JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: 10th science

मनुष्य में पोषण nutrition in human beings class 10 in hindi

nutrition in human beings class 10 in hindi मनुष्य में पोषण

मनुष्य को पोषण भोजन
के रूप में प्राप्त होता है भोजन के पाचन से मनुष्य को उर्जा मिलती है मनुष्य में
भोजन का पाचन आहार नली में होता है। आहार नली मुँह से गुदा तक एक लंबी नली के रूप
में होती है। इस आहार नली में भोजन का पाचन विभिन्न चरणों में होता है
, जिससे की मनुष्य को
पोषण प्राप्त होता है।
जब मनुष्य भोजन का आहार करता तब उसे आहार नली के अलग अलग
भागो से गुजरना पड़ता है जो की आहार नली को अलग अलग भागो में DIVIDE करती है।

मुँह ,ग्रसिका, अमाशय, क्षुद्रांत्र ,बृहद्रांत्र, गुदा
द्वार से मिलकर आहार नली का निर्माण होता है

1.मुँह
मुँह आहार नली का मुख्य द्वार
है।
मुँह
के
द्वारा ही मनुष्य भोजन
प्राप्त करता है और
मुँह से ही भोजन का पाचन शुरू होता है। मुँह भी अलग अलग भागो से मिलकर बना होता है। दाँत ,लाला ग्रंथि,जीभ मुँह के भाग है।
दाँत का मुख्य कार्य भोजन को
चबाना है। दाँत
  भोजन को चबाकर उसे छोटे छोटे टुकड़ों में परिवर्तित कर देता है। इसके साथ ही दाँत
बोलने में हमारी मदद करता है और हमारे चेहरे को अच्छा आकार देता है।

आहार नाल का आस्तर काफी कोमल होता है और भोजन को निगलने
से पहले उन्हें गीला करना आवश्यक होता है ताकि आहार नाल के आस्तर को कोई हानि न
पहुँचे सके। इस प्रकार इस भोजन को गीला करने के लिए लाला ग्रंथि की जरूरी होती है।
लाला ग्रंथि एक प्रकार की ग्रंथि है
जो
मुँह में होती है। लाला ग्रंथि से एक प्रकार का रस निकलता है
, जिसे लालारस या लार कहा जाता है जो की भोजन को गीला करने के
लिए जिम्मेदार होता है। लालारस एक प्रकार एंजाइम होता है
 जो  की जटिल भोजन को साधारण घटकों में विघटित करने
का कार्य करता है। भोजन को चबाने के साथ साथ लाला रस भोजन को गीला कर देता है। अत:
लालारस  के कारण ही भोजन का पाचन मुँह से
ही शुरू हो जाता है।

जीभ का कार्य भोजन को चबाने
के साथ उसमे लालारस मिलाने का होता है। जीभ पत्ते के आकार का एक मांसपेशी है जो की
मुँह में होती है। चबाने के बाद
जीभ
भोजन को अंदर की ओर धकेलता है।

जीभ कई स्वाद ग्रंथियाँ से
मिलकर बनी होती है,
जो की
हमें भोजन का स्वाद बतलाती है। इन कार्यों के अतिरिक्त
, जीभ बोलने में भी हमारी मदद करती है।

2. ग्रसिका

ग्रसिका मांशपेशियों से बनी
एक लंबी नली होती है जो की मुँह से अमाशय को जोड़ने का कार्य करती है।आहार नली के
हर भाग में भोजन को नियमित रूप से गति प्रदान की जाती है ताकि भोजन का पाचन सही
ढंग से हो सके। आहार नली का अस्तर कई पेशियो से मिलकर बना होता है जो की नियमित
तथा निरंतर रूप से फैलकर तथा सिकुड़कर भोजन को आगे बढ़ाती है। इस प्रकार की गति को क्रमाकुंचक
गति भी कहा जाता है जो की पूरी भोजन नली में होती है
तथा भोजन को लगातार आहार नली में आगे बढ़ाती रहती है। मुँह से
भोजन ग्रसिका के द्वारा ही  अमाशय तक पहुँचता
है। ग्रसिका में किसी प्रकार की पाचन क्रिया नहीं होती है।

3.अमाशय
(
Stomach)

अमाशय हमारी शरीर का एक
महत्वपूर्ण अंग है जो की भोजन के पाचन में मदद करता है। अमाशय में भोजन आने पर यह फैल
जाता है। आमाशय की पेशीय भित्ति जो की भोजन को अन्य पाचक रसों के साथ मिश्रित करने
में सहायक होती है। भोजन का पाचन कार्य अमाशय में उपस्थित जठर ग्रंथियों के द्वारा
ही होता है। इन जठर ग्रंथियों से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का अम्ल निकलता है जो की प्रोटीन
पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्लेष्मा का स्त्रावण करते हैं। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक
अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता
है।श्लेष्मा अमाशय के आंतरिक आस्तर की अम्ल से रक्षा करता है।

4.क्षुद्रांत्र

अमाशय से भोजन क्षुद्रांत्र में प्रवेश करता है। क्षुद्रांत्र
आहार नली का सबसे लम्बा भाग है
जो की अत्यधिक
कुंडलित होने के कारण यह बहुत अधिक स्थान में होती है। अलग अलग जीवो में
क्षुद्रांत की लंबाई उनके भोजन के प्रकार के अनुसार अलग अलग ओती है। घास खाने वाले
जीवो के लिए लंबी क्षुद्रांत की आवश्यकता होती है क्योकि सेल्युलोज पचाना अधिक कठिन
होता है। बाघ जैसे मांसाहारी की क्षुद्रांत छोटी होती है क्योकि मांस का पाचन सरल होता
है।

एक वयस्क मनुष्य के क्षुद्रांत्र की लम्बाई लगभग 6 मीटर या 20 फीट
होती है।

क्षुद्रांत्र
में ही भोजन में उपस्थित
कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा का पूर्ण पाचन होता है। अमाशय से प्राप्त
भोजन अम्लीय होता है जो की
क्षुद्रांत्र में प्रवेश करता है अत:
एंजाइमों की क्रिया के लिए भोजन को क्षारीय बनाया जाता है। कार्बोहाइड्रेट
, प्रोटीन तथा वसा का पाचन के लिए क्षुद्रांत यकृत तथा
अग्न्याशय से स्त्रावण प्राप्त करती है। यकृत से स्त्रावित पित्तरस का कार्य वसा
पर क्रिया करने के लिए होता है। क्षुद्रांत में वसा बड़ी गोलिकाओं के रूप में होती
है जिसकी वजह से  एंजाइम का कार्य करना
मुश्किल हो जाता है। पित्त लवण बड़ी गोलिकाओं को छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देता
है
, जिससे एंजाइम की क्रियाशीलता वसा पर
बढ़ जाती है।

अग्न्याशय से  अग्न्याशयिक रस का स्त्रावण होता है जिसमें उपस्थित
ट्रिप्सिन एंजाइम प्रोटीन का पाचन करने के लिए जिम्मेदार होता है तथा इमल्सीकृत
वसा का पाचन करने के लिए इसमे  लाइपेज
एंजाइम होता है। क्षुद्रांत्र की भित्ति में एक ग्रंथि होती है जो आंत्र रस
स्त्रावित करती है इस आंत्र रस में उपस्थित एंजाइम end में प्रोटीन को अमीनो अम्ल
, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में तथा वसा को वसा अम्ल या ग्लिसरॉल
में परिवर्तित कर देता है।

पचे हुए भोजन को आंत्र की
भित्ति अवशोषित कर लेती है। क्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अनेक अँगुली जैसे
प्रवर्ध होते हैं जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं
, जो की अवशोषण
का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं। दीर्घरोम में रूधिर वाहिकाओं की मात्रा भी बहुत
अधिक होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाती हैं। यहाँ
इसका उपयोग उर्जा प्राप्त करने
, नए
ऊतकों के निर्माण और पुराने ऊतकों की मरम्मत में होता है।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

2 days ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

5 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

1 week ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now