हिंदी माध्यम नोट्स
बृहद्रांत्र , गुदा द्वार , श्वसन , 1. श्वसन 2.कोशिकीय श्वसन , कोशिकीयश्वसन की परिभाषा breath human being
वजह से समय पर शौच नहीं जाने पर मल सूख जाता है तथा कब्जियत की शिकायत उत्पन्न
हो जाती है।
जल के अवशोषण के बाद अन्य पदार्थ जो की शरीर के लिए आवश्यक नहीं है, शरीर से बाहर
कर दिए जाते है। इन बर्ज्य पदार्थ का शरीर से बाहर निष्कासन गुदा अवरोधिनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
श्वसन
श्वसन जैव प्रक्रम के अन्दर
आने वाली एक प्रक्रिया है। श्वसन शब्द के आते ही भ्रम पैदा हो जाता है। क्योंकि
श्वसन दो तरह का होता है
1. श्वसन 2.कोशिकीय श्वसन
श्वसन
का अर्थ होता है श्वास लेना तथा छोड़ना। श्वसन प्रक्रिया के अंतर्गत गैसों का
आदान प्रदान होता है। जिसमे की ऑक्सीजन शरीर के अंदर ली जाती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड को शरीर से बाहर
निकाली जाती है। जब हम श्वास लेते हैं तो ऑक्सीजन को नाक के द्वारा
अंदर खींचते हैं तथा कार्बन
डायऑक्साइड को बाहर छोड़ते हैं।
कोशिकीय श्वसन जिसे भी श्वसन कहा जा सकता है, एक चपाचपयी प्रतिक्रिया तथा प्रक्रिया है।इस तरह की
प्रक्रिया जीवों की कोशिका के अंदर होती है, जिसमें पोषक तत्वों का उपयोग उर्जा
प्राप्त करने में किया जाता है।
कोशिकीय
श्वसन की परिभाषा
कोशिकीय
श्वसन के अंतर्गत जीव पोषक तत्वों जो
की भोजन के पाचन से प्राप्त होते है से उर्जा प्राप्त करते है श्वसन कहलाता है। कोशिका के अन्दर श्वसन की प्रक्रिया होती
है इसमें जीवों द्वारा प्राप्त पोषक तत्वों से जैव रासायनिक उर्जा एक रासायनिक अभिक्रिया से प्राप्त होती है।
इस अभिक्रिया में कार्बोहाइड्रेट
का ऑक्सीकरण होता है जो की भोजन से प्राप्त होता है। कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण
से उर्जा प्राप्त होती है जिसका उपयोग विभिन्न जैव प्रक्रमों को सम्पन्न करने में होता है।
कोशिकीय
श्वसन की प्रकिया दो चरणों में सम्पुर्ण होती है। पहल्रे step में भोजन से प्राप्त ग्लूकोज का विघटन पायरूवेट
अम्ल में होता है। पायरूवेट अम्ल जो की कार्बन के तीन परमाणु से मिलकर बना होता
है। ग्लूकोज का विघटन कोशिकाद्रव्य में होता है।
दुसरे step में ग्लूकोज के विघटन
से प्राप्त पायरूवेट अम्ल का विघटन कार्बन डाईऑक्साइड तथा ईथेनॉल या लैक्टिक अम्ल
में होता है। यह प्रक्रिया वायु की अनुपस्थिति में होती है।यह प्रक्रम किण्वन के
समय यीस्ट में होता है। पायरूवेट अम्ल जो की विघटित होकर कार्बन डाईऑक्साइड तथा जल
देता है।
पायरूवेट के विधटन से
प्रयाप्त मात्रा में उर्जा निकलती है अर्थात यह प्रक्रिया उष्माक्षेपी होती है। इस
उष्माक्षेपी प्रक्रिया से प्राप्त उर्जा ATP के रूप में संरक्षित होती है। इस उर्जा को आवश्यकतानुसार छोड़ा जाता है। इस
प्रकार का श्वसन माइटोकॉन्ड्रिया में संपन्न होता है।
पायरूवेट का विघटन
उष्माक्षेपी (Exothermic)
है। अत: इसमें उर्जा निकलती
है। तथा इससे प्राप्त उर्जा ATP (Adenosine triphosphate) के रूप में संरक्षित हो जाती है, जिसे आवश्यकतानुसार छोड़ा जाता है। श्वसन का यह प्रक्रम
माइटोकॉन्ड्रिया में संपन्न होता है। माइटोकॉन्ड्रिया जो की कोशिका के अन्दर होती
है और इससे उर्जा मिलती है इसलिए माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का उर्जा घर भी कहा
जाता है।
अलग अलग जीवो में श्वसन की
प्रक्रिया भी अलग अलग होती है। ऑक्सीजन की उपस्थिति के आधार पर श्वसन को दो तरीके
से बाँटा गया है :
1.अवायवीय
शवसन
श्वसन प्रक्रिया जो की ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है अवायवीय
श्वसन कहलाता है। इस प्रकार की प्रक्रिया किण्वन के
समय यीस्ट में होती है। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में पायरूवेट अम्ल का विघटन होने से
कार्बन डाइऑक्साइड के साथ इथेनॉल की जगह लैक्टिक एसिड बनता है। लैक्टिक एसिड का
निर्माण विशेष परिस्थिति पर निर्भर करता है।
2.वायवीय श्वसन
श्वसन प्रक्रिया जो की वायु अर्थात ऑक्सीजन की उपस्थिति में
होती है वायवीय श्वसन कहलाता
है। ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरूवेट अम्ल विघटित होकर कार्बन डायऑक्साइड तथा जल
बनाता है।
ऑक्सीजन की उपस्थिति में इससे अधिक उर्जा निकलती है। मानव
शरीर में इस प्रकार का ही श्वसन होता है।
बहुत ज्यादा दौड़ने पर हमारी पेशी कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी
हो जाती है। इस स्थिति में पायरूवेट अम्ल का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में विधटन होकर
कार्बन डाइऑक्साइड के साथ लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है। इस लैक्टिक अम्ल के
कारण ही हमारी पेशियों में दर्द होने लगता है। आराम या मालिश करने पर लैक्टिक अम्ल
विघटित होकर ईथेनॉल तथा जल में परिवर्तित हो जाता है जिससे की पेशियों में होने वाला
दर्द ख़त्म हो जाता है।
वायवीय श्वसन के लिए ऑक्सीजन की जरुरत होती है अलग अलग तरीके
के जीवो में गैसो का आदान प्रदान भी अलग अलग तरीके से होता है जो की कुछ इस प्रकार
से है
पौधों में गैसो का आदान
प्रदान इनकी पतियों पर उपस्थित रंध्र छिद्र के द्वारा होता है। कार्बन डाइऑक्साइड
तथा ऑक्सीजन का आदान प्रदान विसरण के द्वारा होता है। इन गैसो को कोशिकाओं में या उससे दूर बाहर वायु
में भेज सकते है। विसरण की दिशा पौधों की आवश्यकता पर निर्भर करती है। जब रात्त
में कोई प्रकाश संश्लेषण की प्रकिया नहीं होती है तब यह ऑक्सीजन को गहण करती है और
कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकालती है और जब दिन में प्रकाश संश्लेषण की
प्रक्रिया होती है तब यह कार्बन डाईऑक्साइड को लेती है और ऑक्सीजन को बाहर निकालती
है जो की मनुष्य के श्वसन में उपयुक्त होती है।
स्थलीय जीवों में श्वास लेने
के लिये फेफड़े का उपयोग किया जाता है बाहरी पर्यावरण से ऑक्सीजन को लेना और कार्बन
डाईऑक्साइड को बाहर निकालने के लिए फेफड़े
का उपयोग किया जाता है जैसे की मनुष्य, हाथी, घोड़े आदि फेफड़े की मदद से ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन
डाईऑक्साइड छोड़ते हैं।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…