digestive system of starfish in hindi तारा मछली का पाचन तंत्र समझाइये , स्टार फिश की पाचक ग्रन्थियाँ क्या है

यहाँ हम digestive system of starfish in hindi तारा मछली का पाचन तंत्र समझाइये , स्टार फिश की पाचक ग्रन्थियाँ क्या है ?

पाचन तंत्र (Digestive System)

नेरीज तथा प्रॉन की तरह ऐस्टीरिआस या सागर तारा भी एक परभक्षी प्राणी होता है। ऐस्टेरिआस या सागर तारे के शरीर के मध्य में एक केन्द्रीय बिम्ब (central disc) पाई जाती है। इसी केन्द्रीय बिम्ब में शरीर के समस्त आन्तरांग स्थित होते हैं। इसी केन्द्रीय बिम्ब में सम्पूर्ण पाचन तंत्र भी स्थित होता है। पाचन तंत्र, आहार नाल एवं पाचक ग्रन्थियों से मिलकर बना होता है।

आहार नाल (Alimentary canal)

ऐस्टीरिआस की आहार नाल एक छोटी सीधी खड़ी नलिकाकार संरचना होती है जो मुख से गुदा द्वार तक फैली रहती है। ऐस्टेरिआस में मुख, मुख सतह पर तथा गुदा अपमुख सतह पर स्थित होता है। दोनों छिद्रों के बीच आहार नाल पायी जाती है। आहारनाल निम्नलिखित भागों से मिल कर बनी होती है-(i) मुख (ii) ग्रसिका (iii) आमाशय (iv) आंत्र (v) गुदा .

(i) मुख (Mouth):- मुख एक पंचकोणीय छिद्र होता है मुख सतह पर परिमुख झिल्ली के बीचों-बीच होता है। मुख की सुरक्षा के लिए पाँच समूहों में मुख अंकुरक (mouth papillae) पाए जाते हैं। मुख छिद्र बहुत अधिक फैल सकता है तथा सिकुड़ कर बन्द हो सकता है। इसके लिए इसमें अवरोधनी पेशियाँ (sphinctor muscles) पायी जाती है। मुख, ग्रसिका में खुलता है।

(ii) ग्रसिका (Oesophagus):- यह एक छोटी चौड़ी नलिका होती है जो आमाशय में खुलती है।

(ii) आमाशय (Stomach):- यह एक थैलेनुमा संरचना होती है जो केन्द्रीय बिम्ब के अधिकांश भाग में समायी रहती है। यह दो भागों में विभेदित किया जा सकता है। एक बड़ा मुखीय भाग जठरागम आमाशय (cardiac stomach) तथा दूसरा छोटा, अपमुख भाग जठर निर्गम आमाशय (pyloric stomach) कहलाता है।

  • जठरागम आमाशय (Cardiac stomach):- जठरागम आमाशय पाँच पालियुक्त होता है। प्रत्येक भुजा के सम्मुख एक-एक पालि स्थित होती है। जठरागम आमाशय की भित्ति पतली, पेशीय तथा अत्यन्त वलित होती है। जठरागम आमाशय प्रत्येक भुजा के वीथि कटक (ambulacral ridge) के साथ पेशियों व संयोजी ऊतक के बने स्नायुओं (ligaments) द्वारा जुड़ा रहता है। इन जोड़ने वाले स्नायओं को आंत्र योजनियां (mesenteries) अथवा जठर स्नायु (gastric ligaments) हते हैं। इनके द्वारा आमाशय अपने स्थान पर टिका रहता है। भोजन ग्रहण करते समय सम्पूर्ण . जगम आमाशय उलट कर मुंह से बाहर निकाला जा सकता है। ऐसा शारीरिक पेशियों के संकुचन तथा  मीलोमिक द्रव के दबाव द्वारा होता है। इसे पुनः भीतर यथा स्थान खींचने का कार्य पाँच जोड़ी आकंचक पेशियां (retractor muscles) करती है। ये पेशियां वीथि कटकों के पार्श्व से जडी रहती है।
  • जठर निर्गम आमाशय (Pyloric stomach):-यह एक छोटा, चपटा, पंच भुजाकार होता है, जो अपमुख सिरे पर आंत्र में खुलता है। जठर निर्गम आमाशय के प्रत्येक कोण में पाचक ग्रन्थि से आने वाली एक वाहिनी खुलती है जिसे जठर निर्गमी वाहिनी (pyloric duct) कहते हैं। यह आमाशय आंत्र में खुलता है।

(iv) आंत्र (Intestine):- यह एक छोटी संकीर्ण पांच भुजाओं वाली नली होती है, जो उर्ध्वाधर रूप से पृष्ठ की तरफ अपमुख सतह पर गुदा द्वार द्वारा खुलती है। इससे दो या तीन छोटी-छोटी अन्य नालें निकलती हैं जो अन्तरा अरीय स्थानों पर स्थित होती हैं। इन्हें आंत्र अथवा मलाशयी अन्धनाल (intestinal or rectal caeca) कहते हैं। ये अंधनाले भूरे रंग की होती है क्योंकि इनमें भूरे रंग के तरल का स्रावण होता रहता है। इन अन्धनालों से अनेक अनियमित आकृति की अन्धनलिकाएँ निकलती हैं। आंत्र अन्धनालें (intestinal cacea) संभवतः उत्सर्जन का कार्य करती है।

  • गुदा (Anus):- यह एक छोटा गोल छिद्र होता है जो पृष्ठ सतह या अपमुख सतह पर केन्द्र से थोड़ा हटकर स्थित होता है। आंत्र इसके द्वारा बाहर खुलती है जिससे बिना पचा भोजन शरीर से त्याग दिया जाता है।

पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)

ऐस्टेरियास की प्रत्येक भुजा में एक जोड़ी पाचक गंथियाँ या जठरनिर्गमी अन्धनाल (pvloria caeca) पाए जाते हैं। ये अन्धनालें भुजा के अन्तिम सिरे तक फैली रहती हैं। प्रत्येक सीकम या अभी नाल भुजा की अपमुखी दीवार से दो अनुदैर्घ्य आंत्र योजनियों द्वारा लटकी रहती हैं। इन आंत्र योजनियों के बीच एक सीलोमी गुहा पायी जाती है जो सामान्य सीलोम के साथ जारी रहती है। प्रत्येक जठर निर्गमी सीकम में एक खोखली अनुदैर्घ्य अक्ष होती है जिससे दोनों पावों में छोटी-छोटी पाीय खोखली शाखाओं की दो शृंखलाएं पायी जाती हैं। ये खोखली शाखाएं एक केन्द्रीय नलिका में खुलती है। प्रत्येक भुजा में पायी जाने वाली एक जोड़ी अन्धनालों का निर्माण करने वाली दोनों वाहिनियां परस्पर समेकित होकर एक पाइलोरिक वाहिका (pyloric duct) बनाती हैं, जो पाइलोरिक आमाशय के एक कोण में खुलती है। प्रत्येक जठरनिर्गमी अंधनाल (pyloric caecum) पक्ष्माभी उपकला द्वारा आस्तरित होती है जिसमें निम्न चार प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं

(i) स्रावी या कणिकामय कोशिकाएँ (Secretory or granular cells)-ये कोशिकाएँ पाचक रसों का स्रावण करती है जो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का पाचन करते हैं।

(ii) संचयी कोशिकाएँ (Storage cells):-ये कोशिकाएँ वसा, ग्लाइकोजन तथा पॉलीसेकेराइड-प्रोटीन मिश्रण के रूप में खाद्य पदार्थों को संचित करती है।

(iii) श्लेष्म कोशिकाएँ (Mucous cells):-ये कोशिकाएँ श्लेष्म का प्रावण करती है।

(iv).धारा उत्पादक कोशिकाएँ (Current producing cells):- ये कोशिकाएँ अंधनालों की गुहा में पचे हुए भोजन व अन्य तरलों का सतत् परिसंचरण बनाये रखती है। इसके लिये इनमें लम्बे-लम्बे कशाभ पाये जाते हैं।

भोजन एवं अशन (Food and feeding)

यह एक मांसाहारी (carmivorous) जन्तु होता है। यह कृमियों, क्रस्टेशिया, घोंघों, सीपी. ऑयस्टर, क्लैम, छोटे सी-अर्चिन, मछलियों आदि का भक्षण करता है। कभी-कभी यह मत प्राणियों का भी भोजन के रूप में ग्रहण करता है। यह एक बहुभक्षी प्राणी होता है।

ऐस्टेरिआस में भोजन ग्रहण करने का तरीका अत्यन्त विचित्र प्रकार का होता है। छोटे प्राणियों को तो यह नाल पादों की सहायता से पकड़ कर मुख में निगल लेता है। बड़े प्राणियों को भुजाओं तथा नाल पादों की सहायता से घेर कर पकड़ लेता है फिर जठरागम आमाशय को बाहर की तरफ उलट कर शिकार को चारों तरफ से घेर लेता है। पाइलोरिक अन्धनालों द्वारा स्रावित एन्जाइम शिकार पर छोड़ जाते हैं जिससे उसका पाचन शुरू हो जाता है। भोजन के पच जाने पर भोजन के साथ-साथ जठरागम आमाशय को पुनः भीतर खींच लिया जाता है।

तारा-मछली का बाइवाल्विया वर्ग की द्विकपाटी सीपियों को पकड़ने का तरीका बड़ा ही विचित्र एवं रोचक है। सीपी मिल जाने पर तारामछली रेंग कर उसके ऊपर चढ़ जाती है तथा नाल पादों की सहायता से उसे पकड़ कर इस तरह घुमा लेती है कि कपाट के सीमान्त तारा मछली के मुंह की तरफ हो जायें। सीपी अपने बचाव के लिए अपने कपाट, अभिवर्तनी पेशियों की सहायता से कस कर बन्द कर लेती है। तारा मछली के नाल-पाद कवच के साथ मजबूती से चिपक जाते हैं तथा कपाटों को विपरीत दिशा में खींचते हैं। यही नहीं, तारामछली स्वयं एक गुम्बदाकार या मेहराबदार संरचना बना कर नाल-पादों से कपाट खोलने की क्रिया में सहयोग करती है। भुजाओं रशियां भी संकुचित होकर कपाट पर दबाव डालती है। यह क्रिया तब तक होती रहती है जब की सीपी की अभिवर्तनी पेशियां थक कर ढीली नहीं हो जाती है। अभिवर्तनी पेशियां अधिक क संकचन की स्थिति में नहीं रह सकती है। जिसके कारण सीपी के कवच के कपाट खुल जाते है  अब तारा मछली अपना जठरागम उलट कर बाहर निकाल लेती है तथा सीपी पर पाचक सादम छोडती है। पाचन के पश्चात् तारा-मछली भोजन के साथ-साथ जठरागम आमाशय को पुनः भीतर खींच लेती है।

पाचन अवशोषण एवं बहिनिक्षेपण (Digestion, absorption and egestion)

ऐस्टेरिआस में पाचन बहि:कोशिकीय होता है। बहि:कोशिकीय पाचन के साथ-साथ पाचन किया शरीर से बाहर होती है। जब भोजन पकड़ लिया जाता है तो जठरागम आमाशय को बाहर की राफ उलट दिया जाता है। इसी समय पाइलोरिक अन्धनालों तथा आमाशय द्वारा स्रावित पाचक रस भोजन पर छोड़े जाते हैं। इनमें उपस्थित पाचक एन्जाइम जैसे प्रोटिएज, प्रोटिनों का, एमाइलेज-कार्बोहाइड्रेटों का तथा लाइपेज-वसा का पाचन करते हैं। जठर स्नायुओं की संकुचन क्रिया द्वारा पचा हुआ भोजन आहार नाल में लिया जाता है। इस पचे हुए भोजन के साथ-साथ अर्द्धपाचित भोजन भी ग्रहण कर लिया जाता है। इस अर्द्धपाचित भोजन का शेष पाचन आमाशय में होता है। पचे हुए भोजन का कुछ भाग सीलोमिक द्रव में विसरित हो जाता है। जो उसे शरीर की सभी भागों में वितरित कर देता है। पचे हुए भोजन का शेष भाग निर्गमी अन्धनालों में चला जाता है जहां यह भुजाओं में वितरित कर दिया जाता है। शेष भोजन को अंधनालों की संचयी कोशिकाओं में संचित कर लिया जाता है। भोजन का अधिकांश अवशोषण जठर निगर्मी अन्धनालों में ही पूरा हो जाता है, अतः आँत्र इसमें छोटी ही होती है।

ऐस्टेरिआस अधिकांशतः आशिक रूप से पचा हुआ भोजन ग्रहण करती है। अतः पाचन व अवशोषण के पश्चात् बिना पचा हुआ भोजन बहुत कम मात्रा में रह जाता है। इस बिना पचे भोजन को गुदा द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।