उर्वरक क्या है | रासायनिक उर्वरक के उपयोग , प्रकार , अर्थ उद्योग biofertilizers meaning in hindi

(biofertilizers meaning in hindi) उर्वरक क्या है | रासायनिक उर्वरक के उपयोग , प्रकार , अर्थ उद्योग ?

उर्वरक

 फसलों के अधिक उत्पादन व पौधों की वृद्धि के लिए, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम आदि तत्वों की आवश्यकता होती है। पौधे इन तत्वों को भूमि से ग्रहण करते हैं जो धीरे-धीरे भूमि में इन तत्वों की कमी हो जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिए कृत्रिम रूप से बनाए गए इन तत्वों के यौगिक उचित मात्रा में भूमि में मिलाए जाते हैं। कृत्रिम रूप से बनाए गए इन यौगिकों को ही उर्वरक कहते हैं।

 नाइट्रोजन के उर्वरकइन उर्वरकों में मुख्यतरू नाइट्रोजन तत्व पाया जाता है। कुछ प्रमुख नाइट्रोजन यौगिक निम्न हैंः

 यूरियाः यूरिया में 46प्रतिशत नाइट्रोजन की मात्रा पाई जाती है।

 अमोनियम सल्फेटः इसमें नाइट्रोजन अमोनिया के रूप में उपस्थित रहती है तथा लगभग 25 प्रतिशत अमोनिया पाई जाती है। यह आलुओं के लिए अच्छा उर्वरक है। इसका प्रयोग चूना रहित भूमि में नहीं किया जाता है।

 कैल्शियम नाइट्रेटः यह नाइट्रोजन का सबसे अच्छा उर्वरक है। बाजार में यह ‘नार्वेजियन साल्टपीटर‘ के नाम से जाना जाता है।

 कैल्शियम सायनामाइडः इस उर्वरक का छिड़काव बुआई करने से पहले भूमि में किया जाता है। पौधों की वृद्धि के समय इस उर्वरक का प्रयोग पौधों के लिए लाभप्रद नहीं होता है।

 पोटैशियम के उर्वरकः पोटैशियम क्लोराइड, पोटैशियम नाइट्रेट, पोटैशियम सल्फेट आदि पोटैशियम के कुछ प्रमुख उर्वरक हैं।

 फॉस्फोरस के उर्वरकः सुपर फॉस्फेट ऑफ लाइम, फॉस्फेटी धातुमल आदि फॉस्फोरस के प्रमुख उर्वरक हैं। सुपर फॉस्फेट को जानवरों की हड्डियों को पीस कर बनाया जाता है।

 पौधे फॉस्फोरस की अनुपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया सम्पन्न नहीं कर सकते हैं। इसकी कमी से पत्तियाँ रंगहीन हो जाती हैं तथा यदि फॉस्फोरस प्राप्त न हो तो अन्ततः पौधे मर जाते हैं। फॉस्फेट उर्वरक फॉस्फेट चट्टानों से बनते हैं जिसमें कैल्शियम फॉस्फेट होता है। कैल्शियम फॉस्फेट की सल्फ्युरिक अम्ल की उचित मात्रा के साथ अभिक्रिया से सुपर फॉस्फेट बनता है। यह उर्वरक के रूप में उपयोग होता है।

सीमेन्ट

 सीमेन्ट का प्रयोग सबसे पहले 1824 में जोसेफ एस्पीडन ने किया था। सीमेन्ट में जल मिलाकर कुछ समय तक छोड़ने पर यह जमकर एक कठोर पदार्थ बनाता है, जो इंग्लैण्ड में पाये जाने वाले पोर्टलैण्ड पत्थरों के समान कठोर होता है। इसी कारण इसे पोर्टलैण्ड सीमेन्ट कहा जाता है।

 रासायनिक रूप से सीमेन्ट कैल्शियम के सिलिकेटों तथा एलुमिनेटों का मिश्रण है। इसमें ट्राइकैल्शियम सिलिकेट, डाइकैल्शियम सिलिकेट, ट्राइकैल्शियम ऐलुमिनेट तथा कुछ मात्रा में जिप्सम होता है।

 सीमेन्ट के उत्पादन के लिए चूना-पत्थर, चिकनी मिट्टी एवं जिप्सम का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है। चूना-पत्थर कैल्शियम ऑक्साइड प्रदान करती है। यह एक चिकनी मिट्टी सिलिका, ऐलुमिना एवं फेरिक ऑक्साइड प्रदान करती है। यह एक धूसर रंग का बारीक चूर्ण होता है, जिसमें जल के साथ अभिक्रिया करके जमने तथा दृढ़ होने का गुण होता है। सीमेन्ट में कैल्शियम ऑक्साइड या चूना 60-70 प्रतिशत, सिलिका 20-25 प्रतिशत, ऐलुमिना 5-10 प्रतिशत तथा फेरिक ऑक्साइड 2-3 प्रतिशत होता है।

 सीमेन्ट में चूने की मात्रा अधिक रहने पर जमते समय उसमें दरारें पड़ जाती हैं, जबकि सीमेन्ट में ऐलुमिना की मात्रा अधिक रहने पर वह शीघ्र जमता है।

 सीमेन्ट के ठोस रूप में परिवर्तन की प्रक्रिया को सीमेन्ट का जमना कहते हैं। इसमें होने वाली जलयोजन प्रक्रिया ऊष्माक्षेपी होती है जिससे ताप बढ़ जाता है। अतः सीमेन्ट के जमने के दौरान इस पर पानी डालते रहना चाहिए। ठण्डा नहीं रखने पर सीमेन्ट में दरारें पड़ जाती हैं। जिप्सम का कार्य सीमेन्ट के जमने की दर को कम करना है, जिससे सीमेन्ट कठोर हो जाता है।

 गारा या मोर्टारः जब सीमेन्ट के साथ बालू व जल मिलाया जाता है, तो इस मिश्रण को मोर्टार कहा जाता है। यह भवन निर्माण की एक महत्त्वपूर्ण सामग्री है। इसका उपयोग फर्श आदि बनाने में किया जाता है।

 प्रबलित सीमेन्ट कंक्रीटः जब कंक्रीट को शक्ति प्रदान करने के लिए इस्पात या लोहे की छड़ों, सलाखों अथवा तार के जालों का प्रयोग होता है तब उसे प्रबलित सीमेन्ट कंक्रीट कहते हैं। इसका उपयोग मकान की छतों, खम्भों, पुलों, बाँधों आदि के निर्माण में होता है।