जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग अध्याय – 12 कक्षा 12 जीव विज्ञान नोट्स Biotechnology and its Applications

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अध्याय-12 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग

 जैव-प्रौद्योगिकी –
जैव-प्रौद्योगिकी विज्ञान की आधुनिकतम शाखा है इसके अन्तर्गत जैविक तंत्रो जैविक क्रियाओं का उपयोग मानव कल्याण हेतु किया जाता है जैसे- औ़द्योगिक स्तर पर सूक्ष्मजीवों कवकों एवं पादपों व जन्तुओं द्वारा जैव-औषधिययों व अन्य जैविक पदार्थो का उत्पादन किया जाता है।
 कृृषि मेें जैव-प्रौद्योगिकी का उपयोग-
जैव प्रौद्योगिकी द्वारा कृषि क्षेत्र में खाद्य उत्पादन मेें वृद्धि लगभग तीन गुना बढ़ी है। जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा ही उच्च उत्पादकता वाली फसलों की किस्में तैयार की गई हैं। यह सब जीवों में आनुवांशिक स्तर पर रूपान्तरण द्वारा संभव हुआा हैं। ऐसे जीव आनुवांशिक रूप से रूपान्तरित जीव कहलाते है।
जैव-प्रौेद्योगिकी के उपयोग द्वारा उत्पन्न फसलों के गुणों में वृद्धि हुई है इनके द्वारा उत्पन्न फसलों में निम्नलिखित गुण होते हैं।
 यह फसलें उच्च गुणवत्ता वाली होती हैे, ये साधारण फसलों से भिन्न होती हैं।
 इनके द्वारा तैयार फसलों में अजैविक कारकों के प्रति प्रतिरोधी होने का गुण होता है।
 नाॅन-लेग्यूमिनस पादपों में नाइटोजन स्थिरीकरण की क्षमता के विकास हेतु किया जाता है।
 ये फसलें खनिजांे का पूर्ण उपयोग कुशलता पूर्वक करती हैं।
 जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा तैयार फसलों की नई किस्मों के उदाहरण निम्न हैं।

1. Bt फसलें –
Bt एक प्रकार का प्रतिविष है, जो बैसिलस यूरिन्जिएन्सिस जीवाणु केे द्वारा निर्मित है। Bt जीव के विष का जीन जीवाणु से निकालकर पादपों में स्थानान्तरित कर देते है इससे पादपों में प्रतिविष का निर्माण होने लगता है।
जिससें कीटनाशक की आवश्यकता नही पड़ती है इस प्रकार की फसलों को Bt फसल कहते है। जैसे-
Bt कपास, Bt धान, Bt मक्का।

नोट-

 Bt प्रतिविष की खोज जापानी वैज्ञानिक ईशीवाटा ने सन् 1902 मेें की थी।
 Bt कपास
Bt जीव या बैसिलस थ्यूरिन्जिएन्सिस नामक भूमिगत जीवाणु के जीव विष नाामक प्रोटीन की मदद सेे कपास की एक नई किस्म तैयार की गई जिसे Bt कपास कहते है।
Bt जीवाणु के प्रोटीन के कारण Bt कपास पर शलभ कृमि का प्रभाव नही पड़ता है जिससे कपास उत्पादन में वृद्धि होती है।
 जीव विष बनाने वाले जीन का नाम क्राई (cry) जोकि Bt जीवाणु मेें पाया जाता है।

2. गोल्डन धान-
मुख्यता सभी प्रकार के धान (चावल) में विटामिन ए की कमी पायी जाती है। परन्तु जैैव-प्रौद्योगिकी की सहायता से जीन परिवर्तन द्वारा विटामिन ए की कमी को दूर करने वाला चावल का निर्माण किया गया जिसे वैज्ञानिकों के गोल्डन धान नाम दिया।
 वैज्ञानिकों द्वारा इस चावल को उत्पन्न करने के लिए उसके पादपों पर तीन जीनों का प्रत्यारोपण किया जाता है इस प्रक्रिया के अनुरूप B-कैरोटिन युक्त पीले रंग का चावल उत्पन्न होता हैं।
B-कैरोटिन शरीर में विटामिन ए की कमी को दूर करता है।

3. पीड़क प्रतिरोधी पादप-
जैव-प्र्रौद्योगिकी के द्वारा पादपों में उपयुक्त लक्षणों वालें जीनों का स्थानान्तरण करके पीड़को, कीटो आदि के प्रति प्रतिरोधी पादपों का विकास किया गया है।
पीड़क प्रतिरोधी पादपों में पीड़कनाशी, कीटनाशी आदि प्रकार के रसायनों का प्रयोग नही होता हैं।
उदाहरण-
मिलोइडाोगाइनी , इनकोग्नीटा नामक निमैटोड तम्बाकू के पादपों की जड़ों को संक्रमित कर देता है परन्तु नवीन पद्धति आर.एन.ए अन्तरक्षेेप का प्रयोग कर इस संक्रमण से बचा जा सकता है।

नोट-
 पीड़क प्रतिरोधी पादपों में पीड़कनाशी का उपयोग नही किया जाता है।

 ठज अविष के रवे कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाये जाते है, लेकिन जीवाणु स्वंय को नही मारते है, क्योकि ये अविष निष्क्रिय होते है।

 चिकित्सा में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग-
चिकित्सा के क्षेत्र मेें जैव प्रौद्योगिकी का महत्वपूर्ण योगदान है जिसे निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है।

1. मानव इन्सुलिन- इन्सुलिन एक लघु प्रोटीन हाॅर्मोन है। यह प्रोटीन युक्त हार्मोन अग्नाशय की बीटा  कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। यह रूधिर में ग्लूकोस की मात्रा को नियन्त्रित करता हैं। रूधिर में ग्लूकोस की अधिकता मधुमेह रोग का कारण होती है।
 मधुमेह रोगके निदान में मानव इन्सुलिन प्रमुख रूप से उपयोगी है।
 सर्वप्रथम सन् 1916ई0 में एडवर्ड शेफर ने इन्सुलिन की खोज की थी।

इन्सुलिन का संश्लेषण
5 जुलाई सन् 1983 को ‘एली लिली‘ नामक अमेरिकन कम्पनी ने दो डी.एन.ए अनुक्रमों को तैयार किया जो मानव इन्सुलिन की श्रृंखला । एवं B के समान थे।
इस कम्पनी द्वारा पुनर्योगज डी.एन.ए तकनीक का उपयोग करके इन जीन्स को ई0 कोलाई जीवाणु मेें स्थानान्तरित करके इन्सुलिन श्रृंखलाएं प्राप्त की।
 इन्सुलिन की । एवं B श्रृंखलाओं को पृथक रूप से प्राप्त करके, उन्हे डाइसल्फाइड बन्धों द्वारा जोड़ दिया गया। इससे उत्पादित इन्सुलिन को मानव इन्सुलिन कहा गया।
नोट-
सन् 1998 में एली लिली तथा रैनबैक्सी ने मधुमेह औषधि को बाजार में उतारा जैसे-हुमापेन, हुमालोग, प्रोटीन फाइनेज।

मानव इन्सुलिन उत्पादन के चरण –
 सर्वप्रथम मानव इन्सुलिन की A एवं B श्रृंखलाओं के लिए डी.एन.ए न्यूक्लियोटाइड के क्रम को ज्ञात किया जाता है।
 इन डी.एन.ए की ज्ञात श्रृंखलाओं को पृथक प्रकृति वालेे ई0 कोलाई जीवाणु के प्लाज्मिड के साथ जोड़ा गया। इसप्रकार जीवाणु मेें इन्सुलिन निर्माण के जीन्स आ गए।
 इन जीवाणुओं का उचित दशाओें में किण्वन किया गया जिससें इनका संवर्धन हुआ।
 अन्ततया किण्वन से पदार्थ को निकालकर इन्सुलिन श्रृंखला को पृथक किया।
 दोनों ही प्राप्त श्रृंखलाओं को डाइसल्फाइड बंधो द्वारा जोड़कर मानव इन्सुलिन प्राप्त कर लिया गया।

2. टीका उत्पादन – जैव-प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा द्वितीय पीढ़ी के टीके अर्थात पुनर्योगज टीके तथा तृतीय पीढ़ी के टीके का उत्पादन किया जा रहा है।
 पुनर्योगज तकनीक द्वारा हिपेटाइटिस ठए हर्पीज, इन्फलुएन्जा काली खांसी, मैनिनजाइटिस आदि रोगों के टीकों का उत्पादन किया जा रहा है।
3. जीन चिकित्सा-इसके द्वारा विकृत जीन को किसी दूसरे स्वस्थ जीन से प्रतिस्थापित करके अनेक रोगांे का उपचार सम्भव है। सर्वप्रथम सन् 1990 में एक चार साल की बच्ची SCID से ग्रसितद्ध में एडिनोसीन डीएमीनेज (ADA) न्यूनता के उपचार हेतु जीन चिकित्सा का प्रयोग किया गया।
नोट- इण्टरफेरान प्रतिविषाणु ग्लाइकोप्रोटीन है, जो प्रतिरक्षा नियन्त्रक की भांति कार्य करता है इनका प्रयोग अनेक रोगो के उपचार में किया जा रहा है।

 आण्विक निदान –
पुनर्योगज डी.एन.ए तकनीक, पाॅलीमेरज श्रंृखला अभिक्रिया (PCR) व एन्जाइम लिंकड इम्यूनोसाॅर्बेन्ट एस्से (EIISA) द्वारा रोगों की पहचान समय से पूर्व की जा सकती है।
 पारजीनी जन्तु ;(टांसजेनिक एनिमल्स) –
ऐसे जीव जन्तु, जिनके डी.एन.ए में परिचालन विधि द्वारा एक अतिरिक्त जीन व्यवस्थित कर दिया जाता है जो अभिव्यक्ति का प्रदर्शन भी करता है पारजीनी या आनुवांशिक परिवर्ती जन्तु कहलाते हैं।
 बायोपाइरेसी या जैवदस्युता-
किसी देश की जैविक समादओं, उद्योगों व्यवस्थाओं का किसी अन्य देश के द्वारा शोषण करना ही बायोपाइरेसी कहलाता हैं।
बायोपाइरेसी (Biopiracy) को हिन्दी में जैवदस्युता कहते है।
उदाहरण- बासमती बीज, जोकि भारत का सुगन्धित चावल है, जिसें हम कई शताब्दियो से उगा रहे है, किन्तु राइसटेक का दावा है की यह अनोखी प्रजाति उनकी खोज हैं।

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