(cambium in plants in hindi) कैम्बियम या एधा क्या है ? केंबियम की परिभाषा किसे कहते है , कार्य , संरचना , प्रकार बताइए ? संवहनी एधा जीव विज्ञान को समझाइये |
प्रस्तावना : द्विबीजपत्री पौधों में विशेष रूप से बहुवर्षीय शाकों , झाड़ियों और वृक्षों में जैसे जैसे पौधे की आयु बढती जाती है तो इसके साथ ही इनकी लम्बाई और मोटाई अर्थात आयतन में भी वृद्धि होती है। इनकी संवहन सम्बन्धी आवश्यकताएँ और सुरक्षात्मक परत के निर्माण की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। सुरक्षात्मक आवश्यकताएं और संवहन सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए पौधे में आगे चलकर दो विशेष प्रकार की द्वितीयक कैम्बियम परतों का निर्माण होता है जिनको क्रमशः कॉर्क कैम्बियम और संवहन कैम्बियम कहते है। पौधे को बढती हुई आयु के साथ साथ कॉर्क कैम्बियम और संवहन कम्बियम की सक्रियता के कारण इसकी तनें की मोटाई में बढ़ोतरी की प्रक्रिया द्वितीयक वृद्धि कहलाती है।
एकबीजपत्री पौधों में द्वितीयक वृद्धि नहीं पायी जाती क्योंकि इनके संवहन बंडलों में फ्लोयम और जाइलम के मध्य अन्त:पुलीय एधा अनुपस्थित होती है। इनके संवहन बंडल संयुक्त , सम्पाशर्विक और बंद होते है फिर भी कुछ एकबीजपत्री तनों जैसे ड्रेसीना और यक्का में असंगत द्वितीयक वृद्धि पायी जाती है।
द्विबीजपत्री पौधों और अनावृतबीजियों में द्वितीयक वृद्धि के अंतर्गत प्राथमिक संवहन बंडलों और इनसे बाहर के क्षेत्र अर्थात रम्भ बाह्य क्षेत्र में विभाज्योतकी कोशिकाएँ क्रमशः संवहन कैम्बियम और कॉर्क कैम्बियम की सक्रियता से तने की मोटाई में वृद्धि होती है। रम्भ क्षेत्र में संवहन कैम्बियम द्वारा बाहर की तरफ फ्लोयम और अन्दर की तरफ जाइलम की कोशिकाएं बनती है। जबकि रंभ बाह्य क्षेत्र में अर्थात सामान्यतया वल्कुट में और कभी कभी अन्त:त्वचा में काग एधा के द्वारा बाहर की तरफ काग और अन्दर की तरफ द्वितीयक वल्कुट की कोशिकाओं का निर्माण होता है। यह सभी प्रकार की कोशिकाएँ मिलकर तने के व्यास में और मोटाई में वृद्धि करती है।
कैम्बियम या एधा (cambium in plants in hindi)
पौधों में मुख्य प्राथमिक संरचना का विकास प्राय: शीर्ष विभाज्योतक से होता है। इस प्रकार विकसित प्राथमिक संरचना अपने आप में पूर्ण होती है। प्राथमिक संरचना में संवहन बंडलों का निर्माण शीर्षस्थ विभाज्योतक में मौजूद प्रोकैम्बियम से होता है। यह प्रोकैम्बियम एक पट्टिका के रूप में मौजूद होता है जो कि फ्लोयम और जाइलम के मध्य क्रियाशील बनी रहती है , इस पट्टिका का संवर्धित प्रारूप ही एधा (cambium) कहलाता है।
इस कैम्बियम पट्टिका की कोशिकाएँ आवश्यकतानुसार उचित समय पर विभाजित होती है और द्वितीयक संवहन ऊतकों के निर्माण द्वारा पौधों की मोटाई में वृद्धि के लिए उत्तरदायी होती है।
कैम्बियम की उत्पत्ति (origin of cambium)
कैम्बियम को पाशर्वीय विभाज्योतक का एक परिष्कृत प्रारूप कहा जा सकता है , जिसका निर्माण प्रोकैम्बियम से होता है। मुख्यतः एकबीजपत्री और कुछ अन्य संवहनी पौधों में प्रोकैम्बियम द्वारा निर्मित सभी कोशिकाएं जाइलम और फ्लोयम में रूपांतरित हो जाती है। इसके विपरीत जिन पौधों में द्वितीयक वृद्धि होती है , वहां प्रोकैम्बियम के सक्रीय विभाजन द्वारा निर्मित सभी कोशिकाएँ , जाइलम और फ्लोएम में रूपांतरित नहीं होती और इनमें से कुछ कोशिकाओं की विभाज्योतकी प्रकृति बरक़रार रहती है। ये कोशिकाएं ही वर्धी संवहन बंडलों में फ्लोएम और जाइलम ऊतक समूहों के मध्य पट्टिका के रूप में दिखाई देती है और एधा (cambium) कहलाती है। यह कैम्बियम पट्टिका द्वितीयक वृद्धि के समय सक्रीय होकर पौधे की मोटाई में वृद्धि करती है।
अधिकांश द्वितीयक वृद्धि करने वाले पौधों में केम्बियम वर्धि संवहन बंडलों में एक विभाज्योतकी पट्टिका के रूप में फ्लोयम और जाइलम ऊतक के बीच पाया जाता है। वर्धी बंडलों में उपस्थिति इस कैम्बियम ऊतक को अन्त:पुलीय एधा अथवा पूलिय एधा (fascicular cambium) कहते है।
इसके अतिरिक्त अनेक पौधों में संवहन बंडलों के मध्य में उपस्थित मज्जा रश्मियों की मृदुतकी कोशिकाएं विभाज्योतकी प्रवृत धारण कर एधा के समान व्यवहार करती है। इस प्रकार यह कैम्बियम में रूपांतरित होकर संवहन बण्डल कैम्बियम के साथ जुड़कर एक वलयाकार कैम्बियम बना लेती है। मज्जा रश्मि मृदुतक कोशिकाओं द्वारा निर्मित इस कैम्बियम को जो दो संवहन बंडलों के मध्य उपस्थित होता है , अन्तरपुलीय एधा (interfascicular cambium) कहते है।
अंतरपुलीय कैम्बियम और अन्त: पूलिय कैम्बियम दोनों को संयुक्त रूप से मिलाकर संवहन कैम्बियम कहा जाता है। इस प्रकार निर्मित कैम्बियम वलय अन्दर की और द्वितीयक जाइलम और परिधि की ओर द्वितीयक फ्लोयम बनाती है।
सभी द्विबीजपत्री पौधों , विशेषकर काष्ठीय पौधों में द्वितीयक वृद्धि के परिणामस्वरूप तने का घेरा काफी अधिक बढ़ जाता है और बाह्यत्वचा इस बढती हुई मोटाई के साथ सामंजस्य बिठाने में अक्षम होती है। इन परिस्थितियों में पौधों की बाह्यत्वचा से लेकर अन्त:त्वचा अथवा द्वितीयक फ्लोयम की सबसे बाहरी परतों में से किसी एक परत की मृदुतकी कोशिकाएँ विभाज्योतकी प्रकृति धारण कर लेती है। इस विभाज्योतकी परत को काग एधा (cork cambium) अथवा फैलोजन (phellogen) कहते है जो परित्वक का निर्माण करती है।
प्राय: बहुवर्षीय काष्ठीय पौधों में संवहन कैम्बियम एक बहुवर्षीय परत होती है अर्थात निर्माण के समय से लेकर अंतिम समय तक यह सक्रीय रहती है परन्तु पौधे की उन शाखाओं में जो शीघ्र ही अलग हो जाती है अथवा गिर जाती है जैसे पर्णवृन्त अथवा पुष्पक्रम में संवहन कैम्बियम बहुत कम समय के लिए कार्यशील होता है।
कुछ एकबीजपत्री पौधों जैसे ड्रेसीना और यक्का आदि जिनमें द्वितीयक वृद्धि पायी जाती है उनमें विशेष प्रकार का द्वितीयक कैम्बियम विकसित होता है। इस द्वितीयक कैम्बियम का निर्माण भरण ऊतक की भीतरी परतों में से किसी एक परत के विभाज्योतकी हो जाने के कारण होता है। यह द्वितीयक कैम्बियम नए द्वितीयक संवहन बंडलों के वलय का निर्माण कर इन पौधों के तनों की मोटाई में वृद्धि के लिए उत्तरदायी होता है।
कैम्बियम की संरचना (structure of cambium)
प्रारूपिक कैम्बियम विभाज्योतकी कोशिकाओं द्वारा निर्मित एकस्तरीय संरचना होती है , जिसमें दो प्रकार की कोशिकाएं पायी जाती है –
(1) तर्कुरूप प्रारम्भिक (fusion initials)
(2) रश्मि प्रारंभिक (ray initials)
(1) तर्कुरूप प्रारम्भिक (fusion initials) : ये कोशिकाएँ चौड़ाई में कम और लम्बाई में अधिक और तर्कुरूप आकृति अर्थात मध्यभाग में प्राय: प्रिज्म की आकृति और दोनों सिरों पर वेजरुपी होती है। ये तर्कुरूप प्रारंभिक कोशिकाएं तने के अक्षीय तंत्र का निर्माण करती है।
(2) रश्मि प्रारंभिक (ray initials) : ये अपेक्षाकृत समव्यासीय अथवा थोड़ी लम्बी कोशिकाएं होती है जो तने के अरीय तंत्र का निर्माण करती है।
कैम्बियम ऊतक की कोशिकाओं में एक बड़ी रिक्तिका अथवा अनेक छोटी रिक्तिकाएँ , एक बड़ा केन्द्रक और परिधीय जीवद्रव्य की पतली परत होती है। प्राय: इन कोशिकाओं की स्पर्शरेखीय भित्ति अरीय भित्ति की तुलना में पतली होती है और ये भित्तियां आपस में जीवद्रवीय प्लाज्माडेस्मेटा की सहायता से जुडी होती है।
कैम्बियम कोशिकाओं में विभाजन अत्यंत तीव्र गति से होता है , यहाँ तक कि इनके विभाजन द्वारा निर्मित संतति कोशिकाएं भी कुछ समय तक विभाज्योतकी प्रकृति प्रदर्शित करती है।
आगे चलकर ये जाइलम अथवा फ्लोएम ऊतक या रश्मि कोशिकाओं के रूप में विभेदित हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप प्राथमिक अध्ययन में कैम्बियम की एक परत के स्थान पर अनेक परतें दिखाई देती है। इस अवस्था में इस क्षेत्र को कैम्बियम क्षेत्र कहते है परन्तु इस क्षेत्र की केवल प्राथमिक कैम्बियम परत ही वास्तविक कैम्बियम को निरुपित करती है और दीर्घजीवी होती है।
कुछ पौधों में (उदाहरण : शीशम) तर्कुरूप कोशिकाएँ नियमित क्षैतिज पंक्तियों में इस प्रकार व्यवस्थित होती है कि उनके सिरे लगभग एक ही तल पर होते है। इसे स्तरीय कैम्बियम (stratified cambium) कहते है।
अन्य पौधों में तर्कुरूप कोशिकाएँ आंशिक रूप से अतिव्यापित होती है और इसे अस्तरीत कैम्बियम (non stratified cambium) कहते है।
स्तरीय कैम्बियम द्वारा निर्मित द्वितीयक जाइलम अथवा काष्ठ को स्तरित काष्ठ जबकि अस्तरित कैम्बियम से बनने वाली काष्ठ को अस्तरित काष्ठ कहते है। जातिवृतीय दृष्टि से स्तरित कैम्बियम को विकसित माना जाता है।
कैम्बियम में कोशिका विभाजन (cell division in cambium in hindi)
कैम्बियम कोशिकाओं में प्राय: परिनतिक अथवा स्पर्श रेखीय तल में कोशिका विभाजन होते है। प्रत्येक कैम्बियम कोशिका विभाजित होकर दो संतति कोशिकाएँ बनाती है , जिनमें से एक कोशिका जनक कोशिका के समान विभाज्योतकी प्रकृति धारण करती है और निरंतर विभाजनशील रहती है। सन्तति कोशिकाएँ जो कैम्बियम की दोनों सतहों पर बनती है। स्थिति के अनुरूप क्रमशः जाइलम मातृ कोशिका और फ्लोयम मातृ कोशिका का कार्य करती है जो बाहर की तरफ फ्लोएम और भीतर की तरफ जाइलम ऊतक में परिवर्धित होती है। कैम्बियम कोशिका अरीय अक्ष में वृद्धि कर पुनः विभाजित होती है। द्वितीयक ऊतकों के निर्माण से तने की परिधि में वृद्धि होती है जिसके कारण कैम्बियम की परिधि भी बढती है। कैम्बियम की परिधि में वृद्धि अपनत विभागों द्वारा होती है।
कैम्बियम की कार्यशीलता (activity of cambium)
विभिन्न पौधों में संवहन कैम्बियम की कार्यशीलता की दर और समय में अत्यधिक विविधता दृष्टिगोचर होती है। सामान्यतया कैम्बियम की सक्रियता , बाहरी और आंतरिक दोनों कारकों के द्वारा प्रभावित होती है।
अधिकतर उष्णकटिबंधीय पौधों में कैम्बियम परत वर्ष पर्यन्त कार्यशील रहती है और इसके निरंतर विभाजन द्वारा निर्मित इसकी संतति कोशिकाएँ जाइलम और फ्लोएम में विभेदित होती रहती है। इस प्रकार के पौधों में किसी प्रकार के वार्षिक वलयों का विभेदन नहीं होता क्योंकि वहां पूरे वर्ष मौसम लगभग लगभग एक जैसा रहता है। इसके विपरीत अनेक क्षेत्रों में सुनिश्चित रूप से मौसम का परिवर्तन महसूस किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे पतझड़ के मौसम में कैम्बियम की सक्रियता बहुत कम हो जाती है। वही दूसरी तरफ बसंत ऋतु अर्थात अनुकूल परिस्थितियों में कैम्बियम अत्यधिक क्रियाशील होती है। कैम्बियम की कार्यशीलता में मौसम के अनुरूप परिवर्तन के कारण वार्षिक वलयों का निर्माण होता है।
कैम्बियम की कार्यशीलता , सक्रीय अक्षस्थ कलिकाओं के नीचे प्रारंभ होकर अक्ष के नीचे की तरफ अग्रसर होती है। शीर्षस्थ अथवा अक्षस्थ कलिकाओं में वृद्धिकारी हार्मोन अथवा ओक्सिन IAA (indole acetic acid) का निर्माण होता है और यह नीचे की तरफ स्थानांतरित होता रहता है। कैम्बियम की कार्यशीलता इस IAA के कारण फिर से नवीनीकरण प्राप्त करती है अथवा बढ़ जाती है। कैम्बियम से जाइलम ऊतक के विभेदन हेतु जिबरेलिक एसिड और IAA दोनों आवश्यक होते है। एधा की सक्रियता के अवरुद्ध होने के सन्दर्भ में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है , फिर भी यह माना जाता है कि लघु दिवस परिस्थितियां अर्थात अल्प प्रदीप्तिकाल कैम्बियम की सुषुप्तावस्था को अभिप्रेरित करते है।
कैम्बियम के कार्य (function of cambium)
संवहन कैम्बियम कोशिकाओं के विभाजन के परिणामस्वरूप द्वितीयक जाइलम और द्वितीयक फ्लोएम का निर्माण होता है।
प्राय: कैम्बियम के बाहर की तरफ विभाजन के परिणामस्वरूप निर्मित सन्तति कोशिकाओं से फ्लोएम और अन्दर की तरफ निर्मित सन्तति कोशिकाओं से जाइलम का निर्माण होता है। कुछ एकबीजपत्री पौधों जैसे ड्रेसिना और यक्का आदि में विशेष प्रकार का द्वितीयक कैम्बियम भरण ऊतक और संवहन बंडलों का निर्माण करता है और इसके परिणामस्वरूप तने की मोटाई में वृद्धि होती है।
विभिन्न शोभाकारी और फलदार पौधों में कृत्रिम कायिक प्रवर्धन के अंतर्गत जब कलिका रोपण अथवा प्रत्यारोपण करते है तब भी मूठ अथवा स्कंध और कलम का कैम्बियम पहले किण अथवा केलस बनाता है और अंत में जुड़कर सम्पूर्ण कैम्बियम परत का निर्माण करता है। इस प्रकार के कैम्बियम ऊतक से बाद में संवहन ऊतकों का निर्माण होता है परन्तु यह प्रक्रिया केवल द्विबीजपत्री पौधों , जिनमें वलयाकार कैम्बियम पाया जाता है वही संभव है।
एकबीजपत्री पौधों में कैम्बियम वलय की अनुपस्थिति के कारण कलिका रोपण अथवा कलम द्वारा कायिक प्रवर्धन सम्भव नहीं है।