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वह पदार्थ जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में उपस्थित रहकर अभिक्रिया के वेग को प्रभावित या परिवर्तित कर देता है लेकिन खुद अभिक्रिया में द्रव्यमान या संघटन की दृष्टि से परिवर्तित नहीं होता है उस पदार्थ को उत्प्रेरक कहते है।
यहाँ द्रव्यमान और संघटन की दृष्टि से अपरिवर्तित होने का तात्पर्य है कि जितना उत्प्रेरक पदार्थ अभिक्रिया के प्रारंभ में होता है और जिस संघटन में होता है उतना ही उत्प्रेरक अभिक्रिया के पूर्ण होने पर पाया जाता है और उसी संघटन में पाया जाता है जिसमें उसे अभिक्रिया के शुरू में मिलाया गया था।
सबसे पहले वर्जिलियस ने उत्प्रेरक पद के बारे में सुझाव दिया था , वर्जिलियस जब प्रयोग कर रहे है थे तो कुछ प्रयोगों में उन्होंने यह पाया कि जब कुछ विशेष पदार्थों को कुछ विशेष अभिक्रियाओं में मिलाया जाता है तो उस पदार्थ के कारण उस अभिक्रिया का वेग परिवर्तित हो जाता है , जिस विशेष पदार्थ के कारण अभिक्रिया का वेग परिवर्तित होता है वर्जिलियस ने उसे उत्प्रेरक नाम दिया और उत्प्रेरक के कारण किसी अभिक्रिया के वेग में परिवर्तन की घटना को उत्प्रेरण नाम दिया गया।
उत्प्रेरण की परिभाषा : वह प्रक्रिया जिसमें जिसमें किसी अभिक्रिया के वेग को कोई पदार्थ डालकर परिवर्तित किया जा सके उसे उत्प्रेरण कहते है और अभिक्रिया के वेग को प्रभावित या परिवर्तित करने के लिए जो पदार्थ डाला जाता है उसे उत्प्रेरक कहते है।
उत्प्रेरक की परिभाषा : वह पदार्थ जिसकी उपस्थिति से अभिक्रिया का वेग परिवर्तित हो जाता है , उसे उत्प्रेरक कहते है और इस प्रक्रिया को उप्रेरण कहते है।
उत्प्रेरक वर्धक या उत्प्रेरक विष
समांगी तथा विषमांगी उत्प्रेरण
उत्प्रेरक के प्रकार
उत्प्रेरक के गुण
- जब कोई अभिक्रिया अनुक्रमणीय हो अर्थात अग्र और पश्च दिशा में चले तो ऐसी स्थिति में उत्प्रेरक अभिक्रिया के अग्र और पश्च दोनों वेग को समान रूप से प्रभावित करते है।
- समांगी उत्प्रेरक की सांद्रता , अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करती है , समांगी उत्प्रेरक की उपस्थिति में उत्प्रेरक की सांद्रता को बढ़ाने पर अभिक्रिया का वेग बढ़ता है।
- किसी अभिक्रिया में उत्प्रेरक की उपस्थिति से उत्पाद में कोई परिवर्तन नही होता है अर्थात वही उत्पाद या क्रियाफल प्राप्त होता है जो बिना उत्प्रेरक के प्राप्त होता है अर्थात यह क्रियाफल या उत्पाद में परिवर्तन नही करता है केवल अभिक्रिया के वेग में परिवर्तन करता है।
- प्रत्येक अभिक्रिया के लिए विशेष उत्प्रेरक होता है , यदि किसी अभिक्रिया में कोई उत्प्रेरक वेग बढाता है तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यह हर अभिक्रिया के वेग को प्रभावित कर सकता है या बढ़ा सकता है।
उत्प्रेरक
वे पदार्थ जो स्वयं तो रासायनिक क्रिया में भाग नहीं लेते, किन्तु जिनकी उपस्थिति क्रिया की गति को तीव्र कर दे या मंद कर दे, उत्प्रेरक कहलाते हैं।
बर्जीलियस को उत्प्रेरक का जन्मदाता माना जाता है, जिन्होंने 1853 में इसकी खोज की।
उत्प्रेरक चार प्रकार के होते हैं –
(प) धनात्मक उत्प्रेरक वे पदार्थ जो क्रिया की गति को बढ़ा देते हैं, धनात्मक उत्प्रेरक कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, को ऑक्सीजन के से बनाने में प्रयोग किया जाता है।
(पप) ऋणात्मक उत्प्रेरकः वे पदार्थ जो किसी रासायनिक क्रिया की गति को कम कर देते हैं उन्हें ऋणात्मक उप्रेरक कहते हैं। यदि हाइड्रोजन पराक्साइड में एसिटेमाइड, एल्कोहल या अम्ल उपस्थित हैं तब ये विच्छेदन को रोकते हैं, इस क्रिया में ये ऋणात्मक उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।
(पपप) स्व उत्प्रेरकः कभी-कभी किसी रासायनिक क्रिया की गति क्रिया के बढ़ने के साथ स्वयं ही बढ़ जाती है। इस क्रिया में परक बनने वाला कोई पदार्थ स्वयं ही उत्प्रेरक का कार्य करता है। कभी
(पअ) प्रेरित उत्प्रेरकः कभी-कभी एक क्रिया दूसरी क्रिया का वेग बढ़ा देती है। इस प्रकार के उत्प्रेरक को प्रेरित उत्प्रेरक कहते हैं।
महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक एवं प्रयोग
उत्प्रेरक प्रयोग
निकिल वनस्पति तेलों से घी का निर्माण
चूर्ण सल्फ्यूरिक अम्ल के निर्माण की सम्पर्क विधि
क्यूप्रिक क्लोराइड क्लोरीन के निर्माण का डीकन प्रक्रम
पेप्सिन एन्जाइम प्रोटीन का पेप्टाइड में परिवर्तन
इरिप्सिन एन्जाइम प्रोटीन का एमीनो अम्ल में परिवर्तन
जाइमेस एन्जाइम ग्लूकोस का एथिल ऐल्कोहॉल में परिवर्तन
डाइस्टेज एन्जाइम स्टार्च का माल्टोस में परिवर्तन
माइकोडर्मा ऐसिटी शर्करा से सिरके का निर्माण
इन्वर्टेज एन्जाइम सुक्रोज का ग्लूकोज व फ्रक्टोस में परिवर्तन
लेक्टेस (लेक्टोबेसिली) दूध का दही में परिवर्तन
लोहे का चूर्ण अमोनिया गैस बनाने की हैबर विधि में