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Cell Organelles and Nuclear Material in hindi कोशिकांग एवं केन्द्रकीय पदार्थ किसे कहते हैं उदाहरण

जाने Cell Organelles and Nuclear Material in hindi कोशिकांग एवं केन्द्रकीय पदार्थ किसे कहते हैं उदाहरण क्या है समझाइये ?

कोशिकांग एवं केन्द्रकीय पदार्थ (Cell Organelles and Nuclear Material)

प्रोकैरिओटिक एवं यूकैरिओटिक कोशिकाओं की अतिसूक्ष्म संरचना एवं विभिन्न कोशिकांगों के कार्य

(Ultra-structure and Functions of Different Cell Organelles of Prokaryotic & Eukaryotic Cells)

विभिन्न प्रोकैरिओटिक कोशिकाओं का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा किये गये अध्ययन से ज्ञात होता है कि सामान्यतः ये कोशिकाएँ संरचना में सरल व आद्य प्रकार की होती हैं । इनमें सुस्पष्ट केन्द्रक अनुपस्थित होता है। कोशिका के केन्द्र में केन्द्रक पदार्थ (Nucleoid) पाया जाता है, जिसके चारों ओर केन्द्रक झिल्ली का पूर्णतया अभाव होता है । केन्द्रक पदार्थ में द्विक कुण्डलित (Double helical) डी.एन.ए. अणु पाया जाता है । इनमें हिस्टोन प्रोटीन, केन्द्रिका व समसूत्री उपकरण अनुपस्थित होता है। यह चारों ओर से कोशिका द्रव्य से घिरा रहता है। कोशिका द्रव्य प्लाज्मा झिल्ली से आबद्ध रहता है, जिसके बाहर कार्बोहाइड्रेट्स तथा अमीनो एसिड से बनी कोशिका भित्ति पायी जाती है। कुछ प्रोकैरिओट्स में कोशिका भित्ति का अभाव होता है ।

कोशिका द्रव्य में झिल्ली आबद्ध कोशिकांगों, जैसे- अन्तःप्रद्रव्यी जालिका, हरितलवक, माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जीकाय, सेन्ट्रिओल आदि अनुपस्थित होते हैं। लेकिन राइबोसोम्स (70S) पाये जाते हैं, जिनकी सतह पर प्रोटीन संश्लेषण होता है। कोशिका के लिए ऊर्जा उत्सर्जित करने वाली अन्य अभिक्रियाओं के लिए एन्जाइम्स (Enzymes ) कोशिकाद्रव्य में ही पाये जाते हैं, परन्तु ऑक्सी- श्वसन के लिए एन्जाइम प्लाज्मा झिल्ली पर ही होते हैं । विभिन्न प्रकार के आर. एन. ए. भी कोशिका द्रव्य में पाये जाते हैं, जो कि प्रोटीन संश्लेषण में हिस्सा लेते हैं । कुछ प्रोकैरिओटिक कोशिकाओं की संरचना की विस्तृत जानकारी यहाँ दी जा रही है।

(1) जीवाणु कोशिका (Bacterial cell) :

जीवाणु सूक्ष्म एककोशिकीय जीव हैं। इनकी कोशिका में डी.एन.ए., आर.एन.ए., प्रोटीन्स, लिपिड्स पोलिसेकेराइड्स आदि पदार्थ पाये जाते हैं। कोशिका में इन पदार्थों को संश्लेषित करने की क्षमता भी होती है। इनकी कोशिका में हरितलवक अनुपस्थित होता है, अतः ये परजीवी या मृतजीवी होते हैं । अधिकतर मृतजीवी जीवाणु मनुष्यों के लिए लाभदायक होते हैं, लेकिन परजीवी जीवाणु जन्तुओं तथा पौधों में विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं । कुछ जीवाणु अलवणीय तथा लवणीय जल व मृदा में पाये जाते हैं ।

(1) आकार ( Size) : जीवाणु कोशिकाओं का आकार अलग-अलग होता है। औसतन जीवाणु कोशिका का व्यास 1.25 ́ होता है। सबसे छोटी जीवाणु कोशिका डायलिस्टर न्यूमोसिनट्स (Dialister pneumosintes) की होती है जिसकी लम्बाई 0.15 से 0.3u होती है। सबसे बड़ा जीवाणु कोशिका स्पाइरीलम वोल्यूटेन्स (Spirillum volutans) की होती है। इसकी लम्बाई 13-15u होती है।

(2) आकृति (Shape ) : अधिकतर जीवाणु कोशिकाएँ तीन प्रकार की आकृतियों में पायी जाती हैं – (a) गोलाकार (coccus), (b) छड़नुमा (Bacillus ) तथा (c) सर्पिल (spirillum ) । इनमें से अधिकतर जीवाणु संघीय होते हैं

(a) गोलाकार (Coccus) :

इन जीवाणु कोशिकाओं की आकृति गोलाकार होती है। ये निम्न रूपों में पाये जाते हैं- माइक्रोकोकस- इनकी कोशिका गोल, एकल होती है ।

डिपलोकोकस—इनमें दो कोशिकाएँ समूह में रहती हैं, जैसे डिपलोकोकस न्यूमोनि (Diplococcus pneumoniae) जो कि न्यूमोनिया रोग उत्पन्न करता है।

स्ट्रेप्टोकोकस— इस रूप में बहुत-सी कोशिकाएँ जुड़कर एक लम्बी श्रृंखला बनाती है, उदाहरण- स्ट्रेप्टोकोकस फीयसेन्स (Streptococcus phyesens)। यह जन्तुओं को संक्रमित करता है।

स्टेफाइलोकोकाई– इन रूपों में कोशिकाएँ अनियमित रूप से जुड़कर अंगूर के गुच्छे के समान दिखाई देती हैं, जैसे-स्टेफाइलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus aureus ): इस जीवाणु के संक्रमण से छाले हो जाते हैं ।

(b) छड़नुमा (Bacillus ) या दण्डाणु :

इन जीवाणुओं की आकृति श्लाका की तरह होती हैं। कोशिकाएँ एकल होती हैं या कई कोशिकाएँ जुड़कर लम्बी श्रृंखला बनाती हैं। ये जीवाणु मनुष्यों में गम्भीर रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे- माइकोबेक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycrobacterium tuberculosis), क्षय रोग, कोरनीबेक्टीरियम डिफ्थेरी (Corynebacterium diphtheriae ), डिफ्थीरिया तथा सालमोनेला टायफोसा (Salmonella typhosa) आन्त्र ज्वर के कारक हैं ।

(c) सर्पिल जीवाणु (Spirillus ) :

इनकी कोशिका सर्पिल होती हैं। ये दो रूपों में पाये जाते हैं – (i) स्पाइरिला (Spirilla) : ये कम कुण्डलित कोमा (,) की आकृति के जीवाणु होते हैं, जैसे वीब्रियो कोमा (Vibrio comma) हैजा रोग उत्पन्न करता है। (ii) स्पाइरोकीट्स (Spirochaetes ) — इन जीवाणुओं की कोशिका अधिक कुण्डलित होती है। ये सीफीलिस (Syphilis) रोग उत्पन्न करते हैं ।

संरचना (Structure) :

एक प्रारूपिक जीवाणु कोशिका निम्न भागों की बनी होती है (चित्र 2.2)-

(A) बाह्य आवरण (Outer coverings) :

जीवाणु कोशिका चारों ओर से तीन परतीय आवरण से घिरी रहती है।

(1) केप्स्यूल ( Capsule) : अधिकतर प्रोकैरिओट्स, कोशिका भित्ति के बाहर म्यूसीलेज (mucilage) स्रावित करते हैं, जिसे स्लाइम (Slime) कहते हैं। कुछ जीवों में म्यूसीलेज सरल, अनिश्चित मोटाई की परत के रूप में पाया जाता है, जिसे स्लाइम परत ( Slime layer) कहते हैं । लेकिन कुछ प्रोकैरिओट्स में स्लाइम कोशिका भित्ति के बाहर एक निश्चित मोटाई की परत के रूप में पाया जाता है, जिसे जीवाणु कोशिका में केप्स्यूल तथा नीले-हरे शैवालों में शीथ (Sheath) कहते हैं । केप्स्यूल या शीथ का कोई भी उपापचयी कार्य नहीं होता है। इनकी रासायनिक संरचना में मुख्यत: पॉलीसेकेराइड्स, पॉलीपेप्टाइड तथा लाइपोप्रोटीन पाये जाते हैं ।

( 2 ) कोशिका भित्ति (Cell wall) : केवल माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) जीवाणुओं को छोड़कर सभी जीवाणु कोशिकाओं में केप्स्यूल अन्दर कठोर, मजबूत कोशिका भित्ति पायी जाती है, जिसकी मोटाई 10pm या अधिक होती है। इसकी रासायनिक संरचना लिपिड्स, प्रोटीन्स, कुछ अकार्बनिक पदार्थ तथा विशिष्ट अमीनो अम्ल – डाइअमीनोपाइमेलिक अम्ल ( diaminopimelic acid) तथा म्यूरेमिक अम्ल द्वारा होती है। कोशिका भित्ति में प्लाज्मा झिल्ली के समान अर्धपारगम्यता का लक्षण नहीं पाया जाता, इसमें से अधिक बड़े अणु आ-जा सकते हैं। कुछ संघीय नीले-हरे शैवालों में कोशिकाएँ आपस में कोशिकाद्रव्यी सम्पर्क सूत्रों द्वारा जुड़ी रहती हैं, जिन्हें प्लाज्मोडेस्मेटा (Plasmodesmata) कहते हैं । ये कोशिका भित्ति से गुजर कर दो कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली को जोड़ते हैं जिससे एक कोशिका से दूसरी कोशिका में कोशिका द्रव्य का आदान-प्रदान होता है ।

जीवाणुओं की अभिरंजन तकनीक (Staining technique) :

सन् 1884 में सी. ग्राम (C. Gram) ने जीवाणुओं को अभिरंजित करने की तकनीक बतायी। इस तकनीक का प्रयोग करके यह ज्ञात हुआ कि कुछ जीवाणु ग्राम स्टेन [क्रिस्टल वॉयलेट तथा आयोडीन का मिश्रण (Crystal Violet + Iodine) ] द्वारा अभिरंजित हो जाते हैं तथा कुछ नहीं होते। जो इस अभिरंजक द्वारा अभिरंजित हो जाते हैं उन्हें ग्राम – धनात्मक (+) तथा जो अभिरंजित नहीं होते. उन्हें ग्राम ऋणात्मक (-) जीवाणु कहा जाता है। ग्राम ऋणात्मक (-) जीवाणुओं की कोशिका भित्ति में लगभग 20% लिपिड्स (lipids) परत के रूप में पाये जाते हैं, अतः जीवाणु कोशिकाओं को क्रिस्टल वॉयलेट द्वारा अभिरंजित करने के बाद जब एल्कोहल (Alcohol) डाला जाता है तो लिपिड परत घुल जाती है, जिससे अभिरंजक कोशिका द्रव्य से बाहर आ जाता है। लेकिन ग्राम धनात्मक (+) जीवाणुओं में कोशिका भित्ति मोटी होती है तथा लिपिड की मात्रा कम होने के कारण अभिरंजक कोशिकाद्रव्य में ही रहता है। इसके अलावा ग्राम-धनात्मक (+) जीवाणुओं, जैसे- डिपलोकोकस न्यूमोनी (Diplococcus pneumoniae) आदि की कोशिका भित्ति में पॉलीसेकेराइड्स, म्यूकोपेप्टाइड्स, टीकोइक अम्ल (teichoic acid) तथा आर.एन.ए. पाये जाते हैं। इनकी कोशिका भित्ति अधिक मजबूत होती है। दूसरी ओर ग्राम- ऋणात्मक जीवाणुओं की कोशिका भित्ति के बाहर एक और लिपिड्स, प्रोटीन तथा पॉलीसेकेराइड्स से बनी हुई परत पायी जाती है। कोशिका भित्ति में टीकोइक अम्ल व आर. एन. ए. अनुपस्थित होता है ।

इनकी कोशिका भित्ति इतनी अधिक पतली होती है कि इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा इकाई कला के समान दिखाई देती है ।

(3) प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) :

यह कोशिका भित्ति के अन्दर की तरफ पायी जाने वाली झिल्ली है, जो कोशिकाद्रव्य को घेरे रहती है। इसकी मोटाई करीब 7.5 से 10.0 नेनोमीटर (mm) होती है। यह त्रिस्तरीय इकाई कला है जिसमें दो समानान्तर गहरी रेखाएँ पायी जाती हैं, जिनकी मोटाई करीब 2.0 से 2.5 नेनोमीटर होती है। इनके मध्य हल्का स्थान पाया जाता है जिसकी मोटाई 3.5 से 5.0 नेनोमीटर होती है। यह वर्णकी या अवकलीय पारगम्य झिल्ली होती है, जो कि कोशिका के अन्दर आने-जाने वाले पदार्थों का नियमन करती है। यह लाइपोप्रोटीन की बनी होती है। इसकी सतह पर श्वसन के लिए विभिन्न एन्जाइम्स पाये जाते हैं । प्रोकैरिओट्स में प्लाज्मा झिल्ली ही यूकैरिओटिक कोशिकाओं में पाये जाने वाले कोशिकांग माइटोकॉण्ड्रिया के समान श्वसन का कार्य सम्पन्न करती है ।

जीवाणुओं में यह झिल्ली संरचनात्मक रूप से रूपान्तरित होकर विभिन्न संरचनाएँ, जैसे- मीजोसोम्स (Mesosomes ) या कॉनड्रोइड्स (Chondroids) तथा डेस्मोसोम्स (Desmosomes) बनाती है, जैसे बेसीलस सबटिलिस (Bacillus subtilis) में प्लाज्मा झिल्ली मीजोसोम्स बनाती है। मीजोसोम्स के विभिन्न कार्य होते हैं। कोशिका विभाजन के समय जहाँ पट का निर्माण होता है, वहाँ मीजोसोम्स पाये जाते हैं। श्वसन क्रिया के दौरान होने वाले इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण में मदद करना तथा इसके अलावा (DNA) द्विगुणन के लिए आवश्यक एन्जाइम्स भी इसी पर पाये जाते हैं। ये पुत्री कोशिकाओं में आनुवंशिक पदार्थ (DNA) के वितरण में भी मदद करते हैं। थायोवुलवम मेजस (Thiovulvum majurs) की कोशिका में प्लाज्मा झिल्ली कोशिका द्रव्य में डूब जाती है तथा एक बहुपरतीय संरचना बनाती है, जिसे डेस्मोसोम्स कहते हैं ।

(B) कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) व इसके घटक (Constituents) :

यह घना कोलॉइडी द्रव्य होता है जिसमें ग्लाइकोजन, प्रोटीन्स तथा वसीय कण पाये जाते हैं । इसके अतिरिक्त पॉली-B- हाइड्रॉक्सी-ब्यूटाइरिक अम्ल, ग्लूकोज बहुलक, वोल्यूटिन कण तथा सल्फर पाये जाते हैं। कुछ प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में क्रोमेटोफोर्स (Chromatophores) में बेक्टीरियोक्लोरोफिल पाया जाता है। कोशिका में अन्य झिल्ली आबद्ध संरचनाएँ, जैसे- गॉल्जीकाय, अन्तः प्रद्रव्यी जालिका, लाइसोसोम्स, सेन्ट्रियोल आदि अनुपस्थित होते हैं। कोशिका द्रव्य में स्वतन्त्र रूप से घने कण बिखरे रहते हैं, जिन्हें राइबोसोम्स कहते हैं। ये 70S प्रकार के होते हैं । कुछ राइबोसोम्स प्लाज्मा झिल्ली की अन्दर वाली सतह पर जुड़े रहते हैं । प्रत्येक राइबोसोम दो उपइकाइयों 30S तथा 50S, RNA ( 65%) व प्रोटीन (35%) का बना होता है। प्रोटीन संश्लेषण के समय दोनों इकाइयाँ जुड़कर 70S राइबोसोम बनाती हैं । इसके अलावा कई राइबोसोम्स जुड़कर समूह बनाते हैं जिन्हें पॉलीसोम्स (polysomes ) कहा जाता है ।

(1) केन्द्रक पदार्थ (Nuclear material) :

कोशिका द्रव्य के केन्द्र में उपस्थित हल्का केन्द्रकी क्षेत्र न्यूक्लिओइड (Nucleoid) या जीनोफोर (Genophore) कहलाता है। विशेषकर नीले-हरे शैवालों में यह क्षेत्र न्यूक्लिओप्लाज्मिक क्षेत्र (Nucleoplasmic region) कहलाता है। न्यूक्लिओइड वलयाकार (Circular), दोहरे तन्तुकों युक्त (Double stranded) DNA अणु का बना होता है जो एक गुणसूत्र (Chromosome) को दर्शाता है ( चित्र 2.2 ) ।

DNA वलय अत्यधिक वलित (folded) होता है जो प्लाज्मा झिल्ली से एक बिन्दु से संलग्न अवस्था में पाया जाता है। न्यूक्लिओइड क्षेत्र में कोशिकाद्रव्य क्षार स्नेही (Basophilic) होता है। जीवाणु जीनोम में एक रिप्लीकोन ( replicon) होता है, जो 400 kilobase का होता है तथा इसका अणुभा 25109 डाल्टन्स ( Daltons ) के लगभग होता है। जीवाणुओं के न्यूक्लिओइड्स में 2000 से 4000 त जीन्स होते हैं। DNA की लम्बाई 800 से 1100 मिली माइक्रोन (um) तथा मोटाई 8-10 होती है। कोशिका में DNA एवं RNA का अनुपात 4: 8 होता है। जीवाणु के DNA में साइटोसिन थायमिन, ग्वानिन तथा एडेनिन के अतिरिक्त 6 मिथाइल अमीनोप्यूरिन तथा 5 मिथाइल साइटोसिन मिलते हैं। DNA के साथ प्रोटीन 11 संलग्न रहती है, जो हिस्टोनप्रोटीन की भाँति ही क्रियाशील हैं। न्यूक्लिओइड में लगभग 60% DNA, 30% RNA व 10% प्रोटीन पाये जाते हैं।

( 2 ) प्लेज्मिड (Plasmid) :

जीवाणुकोशिका द्रव्य में न्यूक्लिओइड के अतिरिक्त DNA वलय पायी जाती हैं जिन्हें प्लाज्मि कहते हैं। ये बाह्य गुणसूत्री तत्त्व होते हैं जो स्वतन्त्र रूप से स्वयं की प्रतिकृति ( Replica) बनाने क्षमता रखते हैं। जब प्लेज्मिड जीवाणु DNA गुणसूत्र के साथ जुड़ जाते हैं तब एपीसोम (Episome ( कहलाते हैं। प्लेज्मिड भी दोहरे तन्तुक (Double stranded) DNA के बने होते हैं, लेकिन इसमें जाने वाले जीन जीवाणु की आनुवंशिकी का निर्धारण नहीं करते हैं। इसमें लगभग 50-100 जीन हो हैं। प्लेज्मिड DNA 25 m लम्बा होता है जिसका अणुभार 5 x 107 होता है। जीवाणु कोशिका प्लेज्मिड्स संयुग्मन (conjugation) में भाग लेते हैं तथा उर्वरक कारक Ft (Fertility factor) कहला हैं ( चित्र 2.3 ) ।

(3) अन्य संरचनाएँ (Other structures) :

अधिकतर जीवाणु कोशिकाओं में गति के लिए एक विशिष्ट कोशिकी अतिवृद्धि पायी जाती है, जिसे कशाभिका कहते हैं । सामान्यतः कशाभिका का व्यास लगभग 10-20 nm तथा लम्बाई 20 pm तक हो सकती है। एक कोशिका में इनकी संख्या एक से अधिक हो सकती है। प्रत्येक कशाभिक तीन भागों से मिलकर बनता है – सूत्र ( Filament ), हुक (Hook) तथा आधारकाय (Base body ) ।

सूत्र – कई सारे तन्तु समानान्तर रूप से आपस में बंधित होकर एक खोखली नलिकाकार संरचना बनाते हैं। प्रत्येक तन्तु प्रोटीन फ्लेजेलिन (flagellin) का बना होता है ।

हुक – हुक कोशिका भित्ति को भेदता हुआ सूत्र को आधारकाय से जोड़ता है।

आधारकाय – सूत्र तथा हुक को कोशिका से जोड़ती है ।

उपरोक्त संरचनाओं के अतिरिक्त जीवाणु कोशिका द्रव्य में गैस रिक्तिकाएँ, वॉल्यूटिन कण (Polyphosphate granules), ग्लाइकोजन कण व लिपिड बूँदें आदि पाये जाते हैं ।