बृहदेश्वर मंदिर किसने बनवाया था , brihadeshwara temple built by in hindi , कब बनाया गया

पढों बृहदेश्वर मंदिर किसने बनवाया था , brihadeshwara temple built by in hindi , कब बनाया गया ?

तंजावुर (10°47‘ उत्तर, 79°8‘ पूर्व)
तंजावुर (या तंजौर) तमिलनाडु में स्थित है। यह विशाल चोल साम्राज्य की राजधानी थी। बाद में तंजावुर पर नायकों एवं मराठों का अधिकार रहा।
तंजौर राजराजा चोल (985-1012 ई.) द्वारा निर्मित वृहदेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। भारत के सभी मंदिरों में इस मंदिर का विमान सबसे ऊंचा है। (62 मी. एवं 13 मंजिला, इसके शिखर पर एक गुम्बद है)।
यह एक भव्य मंदिर है। इसकी अवधारणा तथा इसके स्तंभों की सटीक ज्यामितीय रचना अत्यंत प्रशंसनीय है। इस मंदिर को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित किया गया है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक ही ग्रेनाइट पत्थर को तराश कर बनाए गए नंदी की एक विशाल मूर्ति है, जो भारत में दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है। कई बड़े ग्रेनाइट खंडों से मिलकर बने इस मंदिर में शिव, विष्णु एवं दुर्गा की सुंदर प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
मुख्य मंदिर में एक विशाल शिव लिंग है। मंदिर की आंतरिक दीवारों की सज्जा पर चोल काल का प्रभाव है। अन्य छोटे मंदिरों का निर्माण मख्य मंदिर के बाद किया गया था। मंदिर के अंदर स्थित संग्रहालय में चोलों की कई दुर्लभ वस्तुएं देखी जा सकती हैं। मदुरई के नायकों ने 1500 ईस्वी के समीप यहां सरस्वती महल का निर्माण प्रारंभ करवाया, किंतु इसे तंजौर के मराठा शासकों ने पूरा करवाया। महाराजा सरफोजी द्वारा स्थापित पुस्तकालय में लगभग 30,000 पुस्तकों का संग्रह है, जिनमें से कई पाण्डुलिपियां तो अत्यंत दुर्लभ हैं। यहां ताड़ पत्र पर लिखित पुस्तकें एवं कई यूरोपीय पुस्तकें भी हैं।
तंजौर हस्तकला, कांच पर चित्रकारी, हाथ के बुने रेशम एवं कांसे की वस्तुओं के लिए भी प्रसिद्ध है।

थानेश्वर/थानेसर (29.96° उत्तर, 76.83° पूर्व)
थानेश्वर कुरुक्षेत्र के समीप हरियाणा में स्थित है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग यह पुष्यभूति शासकों की राजधानी था। प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन इसी वंश से संबंधित था तथा उसका जन्म भी यहीं हुआ था।
हर्षवर्धन के भाई राज्यवर्धन की बंगाल में गौड़ राज्य के शासक शशांक ने धोखे से हत्या कर दी। इसके पश्चात हर्षवर्धन थानेश्वर के राजसिंहासन पर बैठा। बाद में हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानांतरित कर दी, जो शक्ति का केंद्र बन गया।
थानेश्वर हिन्दुओं की एक पवित्र नगरी है क्योंकि लिंग के रूप में शिव की पूजा सर्वप्रथम यहीं की गई थी।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने थानेश्वर की यात्रा की थी तथा इसे एक समृद्धशाली नगर बताया था।
शेख चिल्ली जलाल का मकबरा, चीनी मस्जिद एवं पाथर मस्जिद इत्यादि यहां की प्रमुख इमारतों में से हैं। इनसे यह भी इंगित होता है कि यह सघन सूफीवाद का एक प्रमुख केंद्र था।

थट्टा (24°44‘ उत्तर, 67°55‘ पूर्व)
थट्टा वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है। प्रारंभ में यह ब्राह्मण शाही राजवंश के अधीन था। किंतु 712 ई. में सिंध पर मु. बिन कासिम के आक्रमण के उपरांत, यह अरबों के नियंत्रण में आ गया। अरबों के शासन के समय यह कला एवं संस्कृति के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित हुआ।
12वीं शताब्दी ईस्वी में मु. गौरी ने इसे अरबों से छीन लिया एवं वह दिल्ली सल्नत का हिस्सा बन गया। बाद में दिल्ली सल्तनत का शासक मु. बिन तुगलक थट्टा अभियान के समय ही मर गया था। फिरोज तुगलक का अंतिम अभियान थट्टा के विरुद्ध ही था।
आगे चलकर थट्टा मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया एवं मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही इस पर एक बलूची जनजाति-तालपुरा के अमीरों का कब्जा हो गया। यह अधिकार उस समय तक बना रहा, जब तक 1843 में सर चाल्र्स नेपियर ने सिंध पर अधिकार नहीं कर लिया।

थिकसे गोम्पा (लगभग 34° उत्तर, 77° पूर्व)
थिक्से गोम्पा अथवा मठ जम्मू-कश्मीर के लद्दाख में लेह के लगभग 19 कि.मी. पूर्व में थिक्से गांव की पहाड़ी के ऊपर अवस्थित है।
सिंधु घाटी में 3600 मी. की ऊंचाई पर स्थित गोम्पा, बौद्ध धर्म की गेलुपा शाखा से संबंधित है। थिक्से मठ की संरचनात्मक रूपरेखा, तिब्बत के ल्हासा में स्थित पोताला पैलेस से गहरे रूप से मिलती-जुलती है, जो पहले दलाई लामा का आधिकारिक स्थान था। भवन परिसर के सबसे ऊंचे स्तर पर स्तूप बनाया गया है जिसमें एक पाषाण स्तंभ है। यह बारह मंजिला परिसर है, जिसमें बौद्ध कला से संबंधित कई वस्तुएं जैसे स्तूप, मूर्तियां, थांगका, भित्ति-चित्र तथा तलवारें आदि रखीं हैं। 1970 में इस मठ की 14वें दलाई लामा द्वारा की गई यात्रा की स्मृति में बनाया गया मैत्रेय मंदिर अत्यंत सुंदर है तथा इसमें मैत्रेय की 15 मी. ऊंची मूर्ति है। यह लद्दाख की सबसे बड़ी मूर्ति है। गोम्पा का इतिहास 15वीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों से शुरू होता है, जब गेलुग संप्रदाय जिन्हें अक्सर श्यलो हैट्सश् (भी कहा जाता है) के संस्थापक जे सोंगरवापा ने तिब्बत के दूर-दराज के क्षेत्रों में नए संप्रदाय की शिक्षाओं को फैलाने के लिए अपने शिष्यों को भेजा था। उनके शिष्यों में से एक शेख जेंगपो और उसके शिष्य पालडन जेंगपो को इस मठ के निर्माण का श्रेय दिया जाता है।

तिगवा (23.71° उत्तर, 80.04° पूर्व)
तिगवा मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित है तथा कंकाली देवी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में स्थापत्य की प्रारंभिक विशेषताओं यथा-सपाट छत, चैकोर गर्भगृह एवं संकरा बरामदा इत्यादि के दर्शन होते हैं। यद्यपि सपाट छतों में पानी के निकास की समुचित व्यवस्था थी। मंदिर की दीवारें सामान्य हैं किंतु प्रवेश द्वार अत्यंत कलात्मक हैं तथा इन पर विभिन्न नदी देवियों यथा-गंगा, यमुना इत्यादि की सुंदर आकृतियां बनी हुई हैं। इस मंदिर को समुद्र गुप्त के शासनकाल में (चतुर्थ शताब्दी ईस्वी) बना हुआ माना जाता है।

तिलौराकोट/तिलौरा कोट
(लगभग 27° उत्तर, 83° पूर्व)
नेपाल में लुंबिनी (बुद्ध का जन्म स्थान) के दक्षिण में तिलौरा कोट स्थित है। माना जाता है कि तिलौराकोट के भग्नावशेष प्राचीन कपिलवस्तु के ही अवशेष है जो प्राचीन शाक्य साम्राज्य में स्थित था और राजकुमार सिद्धार्थ गौतम (बाद में बुद्ध) के बचपन का घर था। माना जाता है कि यह प्राचीन नगर वही है जिसका उल्लेख चीनी यात्रियों फाहियान तथा ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरणों में किया था। इन चीनी यात्रियों ने यहां की यात्रा क्रमशः पांचवीं तथा सातवीं शताब्दी में की थी। वर्ष 2000 में रॉबिन कंनिघम तथा आर्मिल श्मिडिट द्वारा की गई खुदाई में किले के भीतर विभिन्न इमारतों की नींव सहित, बड़े आकार का एक चारदीवारी वाले अवशेष मिले।

तिरुचिरापल्ली (10°48‘ उत्तर, 78°41‘ पूर्व)
तिरुचिरापल्ली जिसे त्रिची के नाम से भी जाना जाता है, कावेरी नदी के तट पर चेन्नई के दक्षिण में तमिलनाडु में स्थित है। त्रिची का लंबा इतिहास ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों तक प्राचीन है। टालमी ने द्वितीय सदी ईसा पूर्व में अपने विवरण में इस नगर का उल्लेख किया था।
परम्पराओं के अनुसार, यहां भगवान शिव ने तीन फन वाले एक विशाल नाग (त्रिसरी) को अपने नियंत्रण में किया था। इसीलिए इस स्थान का नाम तिरुचिरापल्ली पड़ा।
चोल, पांड्य, पल्लव एवं हम्पी के विजयनगर शासकों सभी ने इस पर शासन किया। विजयनगर के शासकों से त्रिची की सत्ता नायकों ने छीन ली। नायकों ने यहां पाषाण का एक सशक्त किला बनाया तथा इसे एक व्यापारिक नगर के रूप में विकसित किया।
त्रिची के समीप स्थित श्रीरंगम मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।

तिरुपति (13.65° उत्तर, 79.42° पूर्व)
आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो चित्तूर जिले की तिरुमाला पहाड़ियों पर स्थित है। वेंकटेश्वर मंदिर को भारत का समृद्धतम मंदिर माना जाता है। यह भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है, जिसका उल्लेख पुराणों एवं शास्त्रों में भी प्राप्त होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह पल्लवों एवं उत्तरवर्ती चोलों से संबंधित माना जाता है। विजयनगर के शासकों ने मंदिर को सुंदर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा उसे विपुल आर्थिक सहायता प्रदान की, साथ-साथ नियमित पूजन की व्यवस्था भी की। तिरुपति में अन्य धार्मिक स्थलों में स्वामी पुष्कर्णी नामक एक पवित्र सरोवर भी है, जिसमें हजारों श्रद्धालु स्नान करते हैं; तिरुचानूर स्थित पदमावती का मंदिर; कपिलतीर्थम स्थित कपिलेश्वर मंदिर; तिरुपति स्थित राम मंदिर एवं तिरुचनूर के समीप जोगी मल्लवरम स्थित परसरेश्वर मंदिर प्रमुख हैं।
तिरुपति चंद्रगिरी किले के लिए भी प्रसिद्ध है, जो कभी विजयनगर के शासकों का सशक्त गढ़ भी था।
बैकुंठतीर्थम, तुम्बुरुतीर्थम एवं गोविंदराज मंदिर तिरुपति के अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं।
इस प्रकार तिरुपति को ‘मंदिरों का शहर‘ माना जा सकता है।

उच्छ (28°75‘ उत्तर, 70°22‘ पूर्व)
उच्छ पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के बाएं तट पर स्थित है। दिल्ली सल्तनत काल में यह एक सीमावर्ती चैकी थी। बलबन ने यहां एक किला बनवाया तथा इसमें भारी सैन्य बल तैनात किया, जिससे मंगोल आक्रमणों का मुकाबला किया जा सके। 1245 ई. में मंगोलों ने उच्छ पर अधिकार कर लिया किंतु बलबन के समय वे अपना अधिकार जारी नहीं रख सके। अलाउद्दीन खिलजी के समय, जफर खान के नेतृत्व में मंगोलों ने यहां पुनः आक्रमण किया किंतु वे सफल नहीं हो सके। 1397 में, तैमूरलंग ने उच्छ को जीत लिया तथा दिल्ली तक पहुंच गया। अपने इस अभियान में उसने दिल्ली में व्यापक तबाही मचाई। यहां तक कि मुगल काल के समय भी मंगोल आक्रमण का भय समाप्त होने के उपरांत भी उच्छ का सामरिक महत्व बना रहा।