इस विधि का उपयोग करने वाले सबसे पहले व्यक्ति फ़्रांस के महान गणितज्ञ ‘रेने डेसकार्तेज (rene descartes)’ थे। और इनके नाम के आधार पर ही इस विधि को कार्तीय कहा जाता है।
निर्देश तंत्र का उपयोग गणित में , भौतिक विज्ञान में , इंजीनियरिंग में और दिशा ज्ञान के लिए किया जाता है।
हम यहाँ द्विविम निर्देशांक ज्यामिति का अध्ययन करेंगे अर्थात यहाँ समतल निर्देश तंत्र का अध्ययन करेंगे। जिसमे दो लम्बवत रेखाएं होती है , इन रेखाओं को निर्देशी अक्ष कहते है , इसमें एक रेखा को x अक्ष कहते है और दूसरी रेखा को y अक्ष कहा जाता है।
दोनों रेखाओं के कटान बिंदु को मूल बिंदु या केंद्र बिन्दु कहते है जिसे प्राय: ‘O’ से प्रदर्शित किया जाता है।
किसी समतल में किसी एक बिंदु की स्थिति को इस द्विमीय निर्देश तन्त्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है –
मूल बिंदु पर x = 0 और y = 0 होता है इसलिए मूल बिंदु के निर्देशांक (0 , 0) होते है। मूल बिंदु से या केंद्र बिंदु (O) से पूर्व -पश्चिम या उत्तर-दक्षिण में विस्थापन के अनुसार किसी बिंदु की स्थिति को ज्ञात किया जाता है।
यदि बिंदु पूर्व-पश्चिम में गति कर रहा है तो तात्पर्य है कि बिंदु x अक्ष पर गति कर रहा है और इसी प्रकार यदि बिंदु दक्षिण -उत्तर में गतिशील है तो मतलब बिंदु y अक्ष पर गति कर रहा है।
यही कारण है कि कार्तीय समतल को x-y समतल भी कहा जाता है।
इस समतल में कोई बिंदु P एक अद्वितीय युग्म (x,y) के द्वारा प्रदर्शित करता है , उस बिंदु के लिए प्रदर्शित (x , y) बिंदु स्थिति को उस बिंदु के निर्देशांक कहते है। दोनों अक्ष अर्थात x और y अक्ष समतल को चार भागों में विभक्त करती जिन्हें चतुर्थांश कहते है , इन्हें चित्र में I , II , III और IV द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
दो बिन्दुओं के मध्य की दूरी ज्ञात करने का सूत्र
विभाजन सूत्र