चालुक्य वंश के संस्थापक कौन थे चालुक्य शैली किसे कहते हैं , Chalukya style temples in hindi परिभाषा क्या है ?
चालुक्य शैली
छठी शताब्दी ईसवी के मध्य से बादामी के चालुक्यों और आठवीं शताब्दी के मध्य में उन्हें प्रभावी रूप से ध्वस्त कर देने वाले राष्ट्रकूटों के साथ ही वेंगी के पूर्वी चालुक्यों ने ताप्ती और उत्तरी पेन्नार नदियों के बीच क्षेत्र में इस छोर से उस छोर तक अनेक गुफा मंदिर छोड़े हैं। वेंगी के चालुक्य एक सहवर्ती शाखा के थे, जिसने सातवीं शताब्दी के आरंभ से पुलकेशिन द्वितीय के साहसी भाई कुब्ज विष्णुवर्धन के अंतग्रत आंध्र तट पर स्वाधीन रूप से शासन करना आरंभ कर दिया था और इस काल में अबाध रूप से शासन करते रहे। गुफा मंदिर बादामी, ऐहोल, एलोरा, भोकरदन, एलिफैंटा, जागेश्वरी, पूना, अर्वालेम (गोवा) माहुर, आद्विसोमनपल्ली, विजयवाड़ा, मोगुलराजापुरम, उंदवल्ली, सीतारामपुरम, पेनमागा और भैरवकोंडा में मिलते हैं। जबकि चालुक्य अधिकांशतया हिंदू मतानुयायी थे, फिर भी उन्होंने जैन मत को प्रोत्साहन दिया।
वेंगी में शासन करने वाली चालुक्यों की पूर्वी शाखा ने, नरम चट्टानों में उत्खनन करने के बावजूद अपने गुफा मंदिरों में एक अलग पद्धति और डिजाइन का अनुसरण किया, जिसमें पल्लव संबद्धताओं सहित पूर्वी आंध्र और उत्तरी तमिलनाडु या तौडेमण्डलम में जो कुछ प्रचलित था,शामिल किया गया, और इस प्रकार बादामी चालुक्यों द्वारा कन्नड़ परंपरा और संस्कृति के लिए जो कुछ किया गया, उसके विपरीत उन्होंने एक स्पष्ट आंध्र परम्परा का प्रारंभ किया।
मंदिर निर्माण की वेसारा शैली को ही चालुक्य शैली कहा जाता है। इसे कर्नाटक शैली भी कहते हैं, क्योंकि इसका विकास इसी क्षेत्र में हुआ था। किंतु इस शैली को मौलिक नहीं कहा जा सकता। यह पूर्ववर्ती द्रविड़ शैली की ही एक शाखा है, जिसमें कुछ परिवर्तन करने से इसे पृथक् शैली का रूप प्राप्त हुआ। इसका आरंभ 7वीं और 8वीं सदी के प्रारंभिक चालुक्य राजाओं के शासन काल में देखा जा सकता है। ऐहोल (प्राचीन आर्यपुर), बादामी और पट्टाडकाल में द्रविड़ और नागर मंदिर भी साथ-साथ बना, जा रहे थे। इस तरह दोनों के सम्मिश्रण से एक नई संकर वास्तुशैली विकसित हुई।
द्रविड़ शैली की तरह चालुक्य मंदिरों में दो प्रमुख भाग होते हैं ‘विमान’ और ‘मंडप’, जिन्हें ‘अंतराल’ के माध्यम से आपस में जोड़ा जाता है। समय के साथ-साथ कई तलों वाले विमान छोटे होते गए। एक दूसरे के ऊपर बनी अलंकृत आकृतियां नागर शिखर की खड़ी पट्टियों की तरह हैं। द्रविड़ शैली के विपरीत चालुक्य मंदिरों में गर्भगृह के चारों ओर आच्छादित परिक्रमा पथ नहीं होता। मंदिर की बाहरी दीवारों पर किए गए अलंकरण में द्रविड़ और नागर वास्तु विचारों का समन्वय दिखाई देता है। विशिष्ट नागर शैली में रथ प्रतिकार, मंदिरों की दीवारों में अंतराल प्रस्तुत करते हैं तो निश्चित अंतरों पर भित्ति स्तंभों की उपस्थिति द्रविड़ अभिकल्पन का प्रभाव दर्शाती है। चालुक्य शैली के मंदिरों की एक विशेषता बाहरी सतहों पर समृद्ध त्रिआयामी अलंकरण है। मंदिर के अंतर्भाग में स्तंभ, दरवाजों की चैखटें और छतों की अंदरूनी सतहों पर बहुत ही बारीक उत्कीर्णन है।
बादामी के निकट पट्टकदल में विरुपाक्ष मंदिर लगभग 70 ई. में बनाया गया था। यह कांची के कैलाशनाथ मंदिर की अनुकृति है और इसमें उच्च स्तरीय वास्तु कौशल दिखाया गया है। एलोरा का रामेश्वर गुफा मंदिर भी चालुक्य काल (7वीं शताब्दी) का है। गुफा के अंदर नृत्यलीन चतुर्भुज शिव उपस्थित हैं। इसी सदी में एलोरा में बने दशावतार गुफा मंदिर में एक अत्यंत सुंदर मूर्ति है, जिसमें हिर.यकश्यप की मृत्यु दर्शाई गई है।