है उसके बाद वह स्वीकार किये गए डाटा को मेमोरी में स्थायी और अस्थायी रूप से संचित करता है। मैमोरी में संचित डाटा CPU के माध्यम से प्रोसेस किये जाते है और प्रोसेस की गयी सूचना का परिणाम आउटपुट उपकरणों की सहायता से प्रदर्शित किया जाता है। आगे हम मेमोरी युक्तियो का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।
1. कम्प्यूटर मैमोरी की मापन की इकाईयाँ
कंप्यूटर डेसीमल नंबर को नहीं समझता है। कंप्यूटर जिन संख्याओं को समझता है उन्हें बाइनरी संख्या कहा जाता है। बाइनरी नंबर में केवल दो ही संख्याएं होती है। बाइनरी डिजिट को बिट कहते है और कम्प्यूटर मेमोरी इकाई को भी बिट में मापा जाता है , इनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार निम्नलिखित है –
0 , 1 = बिट
8 बिट = 1 बाइट
1024 बाइट = 1 किलो बाईट
1024 किलो बाइट = 1 मेगा बाइट (MB)
1024 मेगाबाइट = 1 गीगाबाइट (GB)
1024 गीगा बाइट = 1 टेरा बाइट (TB)
2. मेमोरी
कंप्यूटर सिस्टम की वह इकाई जो सूचनाओं को स्थायी और अस्थायी रूप से संचित करने का कार्य करे उसे मैमोरी उपकरण कहते है। कम्प्यूटर मेमोरी को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया जा सकता है –
प्राथमिक मेमोरी (primary memory) : CPU की कार्य करने की क्षमता नैनो सेकंड में होती है अर्थात CPU की निर्देशों को प्रोसेस करने की गति काफी अधिक होती है , प्रोसेसिंग के दौरान वह डाटा को अपनी स्वयं की मैमोरी रजिस्टर से प्रयोग में लेता है। हार्डडिस्क अथवा अन्य द्वितीय मेमोरी की गति इतनी नहीं होती है कि वह सीपीयू की प्रोसेसिंग की तेज गति के अनुसार सीपीयू को डाटा प्रदान कर सके।
सीपीयू की प्रोसेसिंग की तेज गति को मिसमैच होने से बचाने के लिए मध्यस्थ स्तर पर एक मैमोरी प्रयोग में ली जाती है , जो प्रोसेस होने वाले डाटा को स्टोर कर सके और सीपीयू की प्रोसेसिंग क्षमता के अनुसार तेज गति से डाटा प्रदान कर सके। इस प्रकार की मैमोरी को मुख्य मेमोरी (मैन मेमोरी) , प्राइमरी मेमोरी (प्राथमिक मैमोरी) , प्राथमिक अथवा आंतरिक मेमोरी कहते है।
यह मैमोरी चिप के रूप में एकीकृत परिपथ (Integrated Circuit) (IC) के द्वारा बनी हुई होती है , और मदरबोर्ड पर स्लॉट में लगाई जाती है। प्राथमिक मेमोरी दो प्रकार की होती है जो निम्नलिखित प्रकार है –
(A) RAM (रैम)
(B) ROM (रोम)
(A) RAM (रैम) (random access memory)
रेंडम एक्सेस मेमोरी (RAM) को प्राथमिक मेमोरी , मुख्य मेमोरी और वोलेटाइल मैमोरी के नाम से जाना जाता है। यह मेमोरी अस्थायी रूप से डाटा को स्टोर करती है , इस कारण से इसे वोलेटाइल मैमोरी कहा जाता है। वोलेटाइल मेमोरी वह होती है जो सिस्टम में पॉवर ऑन रहने तक सुचना को स्टोर कर सके। इस प्रकार की मेमोरी से पॉवर के ऑफ हो जाने पर इस में रखी हुई सुचना गायब हो जाती है।
इस मेमोरी को रेन्डम एक्सेस मेमोरी भी कहते है। रेन्डम एक्सेस मेमोरी वह मैमोरी होती है जिसके किसी भी मेमोरी स्थान पर स्टोर डाटा को एक समान टाइम में स्वतंत्र रूप से एक्सेस किया जा सके। प्राइमेरी मेमोरी RAM के किसी भी मेमोरी लोकेसन को एक समान टाइम में read किया जा सकता है। इसी कारण से इसे रेन्डम एक्सेस मेमोरी के नाम से जाना जाता है।
प्राथमिक मेमोरी RAM को दो प्रकार से डिजाइन किया गया है। फिक्स वर्डलेंथ मेमोरी और वेरीयबल वर्ड लेन्थ मेमोरी।
RAM (रैम) दो प्रकार की होती है –
स्टेटिक रैम
डायनेमिक रैम।
(B) ROM (रोम) (read only memory)
रीड ऑनली मेमोरी वह मैमोरी होती है जिसमे एक बार डाटा स्टोर करने के बाद , उसको बार बार read किया जा सकता है , उसमे डाटा को दोबारा स्टोर नहीं किया जा सकता। रोम भी इसी श्रेणी की मेमोरी में आती है। रोम में डाटा अथवा निर्देश लिखने की क्रिया को बर्निंग कहा जाता है। रोम (ROM) को नॉन वोलेटाइल मेमोरी भी कहते है। क्योंकि इसमें लिखे हुए डाटा स्थाई होते है और पॉवर ऑफ हो जाने पर इसमें लिखे हुए डाटा अथवा निदेशो पर किसी भी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। रोम का प्रयोग माइक्रोप्रोग्राम को स्टोर करने के लिए किया जाता है। माइक्रोप्रोग्राम कंप्यूटर instruction सेट से सम्बन्धित प्रोग्राम होते है जो कंप्यूटर से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के low लेवल कार्य करने के लिए प्रयोग में लिए जाते है। सिस्टम बूट प्रोग्राम और सिस्टम बायोस माइक्रोप्रोग्राम के महत्वपूर्ण उदाहरण है जो रोम के अन्दर संचित होते है। माइक्रो प्रोग्राम संचित करने के आधार पर ROM को कई भागो में विभाजित किया जा सकता है।
रेम और रोम में अंतर
RAM (रेम) | ROM (रोम) |
1. यह रैंडम एक्सेस मेमोरी होती है | | यह रेड ऑनली मेमोरी होती है | |
2. इस मेमोरी को बार बार रीड/write किया जा सकता है | | इसे केवल एक बार write और बार बार read किया जा सकता है | |
3. यह वोलेटाइल मेमोरी होती है | | यह नॉन वोलेटाइल मेमोरी होती है | |
सहायक मैमोरी अथवा द्वितीयक मेमोरी (secondary memory)
कम्प्यूटर सिस्टम में सुचना को स्थाई रूप से स्टोर करने के लिए सेकेंडरी मेमोरी का प्रयोग किया जाता है। यह मेमोरी नॉन वोलेटाइल होती है। अर्थात सिस्टम से पॉवर ऑफ़ हो जाने पर इनमे संचित सुचना पर किसी भी प्रकार का कोई फर्क नहीं पड़ता है और आवश्यकता होने पर उनका प्रयोग कभी भी किया जा सकता है। सहायक मेमोरी की सूचना स्टोर करने की क्षमता मेन मैमोरी से कई गुणा अधिक होती है और यह मैन मैमोरी से काफी सस्ती भी होती है। मैग्नेटिक टेप , हार्ड डिस्क , फ्लॉपी डिस्क , कॉम्पैक्ट डिस्क सेकेंडरी मेमोरी के मुख्य उदाहरण है। सहायक मेमोरी को भी दो भागो में विभाजित किया जा सकता है। जो निम्नलिखित है –
(A) सिक्वेंशीयल एक्सेस डिवाइस
(B) डायरेक्ट एक्सेस डिवाइस
(A) सिक्वेंशीयल एक्सेस डिवाइस (sequential access memory)
सिक्वेंशीयल एक्सेस डिवाइस वह डिवाइस होती है जिनमे से सूचना को उसी आर्डर में प्राप्त किया जाता है। जिस ऑर्डर में उनको लिखा गया है। इस प्रकार के उपकरण में विशेष मेमोरी स्थान पर संचित सुचना को आगे और पीछे करके ही प्राप्त किया जा सकता है। चुम्बकीय टेप सिक्वेंशीयल एक्सेस डिवाइस का मुख्य उदाहरण है।
(i) मैग्नेटिक टेप : मेग्नेटिक टेप एक महत्वपूर्ण सिक्वेंशीयल एक्सेस डिवाइस है जिसका उपयोग अधिक मात्रा में डाटा को ऑफ लाइन स्टोर करने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग बैकअप लेने के लिए भी किया जाता है।
मैग्नेटिक टेप में 1/2 इंच चौड़ा , 100-2400 फिट लम्बा , चुम्बकीय पदार्थ का लेप किया हुआ , प्लास्टिक का रिबन लगा हुआ होता है जो एक रोल पर सिमटा हुआ होता है , और एक ऑडियो कैसेट के समान बने हुए खोल में बंद होता है , देखने में इसकी आकृति ऑडियो कैसेट के समान ही होती है पर टेप की आकृति उससे छोटी होती है।
मैग्नेटिक टेप में एक से अधिक फाइलों को एक साथ रखा जा सकता है। अगर एक साथ एक से अधिक फाइल रखी जाती है तो प्रत्येक फाइल की शुरुआत में फाइल हेडर लेबल जो फाइल की शुरुआत को इंगित करता है और फाइल के अंत में फाइल ट्रेलर लेबल जोड़ा जाता है जो फाइल के अंत को इंगित करता है।
(B) डायरेक्ट एक्सेस डिवाइस (direct access storage device)
डायरेक्ट एक्सेस स्टोरेज डिवाइस अथवा रेंडम एक्सेस डिवाइस वह होती है जिनमे स्टोरेज स्थान को सीधे पढ़ा जा सकता है अर्थात किसी भी मेमोरी स्थान को रीड करने में एक समान समय लगता है। जैसे CD में हमें किसी भी प्रकार की ऑडियो और विडियो क्लिप देखने अथवा सुनने के लिए हमें किसी भी प्रकार का फॉरवर्ड और बैकवर्ड करने की आवश्यकता नहीं होती , उस क्लिप को हम सीधे ही प्ले कर सकते है।
(i) मैग्नेटिक डिस्क : चुम्बकीय डिस्क महत्वपूर्ण डायरेक्ट एक्सेस स्टोरेज युक्ति है। चुम्बकीय डिस्क धातु अथवा प्लास्टिक की बनी एक गोलाकार प्लेट होती है जिसकी दोनों सतहों पर चुम्बकीय पदार्थ का लेप किया हुआ होता है। चुम्बकीय पदार्थ की सतह पर डाटा 0 , 1 के रूप रिकॉर्ड किये जाते है। चुम्बकीय डिस्क में 8 बिट EBCDIC कोड का प्रयोग डाटा रिकॉर्ड record करने के लिए किया जाता है। चुम्बकीय डिस्क में एक से अधिक प्लेट प्रयोग में ली जाती है जो एक धूरी पर लगी होती है। डाटा रिकॉर्ड करने के लिए सबसे ऊपरी सतह और सबसे नीचली सतह का प्रयोग नहीं किया जाता है। ये सभी परत का बॉक्स के अन्दर बंद होती है।
डिस्क की सतह कई गोलाकार चक्रो में विभाजित होती है , जिन्हें ट्रेक्स कहा जाता है। प्रत्येक ट्रेक का अपना नंबर होता है जो बाहरी तरफ से शुरू होता है और अन्दर की तरफ बढ़ते जाते है। प्रत्येक ट्रेक को आगे फिर विभाजित किया जाता है जिसे सेक्टर कहते है।
एक सेक्टर 512 बाइट को स्टोर करता है। चुम्बकीय डिस्क एक साथ एक सेक्टर को रीड/write करती है।
डिस्क से सुचना को read करने के लिए सुचना के डिस्क एड्रेस की आवश्यकता होती है। डिस्क एड्रेस ट्रेक नंबर , सेक्टर नंबर और सतह नंबर से मिलकर बनता है। DOS ऑपरेटिंग सिस्टम एक से अधिक सेक्टर को मिलाकर कलस्टर को रीड/write करता है। एक कलस्टर में 2 से 60 सेक्टर तक हो सकते है। सुचना को तेजी से एक्सेस करने के लिए सिलेंडर संरचना का प्रयोग किया जाता है। एक सतह पर 200 ट्रेक होते है।
एक से अधिक सतह पर लिखे हुए डाटा को write/read करने के लिए प्रत्येक सतह पर रीड/write हैड लगे हुए होते है। हैड write/read क्रिया करने के लिए एक साथ आगे और पीछे मूव होते रहते है।
(ii) फ्लॉपी डिस्क (floppy disk) : फ्लॉपी डिस्क 1972-73 में IBM कंपनी द्वारा बनाई गयी , एक स्टोरेज डिवाइस है। फ्लॉपी डिस्क प्लास्टिक की बनी , एक गोलाकार पतली प्लेट है जिस पर चुम्बकीय पदार्थ का लेप किया हुआ होता है। फ्लॉपी डिस्क की सुरक्षा के लिए इस पर प्लास्टिक का जैकेट लगा हुआ होता है। फ्लॉपी में डाटा को रीड/write करने के लिए फ्लॉपी डिस्क ड्राइव में स्पिंडल लगा हुआ होता है जो डिस्क को तेज गति से घुमाता है और read/write हैड अन्दर अथवा बाहर मूव होकर डिस्क सतह पर विशेष ट्रेक पर अपनी पोजीशन बनाता है। फ्लॉपी डिस्क के परिक्रमण की गति 300 से 400 राउंड प्रति मिनट होती है। और डाटा ट्रान्सफर की गति 15 से 40 KB प्रति सेकंड होती है। फ्लॉपी डिस्क 5.25 इंच और 3.5 इंच व्यास में उपलब्ध है।
आजकल अधिक प्रयोग में ली जाने वाली फ्लॉपी का व्यास 3.5 इंच होता है।
फ्लॉपी डिस्क के लाभ :-
- फ्लॉपी डिस्क डायरेक्ट एक्सेस स्टोरेज डिवाइस है इसमें संचित डाटा को सीधे ही रीड किया जा सकता है।
- फ्लॉपी डिस्क हल्की और छोटी होने के कारण इसे आसानी से एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।
- फ्लॉपी डिस्क को बार बार read/write किया जा सकता है।
हार्ड डिस्क (hard disk)
हार्ड डिस्क IBM कम्पनी द्वारा बनाई गयी एक स्टोरेज डिवाइस है। हार्ड डिस्क को विन्चेस्टर डिस्क भी कहते है। विन्चेस्टर डिस्क में भी प्लेटे लगी हुई होती है जिनको एक केन्द्रीय साफ्ट के द्वारा घुमाया जाता है। हार्ड प्लेट्स और डिस्क ड्राइव एक वायुरोधी डिब्बे में रखी हुई होती है। डिस्क सतह को किसी प्रकार का कोई नुकसान न पहुंचे इस कारण सतह को चिकना रखने के लिए द्रव्य पदार्थ का प्रयोग किया जाता है और रीड/write हैड कुछ दूरी पर रहकर डाटा को रीड/write करता है। हार्ड डिस्क की सभी सतहों का प्रयोग डाटा स्टोर करने के लिए किया जाता है इसकी बनावट और कार्य विधि चुम्बकीय डिस्क के समान ही होती है। हार्ड डिस्क के परिक्रमण की गति 3600 से 7200 आरपीएम (राउंड प्रति मिनट) होती है।
फ्लॉपी डिस्क और हार्ड डिस्क दोनों का ही प्रयोग कंप्यूटर में सहायक मेमोरी के रूप में किया जाता है , दोनों में निम्नलिखित अंतर होता है –
ऑप्टिकल डिस्क (optical disk)
ऑप्टीकल डिस्क में डाटा read/write करने के लिए लेजर बीम तकनीक का प्रयोग किया जाता है। लेजर तकनीक प्रयोग लिए जाने के कारण इसे लेजर डिस्क अथवा ऑप्टिकल लेजर डिस्क के नाम से जाना जाता है। ऑप्टिकल डिस्क में एक लम्बा ट्रेक होता है जो बाह्य किनारे से शुरू होता है और अन्दर की तरफ सिमटता जाता है। ट्रेक आगे सेक्टर में विभाजित होते है और प्रत्येक सेक्टर की लेंथ बराबर होती है। एक 5.25 इंच व्यास के ऑप्टिकल डिस्क में 750 MB डाटा स्टोर किया जा सकता है। ऑप्टिकल डिस्क को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है जो निम्नलिखित है –
- सीडी रोम (CD ROM )
- वोर्म (WORM)
- इरेजेबल ऑप्टिकल डिस्क (Erasable optical disk)
3. फाइल सिस्टम (file system)
फाइल सिस्टम एक विशेष प्रकार की संरचना है जिसके द्वारा फाइल को एक विशेष नाम , विशेष मैमोरी स्थान दिया जाता है और फाइल को पूर्ण रूप से व्यवस्थित किया जाता है। विंडोज तीन प्रकार के फाइल सिस्टम प्रदान करता है।
(i) FAT : फाइल एलोकेशन टेबल : यह फाइल सिस्टम MS DOS और विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा फाइलों को व्यवस्थित और मैनेज करने के लिए प्रयोग में लिया जाता है।
(ii ) FAT32 : यह फाइल सिस्टम FAT का ही विकसित रूप है जो मैमोरी स्पेस को अच्छी तरह से मैनेज करता है और छोटी कलस्टर साइज प्रयोग में लेता है।
(iii) NTFS : यह एडवांस फाइल सिस्टम है जो अच्छी परफोर्मेंस , सुरक्षा और विश्वसनीयता प्रदान करता है जो FAT फाइल सिस्टम प्रदान नहीं करता है। NTFS फाइल सिस्टम , सिस्टम fail हो जाने पर रिकवरी तकनीक प्रदान करता है। सिस्टम के फ़ैल होने पर यह लास्ट चेक पॉइंट और log फाइल सुचना को रिकवर करने में प्रयोग लेता है। यह फाइल सिस्टम WinXP , 2000 NT आदि में उपयोग किया जाता है |