चारुमती कौन थी | चारुमती किसकी पुत्री थी के विवाह की समस्या क्या थी charumati krishna daughter in hindi

charumati krishna daughter in hindi चारुमती कौन थी | चारुमती किसकी पुत्री थी के विवाह की समस्या क्या थी ?

प्रश्न : राजकुमारी चारुमती के विवाह की समस्या क्या थी ? इसका क्या समाधान निकला ?

उत्तर : चारूमती किशनगढ़ के राजा मानसिंह की बहन थी जिसका विवाह मानसिंह ने औरंगजेब के साथ करना स्वीकार किया। औरंगजेब ने 1658 ईस्वी में चारुमती से विवाह करने के लिए अपना डोला भिजवाया लेकिन चारुमती ने इसका विरोध किया तथा उसने महाराणा राजसिंह को पत्र लिखकर उससे विवाह करने का अनुरोध किया। राजसिंह सिसोदिया मुग़ल सम्राट औरंगजेब के विरोध की परवाह किये बिना ससैन्य किशनगढ़ पहुँचा तथा चारुमती से विवाह कर उसे अपने साथ ले आया। यह घटना औरंगजेब के लिए अपमानजनक थी। उसने नाराज होकर महाराणा से अनेक परगने छीन लिए।

प्रश्न : संयोगिता की कथा विषयक मिथक की विवेचना कीजिये ?

उत्तर : पृथ्वीराज रासो के अनुसार कन्नौज के शासक जयचन्द की पुत्री संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान के मध्य प्रेम प्रसंग था। जयचंद दिल्ली को लेकर पृथ्वीराज चौहान से वैमनस्य रखता था। जयचंद ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया और संयोगिता का स्वयंवर रचा। जयचन्द ने द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज की लोहे की मूर्ति खड़ी की। जयचन्द ने पृथ्वीराज के अलावा सभी राजा महाराजाओं को आमंत्रित किया। स्वयंवर का समय आया तो संयोगिता ने वरमाला अपने प्रेमी पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में डाल दी। पृथ्वीराज अकस्मात ससैन्य उपस्थित हुआ तथा संयोगिता को उठाकर अजमेर ले आया जहाँ उससे असुर विवाह कर लिया परन्तु इससे द्वेष तथा अधिक बढ़ा और तराइन के मैदान में जयचन्द ने पृथ्वीराज की सहायता नहीं की बल्कि मुहम्मद गौरी की अप्रत्यक्ष सहायता की।

प्रश्न : जयवंता बाई कौन थी ?

उत्तर : यह महाराणा उदयसिंह की पत्नी और पाली के अखैराज सोनगरा चौहान की पुत्री थी। जयवन्ता बाई राणा प्रताप की माता थी। “नैणसी री ख्यात” के अनुसार प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ईस्वी को हुआ था। प्रताप महाराणा उदयसिंह के सबसे बड़े पुत्र थे।

प्रश्न : हाड़ी रानी (सहल कंवर) राजस्थान के इतिहास में किस लिए जानी जाती है ?

उत्तर : हाडावंश की राजकुमारी सरोज कंवर का विवाह मेवाड़ महाराणा राजसिंह के प्रमुख सरदार रतनसिंह चुण्डावत से हुआ था। लेकिन युद्ध भूमि में जाने से पूर्व बार बार रानी का चेहरा उसकी आँखों के सामने मंडरा रहा था तथा रानी की याद विचलित कर रही थी। तथा रानी के लिए व्याकुल हो रहा था। रतनसिंह ने अपने विश्वासपात्र सेवक को रानी से कोई सेनाणी (निशानी) लेने के लिए भेजा ताकि वह युद्ध आसानी से पूरा कर सके। रानी ने तुरंत निर्णय लिया तथा अपनी दासी को चाँदी का थाल लाने को कहाँ। थाल अपने हाथ में लेते ही रानी ने तलवार के वार से अपना शीश काट लिया जो थाली में जा गिरा वहां खड़े सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। सेवक उस सेनाणी को लेकर चुण्डावत के पास गया। चुण्डावत की भुजाएँ फड़क उठी और युद्ध के मैदान में शत्रुओं का संहार कर विजय प्राप्त की तथा अन्तत: शहीद हुआ।

प्रश्न : महारानी महामाया का मुगलों के प्रति क्या दृष्टिकोण था ?

उत्तर : यह जोधपुर नरेश जसवंत सिंह की पत्नी थी। फ्रांस के मशहूर लेखक बर्नियर ने अपनी पुस्तक “भारत यात्रा” में महारानी महामाया का उल्लेख किया है कि एक बार जसवंत सिंह औरंगजेब की सेना से हारकर लौट आये तो उस वीरांगना ने किले के दरवाजे बंद करवा दिए। उन्होंने कहा – यह मेरा पति हो ही नहीं सकता। पत्नी के व्यंग्य करने पर जसवंत सिंह पुनः युद्ध में चला गया जहाँ उन्होंने छत्रपति शिवाजी के साथ मिलकर मुगलों को भारत भूमि से खदेड़ने की योजना बनाई लेकिन इस योजना की भनक औरंगजेब को मिल गयी तथा उसने इसे धूर्ततापूर्वक विफल कर दिया। इधर महारानी भी मुगलों के विरुद्ध संगठन बनाने के प्रयासों में लग गयी।

प्रश्न : कृष्णा कुमारी का विवाद क्या था ?

उत्तर : कृष्णा कुमारी मेवाड़ महाराणा भीमसिंह की 16 वर्षीय कन्या थी जिसका शगुन जोधपुर महाराजा भीमसिंह को भेजा गया। विवाह पूर्व ही जोधपुर महाराजा की मृत्यु हो गयी तो महाराणा ने राजकुमारी का शगुन जयपुर के जगतसिंह को भेज दिया। इसका जोधपुर के नए शासक मानसिंह ने विरोध किया तथा जयपुर , जोधपुर में शगुन को लेकर मिंगोली का युद्ध भी हुआ। जोधपुर शासक मानसिंह ने भाडैत के अमीर खां पिण्डारी को बुलाया जिसने तीनों ही पक्षों को बुरी तरह लूटा। अंततः अमीर खां पिंडारी के दबाव में आकर महाराणा ने इस अल्पवयस्क सुन्दरी को 1810 ईस्वी में जहर देकर इसकी जीवन लीला समाप्त करदी जो मेवाड़ ही नहीं बल्कि राजपुताना के इतिहास का कलंक था।

प्रश्न : रूठी रानी के बारे में बताइए ?

उत्तर : 1536 ईस्वी में राव मालदेव का विवाह जैसलमेर के लूणकरण की कन्या उम्मादे से हुआ। किसी कारणवश लूणकरण ने मालदेव को मारने का इरादा किया तो उम्मादे ने पुरोहित राघवदेव द्वारा यह सूचना मालदेव को भिजवा दी। संभवतः इसी कारण से मालदेव उम्मादे से अप्रसन्न हो गया तथा वह भी मालदेव से रूठ गयी। तभी से वह रुठी रानी कहलाई और उसे अजमेर के तारागढ़ में रखा गया। जब शेरशाह के अजमेर पर आक्रमण की शंका हुई तो ईश्वरदास के माध्यम से उसे जोधपुर आने को राजी किया गया। लेकिन जोधपुर रानियों के रूखे व्यवहार की जानकारी मिलने के कारण वह गूंरोज चली गयी। जब मालदेव का देहान्त हुआ तो वह सती हुई।

प्रश्न : चित्तोड़ का युद्ध ?

उत्तर : चित्तोड़ का युद्ध मेवाड़ के शासक रावल रतनसिंह (1302 – 03 ईस्वी) और दिल्ली के सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ईस्वी) के मध्य 1303 ईस्वी में हुआ था। चित्तोड़दुर्ग का सामरिक , व्यापारिक और भौगोलिक महत्व था। यह एक सुदृढ़ दुर्ग था जो अपनी अभेद्यता के लिए विख्यात था। मालवा , गुजरात और दक्षिण भारत जाने वाले मुख्य मार्ग चित्तोड़ से होकर गुजरते थे , अत: गुजरात और दक्षिण भारत पर प्रभुत्व स्थापित करने और यहाँ के व्यापार पर अधिकार करने के लिए चित्तोड़ विजय जरुरी थी। इसके अतिरिक्त मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत में अलाउद्दीन के चित्तोड़ आक्रमण का कारण रावल रतनसिंह की सुन्दर पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करने की लालसा बताया है। इतिहासकार दशरथ शर्मा ने भी इस कारण को मान्यता दी है।