Chemistry of Elements of Second and Third Transition Series in hindi , द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों का रसायन

द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों का रसायन (Chemistry of Elements of Second and Third Transition Series in hindi)

परिचय (Introduction)

पिछले अध्याय में बताया जा चुका है कि जिन तत्वों की परमाण्वीय या ऑक्सीकरण अवस्था में d ■ कक्षक आंशिक रूप से भरे हों वे संक्रमण तत्व कहलाते हैं । इन्हें d-खण्ड तत्व भी कहते हैं तथा ये आवर्त सारणी के मध्य में s तथा p खण्डों के मध्य होता है, तत्व प्रथम बार चतुर्थ आवर्त में प्रकट होते हैं। अतः Sc(21) से Cu (29) तक के तत्व प्रथम संक्रमण श्रृंखला का निर्माण करते हैं । अन्य संक्रमण श्रृंखलाएं भी IIIB वर्ग से आरम्भ होकर IB वर्ग पर समाप्त होती हैं । इट्रियम (39) से रजत ( 47 ) द्वितीय संक्रमण, का तथा लैन्थेनम (57) एवं हैफनियम (72) से स्वर्ण (79) तृतीय श्रृंखला का निर्माण करते हैं। ये दोनों श्रृंखलाएं क्रमशः पांचवें तथा छठे आवर्त में पड़ती है । चतुर्थ श्रृंखला का प्रथम सदस्य, अपेक्षानुसार, ऐक्टीनियम (89) है, लेकिन सातवें आवर्त के सभी d-ब्लॉक तत्व ज्ञात न होने के कारण चतुर्थ श्रृंखला अभी अपूर्ण है। चतुर्थ संक्रमण श्रृंखला के ऐक्टीनियम (89) के अतिरिक्त सभी अन्य ज्ञात सदस्य कृत्रिम रूप से बनाये गये हैं। ये अत्यधिक अस्थाई तथा रेडियोधर्मी हैं । अतः इनका बहुत कम अध्ययन किया गया है। यही कारण है कि संक्रमण तत्वों का सामान्य विवेचन करते समय चतुर्थ श्रृंखला के सदस्यों को शामिल नहीं किया जाता है ।

एक संक्रमण वर्ग के प्रथम दो तत्वों की परमाणु संख्या के मध्य 18 का अन्तर पाया जाता है लेकिन तीसरी श्रृंखला के आरम्भ होते ही बीच में लैन्थेनाइडों के आ जाने के कारण दूसरे तथा तीसरे तत्वों की परमाणु संख्या का अन्तर बढ़ कर 32 हो जाता है। इसके अतिरिक्त, श्रृंखला के मध्य में लैन्थेनाइड तत्वों के आ जाने से आकार में आई सिकुड़न तथा वर्ग में नीचे उतरने पर आकार में अपेक्षित वृद्धि दोनों लगभग समान होती है। इसके परिणामस्परूप, द्वितीय तथा तृतीय श्रृंखला के सदस्यों के परमाणु आकार लगभग समान होते हैं, यद्यपि अन्तिम सदस्यों के आकार में अन्तर लगभग बढ़ जाता है। हम जानते हैं कि तत्वों के गुण उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा आकार पर निर्भर करते हैं । एक वर्ग में सभी तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान पाया जाता है। संक्रमण वर्गों में, दूसरे तथा तीसरे सदस्यों के आकार भी लगभग समान होने के कारण ये तत्व आपस में अत्यधिक समानता तथा प्रथम सदस्य से विचारणीय भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। यही कारण है कि इस अध्याय में द्वितीय तथा तृतीय श्रृंखलाओं के विशिष्ट गुणों का एक साथ अध्ययन करने के पश्चात् हम इनकी तुलना अपने वर्ग के प्रथम सदस्य से करेंगे।

2.2 सामान्य विशिष्टताएँ (General characteristics)

ऊपर बताया जा चुका है कि समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा समान परमाण्वीय आकार होने कारण एक संक्रमण वर्ग के द्वितीय तथा तृतीय सदस्यों के रासायनिक गुणों में काफी समानता पाई है । तथापि, इन तत्वों के परमाणु भार में काफी अन्तर पाया जाता है। परमाणु आयतन समान होने कारण, तृतीय श्रृंखला के सदस्यों के परमाणु घनत्व अत्यधिक पाये जाते हैं। इसका सीधा असर भौतिक गुणों पर पड़ता है जिसके कारण द्वितीय तथा तीसरी संक्रमण श्रृंखलाओं के मध्य भौतिक में भिन्नता पाई जाती है। इन तत्वों के भौतिक गुण सारणी 2.1 तथा 2.2 में दिये गये हैं।

  1. भौतिक गुण- सारणी 2.1 तथा 2.2 के अवलोकन से द्वितीय तथा तृतीय श्रृंखला के संक्रमण तत्वं के गुणों की तुलनात्मक समीक्षा की जा सकती है।

(i) धात्विक त्रिज्या – द्वितीय संक्रमण श्रृंखला की धातुओं की त्रिज्याएं अपेक्षा के अनुरूप हैं। ये प्रथम संक्रमण श्रृंखला के सदस्यों की तुलना में 0.8 से 1.7A बड़े होते हैं। हम जानते हैं कि आवर्त सारणी के आरम्भ में s-खण्ड आता है तथा एक आवर्त क्षार धातु से आरम्भ होता है। एक क्षार धातु अपने आवर्त में सबसे बड़े आकार का तत्व होता है। वैसे तो एक संक्रमण श्रेणी आवर्त में तीसरे तत्व से आरम्भ हो जाती है, लेकिन क्षार धातु से आवर्त में दायीं ओर चलने पर आकार तंजी से कम होती है क्योंकि क्षार धातु से क्षारीय मृदा धातु पर आने से प्रभावी नाभिकीय आवेश में 0.65 की वृद्धि होती है। एक संक्रमण श्रृंखला में इलेक्ट्रॉन (n-1) d स्तर में प्रवेश करते हैं जिससे प्रभावी नाभिकीय आवेश में दायीं ओर चलने पर प्रत्येक बार 0.15 की वृद्धि होती है। अतः संक्रमण श्रृंखला में आकार में कमी अपेक्षाकृत न्यून होती है। एक श्रृंखला में आरम्भ में सिकुड़न अपेक्षानुसार अधिक होती है। सिकुडन से इलेक्ट्रॉन एक दूसरे के अधिक निकट आ जाते हैं अतः आपस में प्रतिकर्षण बढ़ जाता है जो और अधिक सिकुडन का विरोध करता है। अतः मध्य भाग में त्रिज्या लगभग स्थिर रहती हुई श्रृंखला के अन्त एक पहुंचने पर बढ़ने लगती है जो स्थाई al° विन्यास प्राप्त कर लेने के कारण है। तृतीय श्रृंखला में परमाणु त्रिज्या का क्रमण द्वितीय श्रृंखला जैसा पाया जाता है।

पहली संक्रमण श्रृंखला चतुर्थ आवर्त में तीसरे तत्व से आरम्भ होती है। दूसरी संक्रमण श्रृंखला भी अगले आवर्त में तीसरे तत्व से ही आरम्भ होती है। चूंकि दोनों श्रृंखलाओं की अपने-अपने आवर्त में समान स्थिति होती है, एक संक्रमण वर्ग में दूसरे सदस्य का आकार पहले से अपेक्षा के अनुसार बड़ा होता है।

तीसरी संक्रमण श्रृंखला छठे आवर्त में तीसरे स्थान से ही आरम्भ होती है, अतः IIIB वर्ग के सदस्यों के आकार ऊपर से नीचे आने पर लगातार बढ़ते हैं। लेकिन इसके पश्चात् लैन्थेनाइड तत्व बीच में आ जाते हैं। इन लैन्थेनाइडों में इलेक्ट्रॉन 4/ कक्षकों को ग्रहण करते हैं लेकिन आकार में सिकुडन जारी रहता है। 4/कक्षकों के पूर्ण रूप से भर जाने के पश्चात् जब इलेक्ट्रॉन 5d में प्रवेश करते हैं तब तक आकार घटते-घटते वर्ग में ऊपर वाले तत्व का जितना रह जाता है। दूसरे शब्दों में, छठे आवर्त में यदि लैन्थेनाइड बीच में नहीं आते तो तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्व द्वितीय श्रेणी के तत्वों से बड़े होते । अर्थात् लैन्थेनाइड तत्व कोश वृद्धि के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं जिससे संक्रमण वर्गों में द्वितीय तथा तृतीय सदस्य आकार में लगभग समान होते हैं। श्रृंखला के अन्त में ad कक्षकों के पूर्ण रूप से भर जाने के कारण आकार में वृद्धि हो जाती है।

आयनिक त्रिज्या में भी इसी प्रकार का क्रमण पाया जाता है। चूंकि, आकार एक मूलभूत गुण है, दोनों भारी तत्वों के समान आकार के कारण ये समान गुणों का प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार, इनकी रसायन में भी काफी समानता पाई जाती है। आकार तथा उससे जुड़े पहलुओं की विस्तार से आगे तुलनात्मक अध्ययन में विवेचना की गई हैं।

आवर्त सारणी में किसी अन्य तत्वों के समूहों में इस प्रकार की विशिष्टता नहीं पाई जाती है। दोनों श्रृंखलाओं के सदस्यों का त्रिज्या अन्तर मात्र ~ 0 से 0.2Ä होता है।

(ii) परमाणु भार तथा घनत्व – दोनों संक्रमण श्रृंखलाओं के सदस्यों के आकार तो समान रहते हैं लेकिन IVB तथा आगे के वर्गों के तत्वों में यह देखा जा सकता है कि तृतीय संक्रमण श्रृंखला के सदस्यों के परमाणु भार अपने से ऊपर वाले तत्वों के परमाणु भार से लगभग 1.9 गुना अधिक हैं। दूसरे शब्दों में, एक संक्रमण वर्ग में दूसरे तत्व के परमाणु से उसके नीचे वाला परमाणु लगभग 1.9 गुना भारी होता है। यह इनके घनत्व से भी दिखलाई पड़ता है। इन दोनों तत्वों के घनत्व में भी लगभग वही अनुपात होता है जो उनके परमाणु भारों के मध्य पाया जाता है। घनत्व में यह विशेषता आवर्त सारणी में अन्य किसी भी खंड में देखने को नहीं मिलती है। अन्य वर्गों में नीचे उतरने पर परमाणु भार में वृद्धि के साथ-साथ परमाणु आकार में भी वृद्धि हो जाती है जिससे घनत्व में बहुत अधिक वृद्धि नहीं हो पाती है। वास्तव में, तृतीय संक्रमण श्रृंखला के घनत्व का मान आवर्त सारणी में सर्वाधिक होता है।

(iii) गलनांक तथा क्वथनांक- द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रृंखलाओं में भी गलनांक की लगभग वैसी ही क्रमता पाई जाती है जैसी प्रथम संक्रमण श्रृंखला के लिए बताई गई हैं। लैन्थेनम व चांदी के अतिरिक्त संक्रमण वर्गों में गलनांक ऊपर से नीचे आने पर बढ़ते हैं। इस प्रकार वर्ग में दूसरे तत्त्व के क्वथनांक व गलनांक पहले से तथा तीसरे के दूसरे तत्व से अधिक पाये जाते हैं। चांदी का गलनांक कॉपर तथा स्वर्ण के गलनांकों से कम है। अपने यौगिकों में चांदी का + 1 ऑक्सीकरण अवस्था में बाद की दोनों धातुओं का उच्चतर अवस्था (+2 या + 3) में पाया जाना यह संकेत करता है कि कॉफर तथा स्वर्ण के d कक्षक, चांदी के d कक्षकों की अपेक्षा, बंधन में अधिक हद तक भाग लेते हैं। अतः माना जा सकता है कि धात्विक अवस्था में चांदी के परमाणुओं के मध्य बने बंध, दोनों धातुओं की अपेक्षा, दुर्बल होंगे जो इसके कम गलनांक का कारण है ।

(iv) आयनन ऊर्जा- आयनन ऊर्जा s-खण्ड धातुओं की तरह बहुत कम न होकर मध्यवर्ती होती है जिससे स्पष्ट है कि इन तत्वों में धनायन बनाने की प्रवृत्ति तो पाई जायेगी लेकिन s-खण्ड तत्वों की जितनी तीव्र नहीं होगी। III B वर्ग के तत्वो की आयनन ऊर्जाएं अपेक्षाकृत कम होती हैं अतः इनमें धनायन बनाने की अधिक प्रवृत्ति होती है। प्रथम संक्रमण श्रृंखला की भांति इन तत्वों के यौगिकों में भी काफी सहसंयोजक गुण पाये जाते हैं।

एक वर्ग में सामान्यतः आयनन ऊर्जा के मान परमाणु संख्या बढ़ने पर कम होते हैं। लेकिन प्रथम श्रृंखला तथा द्वितीय श्रृंखला के मान लगभग समान है । अन्तिम सदस्यों की आयनन ऊर्जाएं तो उनके ऊपर वाले तत्वों की आयनन ऊर्जाओं से अधिक होती हैं जो लैन्थेनाइड संकुचन के कारण है। यह भी देखा जा सकता है कि श्रृंखलाओं के अन्त में आयनन ऊर्जाओं में तेजी से वृद्धि होती है जो d कक्षकों के पूर्ण रूप से भर जाने के कारण है ।

(v) कठोरता तथा यान्त्रिक सामर्थ्य हलके संक्रमण तत्वों की भांति ये धातुएं भी कठोर, आघातवर्धनीय (malleable), तन्य (ductile) तथा उत्तम यान्त्रिक सामर्थ्य के तत्व हैं।

  1. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास- द्वितीय संक्रमण श्रृंखला स्ट्रॉन्शियम (परमाणु संख्या 38 ) के बाद आरम्भ होती है। पांचवें आवर्त के आरम्भ में 4d तथा 5s कक्षक रिक्त होते हैं। लेकिन 4d कक्षक उच्च ऊर्जा के होने के कारण रूबिडियम (37) में इलेक्ट्रॉन 5s कक्षक में प्रवेश करता है। यह कक्षक स्ट्रॉन्शियम (38) में पूर्णतः भर जाता है। परमाणु संख्या बढ़ने पर 4d की ऊर्जा तेजी से कम होने लगती है जिससे इलेक्ट्रॉन इसमें प्रवेश करने लगते हैं। परमाणु संख्या में साथ कक्षकों की ऊर्जा का परिवर्तन चित्र 2.1 में दिखाया गया है तथा तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सारणी 2.3 में दिये गये हैं। 4d तथा 5s स्तरों के मध्य ऊर्जा अन्तर बहुत ही कम हो जाने के कारण द्वितीय संक्रमण श्रृंखला के अधिकांश तत्वों का जर्कोनियम (40) में ही दो 5s इलेक्ट्रॉन होते हैं; शेष सभी तत्वो में एक 5s इलेक्ट्रॉन 4d में आ जाता है। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 4d n+ 1.5sl की तरह का पाया जाता है। प्रथम दो तत्व, इट्रियम ( 39 ) तथा पैलेडियम (परमाणु संख्या 46 ) में तो दोनों 5s इलेक्ट्रॉन 4d कक्षक में चले आते हैं जिससे इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 4d10550 हो जाता है।

तृतीय संक्रमण श्रृंखला बेरियम ( Z = 56 ) के पश्चात् आरम्भ होती है। यह श्रृंखला पूर्ववर्ती दोनों श्रृंखलाओं से इस दृष्टि से भिन्न है कि छठे आवर्त के आरम्भ में आन्तरिक 5d कक्षकों के अतिरिक्त 4f कक्षक भी रिक्त होते हैं। इन तीनों ऊर्जा स्तरों में आवर्त के आरम्भ में 6s कक्षक सर्वाधिक स्थाई होते हैं जिसके कारण सर्वप्रथम इसी में इलेक्ट्रॉन प्रवेश करते हैं। यह कक्षक बेरियम (56) में पूर्णतः भर जाता है। श्रृंखला के प्रथम तत्व लैन्थेनम (La, Z = 57) में 5d स्तर की ऊर्जा 6s स्तर की ऊर्जा से कम होती है (चित्र 2.1)। अतः 57 वां इलेक्ट्रॉन 5d कक्षक में स्थान ग्रहण करता है। अगले तत्व Ce (Z= 58) में 4/स्तर की ऊर्जा तेजी से कम होने लगती है तथा 5d स्तर से कम हो जाती है। यहां से प्रथम “अन्तर्भूत संक्रमण श्रृंखला” (Inner transition series) (लैन्थेनाइड श्रृंखला) आरम्भ होती है। इस संक्रमण श्रृंखला का दूसरा सदस्य हैफनियम (Hf, Z = 72 ) 14 लैन्थेनाइड तत्वों में 4/ कक्षकों के पूर्ण रूप से भर जाने के पश्चात् आता है। Hf तथा इससे आगे के तत्वों में इलेक्ट्रॉन एक एक करके 5d कक्षकों में भरते जाते प्लेटिनम में एक 6s इलेक्ट्रॉन 5d कक्षकों में स्थानान्तरित हो जाता है जिससे इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 5d96s’ हो जाता है और स्वर्ण (Z = 79) में ये 5d कक्षक पूर्णरूप से भर जाते हैं । तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सारणी 2.4 में दिये गये हैं।

चतुर्थ संक्रमण श्रृंखला, जो अभी अपूर्ण हैं, में भी कक्षकों के भरने का क्रम तृतीय संक्रमण श्रृंखल के जैसा ही है। ऐक्टीनियम (Ac, Z = 89) में नया इलेक्ट्रॉन 6d कक्षक में जाता है। अगले तत्व (Th Z = 90) में 5f स्तर की ऊर्जा 6d स्तर की ऊर्जा से कम हो जाती है। इससे द्वितीय अन्तर्भूत संक्रमण श्रृंखला (एक्टीनाइड श्रृंखला) बनती है जिसके बाद का तत्व (104) का स्थान IVB वर्ग में हैफनियम (72) के नीचे दिया जाता है। लेकिन यह तत्व तथा इसके पश्चात् आने वाले तत्व कृत्रिम रूप से बनाये जाते हैं तथा अत्यधिक अस्थायी है ।