Carboxylic Acid Derivatives in hindi कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्न क्या है संरचना (Structrure)

कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्न क्या है संरचना (Structrure) Carboxylic Acid Derivatives in hindi ?

कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्न (Carboxylic Acid Derivatives)

 कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्नों का नामकरण (Nomenclature of Carboxylic Acid Derivatives)

सभी कार्बोक्सिलक अम्ल व्युत्पन्नों में ऐसिल समूह ( हैलोजन ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन-परमाणु से जुड़ा होता है अर्थात कार्बोक्सिलिक समूह में से हाइड्रॉक्सिल समूह (−OH) को किसी अन्य क्रियाशील परमाणु या समूह (Z) द्वारा प्रतिस्थापित करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्न बनते हैं ।

 अम्ल हैलाइड (Acid Halide) कार्बोक्सिलिक अम्ल  में से – OH समूह को हैलोजन परमाणु (X = F, Cl, Br या I) द्वारा प्रतिस्थापित करने पर अम्ल हैलाइड R – C – X बनते हैं इन्हें ऐसिल हैलाइड कहते हैं। IUPAC पद्धति में संगत अम्ल के संलग्न ओइक अम्ल को हटाकर ओयल हैलाइड लगाने पर अम्ल हैलाइड का नाम प्राप्त हो जाता है । उदाहरणार्थ-

अम्ल ऐन्हाइड्राइड (Acid Anhydride)– यदि अम्ल के दो समान या भिन्न अणुओं में से जल का एक अणु निकाल दिया जाये तो अम्ल ऐन्हाइड्राइड बनते हैं। अतः इनकी संरचना निम्न प्रकार हो सकती है-

इनमें दो ऐसिल समूह (R- C – ) उपस्थित होते हैं यदि दोनों ऐसिल समूह समान हैं तो संगत अम्ल का नाम लिखकर उसमें से संलग्न ओइक अम्ल हटाकर ओइक ऐन्हाइड्राइड लगा देते हैं- उदाहरणार्थ-

यदि दोनों ऐसिल समूह भिन्न हो तो दोनों के संगत अम्ल का नाम अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में लिखते हैं और उनमें से संलग्न अम्ल हटाकर बाद में संलग्न ओइक ऐन्हाइड्राइड लिख देते हैं। उदाहरणार्थ-

 एस्टर (Ester) यदि कार्बोक्सिलिक अम्ल  में से OH समूह को ऐल्कॉक्सी (- OR’) समूह से प्रतिस्थापित कर दें तो एस्टर  बनते हैं । इनको IUPAC पद्धति में ऐल्किल ऐल्कोनोएट कहते हैं।  का ऐल्किल समूह R’ पहले लिखते हैं बाद में ऐसिल भाग का नाम लिखते हैं। ऐसिल भाग का नाम संगत अम्ल के नाम से ओइक अम्ल हटाकर ओऐट लगा देते हैं।

 ऐमाइड (Amide) : यदि कार्बोक्सिलिक अम्ल  में से OH समूह को ऐमीनों (-NH2) या प्रतिस्थापित ऐमीनों समूह द्वारा प्रतिस्थापित कर दें तो ऐमाइड  या N- प्रतिस्थापी ऐमाइड बनते हैं। इन्हें ऐल्केनमाइड कहते हैं।

उदाहरणार्थ-

यूरिया (Urea): यूरिया का सूत्र  है यह कार्बोनिक अम्ल का डाइऐमाइड व्युत्पन्न है इसे कार्बेमाइड अथवा यूरिया कहते हैं। इसका IUPAC नाम ऐमीनोमेथेनैमाइड है।

 कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्नों की संरचना (Structrure of Carboxylic Acid Derivatives)

ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल की भांति कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्नों में कार्बोनिल समूह पर बंधों की समतलीय व्यवस्था (Planar arrangement) होता है। ऐसिल क्लोराइड, ऐनहाइड्राइड, एस्टर और ऐमाइडों में ऐसिल समूह  से जुड़े परमाणु पर अबंधित इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं। ये अंबधित इलेक्ट्रॉन युग्म कार्बोनिल समूह के तंत्र से अन्तः क्रिया कर लेते हैं अतः इनका अस्थानीकरण (delocalisation) हो जाता है। इसे अनुनाद के रूप में निम्न प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं-

प्रतिस्थापी समूह Z कार्बोनिल समूह को स्थायित्व प्रदान करता है और इसके इलेक्ट्रॉन स्नेही गुण को कम कर देता है। (Z) पर उपस्थित अबंधित इलेक्ट्रॉन युग्म का अनुनाद के द्वारा विस्थानीकरण प्रतिस्थापी (Z) की इलेक्ट्रॉन प्रदान करने की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है ।

Z की विद्युतऋणता कम होने पर इसकी कार्बोनिल समूह को इलेक्ट्रॉन प्रदान करने की प्रवृति बढ़ती है और इसका स्थायित्व प्रदान करने का प्रभाव (stablizing effect) बढ़ता है।

 ऐसिल क्लोइराइड की संरचना (Structure of Acyl chloride)

विभिन्न अम्ल व्युत्पन्नों में ऐसिल क्लोराइड में अनुनाद स्थायित्व सबसे कम है।

इसका कारण C–CI बंध की अधिक लम्बाई लगभग 180 pm और CI की उच्च विद्युतऋणता है। CI परमाणु के 3p – कक्षकों और कार्बोनिल समूह के कक्षकों में अतिव्यापन बहुत कम हो पाता है। इस कारण Cl- परमाणु के अबंधित इलेक्ट्रॉनों का कार्बोनिल समूह के तंत्र में विस्थानीकरण बहुत कम हो पाता है। इसी कारण से अन्य अम्ल व्युत्पन्नों की अपेक्षा ऐसिल क्लोराइड के कार्बोनिल समूह पर नाभिक स्नेही आक्रमण अपेक्षाकृत सुगमता से हो जाता है अर्थात इसकी क्रियाशीलता अधिकतम है।

 अम्ल ऐनहाइड्राइड की संरचना (Structure of Acid anhydride )’

ऐसिल क्लोराइड की अपेक्षा अम्ल ऐनहाइड्राइड में इलेक्ट्रॉनों के अधिक अस्थानीकरण के कारण स्थायित्व अधिक है। अनुनाद में अम्ल ऐनहाइड्राइड के दोनों कार्बोनिल समूह प्रयुक्त होते हैं।

7.2.3 एस्टर की संरचना (Structure of Ester)

एस्टर का कार्बोनिल समूह ऐनहाइड्राइड की अपेक्षा अधिक स्थायित्व ग्रहण करता है। चूंकि ऐनहाइड्राइड में दोनों कार्बोनिल समूहों में ऑक्सीजन के इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करने की प्रतिस्पर्धा होती है। अतः ऐनहाइड्राइड के दो कार्बोनिल समूह एस्टर के एक कार्बोनिल समूह की अपेक्षा कम स्थायित्व ग्रहण करते हैं ।

 ऐमाइड की संरचना (Structure of Amide)

ऐमाइड, एस्टर की अपेक्षा अधिक स्थायी होते हैं क्योंकि N – परमाणु की विद्युतॠणता ऑक्सीजन से कम होने के कारण NH, समूह – OR समूह की अपेक्षा अच्छा इलेक्ट्रॉन निमोची है अर्थात इलेक्ट्रॉन युग्म को अधिक सरलता से प्रदान कर देता है। अतः ऐमाइड अनुनाद एक प्रबल स्थायित्व बल प्रदान करता है और संरचना को भी प्रभावित करता है। अमोनिया में बंध पिरैमिडी व्यवस्था में होते हैं जबकि ऐमाइड में N पर उपस्थित बंध समतलीय होते हैं ।

ऐमाइड में एकल बंध की उच्च घूर्णन ऊर्जा से पता चलता है कि इसमें महत्वपूर्ण द्विबंध गुण है जैसा कि ऐमाइड के अनुनाद से प्रदर्शित होता है।

फॉर्मेमाइड की संरचना निम्न प्रकार है।

 यूरिया की संरचना (Structure of Urea)

कार्बोनिक अम्ल HO—C – OH में से दोनों – OH समहों को ऐमीनों समूहों द्वारा प्रतिस्थापित करने पर यूरिया NH2 बनता है। यह दुर्बल क्षार है परन्तु ऐमाइडों की अपेक्षा क्षारीय है और प्रबल अम्लों के साथ लवण बना लेता है। इसकी ऐमाइडों से अधिक क्षारीय प्रकृति का कारण अम्ल से प्रोटॉन ग्रहण करने के पश्चात बने धनायन का अनुनाद द्वारा स्थायित्व ग्रहण करना है ।

 ऐसिल व्युत्पन्नों के आपेक्षिक स्थायित्व (Relative stabilities of acyl derivatives)

ऐसिल व्युत्पन्न अम्ल व्युत्पन्न ही हैं। ऐसिल व्युत्पन्न नाभिक स्नेही योगात्मक – विलोपन (Nucleophilic addition-Eliminiation) अभिक्रियाऐं देते हैं। ऐसिल क्लोराइड, अम्ल ऐन्हाइड्राइड, एस्टर एवं ऐमाइड में अवशिष्ट समूह (Leaving group) क्रमशः क्लोराइड आयन, कार्बोक्सिलेट आयन या कार्बोक्सिलिक अम्ल, ऐल्कोहॉल तथा अमोनिया हैं । अवशिष्ट समूह की क्षार प्रकृति जितनी कम होती है वह उतना ही अच्छा अवशिष्ट समूह होता है। इसे ऐसिल व्युत्पन्नों में अनुनाद के द्वारा समझाया जा सकता है।

अनुनादी संरचना (II) से स्पष्ट है कि कार्बोक्सिल समूह के C- परमाणु एवं अवशिष्ट समूह Z के मध्य द्विबंध गुण उत्पन्न हो जाता है। अवशिष्ट समूह – Z की क्षारीय प्रवृत्ति बढ़ने पर द्विबंध गुण बढ़ता और ऐसिल व्युत्पन्न का स्थायित्व बढ़ता है। विभिन्न ऐसिल व्युत्पन्नों में अवशिष्ट समूह की क्षार प्रकृति का क्रम निम्न प्रकार है-

CI- < R—COOH < ROH < NH3

अतः ऐसिल व्युत्पन्नों के स्थायित्व का क्रम निम्न प्रकार होगा-

इसी आधार पर इन ऐसिल व्युत्पन्नों की क्रियाशीलता का क्रम निम्न होगा-

 कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्नों के भौतिक गुण (Physical Properties of Carboxylic Acid Derivatives)

कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्नों में कार्बोनिल (C = O) समूह उपस्थित होने के कारण ये ध्रुवीय यौगिक होते हैं। अम्ल क्लोराइड, ऐन्हाइड्राइड एवं एस्टर के क्वथनांक एवं समान अणुभार वाले ऐल्डिहाइड एवं कीटोन के क्वथनांक लगभग समान होते हैं। ऐमाइडों के क्वथनांक अपेक्षाकृत बहुत उच्च होते हैं क्योंकि उनमें प्रबल अन्तराआण्विक हाइड्रोजन बंधन की क्षमता होती है।

तीन से पांच C- परमाणु तक के विभिन्न एस्टर और पांच या छ: C- परमाणु तक के ऐमाइड जल में विलेय हैं। अम्ल व्युत्पन्न कार्बनिक विलायकों में विलेय हैं।

वाष्पशील एस्टर सुगंधित (sweet smelling) होते हैं । अतः इनका उपयोग प्रसाधन सामग्री बनाने में करते हैं। अम्ल हैलाइडों की तेज अप्रिय गंध होती है क्योंकि उनका आंशिक रूप से HCI एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल में जल अपघटन हो जाता है।

कुछ अम्ल व्युत्पन्नों के क्वथनांक एवं गलनांक सारणी 7.1 में दिये गये हैं-

अम्ल यौगिकों (अम्ल व्युत्पन्नों) का स्पेक्ट्रमी अध्ययन ( Spectral studies of acid derivatives) कार्बोक्सिलिक अम्ल तथा अम्ल व्युत्पन्नों की पहचान में अवरक्त स्पेक्ट्रम की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन यौगिकों के IR स्पेक्ट्रम में C = O तनन बैंड काफी प्रभावी होता है। यह तनन बैंड अम्ल एवं भिन्न-भिन्न अम्ल व्युत्पन्नों में भिन्न-भिन्न आवृत्तियों पर प्राप्त होता है । यदि यौगिक में संयुग्मन है तो इस C = O तनन बैंड की अवशोषण निम्न आवृत्ति की ओर खिसक जाता है।

कार्बोक्सिलिक अम्ल में O-H तनन कम्पनों के कारण 2500-3100 cm-1 के क्षेत्र में एक चौड़ी बैंड प्राप्त होती है। इसी प्रकार ऐमाइडों में NH तनन कम्पनों के कारण 3140-3500 cm-1 पर एक चौड़ा बैंड प्राप्त होता है। विभिन्न ऐसिल यौगिकों में C = O तनन अवशोषण बैंड की आवृत्ति परास निम्न तालिका 7.2 में दी गई है-

 नाभिकस्नेही ऐसिल प्रतिस्थापन द्वारा अम्ल व्युत्पन्नों का अन्तः परिवर्तन (Interconversion of acid derivatives by nucleophilic acyl substitution) अम्ल व्युत्पन्नों में नाभिकस्नेही की प्रकृति भिन्न-भिन्न होने के कारण इन व्युप्पन्नों को आपस में अन्तर्परिवर्तित किया जा सकता है।

(1) ऐसिड क्लोराइड से अन्य अम्ल व्युत्पन्नों का संश्लेषण

(2) ऐनहाइड्राइड से अन्य अम्ल व्युत्पन्नों का संश्लेषण

(3) एस्टर से अन्य अम्ल व्युत्पन्नों का संश्लेषण

(4) ऐमाइड से अन्य अम्ल व्युत्पन्नों का संश्लेषण

इन अभिक्रियाओं में कार्बोक्सिलिक अम्ल व्युत्पन्न R – C – Lके कार्बोनिल कार्बन अर्थात ऐसिल कार्बन परमाणु पर अभिकर्मक (: Nu-H) का नाभिक स्नेही योग होता है तथा मध्यवर्ती से अवशिष्ट समूह (L) का निष्कासन होकर प्रतिस्थापन उत्पाद बन जाता है। अभिक्रिया की सामान्य क्रियाविधि निम्न प्रकार दी जा सकती है-

अम्ल व्युत्पन्नों के बनाने की विधियाँ (Methods of Preparation of Acid Derivatives)

सभी अम्ल व्युत्पन्नों को कार्बोक्सिलिक अम्लों से बनाया जा सकता है। कार्बोक्सिलिक अम्ल कार्बोनिल कार्बन या ऐसिल कार्बन परमाणु पर नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन के द्वारा अभिक्रिया सम्पन्न होती

है।

तथा प्राप्त मध्यवर्ती से अवशिष्ट प्रारम्भ में नाभिक स्नेही कार्बोनिल कार्बन पर आक्रमण करता समूह (Leaving group) – OH का निष्कासन होकर प्रतिस्थापन उत्पाद बन जाता है। अभिक्रिया की क्रिया – विधि को निम्न प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं-

ऐल्केनोइक अम्लों से एस्टर का बनना, ऐमाइडों का बनना तथा अम्ल हैलाइडों का बनना इसी प्रकार के नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन के उदाहरण हैं जिनमें कार्बोक्सिलिक समूह के C – OH बन्ध का विदलन होता है।

अम्ल क्लोराइड बनाने के लिये नाभिक स्नेही के रूप में SOCI2, एस्टर के लिये ROH, ऐमाइड के लिये NH3 या अमोनिया व्युत्पन्न प्रयुक्त करते हैं।

(A) अम्ल क्लोराइड (ऐसिटिल क्लोराइड) को बनाने की विधियाँ (Methods of preparation of acid chloride)

कार्बोक्सिलिक अम्ल की अभिक्रिया PCI3, PCI5 अथवा SOCI2 से कराने पर अम्ल क्लोराइड प्राप्त होते हैं।

(B) ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड के निर्माण की विधियां (Methods of preparation of acetic anhydride) (i) सोडियम ऐसीटेट की ऐसिटिल क्लोराइड के साथ अभिक्रिया पर ऐसीटिल ऐनहाइड्राइड प्राप्त होता है।

(ii) ऐसिटिक अम्ल को P2O5 के साथ निर्जलीकरण पर ऐसीटिक एनहाइड्राइड प्राप्त होता है।

(iii) सोडियम ऐसीटेट की थायोनिल क्लोराइड अथवा सल्फर डाइक्लोराइड से अभिक्रिया पर ।

(iv) ऐसीटिक अम्ल की कीटीन अथवा ऐसीटिलीन से अभिक्रिया करने पर ।

(C) एस्टर के निर्माण की विधियाँ (Methods of preparation of ester)

(1) ऐसीटिक अम्ल तथा एथिल ऐल्कोहॉल द्वारा : ThO2 की उपस्थिति में 300°C पर ऐसीटिक अम्ल तथा ऐथेनॉल मिलकर एस्टर निर्माण करते हैं।

(2) एथेनोल, ऐसीटिल क्लोराइड के साथ अभिक्रिया पर एथिल ऐसीटेट देता है।

C2H5OH + CH3COCI → CH3 COOC2H5 + HCI

(3) ऐसीटिक अम्ल एथीन से अभिक्रिया पर एथिल ऐसीटेट बनता है।

CH3COOH + CH2 =CH2 → CH3 COOC2H5

(4) ऐल्कोहॉल द्वारा मेथिल सायनाइड के अपघटन पर एस्टर प्राप्त होते हैं-

CH3C=N + C2H5 OH + H2O- → CH3 COOC2H5 + NH3

(5) सिल्वर ऐसीटेट तथा एथिल आयोडाइड मिलकर एथिल ऐसीटेट बनाते हैं

CH3COOAg + C2Hgl → CH,COOC2H5 + Agl

(6) ऐलुमीनियम एथॉक्साइड उत्प्ररेक की उपस्थिति में ऐसीटैल्डिहाइड के दो मोल, कैनीजारो अभिक्रिया के समान ऑक्सीकृत एवं अपचयित होकर अम्ल तथा ऐल्कोहल बनाते हैं जो परस्पर क्रिया कर एस्टर बनाते हैं ।

(D) ऐसीटामाइड के निर्माण की विधियाँ (Methods of preparation of acetamide)

(i) अम्ल व्युत्पन्नों की अमोनिया से अभिक्रिया पर

(ii) यूरिया तथा ऐसीटिक अम्ल की अभिक्रिया से

(iii) ऐल्किल सायनाइडों के आंशिक जल अपघटन से

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