- अनअपचयित धातु ऑक्साइड की अशुद्धि
- धातुमल व गालक
- अनचायी धातुएँ
- अधातुएँ जैसे C , S , P , Si , As आदि।
5. क्षेत्र परिशोधन / मण्डल परिष्करण विधि (zone refining method) : अर्द्धचालकों के लिए अतिशुद्ध Si व Ge की आवश्यकता होती है अत: Si व Ge को अतिशुद्ध रूप में प्राप्त करने के लिए इस विधि को काम में लेते है।
यह विधि इस सिद्धांत पर आधारित है कि अशुद्ध धातु को गलित अवस्था में लाकर ठण्डा करने से केवल शुद्ध धातु का क्रिस्टलीकरण होता है एवं अशुद्धियाँ इससे पृथक हो जाती है।
इस विधि में अशुद्ध धातु की पतली छड को अक्रिय गैस के वातावरण में रखकर इस पर वृत्ताकार गतिशील हीटर जलाते है। हीटर क्षेत्र में यह धातु पिघल जाती है तथा इस हीटर के आगे बढ़ने के साथ साथ अशुद्धियाँ भी आगे बढती है। तथा पीछे की ओर ठण्डी होकर शुद्ध धातु क्रिस्टलीकृत हो जाती है। इस प्रकार अशुद्धियाँ गलित भाग में रहती है।
इस प्रक्रिया को बार बार दोहराने से अशुद्धियाँ धातु छड के सिरे पर एकत्रित हो जाती है। छड के इस सिरे को काटकर अशुद्धियो को पृथक कर देते है , इस प्रकार शुद्ध धातु प्राप्त होती है।
अशुद्धियो को पृथक कर देते है , इस प्रकार शुद्ध धातु प्राप्त होती है।
6. वाष्पन प्रावस्था परिष्करण विधि (vapour phase refining method) : इस विधि द्वारा Ni , Zr व Ti धातुओं का शोधन किया जाता है।
इस विधि में अशुद्ध धातु की क्रिया किसी उपयुक्त अभिकर्मक से करवाकर धातु का वाष्पशील यौगिक बना देते है। अब इस वाष्पशील यौगिक को अलग से एकत्र करके तथा उच्च ताप पर विघटित करके इससे शुद्ध धातु प्राप्त कर लेते है।
इस विधि की दो आवश्यक शर्ते निम्न है –
- उपयुक्त अभिकर्मक ऐसा होना चाहिए जो धातु के साथ मिलकर वाष्पशील यौगिक बना ले।
- वाष्पशील यौगिक ऐसा बनना चाहिए जो आसानी से विघटित हो जाए।
वर्णलेखिकी के प्रकार :
(i) अधिशोषण क्रोमेटोग्राफी :- उदाहरण – स्तंभ क्रोमेटोग्राफी
(ii) वितरण क्रोमेटोग्राफी :- उदाहरण – पेपर क्रोमेटोग्राफी
स्तंभ क्रोमेटोग्राफी : स्तंभ क्रोमेटोग्राफी मे दो प्रावस्थायें होती है –
(a) स्थिर अवस्था
(b) गतिमान प्रावस्था
इस विधि में स्थिर प्रावस्था के रूप में ठोस अधिशोषक पदार्थ एवं गतिमान प्रावस्था के रूप में घटकों का मिश्रण लेते है।
सिद्धांत : यह विधि इस सिद्धान्त पर कार्य करती है कि मिश्रण में उपस्थित घटकों की अधिशोषण क्षमता अलग अलग होने के कारण ये घटक ठोस अधिशोषक पर अलग अलग जगह अधिशोषित हो जाते है।
विधि : इस विधि में ठोस अधिशोषक पदार्थ का किसी द्रव के साथ पेस्ट बनाकर इसे फ्युरेट में भर देते है। अब घटकों के मिश्रण को उपयुक्त विलायक में घोलकर इसे ठोस अधिशोषक पदार्थ पर प्रवाहित किया जाता है। इस मिश्रण मे उपस्थित घटको की अधिशोषण क्षमता अलग अलग होने के कारण यह घटक ठोस अधिशोषक पदार्थ पर अलग अलग जगह अधिशोषित हो जाते है। अधिक अधिशोषण क्षमता वाला घटक पहले व कम अधिशोषण क्षमता वाला घटक बाद में अधिशोषित होता है।
अब फ्युरेट में बने इस ठोस बैंड को बाहर निकाल लेते है , इस बैंड को काटकर घटकों को पृथक कर लेते है। अब इन घटकों को निक्षालक पदार्थ में घोलकर सांद्रण द्वारा शुद्ध घटकों के रूप में पृथक कर लेते है।
प्रश्न : स्तंभ क्रोमेटोग्राफी में स्थिर प्रावस्था के रूप में कौनसे अधिशोषक पदार्थ प्रयुक्त किये जाते है एवं अधिशोषक पदार्थ के चयन हेतु क्या मापदण्ड है ?
उत्तर : अधिशोषक पदार्थ : एलुमिना , सिलिका जैल , CaCO3 , स्टार्च , सेल्युलोज आदि।
चयन हेतु मापदण्ड :-
- अधिशोषक पदार्थ सफ़ेद रंग का होना चाहिए।
- अधिशोषक पदार्थ उत्प्रेरकी सक्रीय नहीं होना चाहिए।
- अधिशोषक पदार्थ विलायक से क्रिया नहीं करना चाहिए।
- अधिशोषक पदार्थ की अधिशोषण क्षमता उच्च होनी चाहिए।