स्टारफिश का परिसंचरण तंत्र क्या है , circulatory system of starfish in hindi परिरुधिर तंत्र (Perihaemal system)

इसमें हम स्टारफिश का परिसंचरण तंत्र क्या है , circulatory system of starfish in hindi परिरुधिर तंत्र (Perihaemal system) ?

परिसंचरण तंत्र (Circulatory System)

ऐस्टेरियास में वास्तविक रक्त परिसंचरण तंत्र का अभाव होता है परन्तु वह तंत्र जो पचे हुए भोजन का शरीर के विभिन्न भागों में वितरण करता है उसे ही परिसंचरण तंत्र कहते हैं। ऐस्टेरियास का तथाकथित परिसंचरण तंत्र दो तंत्रों से मिल कर बना होता है

  • परिरुधिर तंत्र (Perihaemal system)

(ii) रुधिर तंत्र (Haemal system)

(i) परिरुधिर तंत्र (Perihaemal system) : परिरुधिर तंत्र, जल परिसंचरण तंत्र (water vascular systems) की तरह सीलोम या प्रगुहा से व्युत्पन्न होता है। यह नलिकाकार कोटरों के एक तंत्र का बना होता है। यह समस्तं रुधिर तंत्र (haemal system) की कोटरों को अपने में बन्द रखता है, केवल जठर रुधिर गुहा को छोड़कर। परिरुधिर कोटरें पक्ष्माभी घनाकार उपकला द्वारा आस्तर रहती है। परिरुधिर तंत्र को बनाने वाली निम्न मुख्य कोटरें हैं

  1. अक्षीय कोटर (Axial sinus) : यह एक पतली भित्ति की उदग्र चौड़ी सीलोमिक नलिका होती है जिसमें अश्म नलिका ( stone canal ) तथा अक्षीय ग्रन्थि (axial gland) पायी जाती हैं। ये तीनों सरंचनाएँ मिल कर अक्षीय कॉम्पलेक्स (axial complex) का निर्माण करती है।
  2. मुख वलय कोटर या अधोतंत्रिकीय कोटर (Oral ring sinus or Hyponeural sinus) : मुख सिरे (oral end) पर अक्षीय कोटर एक वृत्ताकार कोटर में खुलता है जिसे मुखीय या अधोतंत्रिका वलय कोटर कहते हैं। यह एक बड़ा नलिकाकार कोटर होता है। यह मुख को चारों तरफ से घेरे रहता है। यह आन्तरिक रूप से एक तिरछे पट द्वारा दो भागों में विभक्त रहता है इनमें से एक छोटा भाग आन्तरिक नलिका तथा बड़ा भाग बाहरी नलिका कहलाता है। इस तिरछे पट को रुधिर सूत्र (haemal strand) कहते हैं।
  3. अपमुखी वलय कोटर (Aboral ring sinus) : अपमुखी सिरे पर अक्षीय कोटर अश्म नलिका (stone canal) की एम्पुला में खुलता है तथा बाहर की तरफ यह मेड्रिपोराइट द्वारा खुलता है। अपमुखी वलय कोटर एक नलिकाकार पंच भुजीय कोटर होता है जो अश्मनाल के क्षेत्र में अपूर्ण होता है।
  4. जनन कोटर (Genital sinuses ) : ये जननिक ग्रन्थियों को घेरे रहते हैं । अपमुखी वलय कोटर की प्रत्येक भुजा से एक जोड़ी के हिसाब से पाँच जोड़ी जननिक शाखाएँ निकलती है जो जनन ग्रंथियों को घेरे रहती है।
  5. अरीय परिरुधिर कोटर (Radial Perihaemal sinuses ) : मुख वलय कोटर (oral ring sinus) की बाहरी नलिका से पाँच अरीय परिरुधिर कोटर निकलते हैं जो प्रत्येक भुजा में पाये जाने वाले रुधिर सूत्र (haemal strand) के चारों ओर पाये जाते हैं। मुख वलय कोटर की तरह प्रत्येक अरीय कोटर एक खड़ी विभाजन पट द्वारा लम्बाई में विभक्त रहता है। अरीय परिरुधिर कोटरों से नाल पादों को महीन नलिकाएँ जाती हैं।
  6. सीमान्तीय कोटर (Marginal sinuses) : ऐस्टेरिआस में कुल दस सीमान्तीय कोटर पाये जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक भुजा में दो कोटर पाये जाते हैं। प्रत्येक भुजा की कोटरें सीमान्त तंत्रिका रज्जु के नीचे दायें बांये स्थित होते हैं। महीन पार्श्व नलिकाएँ इन सीमान्तीय कोटरों को अरीय परिरुधिर कोटरों से जोड़ती है।
  7. परिक्लोम कोटर (Peribranchial sinuses ) : ये त्वक क्लोमों (dermal branchiae) के आधारी भागों के चारों तरफ वृत्ताकार कोटर के रूप में पाये जाते हैं।

(ii) रुधिर तंत्र (Haemal system) : ऐस्टेरिआस में रुधिर तंत्र अत्यन्त समानीत होता है। यह उसी प्रकार का खुला तंत्र होता है जैसा आर्थोपोडा व मॉलस्का संघ के प्राणियों में पाया जाता है। यह सीलोमिक द्रव से भरी कोटरों या नालों का बना होता है जो परस्पर जुड़ी रहती है। इसके सीलोमिक द्रव में सीलोमिक कणिकाएँ पायी जाती हैं। इन कोटरों में उपकला अस्तर का अभाव होता है। यह तंत्र परिरुधिर तंत्र (perihaemal system) की गुहाओं में बन्द होता है। इस तंत्र की मुख्य रुधिर कोटर निम्न प्रकार है

  1. मुखीय रुधिर वलय (Oral haemal ring) : यह एक वृत्ताकार कोटर होता है जो मुख के चारों तरफ जल संवहनी तंत्र की वलय नाल के ठीक नीचे स्थित होता है।
  2. अरीय रुधिर कोटर या सूत्र (Radial haemal sinuses or strand) : मुखीय रुधिर वलय से प्रत्येक भुजा में एक अरीय रुधिर कोटर निकला रहता है यह कोटर प्रत्येक भुजा के अरीय परिरुधिर कोटर के विभाजक पट में स्थित होता है। यह कोटर प्रत्येक भुजा में जल संवहनी तंत्र की अरीय नाल के ठीक नीचे फैला रहता है। इससे अनेक शाखाएँ निकल कर नाल पादों में जाती है।
  3. अपमुख रुधिर वलय (Aboral haemal ring) : मुखीय रुधिर वलय अक्षीय ग्रंथि द्वारा अपमुखी रुधिर वलय के साथ जुड़ा रहता है अपमुखी रुधिर वलय (aboral haemal ring) अपमुखी वलय मोटर (aboral ring sinus) के भीतर चलता जाता है तथा इससे जनन अंगों को आने वाली न रुधिर सूत्र (genital haemal strands) निकलते हैं। इनके और अपमुखी रुधिर वलय के संधि के समीप अक्षीय ग्रन्थि के रुधिर जालक में से एक जोड़ी रुधिर सूत्र आकर मिलते हैं जिन्हें रुधिर गुच्छे (gastric haemal tufts) कहते हैं। ये गुच्छे जठरागम आमाशय की दीवार के हों में से निकलते हैं तथा सामान्य सीलोम को पार कर अक्षीय ग्रंथि में पहुँच जाते हैं।
  4. अक्षीय कॉम्पलेक्स (Axial Complex) : ऐस्टेरिआस के परिरुधिर तंत्र (perihaemal stem) तथा रुधिर तंत्र (haemal system) एक जटिल संरचना द्वारा परस्पर जुड़े रहते हैं इसे भीय कॉम्पलेक्स (asial complex) कहते हैं। इसका निर्माण तीन संरचनाएँ मिल कर करती हैं (1) अक्षीय कोटर (2) अश्मनलिका, तथा (3) अक्षीय ग्रंथि।

इनमें से अक्षीय ग्रंथि तंत्र का महत्त्वपूर्ण भाग होती है इसे ‘हृदय’ (heart) या भूरी ग्रन्थि broungland) भी कहते हैं। यह ग्रन्थि एक लम्बी तर्कुरूपी भूरी रंग की स्पंजी संरचना होती है। यह परिरुधिर तंत्र की अक्षीय कोटर में बन्द रहती है।

ऊतकीय संरचना की दृष्टि से यह ग्रन्थि बाहर से सीलोमिक उपकला द्वारा ढकी रहती है तथा इसके भीतर संयोजी ऊत्तक पाया जाता है। यह ऊत्तक अनेक गुहाओं की सीमाएँ बनाता है। इस ग्रंथि में कई परस्पर जुड़ी हुई अवकाशिकाएँ पायी जाती हैं। इन गुहाओं में एक तरल पदार्थ भरा रहता है। इस तरल में अमीबाभ सीलोमिक कोशिकाएँ पायी जाती हैं जिनमें भूरे रंग का वर्णक पाया जाता है अत: यह ग्रन्थि भूरे रंग की दिखाई देती है। यह ग्रन्थि अपने मुख एवं अपमुख सिरों द्वारा क्रमश: मुख एवं अपमुख रुधिर कोटरों से जुड़ी रहती है। इसके अपमुखी छोर से एक शीर्ष प्रवर्ध (head process) निकला रहता है जो एक छोटे सीलोमिक प्रकोष्ठ, पृष्ठकोष (dorsal sac) में बन्द रहता है। पृष्ठ कोष संकुचनशील होता है तथा प्ररन्ध्रक (madreporite) के नीचे स्थित होता है। अक्षीय ग्रन्थि के अपमुख सिरे से जनन शाखाएँ निकलती हैं जो जननांगों में चली जाती हैं। इसी तरह जठरागम आमाशय की कोटर से एक जोड़ी जठर गुच्छे (gastric tuns) निकलते हैं जो अक्षीय ग्रन्थि में उसके अपमुख सिरे के निकट खुलते हैं तथा इन गुच्छों से आमाशय से पचा हुआ भोजन रुधिर परिसंचरण तंत्र में पहुँचता है।

रुधिर तंत्र सीलोमिक कोशिकाओं की सहायता से भोजन वितरण का कार्य करता है। पृष्ठ कोष अपने संकुचन द्वारा इसके तरल में प्रवाह को निरन्तर बनाये रखता है। अक्षीय ग्रन्थि अन्तः उपकला की भाति कार्य करती है तथा इससे उत्पन्न जनन कोशिकाएँ अपमुख रुधिर वलय एवं उसकी शाखा द्वारा जनन ग्रन्थियों में पहँचाती है।