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आउवा का युद्ध कब हुआ था या आउवा का युद्ध किस वर्ष हुआ था ? battle of auwa in hindi when and where fought

battle of auwa in hindi when and where fought ?

प्रश्न : आउवा का युद्ध कब हुआ था या आउवा का युद्ध किस वर्ष हुआ था ?

उत्तर : 23 अगस्त 1857 को जोधपुर-लीजन ने दफेदार मोती खां तथा सूबेदार शीतल प्रसाद और तिलकराम के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा दिया। आउवा के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत ने क्रान्तिकारी सेना का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया। आसोप , आलनियावास , गूलर , लाम्बिया , बन्तावास तथा रुदावास के जागीरदार भी अपनी अपनी सेना के साथ क्रान्तिकारियों से आ मिले।
जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह को क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए लिखा। महाराजा ने अपने किलेदार ओनाड़सिंह पंवार तथा फौजदार राजमल लोढ़ा के नेतृत्व में 10 हजार सैनिक और घुड़सवार एवं 12 तोपें आउवा रवाना की। 8 सितम्बर , 1857 को आउवा के निकट बिथोड़ा नामक स्थान पर दोनों सेनाओं में कड़ा मुकाबला हुआ। राज्य की सेना ने भारी शिकस्त खाई। ये समाचार जब लोरेन्स को मिले तो वह अजमेर से सेना लेकर आउवा के लिए रवाना हुआ। जोधपुर का पोलिटिकल एजेंट मैसन भी सेना के साथ था।18 सितम्बर 1857को चेलावास नामक स्थान पर दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। क्रांतिकारी फिर विजयी हुए। युद्ध के दौरान मैसन मारा गया। क्रान्तिकारियों ने उसका सिर धड से अलग कर आउवा में घुमाया तथा बाद में उसे किले के दरवाजे पर टांग दिया। लोरेन्स ने भाग कर अजमेर की राह ली। उसने पालनपुर तथा नसीराबाद से एक बड़ी सेना ‘कर्नल होम्स’ के नेतृत्व में आउवा भेजी। 8 अगस्त 1860 को क्रांतिकारियों के नेता ठाकुर कुशालसिंह ने नीमच में अंग्रेजों के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया।
प्रश्न : 1857 की क्रान्ति में राजस्थानी साहित्यकारों का योगदान / भूमिका की विवेचना कीजिये।
उत्तर : 1857 की क्रान्ति के समय यहाँ के कवियों और साहित्यकारों ने समाज के सभी वर्गों में अपनी लेखनी , गीतों के माध्यम से जन जागृति लाकर क्रांति का नूतन संचार किया। प्रसिद्ध कवि बांकीदास ने अपनी कविताओं के माध्यम से शासकों की अंग्रेजी दासता वृत्ति को धिक्कारा और कोसा साथ ही जनता को फिरंगियों के विरुद्ध शास्त्र उठाने का आह्वान किया। महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने अपने ग्रंथों (वीर सतसई) में जागीरदारों और जनसामान्य में जोश भर दिया। दलजी कवि (डूंगरपुर) ने अपनी व्यंग्य कविताओं के माध्यम से शासकों , सामन्तों और जनता में ब्रिटिश विरोधी भावना का संचार किया। सभी जगहों के चारण , भाटों ने स्थानीय वीर नायकों जैसे कुशालसिंह चांपावत , डुंगजी-जवारजी , करमा मीणा , लोटिया जाट आदि को प्रशंसा में वीररस के गीतों की रचना कर और जगह जगह इन्हें गाकर जनसामान्य को क्रान्ति के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न : आंग्ला राजपूत संधियों में निहित कारणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर : राजपूताना के लगभग सभी शासकों ने 1817-18 ईस्वीं में सहायक सन्धियाँ की जिनके पीछे दोनों के स्वार्थ थे।
राजपूतों के स्वार्थ – निम्नलिखित थे –
  1. राजपूताना राज्यों में पारस्परिक संघर्ष और गृहकलह।
  2. राजस्थान की राजनीति में कष्टदायी मराठों का प्रवेश।
  3. मराठों के हाथों राजस्थानी राज्यों की बर्बादी।
  4. सामन्तों के पारस्परिक झगडे और शासकों का दुर्बल होना।
  5. मुगल साम्राज्य का दुर्बल होना।
  6. पिंडारियों का आतंक , अत: अपनी सुरक्षा के लिए राजपूत राज्यों ने कम्पनी से संधि की।
अंग्रेजों के स्वार्थ निम्नलिखित थे
  1. ब्रिटिश क्षेत्रों में पिंडारियों का आतंक।
  2. लार्ड हेस्टिंग्ज की भारत में कम्पनी की सर्वश्रेष्ठता स्थापित करने की लालसा।
  3. राजपूताना को संरक्षण में लेने से वित्तीय साधनों में वृद्धि।
प्रश्न : राजपूताना में ब्रिटिश आधिपत्य के परिणाम लाभकारी नहीं रहे। स्पष्ट कीजिये।
उत्तर : राजपूताना राज्यों द्वारा ब्रिटिश संरक्षण स्वीकार करने के परिणामस्वरूप –
  1. शासकों की न केवल स्वतंत्र सत्ता समाप्त हो गयी बल्कि राज्यों की आर्थिक स्थिति बदतर हो गयी और सामान्य जनजीवन विषादपूर्ण बन गया।
  2. प्रशासन में भ्रष्टाचार बढ़ा तथा शासकों के भोगविलास में वृद्धि हुई।
  3. सामंतों की पद मर्यादा को क्षीण करने का प्रयास किया गया।
  4. लोगों पर पाश्चात्य संस्थायें तथा विचार थोपने का प्रयास किया गया।
  5. सामान्य जनता के रीति-रिवाजों को समाप्त करने की कोशिश की गयी।
  6. ब्रिटिश अधिकारियों और मिशनरियों द्वारा इसाई धर्म प्रचार से लोगों में अपना धर्म नष्ट होने की भावना पनपी।
  7. सामान्य जनता में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ जिसके कारण ही राजस्थान में 1857 ईस्वीं के विप्लव की अग्नि प्रज्ज्वलित हुई।