कार्प मछली के बारे में जानकारी बताइए | carp fish in hindi | ग्रास कार्प मछली प्रजनन

ग्रास कार्प मछली प्रजनन कार्प मछली के बारे में जानकारी बताइए | carp fish in hindi ?

 मछलियों की आकार-भिन्नता
पाइक यद्यपि सभी मछलियां पानी में रहती हैं फिर भी उनके सब के जीवन की स्थितियां एक-सी नहीं होतीं। कुछ मछलियां सागरों और महासागरों के खारे पानी में रहती हैं जबकि दूसरी मछलियां झीलों और नदियों के ताजे पानी में। कुछ मछलियों के लिए ऑक्सीजन-बहुल और तेज बहनेवाला पानी आवश्यक है तो कुछ और मछलियां बंधे पानी की ताल-तलैयों में रह सकती हैं। एक ही तालाब में कुछ मछलियां पानी की ऊपरवाली सतहों में रहती हैं जबकि दूसरी मछलियां तल के पास। मछलियों का भोजन भी भिन्न भिन्न प्रकार का होता है – कुछ पौधों और नन्हे नन्हे मंदगति प्राणियों का भोजन करती हैं तो दूसरी तेजी से तैरनेवाला शिकार पकड़ लेती हैं। जीवन की भिन्न भिन्न स्थितियों के अनुसार मछलियों की संरचना और बरताव में भी फर्क नजर आता है।
झीलों और नदियों की शिकारभक्षी मछलियों में से एक सुप्रसिद्ध और बहुत स्थानों में पायी जानेवाली मछली है पाइक। अपने शिकार की प्रतीक्षा में यह जल के पौधों के झुरमुट में निश्चल-सी पड़ी रहती है। दूसरी मछलियों का झुंड पास से गुजरा ही गुजग कि वह बिजली की तेजी से झपट पड़ती है और कम चपल मछलियों को अपने तेज दांतों वाले मुंह में पकड़ लेती है (प्राकृति ७८)।
शिकार की ममलता में पाइक को उनकी संरचना से सहायता मिलती है। पूंछ के नीचेवाला मीन-पक्ष और पृष्ठीय मीन-पक्ष धारण करनेवाली छोटी किंतु ताकतवर पूंछ सहित लंबे शरीर के कारण वह आगे की ओर काफी तेजी के साथ उछल सकती है। तेज और अंदर की ओर मुड़े हुए अनेकानेक दांतों वाले मुंह में वह निकने शिकार को मजबूती से पकड़े रख सकती है। शरीर के धानी रंग और बगलों में काले ठप्पों के कारण पाइक जल के उन पौधों से शायद ही अलग पहचानी जा सकती है जहां वह शिकार की घात में पड़ी रहती है।
कार्प-मछली
नदियों के एक और निवासी कार्प-मछली (प्राकृति ७६) की आवश्यकताएं, बरताव और संरचना बिल्कुल भिन्न हैं। यह दूसरी मछलियों का शिकार नहीं करती बल्कि कीटों के डिंभ, मोलस्क , कृमि और जल के पौधे खाकर रहती है।
कार्प-मछली आराम से तैरती है। ऊपरवाले होंठ पर स्थित दो छोटे गलमुच्छों की सहायता से वह तल में अपना शिकार ढूंढती है। कार्प-मछली का मुंह छोटा होता है और उसके तेज दांत नहीं होते। कार्प-मछली जिसे खाकर रहती है उस नन्हे और मंदगति शिकार को पकड़ने के लिए यह मुंह भी काफी है। सिर्फ गले में पीछे की ओर कुछ थोथे गलदंत और हड्डियों की एक प्लेट होती है। ये मोलस्कों के कवचों को पीस डालने के काम में आते हैं।
मंदगति कार्प-मछली के शरीर का आकार भी पाइक से भिन्न होता है। इसका धड़ ऊंचा और मोटा होता है और पूंछ अपेक्षतया कम परिवर्दि्धत।
मेशियर भारत की नदियों में कार्प-मछली से मिलती-जुलती मेशियर (आकृति ८० ) अर्थात् बुरामात्रा , पेटिया , कूखिया या नहरी नामक मछलियां मिलती हैं। यह एक बहुत ही आकर्षक मछली है जो ऊपर की ओर रूपहले-हरे और नीचे की ओर रुपहले-सुनहरे रंग की होती है और जिसरे ललौहें सन्म मीन-पक्ष होते हैं। यह मछली बड़ी मशहूर है और सारे भारन तथा श्रीलंका के शाक्रिया मछली पकड़नेवाले इसे पसंद करते हैं। वयस्क मंशियर एक बड़ी मछली होती है जो १.५ मीटर तक लंबी और ३०-४५ किलोग्राम वक्र बजनी होती है। इसके विशेष बड़े नमूने पहाड़ी नदियों में पाये जाते हैं। ऐसी मछलियों के गल्क वयस्क आदमी की हथेली जितने बड़े हो सकते हैं। कार्य-मछली के विपरीत मेशियर नन्हीं नन्हीं मछलियां खाकर रहती है। यह मछली अक्सर स्पिनिंग टैकल की नहायता से पकड़ी जाती है।
शीट-मछली शीट-मछली (आकृति ८१) ताल-तलैयों के तल में रहने बाली ताजे पानी की मछलियों में से एक है। समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधों के देशों की नदियों में शीट-मछली की वहुतायत होती है। इन मछलियों का अधिकांश जीवन जलाशयों के तल में वीतता है। चूंकि वे अपने पेट के सहारे पड़ी रहती हैं इसलिए उनके शरीर ऊपर से नीचे की ओर कुछ चपटे होते हैं। ऊपर की सतह गहरी और नीचे की हल्की होती है। स्पर्शेद्रिय का काम देनेवाली स्पर्शिकानों का गहरे जलांतर्गत जीवन में बड़ा महत्त्व है। स्पर्शिकाएं मुविकसित होती हैं। इसके विपरीत अंधेरे में आंखों का कोई उपयोग नहीं और इसी लिए वे कम परिवर्दि्धत रहती हैं। शीट-मछली मुख्यतया निशाचर प्राणी है। दिन में यह गहरे गड्ढों में छिपी रहती है। कृमियों की तरह इधर-उधर चुलबुलानेवाली स्पर्शिकाएं नन्हीं नन्हीं मछलियों को आकृष्ट करती हैं। जब कोई मछली किसी स्पर्शिका को पकड़ने की कोशिश करती है तो पेटू शीट-मछली फौरन अपना चैड़ा मुंह खोलकर उसे गटक लेती है। बड़ी शीट-मछलियां जल-पंछियों पर भी धावा बोल देती हैं और लड़के-लड़कियों के लिए खतरनाक होती हैं।
शार्क नीली शार्क (आकृति ८२) गहरे पानी की एक विशेष मछली है। यह बेहद शिकारभक्षी समुद्री मछली सभी प्रकार के समुद्री प्राणियों और आदमी पर भी हमला करती है। उसका शरीर ठीक तकुए की शकल का और ३-४ मीटर लंबा होता है। तैरते समय उसके भारी सिर को उसके चैड़े वक्षीय मीन-पक्ष आधार देते हैं। ये हमेशा दोनों ओर फैले रहते हैं । उसका चैड़ा मुंह सिर के निचले हिस्से में एक आड़ी दरार के रूप में होता है। जबड़ों में तेज दांतों की कई कतारें होती हैं। शार्क के जलश्वसनिका-आवरण नहीं होते और इसलिए सिर के दोनों ओर पांच जोड़े खड़े श्वसनिका-छेद सहज ही दिखाई पड़ते हैं। शार्क का कंकाल अधिकांश मछलियों की तरह हड्डियों का नहीं होता बल्कि उपास्थियों का होता है। शार्क की त्वचा को ढंकनेवाले शल्क भी अन्य मछलियों से एकदम भिन्न होते हैं। हर शल्क ऐसे तेज दांत-सा लगता है जिसकी नोक पीछे की ओर मुड़ी हुई हो । शार्क के शरीर के पूंछवाले ताकतवर हिस्से के अंत में लंबे-से ऊपरी पिंड सहित मीन-पक्ष होता है। पूंछ की बहुत बड़ी पेशीय शक्ति के कारण शार्क बहुत ही अच्छी तरह तैर सकती है। शार्क उपास्थीय मछलियों में शामिल है।
प्लेस-मछली जलतल में रहनेवाली मछलियों में से प्लेस-मछली (प्राकृति ८३) खास दिलचस्प है। प्लेम-मछली न केवल तल में रहती है बल्कि वहां अपने को रेत में आधा गाड़े हुए , शिकार का इंतजार करती है।
प्लेस-मछली एक बड़ी-सी मछली है जिसकी लंबाई ३० से ५० सेंटीमीटर तक हो सकती. है।
प्लेस-मछली के शरीर के किनारे इतने चपटे होते हैं कि वह एक ऐसी चैड़ी प्लेट-सा लगता है जिसमें मीन-पक्ष की झालर लगी हो। प्लेस-मछली बगल के बल पड़ी रहती है और इसी स्थिति में तैरती भी है। इस कारण उसकी आंखें और नासा-द्वार दोनों ऊपर की ओर रुखवाले हिस्से में होते हैं। यह हिस्सा रंगीन होता है जबकि तल की ओरवाला हिस्सा सफेद-सा होता है। भिन्न भिन्न रंगों वाले स्थानों में तैरते समय प्लेस-मछली के ऊपरी हिस्से के रंग भी बदलते हैं और नये स्थान के तल के रंग के अनुकूल बन जाते हैं ।
प्लेस-मछली के वायवाशय नहीं होता।
यह नोट करना दिलचस्प है कि अंड-समूह से सेये गये फ्राई आम शकलसूरत के होते हैं जिनमें यथास्थान आंखें होती हैं। शुरू शुरू में फाई पानी की ऊपरी सतहों में रहते हैं। बाद में उनके शरीर चपटे होते जाते हैं, आंखें एक ओर हो जाती हैं और फिर प्लेस-मछली तल की ओर चली जाती है। इससे सूचित होता है कि इस मछली के पुरखों के शरीर आम शकल के हुआ करते थे और आंखें सिर के दोनों ओर। इस मछली की संरचना में सागर-तल की जीवनस्थितियों के प्रभाव के कारण परिवर्तन हुए।
रूसी स्टर्जन
रूसी स्टर्जन (आकृति ८४ ) सोवियत संघ के कास्पीयन और अन्य सागरों में रहती है। पर वह अपना सारा जीवन सागर में नहीं बिताती। अंडे देने के लिए स्टर्जन नदियों की ओर चली जाती है और प्रवाह प्रतिकूल दिशा में बढ़ती है। अंडे देने के बाद यह मछली अंडों से निकली हुई नन्हीं नन्हीं स्टर्जनों को साथ लिये समुद्र को लौट आती है। जीवन का कुछ अंश रू समुद्र में और कुछ नदियों में बितानेवाली मछलियां प्रवासी कहलाती हैं।
रूसी स्टर्जन काफी बड़ी होती है ( एक मीटर और इससे भी ज्यादा)। यह अपना जीवन सागर-तल में बिताती है। उसका छोटा-सा दंतहीन मुंह सिर के नीचे की ओर होता है। मुंह के आगे दो जोड़े छोटे छोटे गलमुच्छे होते हैं । अपने इन गलमुच्छों से तल का स्पर्श करते हुए स्टर्जन वहां की मिट्टी में कृमि और कीटों के डिभ ढूंढती है। कभी कभी वह नन्हीं नन्हीं मछलियों को भी निगल जाती है। जलतल के जीवन के कारण उसके शरीर का निचला हिस्सा कुछ चपटा-सा. हो जाता है। स्टजन की त्वचा पर जो गल्क होते हैं वे पर्च-मछली के शल्कों से भिन्न होते हैं। शरीर पर बड़े बड़े अस्थि शल्कों की पांच कतारें होती हैं जिनके बीच में छोटे छोटे शल्क और होते हैं । कंकाल में भी कुछ विशेषताएं होती हैं। स्टर्जन के कशेरुक अपरिवर्दि्धत होते हैं य बस उसकी रीढ़-रज्जु पर छोटी छोटी उपास्थीय मेहरावें बनी रहती हैं। मोटे धागे की शकलवाली यह रज्जु सारे शरीर और पूंछ में फैली रहती है। खोपड़ी उपास्थीय होती है पर उसका ऊपर का हिस्सा हड्डी मे प्रावृत रहना है ।
वासस्थान के अनुसार मछलियों को निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जाता है- ताजे पानी की ( पर्च-मछली , पाइक , कार्प-मछली , मेशियर , शीटमछली), समुद्री (प्लेस-मछली, शार्क) और प्रवासी (स्टर्जन)।
मछली वर्ग की विशेषताएं मछलियां जलगत जीवन के आदी रीढ़धारियों के वर्ग में मछली वर्ग को प्राती हैं। सुपरिवर्दि्धत पेशीय पूंछ , और सयुग्म तथा अयुग्म मीन-पक्ष गतिदायी इंद्रियों का काम देते हैं। अधिकांश मछलियों के वायवाशय होते हैं। त्वचा पर शल्कों का आवरण होता है। सभी मछलियों के पार्शि्वक रेखा होती है।
जल-श्वसनिकाएं मछली की श्वमनेंद्रियां हैं। हृदय के दो कक्ष होते हैं । रक्त-परिवहन का एक वृत्त होता है। शरीर का तापमान परिवर्तनशील होता है।
मछलियों के ज्ञात प्रकार २०,००० तक हैं।।
प्रश्न – १. पाइक की संरचना की कौनसी विशेषताएं यह दिखाती हैं कि वह शिकारभक्षी प्राणी है? २. कार्प-मछली की कौनसी विशेपताओं से पता चलता है कि वह एक शांत प्राणी है ? ३. मेशियर को स्पिनिंग टैकल से क्यों पकड़ा जा सकता है जबकि कार्प-मछली के मामले में वह बेकार है ? ४. कौनसी संरचनात्मक विशेषताएं शार्क को अस्थिल मछलियों से भिन्न दिखाती हैं ? ५. प्लेस-मछली की संरचना में उसका जलगत जीवन कैसे प्रतिबिंबित होता है? ६. कौनसी मछलियां प्रवासी कहलाती हैं? ७. मछली वर्ग की विशेषताएं कौनसी हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – पता लगायो कि तुम्हारे इलाके में कौनसी मछलियां पायी जाती हैं।