घनीय एकक कोष्ठिका में अवयवी कणों की संख्या ज्ञात करना , अवयवी कणों के मान , निबिड़ संकुलन (close packing)

अवयवी कणों के मान :
1. केन्द्र पर : घनीय एकक कोष्ठिका के केंद्र पर उपस्थित कण किसी अन्य एकक कोष्ठिका द्वारा सहभाजित नहीं होता , अत: एक एकक कोष्ठिका के केन्द्र पर उपस्थित कण का मान एक होगा।
2. फलक पर : घनीय एकक कोष्ठिका के फलक पर उपस्थित कण दो एकक कोष्ठिकाओ द्वारा सहभाजित होता है अत: एक एकक कोष्ठिका के एक फलक पर उपस्थित कण का मान आधा (1/2) होगा।
3. किनारे पर : घनीय एकक कोष्ठिका के किनारें पर उपस्थित कण चार एकक कोष्ठिकाओं द्वारा सहभाजित होता है अत: एकक कोष्ठिका के एक किनारे पर उपस्थित कण का मान एक चौथाई (1/4) होगा।
4. कोने पर : घनीय एकक कोष्ठिका के कोने पर उपस्थित कण आठ एकक कोष्ठिकाओ द्वारा सहभाजीत होता है अत: एकक कोष्ठिका के एक कोने पर उपस्थित कण का मान 1/8 होगा।

घनीय एकक कोष्ठिका में अवयवी कणों की संख्या ज्ञात करना

घनीय एकक कोष्ठिका के तीन प्रकार है –
1. आद्य / सरल घनीय एकक कोष्ठिका (simple cubic unit cell) :
जालक बिंदु = 8
अवयवी कणों (अवयवी गोलों) की संख्या = 1/8 x 8 = 1
2. काय केन्द्रित / अन्त: केन्द्रित घनीय एकक कोष्ठिका (body centred cubic unit cell) (BCC) :
जालक बिंदु 9
अवयवी कणों की संख्या = (1/8 x 8) + (1 x 1)
 अवयवी कणों की संख्या = 1 + 1 = 2
3. फलक केन्द्रित घनीय एकक कोष्ठिका (face centred cubic unit cell) (FCC) :
जालक बिंदु = 14
अवयवी कणों की संख्या = (1/8 x 8) + (1/2 x 6)
अवयवी कणों की संख्या =  1 + 3 = 4
प्रश्न 1 : षट्कोणीय व एकनताक्ष क्रिस्टल तंत्र में अंतर लिखिए।
उत्तर :
 षट्कोणीय क्रिस्टल तंत्र
 एकनताक्ष क्रिस्टल तंत्र
 1. अक्षीय भुजा a = b ≠ c
 अक्षीय भुजा a ≠ b ≠ c
 2. अक्षीय कोण α = β = 90 डिग्री तथा γ = 120 डिग्री
 अक्षीय कोण α = γ = 90 डिग्री  , β ≠ 90 डिग्री
 3. इसमें केवल आद्य एकक कोष्ठिका बनती है।
 इसमें आद्य व अन्त: केन्द्रित एकक कोष्ठिका बनती है।
उदाहरण : ग्रेफाईट , ZnO , CdS
 उदाहरण : Na2SO4.10H2O , गंधक (एकनताक्ष)
प्रश्न 2 : फलक केन्द्रित एकक कोष्ठिका व अन्त्य केन्द्रित एकक कोष्ठिका में अंतर लिखिए।
उत्तर :
 फलक केन्द्रित एकक कोष्ठिका
 अन्त्य केन्द्रित एकक कोष्ठिका
 1. इसमें कोनो पर अवयवी कणों के अतिरिक्त प्रत्येक फलक के केंद्र पर अवयवी कण उपस्थित होते है।
 इसमें कोनों पर अवयवी कणों के अतिरिक्त दो विपरीत फलको के केन्द्र पर अवयवी कण उपस्थित होते है।
2. इसमें जालक बिंदु 8 + 6 = 14 होते है।
इसमें जालक बिन्दु 8 + 2 = 10 होते है।
3.

 

4. इसमें अवयवी कणों की संख्या चार होती है।
इसमें अवयवी कणों की संख्या 2 होती है।
 प्रश्न 1 : जालक बिंदु किसे कहते है ?
उत्तर : जालक बिंदु (lattice point) : क्रिस्टल जालक में या क्रिस्टल जालकारी संरचना में अवयवी कणों को छोटे छोटे बिन्दुओ द्वारा दर्शाया जाता है , इन बिंदुओ को जालक बिंदु कहते है।
प्रश्न 2 : उपसहसंयोजन संख्या (C.N) का ठोस के लिए क्या अर्थ है ?
उत्तर : क्रिस्टलीय ठोस में एक अवयवी गोला अधिकतम जितने गोलों के सम्पर्क में रहता है , वह उसकी उपसहसयोजन संख्या कहलाती है।

निबिड़ संकुलन (close packing)

क्रिस्टलीय ठोसो में कणों की व्यवस्था इस प्रकार से हो कि कणों के मध्य रिक्त स्थान न्यूनतम रहे तथा वे उच्चतम घनत्व एवं अधिकतम स्थायित्व को प्राप्त कर सके तो कणों की यह व्यवस्था निबिड़तम संकुलन कहलाती है।
निबिड़तम संकुलन के प्रकार निम्न है –
1. एक विमीय निबिड़ संकुलन
2. द्विविमीय निबिड़तम संकुलन
3. त्रिविमीय निबिड़तम संकुलन
1. एक विमीय निबिड़ संकुलन : इस संकुलन में अवयवी गोले एक पंक्ति  इस प्रकार से व्यवस्थित होते है कि एक गोला अधिकतम दो गोलों के सम्पर्क में रहे , कणो की यह व्यवस्था एक विमीय निबिड़तम संकुल कहते है।
समन्वय संख्या = 2
 2. द्विविमीय निबिड़तम संकुलन : गोलों की एक विमीय पंक्तियों को एक दुसरे के ऊपर व्यवस्थित करके द्विविमीय निबिड़ संकुलन प्राप्त करते है , यह संकुलन दो प्रकार के होते है –
(i) द्विविमीय वर्ग निबिड़तम संकुलन
(ii) द्विविमिय षट्कोणीय निबिड़तम संकुलन
(i) द्विविमीय वर्ग निबिड़तम संकुलन : इस संकुलन में गोलों की एक विमीय पंक्तियों को एक दुसरे के ऊपर इस प्रकार से व्यवस्थित करते है कि दुसरी पंक्ति के गोले प्रथम पंक्ति के गोलों के ठीक ऊपर हो , इस व्यवस्था में एक गोला अधिकतम चार गोलों के संपर्क में रहता है , इन चारो गोलों के केन्द्रों को मिलाने पर एक वर्ग संरचना बनती है , इसलिए यह द्विविमीय वर्ग निबिड़ संकुलन कहलाता इ , इसमें वर्ग रिक्ति का निर्माण होता है।
समन्वय संख्या = 4
A-A-A व्यवस्था
(ii) द्विविमिय षट्कोणीय निबिड़तम संकुलन :
समन्वय संख्या = 6
ABAB व्यवस्था
इस संकुलन में अवयवी गोलों की एक पंक्ति पर दूसरी पंक्ति को इस प्रकार से व्यवस्थित करते है कि दूसरी पंक्ति के गोले प्रथम पंक्ति के अवनमनो में समा जाए , इस व्यवस्था में एक गोला अधिकतम छ: गोलों के संपर्क में रहता है , इन छ: गोलों के केन्द्रों को मिलाने से एक षट्कोणीय संरचना बनती है इसलिए इसे द्विविमीय षट्कोणीय निबिड़तम संकुलन कहते है।
इस संकुलन में त्रिकोण रिक्ति का निर्माण होता है इसमें गोलों की ऊपरी परत में उधर्व उपरी त्रिकोण रिक्ति एवं निचली परती में अधो मुखी त्रिकोण रिक्ति बनती है।
द्विविमीय षट्कोणीय निबिड़ संकुलन द्विविमीय वर्ग निबिड़तम संकुलन की तुलना में अच्छा निबिड़तम संकुलन है।
3. त्रिविमीय निबिड़तम संकुलन 
यह संकुलन दो प्रकार से प्राप्त होता है –
(i) द्विविमीय वर्ग निबिड़तम संकुलित परतो से त्रिविमीय निबिड़ संकुलन का निर्माण : इस संकुलन में द्विविमीय वर्ग निबिड़तम संकुलित परतों को एक दुसरे के ऊपर इस प्रकार से व्यवस्थित करते है कि दूसरी परत के गोले प्रथम परत के गोलों के ठीक ऊपर हो अर्थात उर्धवाधर या क्षैतिज देखने पर गोले एक दुसरे की सीध दिखाई दे , इस व्यवस्था में आद्य घनीय जालक का निर्माण होता है।
(ii) द्विविमीय षट्कोणीय निबिड़तम संकुलन परतो से त्रिविमीय निबिड़ संकुलन का निर्माण :
  • I परत पर II परत रखना
  • II परत पर III को रखना