बाल मजदूर किसे कहते हैं भारत में बाल मजदूरी के प्रकार क्या है परिभाषा उपाय child labour in hindi

child labour in hindi बाल मजदूर किसे कहते हैं भारत में बाल मजदूरी के प्रकार क्या है परिभाषा उपाय ?

बाल मजदूर
‘‘बाल मजदूर‘‘ शब्द का प्रयोग अक्सर ‘‘कामकाजी बच्चों‘‘ या ष्नौकरीशुदा बच्चों‘‘ के लिए होता है। ये सभी पारिभाषिक शब्द काम करने वाले व्यक्ति की आयु को ही ध्यान में रखकर बनाए गए हैं परंतु कामकाजी और नौकरीशुदा का अर्थ है कि काम करने वाले बच्चों से मजदूरी लेते हैं। भारत के संविधान के अनुसार वह व्यक्ति जो 14 वर्ष से कम आयु का है और पैसा कमाने के लिए काम कर रहा है, बाल मजदूर कहलाएगा। तथापि, बाल मजदूरी से बच्चों को मानसिक और शारीरिक विकास के अवसर नहीं मिलते और नतीजा यह होता है कि उनके जीवन के विभिन्न अवसर कम हो जाते हैं। घरेलू कामों में लगे बच्चों को और उन बच्चों को जो अपने माता-पिता की खेती-बाड़ी या घर-बाहर के कामों में मदद करते हैं, कोई मजदूरी नहीं मिलती, परंतु उनके काम से उनकी बचपन की गतिविधियों जैसे, शिक्षा और मनोरंजन में बाधा जरूर पड़ती है। अतः बाल मजदूर शब्द की परिभाषा करते समय, वेतन पाने वाले और न पाने वाले दोनों कामों को सम्मिलित किया जाना चाहिए। बड़ौदा के आपरेशन रिसर्च ग्रुप (व्चमतंजपवद त्मेमंतबी ळतवनच) की बाल मजदूर शब्द की परिभाषा के अनुसार वह व्यक्ति जो 5 से 15 वर्ष की आयु वर्ग का है, वेतन या बिना वेतन के काम कर रहा है और घर में या घर के बाहर दिन में कितने भी समय तक व्यस्त रहता है, बाल मजदूर कहलाएगा। बंगलौर के सी.डल्यू.सी. (ब्वदबमतदमक वित ॅवतापदह ब्ीपसकमतद) ने बाल मजदूर की निम्नलिखित परिभाषा दी है कि कोई भी व्यक्ति जो 15 वर्ष से कम आयु का है और मजदूरीध्वेतन सहित या इसके बिना पूर्णकालिक और अंशकालिक किसी भी रूप में काम कर रहा है, बाल मजदूर कहलाता है।

 बाल मजदूरी की किस्में
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन अर्थात् आई.एल.ओ. ने बच्चों के कामों का एक वर्गीकरण किया है, जो अनेक देशों में प्रयुक्त होता है। ये श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं रू

प) घरेलू अवैतनिक काम
ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाके में बच्चे परिवार के अंदर घर की देखभाल के लिए बिना वेतन के काम करते हैं। यह स्व-रोजगार है और सामान्यतया ‘‘समय बोधक‘‘ है। इस श्रेणी के अंतर्गत ये कार्य आते हैं रू छोटे भाई-बहनों की देखभाल, खाना पकाना, सफाई, कपड़े धोना, पानी भरकर लाना आदि। भारत में ऐसे कार्य प्रमुखतः लड़कियाँ ही करती हैं।

पप) गैर-घरेलू अवैतनिक काम
इस तरह का काम प्रायः बच्चे गाँवों में करते हैं। इसके अंतर्गत पशुओं की देखभाल, पशुपक्षियों से फसल की सुरक्षा, शिकार करना, निराई करना (ूममकपदह) आदि कार्य शामिल हैं। यह काम भी ष्समय बोधकष् है और अक्सर घरेलू काम भी इससे जुड़े रहते हैं।

पपप) मजदूरी का काम
ग्रामीण और शहरी इलाकों में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में बच्चे मजदूर के रूप में काम करते हैं। वे शिल्पकारी उत्पादन, लघु उद्योग, उत्पादन, व्यापार में, विनिर्माण और नौकरी-पेशों में काम करते हैं। वे भोजनालयों में, कबाड़ी, फेरी वाले व अखबार बेचने के रूप में काम करते हैं। वयस्कों की तुलना में इन कामों के लिए बच्चों को अधिक रखा जाता है क्योंकि कम मजदूरी देकर भी उनसे एक वयस्क के बराबर काम लिया जा सकता है।

पअ) बंधुआ मजदूर
बच्चे बंधुआ मजदूरों के रूप में काम करते हैं। वे माता-पिता द्वारा किसी ऋण या उधार के बदले तब तक बंधक रख दिए जाते हैं जब तक कि ब्याज सहित ऋण की वसूली न हो जाए। वे भोजन या बहुत मामूली वेतन के बदले में काम करते हैं। कभी-कभी बच्चे के माता-पिता और मालिक के बीच एक निश्चित समय के लिए काम करवाने का अनुबंध भी होता है। बंधुआ मजदूर तथा ग्रामीण और शहरी दोनों असंगठित क्षेत्रों में प्रचलित हैं। कानूनी तौर पर बंधुआ मजदूरी प्रथा को समाप्त किया जा चुका है, फिर भी हमारे देश के कई भागों में यह प्रथा अब भी चल रही है।

भारत में बाल मजदूर
भारत में कामकाजी बच्चे बड़ी संख्या में हैं। गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार बाल मजदूरों की संख्या 4.4 करोड़ से 10 करोड़ के बीच में है। 1981 की जनगणना में काम की यह परिभाषा दी गई है… ‘‘किसी भी आर्थिक रूप से उत्पादक कार्य में भागीदारी‘‘, मुख्य कामगारों और उपान्तिक कामगारों के बीच भी भेद किया गया है। मुख्य कामगार वे कहलाते हैं जिन्होंने परिगणना की तारीख से पहले ही शुरू करके साल के अधिकांश हिस्से में (183 दिन या उससे अधिक) काम किया है। उपान्तिक मजदूर वे हैं जिन्होंने कुछ काम तो किया है, पंरतु जिन्हें मुख्य मजदूरों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

0-14 वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चों में 4.18 प्रतिशत बालक और 8.35 प्रतिशत बालिकाएँ मुख्य कामगार वर्ग में हैं। इसी प्रकार 10.32 प्रतिशत बालक और 9.38 प्रतिशत बालिकाएँ अतिरिक्त मजदूर वर्ग में हैं। लगभग 78.68 प्रतिशत मुख्य बाल मजदूर खेतिहर और कृषक मजदूरों के रूप में काम कर रहे हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में काम करने वाले बच्चों की संख्या 1 करोड़ 12.8 लाख थी जिनमें से 85ः बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, पशुपालन और मछली पालन में काम कर रहे हैं।

हाल ही की रिपोर्ट के अनुसार 2000 में भारत के 10-15 वर्ष की आयु-वर्ग के 14ः बच्चे श्रम बल में हैं।

यूनिसेफ की 1995 की रिपोर्ट को उद्धृत करते हुए दक्षिण अफ्रीका में मानव विकास के अनुमान अनुसार इस क्षेत्र में 1 करोड़ 34 लाख बच्चे बाल मजदूरी में कार्यरत हैं। इस क्षेत्र में लगभग एक करोड़ बच्चे भारत में हैं। दस से चैदह वर्ष की आयु के बच्चों का अत्यधिक उच्च अनुपात जीविका के लिए काम कर रहा है। भूटान में 55ः, नेपाल में 44ः, बंगलादेश में 29ः और पाकिस्तान में 17ः बाल मजदूर हैं।

यद्यपि बाल मजदूरी के मुख्य कारण गरीबी और प्रौढ़ बेरोजगारी हैं परंतु मालिकों का निहित स्वार्थ भी इसको जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता है। मालिक कम मजदूरी देकर बच्चों से वयस्कों के बराबर ही काम करा लेते हैं।